तो सतपाल बनेंगे उत्तराखंड के अगले मुख्यमंत्री?
सतपाल के इस दांव के मायने
उत्तराखंड में दिग्गज कांग्रेसी नेता
सतपाल महाराज का पार्टी छोड़कर भाजपा में प्रवेश महज नाराजगी के बाद उठाया
गया कदम नहीं है। सब पत्ते ठीक चले और सब योजनाबद्ध रूप से हुआ तो वह
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं या फिर उनके किसी विश्वस्त को
सत्ता सौंपी जा सकती है। कांग्रेस के तंग गलियारों के बजाय भाजपा में उनके
लिए कई विकल्प खुले हैं।
जहां भाजपा से तीनों पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खण्डूड़ी, कोश्यारी और डॉ. रमेश पोखरियाल संसद का चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं इस बात की राह देखी जा रही है कि सतपाल की बगावत और फिर पार्टी छोड़ना कांग्रेस को कहां तक धाराशाही कर सकता है। महज उत्तराखंड की लोकसभा की पांच सीट ही नहीं, राज्य में कांग्रेस सरकार की स्थिति भी डावांडोल हो सकती है।
अब देखा यही जा रहा है कि सतपाल महाराज अपने साथ-साथ कितने कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों को तोड़ सकते हैं। उत्तराखंड सरकार में उनकी पत्नी अमृता रावत मंत्री हैं और निर्दलीय जीतकर मंत्री बने मंत्री प्रसाद नैथानी उनके करीबियों में हैं। सतपाल महाराज अपने साथ अगर विधायकों की अपेक्षित संख्या में जोड़ पाते हैं तो उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन को नकारा नहीं जा सकता। दिल्ली में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भले ही सरकार बनाने में संकोच किया हो, लेकिन उत्तराखंड में भाजपा पीछे नहीं
जहां भाजपा से तीनों पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खण्डूड़ी, कोश्यारी और डॉ. रमेश पोखरियाल संसद का चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं इस बात की राह देखी जा रही है कि सतपाल की बगावत और फिर पार्टी छोड़ना कांग्रेस को कहां तक धाराशाही कर सकता है। महज उत्तराखंड की लोकसभा की पांच सीट ही नहीं, राज्य में कांग्रेस सरकार की स्थिति भी डावांडोल हो सकती है।
अब देखा यही जा रहा है कि सतपाल महाराज अपने साथ-साथ कितने कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों को तोड़ सकते हैं। उत्तराखंड सरकार में उनकी पत्नी अमृता रावत मंत्री हैं और निर्दलीय जीतकर मंत्री बने मंत्री प्रसाद नैथानी उनके करीबियों में हैं। सतपाल महाराज अपने साथ अगर विधायकों की अपेक्षित संख्या में जोड़ पाते हैं तो उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन को नकारा नहीं जा सकता। दिल्ली में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भले ही सरकार बनाने में संकोच किया हो, लेकिन उत्तराखंड में भाजपा पीछे नहीं
भाजपा में आने के बाद तमाम विकल्प खुले
वर्तमान स्थितियों में कांग्रेस में
सतपाल महाराज के लिए कुछ खास अवसर नहीं बन रहे थे। जिस पौड़ी लोकसभा सीट से
वह चुनकर आए थे, वहां इस बार उनके लिए रास्ता सहज नहीं था। यही माना जा
रहा था कि इस बार उनके लिए पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूड़ी के सामने
टिक पाना मुश्किल होगा। हालात को देखते हुए उन्होंने टिकट लेने से भी इंकार
किया।
दूसरी ओर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद उनके लिए राज्य की बागडोर संभालने का अवसर भी निकल गया। सतपाल महाराज ने अच्छी तरह समझा होगा कि अब सामान्य स्थिति में हरीश रावत को ही अगले विधानसभा चुनाव तक सत्ता संभालनी है।
