NARAYAN MURTI INFOSYS: मूर्ति आये और बड़े अधिकारी गये, इंफोसिस में एक और इस्तीफा
मूर्ति आये और बड़े अधिकारी गये, इंफोसिस में एक और इस्तीफा
नई दिल्ली। इंफोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति के चेयरमैन पद पर
वापसी के बाद से शीर्ष अधिकारियों का कंपनी छोड़ना जारी है। कंपनी के भारतीय
कारोबार के ऑपरेशन हेड चंद्रशेखर काकाल ने गुरुवार को अपने पद से इस्तीफा
दे दिया। प्रबंधन के वह नौंवे ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने यह रास्ता
अख्तियार किया है। मूर्ति ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि कंपनी में जो बेहतर प्रदर्शन नहीं करेंगे उन्हें जाना होगा। काकाल वर्ष 1999 से इंफोसिस को सेवाएं दे रहे थे। वह कंपनी के वैश्रि्वक कारोबार में एप्लिकेशन डेवलपमेंट, मेंटेनेंस, टेस्टिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट सेवाएं भी दे रहे थे। वह इंफोसिस बीपीओ के बोर्ड में भी शामिल थे।
इंफोसिस ने अमेरिकी बाजार नियामक एसईसी को दी गई जानकारी में कहा कि कंपनी के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट और एक्जिक्यूटिव काउंसिल के सदस्य चंद्रशेखर काकाल ने 19 मार्च, 2014 को कंपनी से इस्तीफे की इच्छा जताई। उनका इस्तीफा 18 अप्रैल से प्रभावी होगा। इससे पहले जुलाई 2013 में कंपनी के ग्लोबल सेल्स हेड बासब प्रधान और अगस्त में ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हेड अशोक वेमूरी ने कंपनी छोड़ी थी।
नवंबर में इंफोसिस कंसल्टिंग के सह संस्थापक स्टीफन प्रैट ने इस्तीफा दिया था। सितंबर में ऑस्ट्रेलिया में बीपीओ सेल्स हेड कार्तिक जयरमन और बीपीओ हेड लैटिन अमेरिका हम्बटरे एंद्राडे ने कंपनी छोड़ी थी।
इस शख्स की सैलरी है 1 रुपये, कंपनी का कारोबार 13000 करोड़ से ज्यादा
इस शख्स की सैलरी है 1 रुपये, कंपनी का कारोबार 13000 करोड़ से ज्यादा
नई दिल्ली। ऐसा व्यक्ति जिसने देश के आइटी सेक्टर को आसमान पर पहुंचा
दिया, जिसकी वजह से इस कंपनी को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ आइटी कंपनी के तौर
पर देखा जाता है उसकी सैलरी मात्र एक रुपया है जबकि कारोबार तेरह हजार करोड़
रुपये से ज्यादा। जी हां, वो कोई और नहीं बल्कि इंफोसिस के सहसंस्थापक
एनआर नारायणमूर्ति हैं।एक वक्त था जब इंफोसिस हर साल कामयाबी की नई ऊंचाइयों को छू रही थी। लेकिन जैसे ही नारायण मूर्ति का नाता कंपनी से छुटा वैसे ही कंपनी की परफॉर्मेस खराब होने लगी। नारायण ने एक बार फिर इंफोसिस में वापसी की और सबको हैरान कर दिया। इंफोसिस की खराब हालत को संभालने के लिए एनआर नारायण मूर्ति कंपनी में लौट आए।
साल 1981 में छह अन्य इंजीनियर्स के साथ मिलकर नारायण मूर्ति ने इंफोसिस को शुरू किया। इसके लिए उन्होंने उस समय 10,000 रुपये का निवेश किया वो भी रिश्तेदारों और परिवारवालों से उधार लेकर।
क्या आप जानते हैं इस बड़े आदमी ने पिछले साल जब कंपनी में वापसी की तो उसकी सैलरी कितनी थी। नारायण मूर्ति ने जब वापसी की तो उन्होंने मात्र 1 रुपये प्रति वर्ष की सैलरी पर कुर्सी संभाली। हाल ही में जारी इंफोसिस के वित्तीय परिणामों ने सभी को चौंका दिया। कंपनी का कारोबार बढ़कर 13,064 करोड़ रुपये पर पहुंच गया और मुनाफा बढ़कर 2,875 करोड़ रुपये दर्ज किया गया। इससे पहले इंफोसिस की वित्तीय हालत नाजुक दौर से गुजर रही थी।
