| Aug 3, 2015,
नई दिल्ली
क्या भारत सरकार ने बड़ी ही खामोशी के साथ पॉर्न वेबसाइट्स को बंद कर दिया है? कई सारी मशहूर पॉर्नोग्रफी वेबसाइट्स जैसे पॉर्नहब, ब्रेजर्स, रेडट्यूब, बैंग ब्रदर्स अब ब्लॉक हो गई हैं और उनकी जगह एक लाइन लिखी दिखाई दे रही है, 'इस साइट को सक्षम प्राधिकारी के निर्देश के मुताबिक ब्लॉक कर दिया गया है।'
पॉर्न वेबसाइट्स को ब्लॉक कर दिए जाने का मामला तब सामने आया, जब अचानक #पॉर्न_बैन ने ट्विटर पर ट्रेंड करना शुरू कर दिया। गौरतलब है कि डीएनए के मुताबिक यह दिक्कत उन्हीं यूजर्स के आगे आई जो एमटीएनएल, बीएसएनएल और एसीटी सर्विस प्रोवाइडर्स का इस्तेमाल करते हैं। एयरटेल और टाटा फोटोन आदि से इंटरनेट ऐक्सेस करने वालों को पॉर्न साइट ऐक्सेस करने में कोई समस्या नहीं आई।
लीगली इंडिया में छपे एक पीस में कहा गया है कि स्पेक्ट्रानेट के दिल्ली ब्रॉडबैंड कनेक्शन से सबसे मशहूर 13 पॉर्न वेबसाइट्स में से 11 ऐक्सेस नहीं हो पा रही थीं। हालांकि, मोबाइल फोन्स से कोशिश करने पर वे साइट्स ठीक से ऐक्सेस हो सकीं।
इससे पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तु ने घर पर पॉर्न देखने पर लगने वाले बैन को संविधान के 'आर्टिकल 21 का उल्लंघन' बताया था जिसके तहत हमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार मिलता है।
दत्तु ने कहा था कि इस तरह के आदेश पास नहीं किए जा सकते। उन्होंने कहा था, 'ऐसे अंतरिम आदेश यह कोर्ट पास नहीं कर सकती। कोर्ट में कोई भी आकर कह सकता है, 'देखिए! मैं वयस्क हूं और आप किस बिना पर मुझे मेरे घर की चारदीवारी में पॉर्न देखने से रोक सकते हैं? यह संविधान के आर्टिकल 21 यानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।' हां कुछ कदम उठाए जाने चाहिएं क्योंकि समस्या गंभीर है। केंद्र सरकार को इसपर मत बनाना होगा, देखते हैं वह क्या तय करती है।'
प्रमुख न्यायाधीश की यह टिप्पणी इंदौर निवासी वकील कमलेश वासवानी द्वारा सभी पॉर्न साइट्स को बैन करने की एक जनहित याचिका को विजय पंजवानी द्वारा पेश किये जाने पर आई थी।
याद दिला दें कि इससे पहले 2012 में कांग्रेस सरकार ने भी 'गैर-कानूनी' कॉन्टेंट दिखाने के लिए कई सारे फाइल शेयरिंग वेबसाइट्स और टॉरेंट्स को बंद करने का फैसला किया था जिसके बाद हैकरों ने सरकारी वेबसाइट्स हैक कर दी थीं और सरकार को यह फैसला वापस लेना पड़ा था।
ट्विटर पर #पॉर्न_बैन फिलहाल टॉप ट्रेंडिंग टॉपिक है। देखिए कुछ ट्वीट्स:
