Friday, 20 March 2015

गीता 'राष्ट्रीय धर्मग्रंथ' नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

गीता 'राष्ट्रीय धर्मग्रंथ' नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

गीता 'राष्ट्रीय धर्मग्रंथ' नहीं है: सुप्रीम कोर्ट
गीता 'राष्ट्रीय धर्मग्रंथ' नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर पर सुनवाई करने से मना कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार को 'श्रीमद्भगवद् गीता' को राष्ट्रीय धर्मग्रंथ घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि पवित्र हिंदू ग्रंथ को लेकर अलग-अलग मतों के लोग भिन्न आस्था रखते हैं।

याची वकील एम. के. बालकृष्णन से अदालत ने कहा कि उनके द्वारा की गई मांग अदालत के दायरे से परे है। चीफ जस्टिस एच.एल. दत्त, जस्टिस एम.वाई. इकबाल और जस्टिस अरुण मिश्र ने कहा, 'एक व्यक्ति सोच सकता है कि यह मेरे लिए पवित्र ग्रंथ है तो दूसरा किसी अन्य ग्रंथ के बारे में यह कह सकता है।' देश की शीर्ष अदालत ने कहा, 'हर आदमी की पवित्र ग्रंथ के बारे में अलग मानसिकता है। फिर कैसे हम दिशा-निर्देश दे सकते हैं। लोगों के पास इस बात को सोचने की क्षमता है कि वे क्या पढ़ना चाहते हैं।'

जनहित याचिका (पीआईएल) को निरस्त करते हुए अदालत ने बालकृष्णन को 'गीता' का उपदेश याद दिलाया 'परिणाम की चिंता किए बगैर आप काम करें।' कोर्ट ने आगे कहा कि गीता के इसी उपदेश पर फिल्म 'संन्यासी' का एक गीत है- 'कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान।'

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