ऐसा ही उदाहरण विदेशों में देखा गया जब बड़ी कंपनियों के सीईओ 1 डॉलर का वेतन लेकर कंपनी का परिचालन कर रहे थे। सिटी ग्रुप की माली हालत खराब होने के बाद कंपनी के सीईओ विक्रम पंडित ने सैलरी के नाम 1 डॉलर का भुगतान लेना शुरू किया था। इसके अलावा, फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग, गूगल के लैरी पेज, हेल्वेट पैकार्ड के मेग वाइटमैन उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने कंपनी को आगे बढ़ाने और एक आदर्श साबित करने के लिए 1 डॉलर सैलरी पर काम किया। हालांकि, इस एक डॉलर सैलरी की शुरुआत अमेरिका में वर्ल्ड वॉर 1 के बाद हुई जब सरकारी कर्मचारियों ने इस सैलरी पर काम किया था।
इंफोसिस की कहानी में एक और मोड़
इंफोसिस की कहानी में एक और मोड़
नई दिल्ली [धीरेंद्र कुमार]। यदि भारत में आइटी उद्योग और खासकर इंफोसिस
की मूल विशेषता की बात की जाए तो वह यह है कि इसके नेतृत्व में उम्मीदों
से बेहतर करने की योग्यता है। मुहावरे के रूप में कहा जाए तो इस उद्योग का
ट्रैक रिकॉर्ड लोगों को हैरत में डालने वाला रहा है। दो दशक पहले इसकी
शुरुआत भी कुछ इसी तरह आश्चर्यजनक रूप से हुई थी। पिछले शुक्रवार को इंफोसिस के शेयर में 17 फीसद का जोरदार उछाल आया। इस तेजी से कंपनी का बाजार पूंजीकरण करीब 20,000 करोड़ रुपये बढ़ गया। भारतीय शेयर बाजार में यह किसी भी बड़ी कंपनी में एक दिन में आया यह सबसे बड़ा उछाल था। प्रतिशत के मामले में भी यह वर्ष 1997 में इंफोसिस के शेयर में ही दर्ज हुई अब तक की सबसे बड़ी तेजी के लगभग बराबर रही। वैसे, उस वक्त इस आइटी कंपनी का बाजार पूंजीकरण अब से 150 गुना कम था। साथ ही उस समय शेयर बाजार के निवेशक इस कंपनी से परिचित ही हो रहे थे।
किसी जानी मानी कंपनी की कीमत में कुछ ही घंटों में इतनी बड़ी तब्दीली कैसे आ सकती है? बाजार कारोबारों का मूल्यांकन करता है, यदि हम आम नजरिये से समझें, तो पाते हैं कि कंपनी जितनी बड़ी होगी, उतनी गहराई से उस पर रिसर्च होता है। साथ ही जितना ही पारदर्शी कंपनी का कारोबारी मॉडल होगा, उतना ही इसका बाजार मूल्य स्थिर रहना चाहिए। इंफोसिस अपनी श्रेणी में इन सभी मानकों पर अव्वल रहने वाली कंपनी है। साथ ही ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो यह कहते हैं कि वह कंपनी के कारोबारी मॉडल को पूरी तरह से समझते हैं। इतना ही नहीं वे यह भी बता सकते हैं कि इसकी भावी दशा और दिशा क्या होगी।
दर्जनों शोध संस्थाएं इंफोसिस के साथ-साथ समूचे आइटी उद्योग पर भी तमाम तरीकों से निगाह रखती हैं। यदि आप इनमें से किसी भी संस्था की रिपोर्ट पढ़ें तो लगता है कि जो कुछ कंपनी में हुआ, इन संस्थाओं को उसकी पूरी और सटीक जानकारी थी। जो कुछ भविष्य में हो सकता है उसकी भी इन्हें पूरी जानकारी है। साथ ही इस बात को पूरे यकीनी तौर पर कहा जाता है। लेकिन इन सब के बावजूद बाजार को अचानक अपने अनुमानों को बदलना पड़ता है और इसके चलते कंपनी की बाजार कीमत एक ही झटके में 17 फीसद बढ़ जाती है।
ऐसा क्यों हुआ? यदि बाजार के जानकारों से बात करें तो वे आपको कारोबारी जवाब देंगे कि लोगों ने अपनी शॉर्ट पोजीशन कवर की है। लेकिन असल में यह कोई जवाब नहीं है, यह केवल तेजी के घटनाक्रम का ही विस्तृत ब्योरा है। आखिर शॉर्ट पोजीशन बनाने वाले इतने सारे लोग इससे सहमत क्यों हुए कि इंफोसिस एकतरफा गिरावट की राह पर थी? गिरावट भी कोई साधारण नहीं बल्कि तेज और इतनी डरावनी कि जिसे रोका नहीं जा सकता।
