मिले प्लास्टिक के मैडल: नक्सलियों से लड़े, मरे... मिले प्लास्टिक के मैडल ::::नक्सलियों के हाथों मारे गए लोगों के परिजनों की व्यथा
नक्सलियों से लड़े, मरे... मिले प्लास्टिक के मैडल
शनिवार, 22 मार्च, 2014 को 11:34 IST तक के समाचार
बिंजाम गाँव में उदासी छाई हुई
है. यहाँ एक बार फिर मातम का माहौल है. किसी ने यहाँ के रहने वालों के
ज़ख़्मों को फिर से हरा कर दिया है.
इससे पहले वर्ष 2011 की नौ जून को यहाँ मातम तब
पसरा था जब इसी गाँव के तीन नौजवान दंतेवाड़ा के कटेकल्याण के इलाक़े में
हुए एक बारूदी सुरंग विस्फोट में मारे गए थे.अगले साल, यानि 2006 में 26 जनवरी के दिन दंतेवाड़ा के कारली स्थित पुलिस लाइन में एक समारोह आयोजित कर मारे गए विशेष पुलिस अधिकारियों को सम्मान दिया गया. बस्तर की तत्कालीन प्रभारी मंत्री ने मारे गए जवानों के परिजनों को मैडल भी दिए.
मगर जवानों के परिवारों को झटका तब लगा जब सम्मान में दिए गए मैडलों का रंग उतरने लगा. पता चला कि यह सभी मैडल प्लास्टिक के हैं.
अस्थाई नौकरी
योगेश मडियामी के पिता रूपाराम मडियामी के लिए सम्मान का पदक दरअसल अब अपमान का पदक बन गया है. गाँव में बनी उनकी झोपड़ी की दीवार से टंगे-टंगे जैसे अब यह पदक उन्हें चिढ़ा रहा है.दंतेवाड़ा से 12 किलोमीटर दूर अपने गाँव में जब बीबीसी से उनकी मुलाक़ात हुई तो वो काफ़ी आहत नज़र आए.
कहने लगे, "मंत्री लता उसेंडी ने पदक देते वक़्त हमसे कहा था कि यह सोने का है और इसे संभाल कर रखना. सोना क्या रहेगा, यह तो लोहे का भी नहीं है. अब पता चल रहा है कि यह तो प्लास्टिक का है. यह हमारे परिवार का सम्मान नहीं, बल्कि अपमान है."
जिस तरह से मुआवज़े की रक़म दी गई वह भी कम अपमानजनक नहीं था. रूपाराम बताते हैं कि सबसे पहले उन्हें बेटे के दाह-संस्कार के लिए एक लाख रुपये दिए गए थे. फिर तीन महीने बाद उन्हें पांच लाख रुपये और मिले. कुछ ही दिनों बाद उनसे एक लाख रुपये वापस लौटाने को कहा गया.
सरकार की नीति के अनुसार, नक्सल विरोधी अभियान में मारे गए सुरक्षा बल के जवानों के परिजनों को अनुकम्पा के आधार पर स्थायी सरकारी नौकरी और मकान भी दिया जाता है.
बिंजाम के मारे गए विशेष पुलिस अधिकारियों के आश्रितों को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी तो दी गई, मगर दैनिक वेतन भोगी की.
योगेश की बहन प्रभा को दंतेवाड़ा के कन्या छात्रावास में दैनिक वेतन भोगी चपरासी की नौकरी मिली. बख्शु ओयामी के भाई पन्द्रू ओयामी के भाई को बालक छात्रावास में रसोइये की नौकरी मिली जो अस्थाई है. इसी तरह चमनलाल की पत्नी को भी चपरासी की अस्थाई नौकरी दी गई.
मरहम !
मैडलों पर से रंग उतरता देख, मारे गए विशेष पुलिस अधिकारियों के परिवारों के चेहरे एक बार फिर बोझिल होने लगे हैं.योगेश की माँ आमवारी के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे. वह अब बात करने की स्थिति में नहीं हैं. दो साल पहले के उनके ज़ख़्म एक बार फिर हरे हो गए हैं.
वह कहते हैं, "ये एक गंभीर मामला है. हम सुनिश्चित करेंगे कि जिन पुलिस के जवानों ने अपनी जान देकर इलाक़े में शांति स्थापित करने के लिए क़ुर्बानी दी है, उन्हें पूरा सम्मान मिले."
एक मंत्री के दिए ज़ख्मों और दूसरे मंत्री के मरहम के बीच अब छत्तीसगढ़ में इस बात पर बहस छिड़ गई है कि नक्सल विरोधी अभियान में इतनी राशि के आवंटन के बावजूद मारे गए जवानों के परिजनों को रुसवाई क्यों उठानी पड़ रही है.
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