ISRO's #MarsOrbiter #Mangalyaan #ISRO:पहली ही कोशिश में मिली हमें कामयाबी, मंगल पर पहुंचा हिंदुस्तान #orbitermission #mangalyan #isro
| नई दिल्ली, 24 सितम्बर 2014
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टैग्स: भारतीय अंतरिक्षयान| मंगलयान| मंगल ग्रह| प्रधानमंत्री| नरेंद्र मोदी| बेंगलुरू
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अंतरिक्ष की दुनिया में बुधवार का दिन भारत के लिए बेहद अहम साबित हुआ.
उम्मीद के मुताबिक, मंगलयान मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित हो गया. इसरो
के वैज्ञानिक अपने सबसे बड़े अभियान में जी जान से जुटे रहे. मंगलयान से
इसरो का संपर्क पहले ही स्थापित हो चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस
ऐतिहासिक मौके पर बेंगलुरु के इसरो सेंटर पहुंचकर वैज्ञानिकों का हौसला
बढ़ाया. मंगलयान ने अपने कैमरे से मंगल ग्रह की पांच तस्वीरें भी खींच ली
हैं. इन हाई डेफिनिशन तस्वीरों में लाल ग्रह की सतह नजर आ रही है. बताया जा
रहा है कि इसरो बहुत जल्द ये तस्वीरें जारी कर सकता है.सुबह 7 बज
कर 17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर (एलएएम), यान को मंगल की
कक्षा में प्रविष्ट कराने वाले थ्रस्टर्स के साथ तेजी से सक्रिय हुई ताकि
मंगल ऑर्बिटर मिशन (MOM) यान की गति इतनी धीमी हो जाए कि लाल ग्रह उसे खींच
ले. इंजन स्टार्ट होने के बाद मंगलयान उस सफर पर निकल पड़ा, जिसमें पहली
कोशिश में कामयाबी दुनिया के किसी देश को नहीं मिली. ये कामयाबी हिंदुस्तान
को मिल गई है. मिशन की सफलता का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने कहा एमओएम का मंगल से मिलन.
मंगल मिशन की सफलता के साथ भारत गिने चुने देशों की कतार में आ खड़ा हो गया. भारत से पहले अमेरिका और रूस भी मंगल के लिए यान भेज चुके हैं. 1960 में रूस ने पहली बार इसके लिए कोशिश की थी और आज अमेरिकी यान मंगल की सतह पर पहुंचकर लाल ग्रह के रहस्यों को बेपर्दा कर रहे हैं. लाल ग्रह के सैकड़ों-हजारों रहस्यों को जानने के लिए दुनिया बरसों से कोशिश करती आ रही है, जिसका इतिहास 1960 तक पीछे जाता है. जब रूस ने दुनिया के पहले मिशन मंगल का आगाज किया, जिसे नाम दिया गया कोराब्ल 4. हालांकि यह मिशन फेल हो गया.
- 1965 में अमेरिका के स्पेसक्राफ्ट मैरिनर 4 ने पहली बार मंगल की तस्वीर धरती पर भेजी और मंगल के लिए ये पहला सफल मिशन साबित हुआ.
- पहली बार 1971 में सोवियत संघ का ऑर्बाइटर लैंडर मार्स 3 यान मंगल पर उतरा.
- 1996 में अमेरिका ने मार्स ग्लोबल सर्वेयर स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया जो अपने रोबोटिक रोवर के साथ मंगल की सतह पर उतरा.
- 2004 में अमेरिका ने फिर अपने दो रोवरयान स्पिरिट और ऑपरच्यूनिटी को मंगल की सतह पर उतारा. - 26 नवंबर 2011 में अमेरिका ने क्यूरियोसिटी रोवर को लॉन्च किया, जिसकी 6 अगस्त 2012 में मंगल की सतह पर सफल लैंडिंग हुई.