इसके जवाब के दो पहलू हैं। पहला यह कि इन दिनों जैसे विश्लेषण हो रहे हैं, उनमें हालिया रुझानों को ही सीधे-सीधे अतिरंजित रूप में पेश किया जाता है। यानी इंफोसिस का समय खराब बीता है, इसलिए यह निकट भविष्य में और बदतर होता जाएगा। कुल मिलाकर इन सभी विश्लेषणों में इस बात को सिरे से अनदेखा किया जाता है कि कंपनी का प्रबंधन विभिन्न घटनाक्रमों, मोड़ों और बदलावों से सीधे तौर पर प्रभावित नहीं हुआ है। यदि भारत में आइटी उद्योग और खासकर इंफोसिस की मूल विशेषता की बात की जाए तो वह यह है कि इसके नेतृत्व में उम्मीदों से बेहतर करने की योग्यता है। मुहावरे के रूप में कहा जाए तो इस उद्योग का ट्रैक रिकॉर्ड लोगों को हैरत में डालने वाला रहा है। दो दशक पहले इस उद्योग की शुरुआत भी कुछ इसी तरह आश्चर्यजनक रूप से हुई थी। साफ-सुथरे तरीके से कारोबार करना और कोई छुपा हुआ एजेंडा न रखना ही इस उद्योग (और इसके कुछ प्रमोटरों) को दौड़ में आगे बनाए रखता है। मैंने महसूस किया है कि जानकार हमेशा इस बात की अहमियत को कम करके आंकते हैं कि कैसे एक गुणवत्तापूर्ण प्रबंधन अतिरिक्त मूल्य सृजित कर सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि समान गुणवत्ता के मौजूदा उत्पाद की क्या कीमत लगाई जा रही है।
दूसरा पहलू यह है कि इक्विटी विश्लेषण का पूरा कारोबार एक ईको चैंबर बन गया है। इसमें एक ही तरह की राय बार-बार दुहराए जाने से एक खास तरह का माहौल तैयार कर देते हैं, ऐसे लोग एक दूसरे का समर्थन करते हुए इतने मजबूत हो जाते हैं कि किसी कथित सच्चाई का अतिरंजित स्वरूप स्थापित कर दिया जाता है। और फिर जब कोई अप्रत्याशित घटना घटती है तो एक जैसी राय का यह चक्र विपरीत दिशा में घूम जाता है और इस दिशा में अतिवाद की तरफ बढ़ जाता है। इंफोसिस की कहानी केवल एक मसला है, मगर बाजार और इसके विश्लेषक किस तरह से प्रतिक्रिया देते हैं यह पूरी एक अलग कथा है। अगर बाजार के विश्लेषक इस बात पर ध्यान दें तो यह ज्यादा उपयोगी होगा।
इंफोसिस को सही राह पर लाने को लौटे मूर्ति
इंफोसिस को सही राह पर लाने को लौटे मूर्ति
बेंगलूर। जब एक जहाज की स्थिति बेकाबू होने लगती है तो संभालने के लिए
सभी उसे बनाने वाले को याद करते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है देश की दूसरी सबसे
बड़ी आइटी कंपनी इंफोसिस लिमिटेड के साथ। पिछले दो साल से लगातार खराब
तिमाही नतीजों और बाजार हिस्सेदारी में आ रही कमी से परेशान इंफोसिस ने एक
बार फिर अपने सह संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति को याद किया है। भारतीय आइटी
सेक्टर को दुनियाभर में पहचान दिलाने के बाद अगस्त, 2011 में मूर्ति ने
रिटायरमेंट ले लिया था। अब उन्हें केवी कामथ की जगह एक जून से पांच साल के
लिए नया एक्जीक्यूटिव चेयरमैन नियुक्त किया गया है। पिछली कुछ तिमाहियों में इंफोसिस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी टीसीएस, कॉग्नीजेंट और एचसीएल टेक ग्लोबल सुस्ती के बावजूद बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। वहीं, इंफोसिस उचित निर्देशन के अभाव में पिछड़ती जा रही थी। कंपनी के सीईओ एवं सह संस्थापक एसडी शिबूलाल को इसके चलते लगातार हमले झेलने पड़ रहे थे। नारायणमूर्ति ने 1981 में छह साथियों के साथ मिलकर 250 डॉलर पूंजी के जरिये इंफोसिस को खड़ा किया। यह आज 396 अरब रुपये की कंपनी बन चुकी है।
