Thursday 20 March 2014

MODI JI WHERE IS GROWTH IN YOUR GUJRAT?--->यहाँ लड़कियों के जन्म पर जश्न मनाया जाता है और बेटे के पैदा होने पर मातम." 50 दलाल होंगे जो लड़कियों के पैदा होते ही भेंड़ियों की तरह लार टपकाने लगते हैं.":देह व्यापार (गुजरात में बनासकांठा ज़िले का वाडिया गाँव)

MODI JI WHERE IS GROWTH IN YOUR GUJRAT?--->

यहाँ लड़कियों के जन्म पर जश्न मनाया जाता है और बेटे के पैदा होने पर मातम.

" 50 दलाल होंगे जो लड़कियों के पैदा होते ही भेंड़ियों की तरह लार टपकाने लगते हैं."

:देह व्यापार (गुजरात में बनासकांठा ज़िले का वाडिया गाँव)

 

गुजरात का वाडिया: धंधा है, गंदा है, उम्मीद भी है


वाडिया गाँव के निवासी
गुजरात में बनासकांठा ज़िले का वाडिया गाँव यौनकर्मियों के गाँव के तौर पर बदनाम है. यह गांव जबसे अस्तित्व में है, वहाँ दो तरह की औरतें रहती हैं.
एक वे जिन्हें उनके ही परिवार के मर्दों ने फंसा लिया और दूसरी वे जो अब उम्रदराज़ हो चुकी हैं और कई बीमारियों की वजह से अपने ही घरों में क़ैद हैं.
ये बीमारियाँ इन औरतों को तब मिलीं जब वे सेक्स वर्कर की ज़िंदगी जी रही थीं और अब ये ताउम्र उनके साथ रहेंगी. लेकिन गुजरात का कोठा के नाम से जाने जाने वाले इस गाँव ने पिछले 60 बरस में विकास के नाम पर कुछ नहीं देखा है, हालांकि वहाँ भी बदलाव की बयार के झोंके महसूस किए जा सकते हैं.

वैसे तो ये बयार अभी थोड़ी मंद है लेकिन उम्मीद की एक किरण दिखाई देती है कि वाडिया की औरतों और लड़कियों के लिए सारी उम्र तवायफ़ रहने की बजाय ज़िंदगी के मायने शायद कुछ बदल जाएं. रानी, विक्रम और उनके तीन बच्चों की पहली तस्वीर फलते फूलते देह व्यापार के अड्डे के तौर पर मशहूर रहे गुजरात के वाडिया गाँव के एक आदर्श परिवार की झलक पेश करती है.

सेक्स वर्कर से शादी

वाडिया गाँव के निवासी
रानी इस गाँव की पहली लड़की है जिसकी शादी हुई, उस वाडिया गाँव की जहाँ एक वक़्त ऐसा भी था जब यहाँ हर घर तक़रबीन एक कोठे में बदल चुका था और विक्रम एकमात्र ऐसा ख़रीदार है जिसने वाडिया के किसी सेक्स वर्कर से शादी की. रानी को अपनाने के लिए विक्रम ने दलाल को तीन लाख रुपए दिए ताकि वो उसे देह व्यापार से छुटकारा दिला सके.

विक्रम ने रानी को उस पेशे से छुटकारा दिलाया जो बीते कई दशकों से इस गाँव की लड़कियों कि क़िस्मत में पैदा होते ही लिख दिया जाता है. आज ये जोड़ा वाडिया में ही रहता है, साथ में चार पीढ़ियों की औरतें भी रहती हैं जो किसी ज़माने में यौनकर्मी थीं.
रानी वाडिया की उन सात महिलाओं में से हैं जिनकी शादी हो पाई लेकिन इस गाँव की 360 औरतों में से ज़्यादातर के बच्चे हैं लेकिन बच्चों के पिता का पता नहीं. इनमें से भी कई सारी लड़कियाँ हैं, एक 15 साल की लड़की जो कि दो या तीन बच्चों की माँ हो, का दिखाई पड़ना वाडिया में एक आम बात है.

बदलाव की बयार

वाडिया गाँव के बच्चे
ऐसा नहीं है कि वाडिया में कुछ बदल नहीं रहा है, यहाँ चीज़ें बदली हैं लेकिन लड़कियों के पैदा होते ही वे क़िस्मत की लिखी उस इबारत की जाल में फंस जाती हैं जो उन्हें देह की मंडी में बिकने के लिए खड़ा कर देता है. बदलाव की जो बयार यहां बह रही है, वो इतनी कमज़ोर है कि यहाँ की सभी औरतों को आज़ादी दिलाने के लिए नाकाफ़ी है.

