गुरु माता की उस बात से हैरान रह गए विवेकानंद
मां शारदा ने मधुर स्मित होकर कहा, आशीर्वाद के लिए कल आना। मैं पहले देख लूं कि तुम्हारी पात्रता है भी या नहीं। यह सुनकर विवेकानंद सोच में पड़ गए, पर गुरु मां के आदेश के अनुसार दूसरे दिन वह फिर उनके पास गए। मां शारदा रसोईघर में थीं। विवेकानंद ने उन्हें प्रणाम किया। मां ने कहा, ठीक है, आशीर्वाद तो तुझे दूंगी। पहले तू मुझे वह चाकू उठाकर दे। मुझे सब्जी काटनी है।
विवेकानंद ने चाकू उठाया और मां शारदा की ओर बढ़ाया। चाकू लेते हुए ही मां शारदा ने अपने स्नेहसिक्त आशीर्वचनों से स्वामी विवेकानंद को संबोधित किया। वह बोलीं, जाओ नरेंद्र, मेरे समस्त आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं। तुम अपने उद्देश्य में अवश्य सफल होगे। स्वामी जी हतप्रभ हो गए। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि गुरु मां के आशीर्वाद और मेरे चाकू उठाने के बीच ऐसा क्या हो गया? शंका निवारण के प्रयोजन से उन्होंने मां से पूछ ही लिया।
मां शारदा ने कहा, प्रायः जब भी किसी व्यक्ति से चाकू मांगा जाता है, तो वह चाकू की मूठ अपनी हथेली में समा लेता है और चाकू की तेज फाल दूसरे की ओर रखता है। मगर तुमने ऐसा नहीं किया। तुमने चाकू की फाल अपनी हथेली में रखी और मूठवाला सिरा मेरी तरफ बढ़ाया। यही तो साधु का मन होता है, जो सारी आपदा को अपने लिए रखकर दूसरे को सुख ही देना चाहता है।
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