कहां गए भारत के चिट्ठी लेखक?
सदियों से भारत में पेशेवर चिट्ठी
लेखकों ने लाखों निरक्षर लोगों की मदद की है. लेकिन भारत के अधिकांश शहरों
से पत्र लेखकों की यह प्रजाति लगभग विलुप्त हो चुकी है.
दिल्ली में एक व्यक्ति भारत की राजधानी के इकलौते प्रोफ़ेशनल पत्र लेखक होने का दावा करते हैं.उड़ीसा के रहने वाले कैलाश की उम्र 50 साल थी और वह कभी स्कूल नहीं गए.
हर महीने मेरी माँ उनके लिए चिट्ठी लिखती थीं.
बचपन की यादें
"लोग मुझे बताते थे कि वे क्या लिखवाना चाहते हैं, मैं उनकी बात सुनता और संक्षेप में सुंदर शब्दों में लिखता था. इसके बाद मैं उनके लिए पत्र पढ़ता और लोग मेरे काम से प्रभावित हो जाते थे."
जगदीश शर्मा, दिल्ली के एक पत्र लेखक
चिट्ठियों में कोलकाता से भेजे जाने वाले पैसों को ख़र्च करने से जुड़ी सलाह भी होती थी.
अपनी किशोरावस्था में मैंने और मेरी बहन ने उनके लिए पत्र लिखने की ज़िम्मेदारी ले ली.
कैलाश हमारे घर में रहते थे और हममें से किसी से भी पत्र लिखने को कहते थे.
उनके जैसे लाखों लोग जो नियमित रूप से बड़े शहरों में काम के सिलसिले में सफ़र करते हैं, उनका हाल-सामाचार उनके घरों तक पहुंचाने के लिए पेशेवर पत्र लेखक होते थे. लेकिन अब वे विलुप्ति के कगार पर हैं.
'आख़िरी पत्र लेखक'
भारत की राजधानी में जगदीश चंद्र शर्मा शायद आख़िरी पेशेवर पत्र लेखक हैं. उन्होंने भी पिछले दस सालों में एक भी पत्र नहीं लिखा है.वह बताते हैं कि उन्होंने कई साल तक मज़दूरों, रेड लाइट एरिया में रहने वाली सेक्स वर्करों, स्थानीय फल और सब्ज़ी विक्रेताओं के लिए पत्र लिखे हैं.
इस पेशे की सीधी सी योग्यता है भाषा पर पकड़, साफ़-साफ़ लिखना और कल्पनाशील मन.
अपने बीते दिनों के बारे में शर्मा कहते हैं, "लोग मुझे बताते थे कि वे क्या लिखवाना चाहते हैं. मैं उनकी बात सुनता और संक्षेप में सुंदर शब्दों में लिखता था. इसके बाद मैं उनके लिए पत्र पढ़ता और लोग मेरे काम से प्रभावित हो जाते थे."
'खाने की फ़ुरसत नहीं'
कुछ साल पहले तक शर्मा के साथ अन्य पत्र लेखक भी पोस्ट ऑफ़िस के सामने बैठा करते थे.बीते दिनों को याद करके वे कहते हैं, "रोज़ाना करीब 70-80 लोगों की चिट्ठियाँ लिखते थे. किसी-किसी दिन तो खाना खाने की भी फ़ुरसत नहीं मिलती थी."
कभी-कभार उनसे पत्र लिखवाने वाले लोग पत्र पढ़वाने के लिए भी आते थे.
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास के प्रोफ़ेसर व इतिहासकार नजफ़ हैदर कहते हैं कि चिट्ठियां और ख़त लिखने वाले सदियों से भारत के शहरी जीवन का अभिन्न हिस्सा रहे हैं.
सीमित शुल्क वाले पत्र
नजफ़ हैदर बताते हैं, "16वीं-17वीं शताब्दी के दौरान मुगल काल में राजा के दरबार, सरदार और अभिजात वर्ग में पत्रलेखन के लिए मुंशी की नियुक्ति होती थी.''उस समय कातिब भी होते थे जो दस्तावेज़ों और किताबों के पुनर्लेखन का काम करते थे और जनसामान्य के लिए पत्र भी लिखते थे."
भारत में अंग्रेज़ों ने 1854 में आधुनिक डाक सेवा की शुरुआत करते हुए पोस्ट ऑफ़िस में पेशेवर चिट्ठी लिखने वालों की औपचारिक व्यवस्था की थी.
डाक सेवा पूर्व उप-निदेशक ब्रिगेडियर वायपीएस मोहन कहते हैं, "19वीं शताब्दी के दौरान साक्षरता दर काफ़ी कम होने के कारण यह सेवा शुरू की गई थी."
पोस्ट एंड टेलीग्राफ़ मैनुअल के अनुसार, "डाक अधीक्षक के पास पेशेवर पत्र लेखकों को पोस्ट ऑफ़िस परिसर में काम की अनुमति देने का अधिकार था, अगर वे लोगों के हित में काम करते हैं."
इस योजना के तहत पूरे भारत में सैकड़ों पेशेवर पत्र लिखने वाले लोग पोस्ट ऑफ़िस के सामने ही बैठा करते थे, जो थोड़े से पैसे लेकर लोगों की चिट्ठियां लिखा करते थे.
शिक्षा-दूरसंचार में क्रांति
भारत में धीरे-धीरे शिक्षा बढ़ी. लगभग हर किसी के हाथ तक मोबाइल की पहुंच हो गई. इसके कारण चिट्ठी लिखने वालों के रोज़गार में तेज़ी से कमी आई.जुलाई 2008 में ब्रिगेडियर मोहन के एक पत्र पर हस्ताक्षर के साथ पेशेवर लेखकों की सेवा भी समाप्त हो गई थी.
इसके मुताबिक़, "पूरे देश में साक्षरता दर में बढ़ोत्तरी और मोबाइल की पहुंच (दूरसंचार क्रांति) के कारण पेशेवर चिट्ठी लेखक अप्रासंगिक हो गए हैं."
शर्मा बताते हैं कि 2008 के इस आदेश से पहले ही पत्र लेखन का पेशा ढलान पर था.
'फ़ोन पर बात कर लूंगी'
बदलते समय के साथ पत्र लेखन से जुड़े लोग दूसरे रोज़गार में लग गए या सेवानिवृत्ति ले ली, लेकिन जगदीश शर्मा इस पेशे में बने रहे.वे बताते हैं, "मैं कहीं और नहीं जा सकता था."
जब मैं उस दोपहर शर्मा से मिली, तो वह पोस्ट ऑफ़िस बिल्डिंग के बाहर बैठे एक महिला ग्राहक के लिए बच्चों के कपड़ों वाला पार्सल पैक कर रहे थे.
पार्सल पैक कराने वाली महिला रेखा कुमारी उनके पास पिछले 10 साल से आ रही हैं.
शर्मा कहते हैं कि वह दिन की पहली ग्राहक हैं. जब मैंने रेखा से पूछा कि क्या वह जगदीश से अपने लिए पत्र लिखने के लिए भी कहेंगी?
तो उन्हों
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