अगस्त में 67 साल के होने जा रहे मूर्ति ने इस फैसले पर कहा, 'यह बेहद अनोखा है। कंपनी कड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है। मैं शिबूलाल को मदद देने आया हूं। मेरा बेटा रोहन भी चेयरमैन के एक्जीक्यूटिव असिस्टेंट के तौर पर इस टीम में शामिल होगा।' पिता-पुत्र अपने कार्यकाल के दौरान एक रुपये सालाना का सांकेतिक वेतन लेंगे। अब एक्जीक्यूटिव वीपी की जिम्मेदारी संभालने वाले एस गोपालकृष्णन और शिबुलाल ने भी मूर्ति के पदचिन्हों पर चलते एक रुपये की सैलरी लेने की बात कही है।
इस फैसले के बारे में कामथ ने बताया कि आइटी कंपनी कई चुनौतियों के भंवर में फंसी हुई हैं। बोर्ड ने मानद चेयरमैन नारायणमूर्ति को एक बार फिर कंपनी को इनसे उबारने व शेयरधारकों के हितों की रक्षा के लिए याद किया है। मूर्ति की नियुक्ति को शेयरधारकों की मंजूरी के लिए 15 जून को सालाना आमसभा में पेश किया जाएगा।
नेतृत्व में फेरबदल
केवी कामथ की जगह नारायण मूर्ति नए एक्जीक्यूटिव चेयरमैन बने हैं। रोहन मूर्ति को नारायण की टीम में एक्जीक्यूटिव असिस्टेंट बनाया गया है। एक्जीक्यूटिव को-चेयरमैन गोपालकृष्णन एक्जीक्यूटिव वीपी का पद संभालेंगे। शिबुलाल एमडी और सीईओ बने रहेंगे। वहीं, कामथ स्वतंत्र निदेशक के पद पर जाएंगे।
एप्पल में भी हुआ था ऐसा
किसी सेवानिवृत्त आला अफसर को वापस कंपनी में लाने का यह पहला उदाहरण नहीं है। दिवंगत स्टीव जॉब्स को दिग्गज अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनी एप्पल के बोर्ड ने मुश्किल में फंसने के बाद याद किया था। उन्होंने वापस आने के बाद आइ-मैक, आइ-ट्यून, आइ-पॉड, आइ-फोन और आइ-पैड जैसे बेहतरीन उत्पाद लॉन्च कर इस कंपनी को बुलंदियों तक पहुंचाया।
नारायण मूर्ति की वापसी से इंफोसिस भरने लगी दम
नारायण मूर्ति की वापसी से इंफोसिस भरने लगी दम
मैसूर। देश की दूसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस में नारायण
मूर्ति की वापसी के साथ ही वित्तीय तस्वीर बदलने लगी है। मूर्ति के असर से
चालू वित्त वर्ष की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ 21.4
फीसद उछलकर 2,875 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। यह अक्टूबर-दिसंबर 2012 में
2,369 करोड़ रुपये था।कंपनी के गिरते प्रदर्शन को देखते हुए पिछले साल जून में मूर्ति ने इंफोसिस में अपनी दूसरी पारी एक्जीक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर शुरू की थी। उसके बाद से कंपनी का प्रदर्शन सुधरने लगा है। इंफोसिस के सीईओ और एमडी एसडी शिबुलाल ने शुक्रवार को नतीजों की घोषणा करते हुए कहा कि तीसरी तिमाही शानदार रही। इस अवधि में राजस्व भी 25 फीसद बढ़कर 13,026 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। यह इससे पिछले वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में 10,424 करोड़ रुपये था। शिबुलाल ने बताया कि पिछली दो तिमाहियों में कंपनी द्वारा उठाए गए कदमों का नतीजा हमें शुद्ध मुनाफे में दोहरे अंक में उछाल के तौर पर मिला। दिसंबर तिमाही में कंपनी ने 54 नए ग्राहक जोड़े हैं। इनमें से एक पांच करोड़ डॉलर का भी है। इन नतीजों से उत्साहित होकर कंपनी ने चालू वित्त वर्ष के लिए राजस्व वृद्धि अनुमान बढ़ाकर 24.4-24.9 फीसद कर दिया है।
