Thursday 12 December 2013

बांग्लादेश के जमात नेता अब्दुल कादिर मुल्ला की फांसी बरकरार

बांग्लादेश के जमात नेता अब्दुल कादिर मुल्ला की फांसी बरकरार

  ढाका, 12 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 14:32 IST
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जमात-ए-इस्लामी नेता अब्दुल कादिर मुल्ला
जमात-ए-इस्लामी नेता अब्दुल कादिर मुल्ला
बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने 1971 के मानवता विरोधी अपराध के लिए जमात-ए-इस्लामी नेता अब्दुल कादिर मुल्ला की सजा-ए-मौत की पुष्टि कर दी. प्रधान न्यायाधीश मुजम्मिल हुसैन ने समीक्षा याचिका पर दो दिन की सुनवाई के बाद खचाखच भरे अदालत कक्ष में कहा, खारिज. मुल्ला की याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय आया जब दो दिन पहल ही आखिरी क्षण में मुल्ला को राहत देते हुए नाटकीय तौर पर उनकी सजा-ए-मौत की तामील पर रोक लगा दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उच्च सुरक्षा वाले ढाका केन्द्रीय कारावास में बंद 65 वर्षीय मुल्ला को सजा देने के मार्ग का आखिरी अवरोध खत्म हो गया. उल्लेखनीय है कि युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने 5 फरवरी को मुल्ला को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उसके बाद, 17 सितंबर को अपीली विभाग ने फैसले को संशोधित कर दिया और उसे बढ़ा कर सजा-ए-मौत में बदल डाली. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर न्यायाधिकरण ने मुल्ला के लिए एक मृत्यु वारंट जारी किया. मुल्ला ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान जो जुल्म ढाए थे और पाकिस्तानी सैनिकों की हिमायत की थी, उसके लिए उसे मीरपुर का कसाई कहा गया.
मुल्ला को मंगलवार को रात के 12 बज कर एक मिनट पर फांसी पर लटकाया जाना था. लेकिन उससे 2 घंटे पहले सजा-ए-मौत की तामील टाल दी गई. सजा-ए-मौत की तामील स्थगन करने का आदेश ऐसे वक्त आया जब जेल अधिकारी मुल्ला को फांसी पर लटकाने के लिए तैयार थे. मुल्ला के वकीलों ने मुल्ला को सजा-ए-मौत सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए एक याचिका दायर की थी. स्थगनादेश उसी याचिका पर दिया गया था.

बांग्लादेश: मुल्ला की फांसी की सज़ा बरक़रार

 गुरुवार, 12 दिसंबर, 2013
अब्दुल कादिर मुल्ला
मुल्ला को पहले आजीवन कारावास की सज़ा दी गई थी जिसे बाद में फाँसी में बदल दिया गया.
बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने कट्टरपंथी इस्लामी नेता अब्दुल कादर मुल्ला को दी गई मौत की सज़ा को बरक़रार रखा है.
जज ने मौत की सज़ा पर उनकी पुनर्विचार याचिका को रद्द करते हुए कहा कि इससे उन्हें फाँसी दिए जाने का रास्ता साफ़ हो गया है.
अब्दुल कादर मुल्ला को मंगलवार को फाँसी दी जानी थी लेकिन उन्हें अंतिम समय में राहत मिल गई.

साल 1971 में पाकिस्तान से आज़ादी के लिए हुए युद्ध में मानवता के ख़िलाफ़ अपराध करने के मामले में अब्दुल कादर मुल्ला को इसी साल फ़रवरी में अदालत ने आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी.
जमात-ए-इस्लामी पार्टी के शीर्ष नेता कादर मुल्ला आरोपों को नकारते रहे हैं.
कादर मुल्ला पर चले मुक़दमे के विरोध में जमात-ए-इस्लामी ने व्यापक प्रदर्शन किए. उनके समर्थक सरकार पर राजनीतिक साज़िश का आरोप लगाते रहे हैं.
जमात-ए-इस्लामी पार्टी के क्लिक करें कई शीर्ष नेता युद्ध अपराध मुक़दमे के सिलसिले में जेल में है.
अब्दुल कादर मुल्ला
अब्दुल कादर मुल्ला ने आरोपों से हमेशा इनकार किया है.
अटॉर्नी जनरल महबूबे आलम ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से कहा, "अब उनकी फांसी में कोई क़ानूनी अड़चन नहीं है."

प्रदर्शन

मुल्ला उन पांच नेताओं में से हैं जिन्हें बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने फ़ांसी की सज़ा दी है. इस न्यायधिकरण की स्थापना 1971 के संघर्ष के दौरान हुए अत्याचारों की जांच के लिए साल 2010 में की गई थी. कुछ अनुमानों के मुताबिक 1971 के अत्याचारों में 30 लाख लोगों की मौत हुई थी.
मुल्ला जमात-ए-इस्लामी के सहायक महासचिव हैं. मुल्ला को शुरुआत में आजीवन कारावास की सज़ा दी गई थी. उन्हें ढाका के उपनगर मीरपुर में निहत्थे नागरिकों और बुद्धिजीवियों की हत्या का दोषी पाया गया था.
इसके बाद हज़ारों प्रदर्शनकारियों

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