Tuesday, 26 August 2014

BJP: अटल बिहारी,आडवाणी और जोशी संसदीय बोर्ड से बाहर, त्रिमूर्ति को 'मार्ग' दिखाने का 'दर्शन', संसदीय बोर्ड की जगह मार्गदर्शक मंडल में रखकर विनम्र तरीके से उन्हें दरकिनार कर दिया

BJP: अटल बिहारी,आडवाणी और जोशी संसदीय बोर्ड से बाहर, त्रिमूर्ति को 'मार्ग' दिखाने का 'दर्शन', संसदीय बोर्ड की जगह मार्गदर्शक मंडल में रखकर विनम्र तरीके से उन्हें दरकिनार कर दिया

अटल बिहारी,आडवाणी और जोशी संसदीय बोर्ड से बाहर

 बुधवार, 27 अगस्त, 2014 को 07:34 IST

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को पार्टी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया है.
पार्टी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में ये जानकारी दी गई है. हालांकि इन दोनों नेताओं को पार्टी ने मार्गदर्शक मंडल में रखा है जिसमें पांच सदस्य शामिल हैं. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी शामिल है.
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने भाजपा के मार्गदर्शक मंडल को 'मूक दर्शक मंडल' और 'ओल्ड एज होम' कह कर चुटकी ली है.

नवनियुक्त भाजपा केंद्रीय संसदीय बोर्ड

1. अमित शाह (अध्यक्ष)
2. नरेंद्र मोदी
3. राजनाथ सिंह
4. अरूण जेटली
5. सुषमा स्वराज
6. एम. वैंकेया नायडू
7. नितिन गडकरी
8. अनंत कुमार
9. थावरचंद गेहलोत
10. शिवराज सिंह चौहान
11. जगत प्रकाश नड्डा
12. रामलाल

भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति

अमित शाह, राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी
1. अमित शाह (अध्यक्ष)
2. नरेंद्र मोदी
3. राजनाथ सिंह
4. अरूण जेटली
5. सुषमा स्वराज
6. एम. वैंकेया नायडू
7. नितिन गडकरी
8. अनंत कुमार
9. थावरचंद गेहलोत
10. शिवराज सिंह चौहान
11. जगत प्रकाश नड्डा
12. रामलाल
13. जुएल ओराम
14. शाहनवाज हुसैन
15. विजया रहाटकर (पदेन)

भाजपा मार्गदर्शक मण्डल

1. अटल बिहारी वाजपेयी
2. नरेन्द्र मोदी
3.लालकृष्ण आडवानी
4. मुरली मनोहर जोशी
5. राजनाथ सिंह

त्रिमूर्ति को 'मार्ग' दिखाने का 'दर्शन', संसदीय बोर्ड की जगह मार्गदर्शक मंडल में रखकर विनम्र तरीके से उन्हें दरकिनार कर दिया

आडवाणी, जोशी और वाजपेयी
भारतीय जनता पार्टी ने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को संसदीय बोर्ड की जगह मार्गदर्शक मंडल में रखकर विनम्र तरीके से उन्हें दरकिनार कर दिया है.
एक तरह से लालकृष्ण आडवाणी अपनी ही सियासत के शिकार हुए हैं.
दूसरी ओर मोदी ने अमित शाह के ज़रिए पार्टी पर पूर्ण नियंत्रण कायम कर लिया है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के बीच का पर्दा अब उठने लगा है.
इस कदम से क्या स्पष्ट संदेश दिया गया है और क्या है भाजपा की नई सियासत?

पूरा विश्लेषण:

आडवाणी और जोशी को भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में भेजना किसी तरह से उन्हें रिटायर करने की कोशिश है. लोकसभा चुनावों से पहले भी इसी तरह के प्रयास हुए थे, लेकिन तब वे इसके लिए राजी नहीं हुए थे.
चुनाव नतीजों के बाद नरेंद्र मोदी ने अमित शाह का इस्तेमाल कर भाजपा को पूरी तरह नियंत्रित कर लिया है.
अमित शाह, नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, लालकृष्ण आडवाणी
यह तीनों को 'अलविदा' कहने का एक विनम्र तरीका है - "आपने अच्छा नेतृत्व दिखाया, लेकिन अब आपका वक़्त ख़त्म हो गया है."
वाजपेयी तो वैसे भी लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे हैं और सियासत से दूर हैं, उन्हें भी इसी श्रेणी में शामिल कर इस तिकड़ी को सीधा संदेश दिया गया है.
जहां तक मार्गदर्शक मंडल में मोदी और राजनाथ को शामिल करने की बात है तो इसे एक 'फेस सेविंग एक्सरसाइज़' के रूप में देखा जा सकता है.
अगर सिर्फ़ तीन ही लोगों - वाजपेयी, आडवाणी और जोशी को इसमें शामिल किया जाता तो लगता कि इन्हें किनारे करने के लिए ही ये फ़ैसला लिया गया है. इसीलिए मोदी और राजनाथ को भी इसमें शामिल किया गया है.
पता नहीं इस मार्गदर्शक मंडल की कभी बैठक भी होगी या नहीं. हालाँकि, ये बात स्पष्ट है कि सरकार और पार्टी के स्तर पर जो भी फ़ैसले लिए जाएंगे वो 'कहीं और' ही होंगे.

अपनी ही सियासत का शिकार

नरेंद्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी
निश्चित तौर पर इस फ़ैसले से आडवाणी की निजी छवि को नुक़सान होगा.
लेकिन 2004 की चुनावी हार के बाद जब उन्होंने 2009 में खुद को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया तब से वह लगातार शिकस्त खाते रहे हैं. जब मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तब भी आडवाणी ने इसकी मुख़ालफ़त की थी. मोदी एक विनम्र तरीके से उन्हें दरकिनार कर रहे हैं.
आडवाणी जैसे वयोवृद्ध नेता के साथ जिस तरह का सलूक किया जा रहा है वो खराब तो लगता है, लेकिन आडवाणी एक तरह से अपनी ही राजनीति का शिकार हो गए हैं.
आरएसएस में मोदी
वाजपेयी जब 2002 में मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे तब आडवाणी ही उनके बचाव में उतरे थे.
तब इस राजनीति का फ़ायदा आडवाणी उठाना चाहते थे. ये कहना गलत नहीं होगा कि उसी सियासत ने आडवाणी जी को इस हाशिए पर पहुंचा दिया.

नई सियासत

भाजपा समर्थक
दरअसल, भाजपा में मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नियंत्रण बढ़ता जा रहा है.
2009 के बाद आडवाणी और आरएसएस के बीच रिश्ते काफ़ी ख़राब हुए हैं. तब से आरएसएस एक दूसरे नेतृत्व की तलाश में था.
अब जब भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है तब भाजपा और आरएसएस के बीच का पर्दा धीरे-धीरे उठ रहा है.
भाजपा की नई सियासत को परिभाषित करें तो भाजपा में आरएसएस की विचारधारा की जड़ें स्पष्ट होती जा रही हैं.

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