क्या भारत सरकार ने बड़ी ही खामोशी के साथ पॉर्न वेबसाइट्स को बंद कर दिया है? कई सारी मशहूर पॉर्नोग्रफी वेबसाइट्स जैसे पॉर्नहब, ब्रेजर्स, रेडट्यूब, बैंग ब्रदर्स अब ब्लॉक हो गई हैं और उनकी जगह एक लाइन लिखी दिखाई दे रही है, 'इस साइट को सक्षम प्राधिकारी के निर्देश के मुताबिक ब्लॉक कर दिया गया है।'
पॉर्न वेबसाइट्स को ब्लॉक कर दिए जाने का मामला तब सामने आया, जब अचानक #पॉर्न_बैन ने ट्विटर पर ट्रेंड करना शुरू कर दिया। गौरतलब है कि डीएनए के मुताबिक यह दिक्कत उन्हीं यूजर्स के आगे आई जो एमटीएनएल, बीएसएनएल और एसीटी सर्विस प्रोवाइडर्स का इस्तेमाल करते हैं। एयरटेल और टाटा फोटोन आदि से इंटरनेट ऐक्सेस करने वालों को पॉर्न साइट ऐक्सेस करने में कोई समस्या नहीं आई।
लीगली इंडिया में छपे एक पीस में कहा गया है कि स्पेक्ट्रानेट के दिल्ली ब्रॉडबैंड कनेक्शन से सबसे मशहूर 13 पॉर्न वेबसाइट्स में से 11 ऐक्सेस नहीं हो पा रही थीं। हालांकि, मोबाइल फोन्स से कोशिश करने पर वे साइट्स ठीक से ऐक्सेस हो सकीं।
इससे पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तु ने घर पर पॉर्न देखने पर लगने वाले बैन को संविधान के 'आर्टिकल 21 का उल्लंघन' बताया था जिसके तहत हमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार मिलता है।
दत्तु ने कहा था कि इस तरह के आदेश पास नहीं किए जा सकते। उन्होंने कहा था, 'ऐसे अंतरिम आदेश यह कोर्ट पास नहीं कर सकती। कोर्ट में कोई भी आकर कह सकता है, 'देखिए! मैं वयस्क हूं और आप किस बिना पर मुझे मेरे घर की चारदीवारी में पॉर्न देखने से रोक सकते हैं? यह संविधान के आर्टिकल 21 यानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।' हां कुछ कदम उठाए जाने चाहिएं क्योंकि समस्या गंभीर है। केंद्र सरकार को इसपर मत बनाना होगा, देखते हैं वह क्या तय करती है।'
प्रमुख न्यायाधीश की यह टिप्पणी इंदौर निवासी वकील कमलेश वासवानी द्वारा सभी पॉर्न साइट्स को बैन करने की एक जनहित याचिका को विजय पंजवानी द्वारा पेश किये जाने पर आई थी।
याद दिला दें कि इससे पहले 2012 में कांग्रेस सरकार ने भी 'गैर-कानूनी' कॉन्टेंट दिखाने के लिए कई सारे फाइल शेयरिंग वेबसाइट्स और टॉरेंट्स को बंद करने का फैसला किया था जिसके बाद हैकरों ने सरकारी वेबसाइट्स हैक कर दी थीं और सरकार को यह फैसला वापस लेना पड़ा था।
ट्विटर पर #पॉर्न_बैन फिलहाल टॉप ट्रेंडिंग टॉपिक है। देखिए कुछ ट्वीट्स:
If #पोर्न_बैन then what shall our legislators do in the assembly.