इस हालात में उनके लिए संतोष करने लायक यही स्थिति रहती कि प्रदेश की सरकार में उनकी पत्नी कबीना मंत्री हैं। यह राजनीति में अवसरों के लिए जुगाली करने जैसी बात होती। लेकिन भाजपा में आने के बाद उनके सामने तमाम विकल्प खुल गए हैं। भाजपा उन्हें राज्यसभा में भी भेज सकती है।
दूसरी ओर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद उनके लिए राज्य की बागडोर संभालने का अवसर भी निकल गया। सतपाल महाराज ने अच्छी तरह समझा होगा कि अब सामान्य स्थिति में हरीश रावत को ही अगले विधानसभा चुनाव तक सत्ता संभालनी है।
इस हालात में उनके लिए संतोष करने लायक यही स्थिति रहती कि प्रदेश की सरकार में उनकी पत्नी कबीना मंत्री हैं। यह राजनीति में अवसरों के लिए जुगाली करने जैसी बात होती। लेकिन भाजपा में आने के बाद उनके सामने तमाम विकल्प खुल गए हैं। भाजपा उन्हें राज्यसभा में भी भेज सकती है।
कांग्रेस का आंतरिक द्वंद
राज्य में कांग्रेस की सरकार जिन
परिस्थितियों में बनी थी, उसमें असंतोष के बीज उसी दिन पड़ गए थे। कांग्रेस
कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार तो बना सकी, लेकिन उसके छत्रपों
में द्वंद्व चलता रहा। कांग्रेस हाइकमान के जरिए विजय बहुगुणा को
मुख्यमंत्री बनाए जाने पर हरीश खेमा ने त्यौरियां दिखाई तो सतपाल महाराज
कसमसाते रह गए।
लेकिन विजय बहुगुणा ने धीरे-धीरे सतपाल महाराज को मना लिया। विजय बहुगुणा के मंत्रिमंडल में अमृता रावत प्रभावशाली मंत्री के तौर पर रही। लेकिन बदली परिस्थितियों में जब हरीश रावत ने राज्य की सत्ता संभाली तो सब कुछ पहले की तरह अनुकूल नहीं था। सतपाल महाराज ने कुर्सी की लड़ाई जम कर लड़ी। लेकिन हरीश रावत बाजी मार गए।
कांग्रेस का आतंरिक द्दंद्व खुल कर सामने आता रहा।
लेकिन विजय बहुगुणा ने धीरे-धीरे सतपाल महाराज को मना लिया। विजय बहुगुणा के मंत्रिमंडल में अमृता रावत प्रभावशाली मंत्री के तौर पर रही। लेकिन बदली परिस्थितियों में जब हरीश रावत ने राज्य की सत्ता संभाली तो सब कुछ पहले की तरह अनुकूल नहीं था। सतपाल महाराज ने कुर्सी की लड़ाई जम कर लड़ी। लेकिन हरीश रावत बाजी मार गए।
कांग्रेस का आतंरिक द्दंद्व खुल कर सामने आता रहा।
सतपाल ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किलें
सतपाल महाराज अपनी नाराजगी को व्यक्त करने से नहीं चूके। उधर अमृता रावत के पास से उद्यान विभाग लेकर डॉ हरक सिंह रावत को दे दिया गया। डॉ हरक सिंह रावत और सतपाल महाराज के करीबी मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी के बीच पहले भी एक दो मामलों को लेकर नोकंझोंक होती रही हैं।इस बार उद्यान विभाग के हाथ से निकलने पर सतपाल महाराज धड़े ने इसे प्रतिष्ठा से जोड़ा। यही माना गया कि कहीं न कहीं हरीश रावत इसके जरिए सतपाल महाराज की अहमियत को कम आंक रहे हैं। हुआ यही कि सतपाल महाराज ने पहले तो लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार किया और फिर चौंकाते हुए भाजपा के पाले में चले गए। राज्य कांग्रेस के आला नेताओं को इस बारे में आभास था।
मुख्यमंत्री हरीश रावत और विजय बहुगुणा की दिल्ली में बातचीत का सबसे अहम पहलू इसी संभावित बगावत और उसके बाद के हालात ही थे। हालांकि कहा यही गया कि हरीश रावत विजय बहुगुणा को मनाने और टिहरी से चुनाव लड़ने के लिए तैयार करने आए थे। उत्तराखंड में सतपाल महाराज का कांग्रेस छोड़ने के बाद कांग्रेस के सामने कई और मुश्किले आने वाली है। सतपाल महाराज ने कांग्रेस छोड़ने के पीछे के आपदा प्रंबंधन में सरकार की असफलता को आड़े हाथ लिया है। कांग्रेसी खेमे में पहले ही सुकून नहीं था, सतपाल महाराज की बगावत ने उसकी दिक्कतों को और बढ़ा दिया है।
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