गाँव की औरतों के लिए सामाजिक कार्यकर्ता मित्तल पटेल और उनकी सहयोगी शारदाबेन भाटी उम्मीद की इकलौती किरण हैं. इन्होंने यहाँ की औरतों की आँखों में बेहतर ज़िंदगी के उनके सपने ज़िंदा रखा है. मित्तल पहले पत्रकारिता में थी और अब 'विचर्त समुदाय समर्पण मंच' नाम से एक ग़ैर सरकारी संगठन चलाती हैं.
वाडिया की औरतों की बेहतर ज़िंदगी के लिए वह साल 2005 से ही काम कर रही हैं. साल 2012 में उन्होंने वाडिया की कुछ औरतों के लिए सामूहिक शादी कार्यक्रम का आयोजन किया. यह पहली बार हुआ कि वाडिया की किसी लड़की की शादी हो पाई. शारदाबेन और उनके पति रमेश गहलोतर वाडिया में पटेलों के लिए काम करते हैं. इस बहादुर जोड़े ने तमाम मुश्किलों का सामना किया.

ख़रीद बिक्री

वाडिया गाँव के लोग
शारदाबेन बताती हैं, "देह व्यापार के धंधे में शामिल दलालों और कई ताक़तवर लोगों ने लगातार हमें जान की धमकी देते रहे. लेकिन मैंने वाडिया की औरतों को एक बेहतर ज़िंदगी देने की क़सम ली थी, वो ज़िंदगी जिसकी वो हक़दार थीं. यहाँ की औरतें बाहर की दुनिया तभी देख पाती हैं जब उनके ग्राहक उन्हें अपने साथ बाहर घुमाने ले जाते हैं."


उन्होंने कहा, "इस गाँव में भारत की शायद सबसे जटिल, गंदी और अपवित्र पारिवारिक संरचना देखी जा सकती है. इस गाँव में कोई 50 दलाल होंगे जो लड़कियों के पैदा होते ही भेंड़ियों की तरह लार टपकाने लगते हैं. देश के दूसरे हिस्सों के विपरीत यहाँ लड़कियों के जन्म पर जश्न मनाया जाता है और बेटे के पैदा होने पर मातम."
शारदाबेन पर कई हमले हुए लेकिन उन्होंने और उनके पति ने वाडिया गाँव में अपना काम जारी रखा. वे गाँव के परिवारों से लड़कियों को देह व्यापार के धंधे से बचाने अपील करते रहे. शारदाबेन कहती हैं, "हमारे पास ऐसी भी ख़बरें हैं कि वाडिया की लड़कियाँ मुंबई, अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों में बेची जाती रही हैं."

सरकारी सहानुभूति

वाडिया गाँव के लोग
उन्होंने कहा, "हमने कई बार पुलिस को शिकायत दर्ज कराई कि पालनपुर के एक घर से इस गोरखधंधे को अंजाम दिया जाता है, यहाँ जवान लड़कियाँ रखी जाती हैं उन्हें देह व्यापार के धंधे में यहीं से धकेला जाता है." पिछले नौ बरसों में मित्तल और उनकी टीम ने गाँव के 15 परिवारों को समझाने में कामयाब रहीं. मितल की टीम ने उनसे वादा लिया है कि वे अपनी बेटियों को सेक्स वर्कर नहीं बनने देंगी.

मित्तल कहती हैं, "हम उन्हें कहते हैं कि वे अपनी बेटियों की दलाली न करें लेकिन तब वे पूछते हैं कि वे गुजारे के लिए क्या करें, वाडिया के लोगों को कोई नौकरी नहीं देता है. इसलिए हमने उन लोगों की मदद करना शुरू किया है जिन्होंने अपना गराज, दुकान या ढाबा कुछ भी लेकिन अपना काम शुरू करने की क़सम ली है."
मितल जानती हैं कि वाडिया के औरतों की क़िस्मत तब तक नहीं बदलेगी जब तक कि राज्य सरकार यहाँ के लोगों के लिए सहानुभूति न दिखाए. भाबाभाई भैहरा भाई वाडिया के बदलते हुए चेहरों में से एक हैं. उन्होंने क़सम ली कि वे अपनी पत्नी और बेटी को दलालों की चंगुल में फंसने की इजाज़त नहीं देंगे.

