Monday, 17 November 2014

भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए पांच समझौते

भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए पांच समझौते

18-11-2014
ऑस्ट्रेलिया में ग्रुप-20 के सम्मेलन में नरेंद्र मोदी
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दौरे के अंतिम दिन मंगलवार को राजधानी कैनबरा में ऑस्ट्रेलियाई संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया.
इस मौक़े पर मोदी ने जी-20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी एबट को बधाई दी.
उन्होंने अपने भाषण में दोनों देशों के बीच पुराने संबंधों को याद करते हुए ऑस्टेलियाई वकील जॉन लैंड का ज़िक्र करते हुए कहा कि जॉन लैंड ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रानी लक्ष्मीबाई के लिए ब्रिटिश सरकार से क़ानूनी लड़ाई लड़ी थी.
साथ ही उन्होंने क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन, शेन वार्न और भारत के सचिन तेंदुलकर का ज़िक्र कर क्रिकेट के ज़रिए सासंदों का दिल जीतने की कोशिश की.
उन्होंने कहा कि दोनों देश लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर प्रतिबद्ध हैं.

सहयोग

ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर मोदी ने दिया जोर.
उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के समृद्ध भौगोलिक और सांस्कृतिक विरासत की प्रशंसा की.
इस मौक़े पर उन्होंने भारत में बदलते राजनीतिक हालात की चर्चा करते हुए कहा, "भारत में 30 साल बाद एक स्पष्ट बहुमत वाली सरकार आई है और नौजवान पीढ़ी में आकांक्षाओं का ज्वार है. हम पिछले छह महीनों में आगे बढ़े हैं."
उन्होंने चरमपंथ, मनी लॉंड्रिंग, ड्रग और हथियार तस्करी पर अंकुश लगाने की ज़रूरत पर भी बल दिया और एक मज़बूत द्विपक्षीय रक्षा सहयोग की भी बात कही.
उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को भारत के विकास में साझीदार बनने की भी दावत दी.

समझौते

उन्होंने संसद में यह भाषण अंग्रेज़ी में दिया. हालांकि एक जगह उन्होंने ग़लती से रिन्यूवल एनर्जी को 'रिन्यूवल एलर्जी' बोल दिया.
इस दौरे में दोनों देशों के बीच आतंकवाद के मुद्दे पर सहयोग और आर्थिक विकास समेत पांच समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. इसके अलावा व्यापक आर्थिक समझौते पर भी दोनों देशों के बीच सहमति बनी.
प्रधनमंत्री मोदी यहां से मेलबर्न के लिए रवाना हुए, जहां से वो फ़िजी की यात्रा पर जाएंगे.

ऑस्ट्रेलिया-अफ़्रीक़ा में चीन से पीछे है भारत!

दो दिन पहले जापान की अर्थव्यवस्था अचानक मंदी में चली गई.
इसके बाद सोमवार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि अगर मंदी से बचना है तो दुनिया के देशों को भारत और चीन के साथ ज़्यादा आर्थिक समझौते करने होंगे.
ये बात इन दो देशों के बढ़ते आर्थिक महत्व की तरफ़ इशारा करती है.
वैसे कैमरन का बयान ऑस्ट्रेलिया में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद आया है, जिसमें दुनिया की आर्थिक वृद्धि सबसे ज़्यादा चर्चा में रही.
ऐसे में ये सवाल लाज़िम हो जाता है कि अभी विश्व अर्थव्यवस्था की हालत कैसी है?

आकलन

किसी के अनुमान के बारे में तो पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन अगले कुछ महीनों में हालात बेहतर होने के आसार नहीं हैं.
हालाँकि ज़्यादातर लोगों का अनुमान है कि 2014 के मुक़ाबले 2015 में हालात अच्छे हो सकते हैं. विश्व अर्थव्यवस्था में सुस्ती केवल चीन और जापान की वजह से नहीं है, बल्कि यूरोप की भी अहम भूमिका है.
यूरोप के वे देश जो यूरोज़ोन में आते हैं, उनके आर्थिक संकट का भी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है.
यूरोप की बदलती आर्थिक हवा की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कैमरन ने भारत और चीन से आर्थिक सहयोग बढ़ाने की बात कही है.

आपसी सहयोग

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टॉनी एबॉट.
कई लोग इसे भारत और चीन की उभरती आर्थिक ताक़त से जोड़ कर देखते हैं. हालाँकि एक तबक़ा ऐसा भी है जो इसे यूरोप की मजबूरी का नाम देना चाहता है.
वैसे यह कोई दार्शनिक सवाल नहीं है कि किसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ना कोई मजबूरी है. यह तो आपसी सहयोग की बात है.
और इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन की अर्थव्यवस्था में भी कुछ हद तक ठहराव आया है.
ये और बात है कि चीन की अर्थव्यवस्था की थमने की दर बाक़ी अर्थव्यवस्थाओं की बुलंदी की स्थिति से भी बेहतर होती है.

ऑस्ट्रेलिया में मोदी

अगर कैमरन ने दोनों अर्थव्यवस्थाओं के साथ ब्रिटेन की इकोनॉमी को जोड़ने की बात कही है तो ये बात उद्योग जगत के लोगों को पहले से ही पता है.
मेरी राय में उन्हें इस तरह की सलाह की ख़ास ज़रूरत नहीं है. ऑस्ट्रेलिया में जी-20 की बैठक में भारत और चीन दोनों ही देशों के नेताओं ने शिरकत की.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने इस दौरे में ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है. वहीं, द्विपक्षीय संबंधों की तरह ही व्यापार जगत में भी मोदी के ऑस्ट्रेलिया दौरे को उम्मीद से देखा जा रहा है.

आर्थिक संबंध

नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टॉनी एबॉट के साथ.
भारत को ऑस्ट्रेलिया के प्राकृतिक संसाधनों में दिलचस्पी है, लेकिन भारत से कहीं ज़्यादा बढ़कर चीन के ऑस्ट्रेलिया के साथ आर्थिक संबंध हैं.
कुछ लोगों का तो मानना है कि अफ़्रीक़ा और ऑस्ट्रेलिया में चीन की कंपनियां ख़ासा असर रखती हैं.
मुक्त व्यापार समझौते से ज़ाहिर है कि ऑस्ट्रेलिया को थोड़ा बहुत तो ज़रूर फ़ायदा होगा, लेकिन इसे चीन के प्रभाव के संकेत के तौर पर देखा जा सकता है.
भारत को भी कोशिश करनी चाहिए कि उसकी कंपनियां, ख़ास कर खनन क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां वहां जाएं और बेहतर तालमेल बनाएं.
अफ़्रीक़ा और ऑस्ट्रेलिया के प्राकृतिक संसाधनों की दौड़ में भारत चीन से कहीं पीछे है.

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