— AAM aadmi (@AAM_aadmi__) August 2, 2015
Will people spend money of high speed internet after #पोर्न_बैन? Investors are concerned! Stocks of various telecomm operators will plunge
— Abhishek Pratap (@Th_AbhishekPrtp) August 2, 2015
UP boys r in great mystery ,dey don't know what to do with free laptops after #पोर्न_बैन
— Parshuram#HDL (@arabgosaami) August 2, 2015
#पोर्न_बैन yay! Now India is just a alcohol ban and a pork ban short of becoming an Islamic nation yay! :p
— Bilquis Rayeen (@BilquisRayeen) August 2, 2015
First laws against men then #पोर्न_बैन... Ban erection too, that would make India a male-free nation
— shubham sourav (@shubham_sourav) August 2, 2015
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर सरकार ने बैन कीं 857 पॉर्न साइट्स. ट्विटर पर मची हलचल
नई दिल्ली
पॉर्न_बैन को लेकर सब परेशान रहे। रविवार को दिनभर ट्विटर, फेसबुक पर इसी
बात की चर्चा चलती रही कि कैसे अचानक कुछ पॉर्न साइट्स खुलनी बंद हो गईं।
अब पता चला है कि भारत सरकार ने टेलिकॉम ऑपरेटरों और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों को 857 पॉर्न साइट्स को ब्लॉक करने को कहा है।
सरकार के इस कदम को नागरिकों के निजी जीवन में सेंध और अपने घर की
चारदीवारी में अडल्ट कॉन्टेंट देखने के अधिकार का हनन माना जा रहा है।
यूजर्स ने शिकायत की कि कुछ ऐसी अडल्ट वेबसाइट्स भी ब्लॉक कर दी गई हैं जिनमें कोई पॉर्नोग्रफिक कॉन्टेंट नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार चाइल्ड पॉर्न के खिलाफ कदम उठाने की आड़ लेकर इन वेबसाइट्स पर ऐक्शन ले रही है और नागरिकों के निजी जीवन में हस्तक्षेप कर रही है।
हालांकि, सरकारी सूत्रों ने इस तरह की किसी भी कार्रवाई से इनकार किया। उन्होंने कहा, टेलिकॉम विभाग में ऐक्सेस न मिलना अस्थायी था और यह रेग्युलर नियंत्रण लाने से पहले का एक प्रयास था।
उन्होंने कहा कि यह निर्देश पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट द्वारा चाइल्ड पॉर्नोग्रफी रोकने में गृह मंत्रालय के असफल प्रयासों पर की गई टिप्पणी के कारण जरूरी हो गया था और दावा भी किया कि इसके पीछे लोगों के निजी जीवन में बाधक बनने की कोई मंशा नहीं थी।
टेलिकॉम कम्पनियों के एग्जेक्युटिव्स ने कहा कि सभी साइट्स को एकसाथ तत्काल ब्लॉक किया जाना संभव नहीं है। नाम न बताने की शर्त पर एक एग्जेक्युटिव ने कहा कि, 'हमें एक-एक कर साइट्स को ब्लॉक करना होता है और सभी सर्विस प्रोवाइडरों को सारी साइट्स ब्लॉक करने में वक्त लगेगा।'
हालांकि, यह इनकार उन लोगों को पच नहीं रहा है, जो मानते हैं कि वर्तमान में सेक्स को लेकर हमारे यहां असहज होने वाले लोगों की बहुलता है और रोक वेब को पॉर्न को वेब मुक्त करने की बड़ी कोशिश का शुरुआती हिस्सा हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताते हुए कहा था कि एक नागरिक को अपने बेडरूम में अडल्ट वेबसाइट्स देखने से नहीं रोका जाना चाहिए।
टेलिकॉम विभाग के सूत्रों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के आधार पर सरकार का विचार सिर्फ उन तरीकों पर रोक लगाने तक सीमित है जिनके तहत साइबर कैफे जैसी जगहों पर इन साइट्स को सार्वजनिक रूप से न देखा जा सके।
सूत्रों ने कहा, 'यह आदेश आर्टिकल 19(2) सूचना तकनीक कानून के प्रावधानों के तहत ही है जिनके मुताबिक सरकार के पास शालीनता और नैतिकता के संरक्षण के लिए प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। '
आलोचकों ने जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगाने के लिए नहीं कहा था। प्रमुख न्यायाधीश एच एल दत्तु की एक बंच ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन किया था। बेंच ने कहा था, 'इस मुद्दे से सरकार को निपटना होगा। क्या हम सभी अडल्ट वेबसाइट्स को ब्लॉक करने के लिए अंतरिम आदेश ला सकते हैं? और यह ध्यान रहे कि हमसे कोई व्यक्ति जरूर यह पूछेगा, कि मैंने अडल्ट वेबसाइट अपने घर की चारदीवारी के भीतर देखकर क्या अपराध किया है। क्या वह बिना किसी कानून का उल्लंघन किये अपने घर की चारदीवारी में कुछ भी करने की स्वतंत्रता के अधिकार पर सवाल नहीं उठाएगा?'