शिबुलाल ने कहा कि उपभोक्ताओं में भरोसा जाग रहा है। मगर अभी भी लागत को लेकर ग्राहक सतर्कता बरत रहे हैं। पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में बड़े ग्राहक मिलेंगे, जिससे अगली तिमाहियों के प्रदर्शन में भी सुधार होता रहेगा। इस तिमाही में इंफोसिस को कुल राजस्व का 60 फीसद हिस्सा अमेरिका से और 24.9 फीसद यूरोप से मिला है।
कर्मचारियों को रोकना हो रहा मुश्किल
तीन साल में होगा इंफोसिस का कायापलट
तीन साल में होगा इंफोसिस का कायापलट
बेंगलूर। देश की दूसरी सबसे बड़ी आइटी कंपनी रही इंफोसिस को बुरे दिनों
से उबारने के लिए कंपनी के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने सुधारों की योजना
तैयार कर ली है। सेवानिवृत्ति के बाद फिर से चेयरमैन पद पर लौटे मूर्ति का
कहना है कि उम्मीदों पर खरी उतरने वाली इंफोसिस के पुननिर्माण में कम से
कम 36 माह का समय लगेगा। इस दौरान दर्द देने वाले कई सख्त कदम भी उठाने
पड़ेंगे। उन्होंने अगले तीन साल तक चलने वाली सुधार की इस प्रक्रिया में
शेयरधारकों से उनका सहयोग और समर्थन मांगा है।इंफोसिस के शेयरधारकों की शनिवार को 32वीं सालाना आम बैठक में मूर्ति ने कहा कि कंपनी की चुनौती काफी गंभीर और काम बेहद कठिन है। बेहतर क्षमताओं वाली टीम और कंपनी के हर कर्मचारी के समर्पण के बावजूद सुधार में वक्त लगेगा। अपने कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। तेजी से और सख्त निर्णय लेने पड़ेंगे। इन पर अमल में और भी चुस्ती और फुर्ती दिखानी होगी, ताकि निवेशकों और ग्राहकों की उम्मीदों से आगे रहा जा सके।
बैठक में सीईओ एसडी शिबुलाल ने कहा कि कंपनी का प्रदर्शन हमारी और उद्योग दोनों की उम्मीदों से कमतर रहा है। वैसे, कारोबारी माहौल कई चुनौतियां केवल इंफोसिस पर असर डालने वाली रहीं।
लगातार खराब प्रदर्शन से निवेशकों को निराश कर रही इंफोसिस में मूर्ति को सेवानिवृत्ति से वापस बुलाया गया। दो सप्ताह पहले ही उन्हें दोबारा कंपनी का कार्यकारी चेयरमैन नियुक्त किया गया है। कंपनी में वापस आए मूर्ति ने बेटे रोहन मूर्ति को भी अपना एक्जीक्यूटिव असिस्टेंट बनाया है।
मूर्ति ने अपनी योजना को लेकर कहा कि कंपनी पिछले साल में सुस्त पड़ी कमाई वाली आउटसोर्सिग परियोजनाओं पर अपना फोकस बढ़ाएगी। इससे अगले तीन से पांच साल तक कंपनी बड़े आउटसोर्सिग सौदों की संख्या बढ़ेगी। इसके अलावा कंपनी अपनी प्रमुख वरीयता वाले क्षेत्रों की प्रगति को भी बनाए रखेगी। इसी तरह बड़े पैमाने के कारोबार पर ज्यादा ध्यान देने से कंपनी को राजस्व बढ़ाने में खासी मदद मिलेगी।
कंपनी का नया रोडमैप:
-बड़े आउटसोर्सिग सौदे हासिल करने पर रहेगा जोर
-सुरक्षित फंड को उत्पादक निवेश कार्यों में लगाया जाएगा
-विकास दर बढ़ाने के लिए अपनाई जाएगी लचीली कीमत नीति
-सॉफ्टवेयर विकास टीम की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ाई जाएगी
-प्रतिस्पर्धी कारोबारों में भी मार्जिन बढ़ाने के लिए होंगे प्रयास
-आय के विश्वसनीय अनुमान के लिए विकसित होगा मॉडल
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