डरावनी ज़िंदगी

वाडिया गाँव के निवासी
वह कहते हैं, "बस एक मेरा भाई है जो अब भी अपनी बेटी की दलाली करता है, मेरे बाक़ी पाँचों भाई खेतों में मज़दूरी करते हैं और सिर उठाकर जीते हैं. हम लड़ते हुए मर जाएंगे लेकिन कभी भी अपनी औरतों को देह व्यापार के धंधे में जाने नहीं देंगे. हमने अपनी माँ को और उनकी माँ को बेहद डरावनी ज़िंदगी जीते हुए देखा है. हम अपनी बेटियों के साथ ऐसा नहीं होने देंगे."

वाडिया से बीते कुछ वर्षों में कोई 20 परिवारों ने अपनी बेटियों को बचाने के लिए गाँव छोड़ दिया है. लेकिन आज वे पालनपुर की सड़क किनारे बनी झुग्गियों में रहने के लिए मजबूर हैं. पालनपुर हीरे के धनाढ्य कारोबारियों की वजह से जाना जाता है. ये परिवार यहाँ भीख माँग कर गुज़ारा करने के लिए मजबूर है.
हालांकि उन्होंने क़सम खाई है कि वे अगर भूख से मरने भी लगे तो भी अपनी बेटियों को इसे पेशे से नहीं जाने देंगे लेकिन इसके बावजूद समुदाय की औरतों पर ख़तरा बरक़रार है. वैसे यहाँ की आबोहवा में प्रेम कहानियाँ बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फ़िल्मों की तर्ज़ पर मिल जाती हैं. कई ऐसे मर्द हैं जो वाडिया में सालों तक ग्राहक बनकर आते रहे और यौनकर्मियों के इश्क़ में पड़ गए.

प्रेम कहानियाँ

वाडिया गाँव के लोग
शारदाबेन कहती हैं, "दूसरे लाल बत्ती इलाक़ों के विपरीत वाडिया में मर्द पैसे चुकाकर यौनकर्मियों के साथ कई दिनों तक ठहरते हैं. दलाल उन्हें खाना और शराब मुहैया कराते हैं. यहाँ ठहरने के दौरान कई ग्राहक उन्हें चाहने लगते हैं और वाडिया की औरतों को शहर ले जाकर रखैल की तरह रखना चाहते हैं."

वह बताती हैं कि दलाल औरतों को गाँव से बाहर जाने की इजाज़त नहीं देते ताकि ये ग्राहक बड़ी क़ीमत चुकाकर उन्हें थोड़े से वक़्त के लिए बाहर ले जाएँ और यही वो वक़्त होता है जब वाडिया की कोई लड़की बाहरी दुनिया को देख पाती है. शारदाबेन ने बताया, "एक लड़की का उसकी ज़िंदगी पर कोई हक़ नहीं होता है. बुख़ार या तबियत बेहद ख़राब होने पर भी उन्हें ग्राहकों के पास जाना होता है."
उन्होंने कहा, "गाँव की ज़्यादातर औरतों के लिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी का मतलब खाना, सोना और अपने ग्राहकों की ख़ातिरदारी करना होता है." वाडिया में ऐसी कई प्रेम कहानियाँ पनपीं जिससे ये उम्मीद जगती है कि ये गाँव एक रोज़ ज़रूर बदलेगा. विक्रम वाडिया के पास के ही एक समृद्ध गाँव का रहने वाले हैं और सेक्स वर्कर रानी के पास वे बतौर ग्राहक आया करते थे.

रानी की कहानी

वाडिया गाँव के लोग
रानी तक कोई 18 बरस की रही होंगी जब वे पहली बार मिले और एक दूसरे के इश्क़ में गिरफ़्तार हुए. जल्दी ही रानी को एक बेटी हुई और विक्रम उस बेटी को अपना नाम देना चाहते थे. वे रानी से शादी करना चाहते थे लेकिन गाँव के मर्दों ने उनकी मुख़ालफत की और उनके परिवारवालों ने भी वाडिया की किसी लड़की को बहू के तौर पर क़बूल करने से इनकार कर दिया.