यूजर्स ने शिकायत की कि कुछ ऐसी अडल्ट वेबसाइट्स भी ब्लॉक कर दी गई हैं जिनमें कोई पॉर्नोग्रफिक कॉन्टेंट नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार चाइल्ड पॉर्न के खिलाफ कदम उठाने की आड़ लेकर इन वेबसाइट्स पर ऐक्शन ले रही है और नागरिकों के निजी जीवन में हस्तक्षेप कर रही है।
हालांकि, सरकारी सूत्रों ने इस तरह की किसी भी कार्रवाई से इनकार किया। उन्होंने कहा, टेलिकॉम विभाग में ऐक्सेस न मिलना अस्थायी था और यह रेग्युलर नियंत्रण लाने से पहले का एक प्रयास था।
उन्होंने कहा कि यह निर्देश पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट द्वारा चाइल्ड पॉर्नोग्रफी रोकने में गृह मंत्रालय के असफल प्रयासों पर की गई टिप्पणी के कारण जरूरी हो गया था और दावा भी किया कि इसके पीछे लोगों के निजी जीवन में बाधक बनने की कोई मंशा नहीं थी।
टेलिकॉम कम्पनियों के एग्जेक्युटिव्स ने कहा कि सभी साइट्स को एकसाथ तत्काल ब्लॉक किया जाना संभव नहीं है। नाम न बताने की शर्त पर एक एग्जेक्युटिव ने कहा कि, 'हमें एक-एक कर साइट्स को ब्लॉक करना होता है और सभी सर्विस प्रोवाइडरों को सारी साइट्स ब्लॉक करने में वक्त लगेगा।'
हालांकि, यह इनकार उन लोगों को पच नहीं रहा है, जो मानते हैं कि वर्तमान में सेक्स को लेकर हमारे यहां असहज होने वाले लोगों की बहुलता है और रोक वेब को पॉर्न को वेब मुक्त करने की बड़ी कोशिश का शुरुआती हिस्सा हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताते हुए कहा था कि एक नागरिक को अपने बेडरूम में अडल्ट वेबसाइट्स देखने से नहीं रोका जाना चाहिए।
टेलिकॉम विभाग के सूत्रों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के आधार पर सरकार का विचार सिर्फ उन तरीकों पर रोक लगाने तक सीमित है जिनके तहत साइबर कैफे जैसी जगहों पर इन साइट्स को सार्वजनिक रूप से न देखा जा सके।
सूत्रों ने कहा, 'यह आदेश आर्टिकल 19(2) सूचना तकनीक कानून के प्रावधानों के तहत ही है जिनके मुताबिक सरकार के पास शालीनता और नैतिकता के संरक्षण के लिए प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। '
आलोचकों ने जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगाने के लिए नहीं कहा था। प्रमुख न्यायाधीश एच एल दत्तु की एक बंच ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन किया था। बेंच ने कहा था, 'इस मुद्दे से सरकार को निपटना होगा। क्या हम सभी अडल्ट वेबसाइट्स को ब्लॉक करने के लिए अंतरिम आदेश ला सकते हैं? और यह ध्यान रहे कि हमसे कोई व्यक्ति जरूर यह पूछेगा, कि मैंने अडल्ट वेबसाइट अपने घर की चारदीवारी के भीतर देखकर क्या अपराध किया है। क्या वह बिना किसी कानून का उल्लंघन किये अपने घर की चारदीवारी में कुछ भी करने की स्वतंत्रता के अधिकार पर सवाल नहीं उठाएगा?'
