Sunday, 21 September 2014

वाह री सरकार: रिटायर्ड को नौकरी, बेरोजगार को ‘धक्का’ डिग्री कालेजों के लिए आयोजित भर्ती प्रक्रिया में हैरत करने वाली सच्चाई आई सामने


वाह री सरकार: रिटायर्ड को नौकरी, बेरोजगार को ‘धक्का’

डिग्री कालेजों के लिए आयोजित भर्ती प्रक्रिया में हैरत करने वाली सच्चाई आई सामने 

डाक्टर मनोज खाली-बेरोजगार: डॉक्टरेट, पांच बार नेट, यूसेट, विश्वविद्यालय में गोल्ड मेडलिस्ट और प्री पीएचडी परीक्षा में ऑल इंडिया लेवल का टॉपर रहे डाक्टर मनोज खाली

देहरादून: लोकतंत्र में सरकार जनता की होती है और जनता के लिए होती है। निजाम की नीतियां और योजनाएं आमजन को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। लोक कल्याण इसका लक्ष्य होता है। लेकिन उत्तराखंड इस स्थापित मान्यताओं का विलोम बनता जा रहा है। यहां की सरकार आंखों पर पट्टी बांधकर केवल चंद लोगों को फायदा पहुंचाने की नीयत से योजनाएं बना रही है। इवनिंग क्लासेस के लिए हो रही भ र्तियों की अजीबोगरीब शर्तों को देखकर तो ऐसा ही लगता है। भारी भरकम डिग्री और कई विशिष्टताओं के बावजूद एक बेरोजगार नौजवान को जहां नौकरी के लायक नहीं समझा जाता वहीं रिटायर्ड शिक्षकों को थाली में परोसकर अवसर दिए जा रहे हैं।
शनिवार को दून स्थित मंडलायुक्त के कार्यालय में डिग्री कालेजों (इवनिंग क्लासेस) में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए साक्षात्कार का आयोजन हुआ। इसमें बुजुर्ग और रिटायर्ड हो चुके शिक्षकों को विशेष तौर पर साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। इसके बावजूद डॉक्टरेट, पांच बार नेट, यूसेट, विश्वविद्यालय में गोल्ड मेडलिस्ट और प्री पीएचडी परीक्षा में ऑल इंडिया लेवल का टॉपर रहे डाक्टर मनोज खाली ने खुद के ऊपर भरोसा किया और साक्षात्कार के लिए वहां पहुंच गए। वहां नौकरी तो नहीं मिली, हां संवेदनहीन सिस्टम की बेरुखी से जरुर दो-चार होना पड़ा। उन्हें धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया। खुद को तराश कर हीरा बना चुके मनोज इस अपमान को नहीं सह पाए और फफक कर रो पड़े। मेधा का यह अपमान उनके साथियों को भी रास नहीं आया तो उसे सांत्वना देने लगे। सिसकते हुए मनोज सिर्फ यही कहते रहे कि सरकार बताए अब एक अदद नौकरी के लिए उसे क्या करना होगा। यह तस्वीर हमारे उस सिस्टम की है जो चंद लोगों के हाथों की कठपुतली बन चुका है। उस सरकार की जो आम जनता नहीं बल्कि चंद खास लोगों को ध्यान में रखकर नीतियां बनाती है। डा. मनोज खाली जैसे न जाने कितने काबिल युवा नौकरी की तलाश में चक्कर काट रहे हैं। बमुश्किल उन्हें नौकरी के लिए कुछ अवसर मिलते हैं। लेकिन सरकार की नीतियों के चलते उन्हें किनारे कर रिटायर्ड शिक्षकों को रखने पर अड़ी हुई है। जबकि केंद्र सरकार ने रिटायर्ड शिक्षकों को रखने की छूट केवल उस दशा में दी है, जब अर्ह युवाओं की कमी हो। इस लिहाज से पहले अर्ह युवाओं को मौका मिलना चाहिए। इसके बाद छूटी सीटों पर चाहे तो सरकार रिटायर्ड शिक्षकों को भ र्ती करे। लेकिन मौजूदा राज्य सरकार ने ठीक उल्टी प्रक्रिया अपनाई और पहले रिटायर्ड शिक्षकों की भ र्ती प्रक्रिया शुरु कर दी। अब सरकारी अधिकारी कह रहे हैं कि रिटायर्ड शिक्षकों की नियुक्ति के बाद बची सीटों पर युवाओं को भ र्ती दी जाएगी। ऐसे में डा. मनोज जैसे सैकड़ों युवा केवल रिटायर्ड शिक्षकों और सरकार की दया पर निर्भर हैं। उन्हें नौकरी केवल उस दशा में मिलेगी, जब रिटायर्ड शिक्षक उनके लिए सीट छोडेंगे। युवाओं को रोजगार देने का दावा करने वाली सरकार ही युवाओं की दुश्मन बनी हुई है। सवाल उठता है कि अगर सरकार को रिटायर्ड शिक्षक बेरोजगार युवाओं से ज्यादा योग्य और सक्षम लगते हैं तो उन्हें रिटायर ही क्यों किया गया।

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