...तो इसलिए बेहाल हैं मुस्लिम देश (पाकिस्तान...)!
रविवार, 31 अगस्त, 2014 को 08:23 IST तक के समाचार
पाकिस्तानी मीडिया में दो मुद्दे लगातार छाए हैं. एक तो पाकिस्तान का सियासी संकट और दूसरा भारत से बातचीत टूटना.
औसाफ़ ने क्लिक करें
पाकिस्तान में जारी संकट में बतौर मध्यस्थ सेना प्रमुख की भूमिका को देश के हित में बताया है.
अख़बार के मुताबिक़ जब राजनेता संकट को हल करने में नाकाम हो गए तो सेना को आगे आना पड़ा है.
पेशावर से छपने वाले रोज़नामा मशरिक़ का कहना है कि संकट को सुलझाने के लिए क्लिक करें फ़ौज का दरवाज़ा खटखटाने से साफ़ है कि राजनेताओं को एक दूसरे पर तो भरोसा है ही नहीं बल्कि लोकतंत्र पर भी उनका विश्वास कम ही लगता है.
मुस्लिम देश
अख़बार की राय है कि मुस्लिम देशों में राजनेता अपने सियासी लक्ष्यों और इरादों को हासिल करने के लिए अफ़रा-तफ़री और हलचल पैदा करने वाले रास्तों को चुनते हैं, जिससे देश मुश्किल में घिरते हैं.
आजकल का इसी विषय पर कार्टून है जिसमें नवाज़ शरीफ़ और उनके साथी नदी में डूब रहे हैं जबकि परवेज़ मुशर्रफ़ एक ऊंचे से टीले पर बैठ कर मुस्करा रहे हैं.
अख़बार की राय है कि कश्मीर मसले में मुख्य पक्ष तो कश्मीरी हैं. ऐसे में अगर पाकिस्तान को कश्मीरियों के रुख़ की जानकारी नहीं होगी तो वे इस मुद्दे पर बातचीत कैसे करेगा.
कुछ ऐसी ही बातें जंग में छपे मलीहा लोधी के लेख में कही गई हैं जिसका शीर्षक है, "भारत की कलाबाजियां कोई नई बात नहीं."
'मंत्रियों के सपूत'
रुख़ भारत के उर्दू अखबारों का करें तो अख़बार-ए-मशरिक़ ने सवाल किया है कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया मशविरे के बाद क्या प्रधानमंत्री मोदी अपने मंत्रिमंडल से दागियों को चलता करेंगे?सियासत का संपादकीय है, 'केंद्रीय मंत्रियों के सपूत.' अखबार लिखता है कि जहां रेल मंत्री के बेटे के ख़िलाफ़ बलात्कार के मामले में गिरफ़्तारी वारंट जारी हुआ, वहीं गृह मंत्री अपने बेटे की ग़लत हरकतों के कारण चर्चा में है.
अख़बार कहता है कि सरकार का प्रमुख होने के नाते मोदी को अपने मंत्रियों पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए वरना सियासी घाटा उठाने के साथ साथ वैचारिक दिवालिएपन की स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है.
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