सरकार ऑनलाइन पॉर्न
पर पाबंदी के रास्ते पर दबे पांव ही सही, चल पड़ी है। उसे बधाई देने वाले
और आड़े हाथों लेने वाले झंडाबरदारों ने अपने-अपने मोर्चे संभाल लिए हैं।
लेकिन न भई, ये तो बड़ी ही ग़लत बात है। कुछ लोग हैं जिनसे पूछे बिना ऐसा
क़दम उठाना कहीं से भी जायज़ नहीं !
और कुछ नहीं तो देश की तमाम विधानसभाओं
में ही सवाल पुछवा लेते कि क्या हमारे सभी विधायक इसको लेकर सहमत हैं? कहीं
ऐसा तो नहीं कि पॉर्न बैन होते ही वो विधायकी से इस्तीफ़ा दे दें और यूराल
पर्वत श्रृंखला में स्थित गुफ़ाओं में समाधि लगा लें !
सरकारजी, जिन टेलीकॉम कंपनियों से इतना डर
लगता है कि आधी अधूरी नेट न्यूट्रैलिटी पर राज़ी हो गए, उनसे मशविरा करना
भी तो ज़रूरी है। हो सकता है कि डेटा चार्ज के जिस दम पर कंपनियां मुनाफ़े
की चादर तान कर चैन की नींद सो पा रही हैं...उस चदरिया झीनी के अंदर तूफ़ान
आया हो, हलचल मची हो। ऐसे 'शरारती लिहाफ़ों' पर पाबंदी से पहले कंपनियों
की इजाज़त लेना भी ज़रूरी जान पड़ता है। वरना कल को कहीं क़दम पीछे न
खींचने पड़ जाएं।
महाशय, इस बैन से देश के स्किल इंडिया के
सपने में भी पलीता लगने की आशंका है। कहीं करोड़ों इंजिनियरिंग छात्र बिदक
गए तो बलवा कर देंगे। छात्र आईआईटी के हों या आईटीआई के, कुछ स्किलों पर
महारथ की मुराद तो सबकी रहती है !
और हां, ज़ाहिर है आप सरकार हैं...पूरा
देश चला रहे हैं, तो इस बैन के पीछे कोई न कोई अध्ययन, कोई देशव्यापी
सर्वे, स्टडी जैसा ज़रूर कुछ रहा होगा। क्या कहा? ऐसी कोई स्टडी नहीं हुई
जो बता रही हो कि यौन हिंसा जैसे मामलों के लिए पॉर्न ज़िम्मेदार है।
हूं...दिल्ली से नागपुर तक देखी जाने वाली साइट किसी दबाव में तो बंद नहीं
कीं न?
अभी कुछ ही दिन तो हुए जब पंजवानी और
वासवानी, देश की जवानी बचाने के निस्वार्थ काम के लिए सबसे बड़ी अदालत के
दरवाज़े पर पहुंच गए थे, लेकिन मुख्य न्यायाधीश को ये संविधान के अनुच्छेद
21 यानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन लगा।
ज़ाहिर है, सरकार को ऐसा नहीं लगता। तभी
तो वो गुपचुप 'बैनिस्तान' की गली में दाख़िल हो गई है। इस सारी क़वायद का
मक़सद चाइल्ड पॉर्न पर लगाम लगाना भी है, जिसकी बेशक ज़रूरत भी है। लेकिन,
जिस तरह आनन फानन में ये सारी कार्यवाही शुरू हुई है, उससे आने वाले दिनों
में इस मुद्दे को लेकर सरकार की सोच भी साफ़ हो जाती है। यानी, गाज घर की
चारदीवारी में बैठ कर पॉर्न देखने की आज़ादी दिए जाने की वकालत करने वालों
पर भी गिर सकती है। अगर वाकई ऐसा हुआ तो सरकार पर कुछ ख़ास दबावों के तहत
काम करने के आरोप को मज़बूती ही मिलेगी।
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