हालांकि मित्तल और शारदाबेन के समझाने के बाद विक्रम ने रानी की आज़ादी के लिए दलालों को रुपए चुकाए और साल 2012 में उससे शादी कर ली. रानी वाडिया की पहली लड़की है जिसकी शादी हुई है. आज ये जोड़ा वाडिया में अपने तीन बच्चों के साथ रहता है. रानी के सबसे बड़े बच्चे की उम्र आठ साल है. विक्रम पड़ोस के एक गाँव के एक गराज में काम करते हैं.
लेकिन उन्होंने अपने काम करने की जगह पर किसी को नहीं बताया है कि वे वाडिया से हैं. रानी कहती हैं, "किसी ने नर्क नहीं देखा है लेकिन लड़कियाँ और औरतें इस गाँव को नर्क कहती हैं. मैंने वो दिन भी देखे हैं जब मेरी माँ और उनकी माँ और गाँव की दूसरी औरतें एक ही घर में एक ही वक़्त धंधे के लिए फंसाई जा रही होती थीं."

गुजरात का विकास

गुजरात का विकास
वह बताती हैं, "मैंने कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि मुझे इस धंधे से कभी छुटकारा भी मिलेगा लेकिन विक्रम में मुझे मेरी ज़िदगी मिल गई." लेकिन ऐसी प्रेम कहानियाँ भी हैं जो किसी मंज़िल तक नहीं पहुँच पाईं. पिछले साल ही एक सेक्स वर्कर के बॉयफ्रेंड की मोटरसाइकिल में आग लग जाने से मौत हो गई थी.
वह सीधी सादी सी ज़िंदगी जीने के लिए वाडिया की अपनी प्रेमिका को इस धंधे से निजात दिलाना चाहता था. कई लोग कहते हैं कि उस लड़के की मौत कोई हादसा नहीं थी. लेकिन सवाल उठता है कि ये सिलसिला किस मोड़ पर जाकर ख़त्म होगा?
ऐसे वक़्त में जब भारत ने मंगल अभियान शुरू किया है और गुजरात का एक उम्मीदवार देश के प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ रहा है और राज्य के विकास का ढोल बजा रहा है, इस गाँव की औरतों को दूसरी ज़िंदगी देना एक आसान सा काम होना चाहिए लेकिन वाडिया की औरतों को पता है कि वे किन वजहों से अभिशप्त हैं.





MESSAGE FOR AAP - Ex Supporter MR
Prof. Vipul Shinde
Assistant Professor
Navsari Agricultural University, Gujarat.





 DEAR AAP EX SUPPORTER PLEASE READ IT AND GO THERE THEN  REPLY ME ... I AM WAITING FOR YOUR REPLY @VIPUL SHINDE 


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यहाँ लड़कियों के जन्म पर जश्न मनाया जाता है और बेटे के पैदा होने पर मातम.
" 50 दलाल होंगे जो लड़कियों के पैदा होते ही भेंड़ियों की तरह लार टपकाने लगते हैं."
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गुजरात का वाडिया: धंधा है, गंदा है, उम्मीद भी है
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STATEMENT OF
Prof. Vipul Shinde TO Arvind Kejriwal
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Post by AAP - Ex Supporter

Dear Mr. Kejariwal,
I am a former student of IIT Kharagpur from where you
have graduated & was actively involved in Janlokpal Andolan 2 years back. I was your supporter/fan till last week before your Gujarat visit.
Since last year I am serving in Govt. of Gujarat. After listening to your speech today in Bangalore, I feel some points I must share for those who haven't visited Gujarat State yet.

1. I haven't paid a single penny for class II job in Govt. of Gujarat.
2. I get paid on 1st day of every month.
3. I am posted in rural and tribal area where there are no
power cuts. Believe me NEVER.
4. I have travelled almost all the states of the country and
have never found roads as good as those in Gujarat
anywhere else.
5. You said ‘no development in Gujarat’. Then Mr.Kejariwal, how were you tweeting from the rural areas of Gujarat during your visit ?
I always experienced better wi-fi speeds in rural area
(Waghai) of Gujarat than in Pune city.
When you had your chance you ran away, now you are
criticising others. Mr. Kejariwal, I, being Aam Aadmi, your former supporter and student of IIT Kharagpur
honestly feel that you should ‘first prove yourself & then talk about others’.

Regards,

Prof. Vipul Shinde
Assistant Professor
Navsari Agricultural University, Gujarat.

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