What is red, is a planet and is the focus of my orbit? pic.twitter.com/HDRWjOcPusअंतरिक्ष विज्ञान में भारत ने लिखा इतिहास
— ISRO's Mars Orbiter (@MarsOrbiter) September 24, 2014
मंगल मिशन की सफलता के साथ भारत गिने चुने देशों की कतार में आ खड़ा हो गया. भारत से पहले अमेरिका और रूस भी मंगल के लिए यान भेज चुके हैं. 1960 में रूस ने पहली बार इसके लिए कोशिश की थी और आज अमेरिकी यान मंगल की सतह पर पहुंचकर लाल ग्रह के रहस्यों को बेपर्दा कर रहे हैं. लाल ग्रह के सैकड़ों-हजारों रहस्यों को जानने के लिए दुनिया बरसों से कोशिश करती आ रही है, जिसका इतिहास 1960 तक पीछे जाता है. जब रूस ने दुनिया के पहले मिशन मंगल का आगाज किया, जिसे नाम दिया गया कोराब्ल 4. हालांकि यह मिशन फेल हो गया.
- 1965 में अमेरिका के स्पेसक्राफ्ट मैरिनर 4 ने पहली बार मंगल की तस्वीर धरती पर भेजी और मंगल के लिए ये पहला सफल मिशन साबित हुआ.
- पहली बार 1971 में सोवियत संघ का ऑर्बाइटर लैंडर मार्स 3 यान मंगल पर उतरा.
- 1996 में अमेरिका ने मार्स ग्लोबल सर्वेयर स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया जो अपने रोबोटिक रोवर के साथ मंगल की सतह पर उतरा.
- 2004 में अमेरिका ने फिर अपने दो रोवरयान स्पिरिट और ऑपरच्यूनिटी को मंगल की सतह पर उतारा. - 26 नवंबर 2011 में अमेरिका ने क्यूरियोसिटी रोवर को लॉन्च किया, जिसकी 6 अगस्त 2012 में मंगल की सतह पर सफल लैंडिंग हुई.
मंगलयान के 300 दिन तक के सफर में हुई घटनाओं का घटनाक्रम इस प्रकार है 5 नवंबर 2013: इसरो के पीएसएलवी सी25 ने आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन का प्रक्षेपण किया. 7 नवंबर: पहली पृथ्वी-नियंत्रित प्रक्रिया संपन्न. 8 नवंबर: दूसरी पृथ्वी-नियंत्रित प्रक्रिया संपन्न. 9 नवंबर: तीसरी पृथ्वी-नियंत्रित प्रक्रिया संपन्न. 11 नवंबर: चौथी पृथ्वी-नियंत्रित प्रक्रिया संपन्न. 12 नवंबर: पांचवी पृथ्वी-नियंत्रित प्रक्रिया संपन्न. 16 नवंबर: छठी पृथ्वी-नियंत्रित प्रक्रिया संपन्न. 1 दिसंबर: एमओएम ने छोड़ी पृथ्वी की कक्षा, मंगल की ओर रवाना (ट्रांस मार्स इंजेक्शन) 4 दिसंबर: एमओएम 9.25 लाख किलोमीटर के दायरे वाले पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकला. 11 दिसंबर: अंतरिक्षयान पर पहली दिशा संशोधन प्रक्रिया संपन्न. 11 जून 2014: दूसरी दिशा संशोधन प्रक्रिया संपन्न. 22 सितंबर: एमओएम ने किया मंगल के गुरुत्वीय क्षेत्र में प्रवेश, 300 दिन तक सुप्तावस्था में पड़े रहने के बाद 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर का प्रायोगिक परीक्षण, अंतिम पथ संशोधन कार्य संपन्न. 24 सितंबर: एमओएम मंगल की लक्षित कक्षा में पहुंचा, भारत पहले ही प्रयास में लाल ग्रह पर मिशन भेजने में सफलता हासिल करने वाला दुनिया का पहला देश बना.
यह है मकसद
इस मिशन से मंगल ग्रह के बारे में ढेरों जानकारियां हासिल होंगी. शायद हमें पता चल पाएगा कि क्या मंगल पर मीथेन गैस है, क्या इस ग्रह के गर्भ में खनिज छिपे हैं, क्या यहां बैक्टीरिया का भी वास है और क्या यहां जिंदगी की संभावनाएं भी हैं. अगर भारत का मार्स ऑर्बाइटर मिशन यानी मंगलयान अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब रहता है तो फिर अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक की दुनिया में हिंदुस्तान निश्चित रूप से एक नया मुकाम हासिल कर लेगा.
मनमोहन सिंह, कलाम समेत तमाम दिग्गज हस्तियों ने इसरो को दी बधाई
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम,
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और बिग बी अमिताभ बच्चन समेत कई दिग्गज
हस्तियों ने मंगलयान मिशन (एमओएम) की सफलता के लिए इसरो को बधाई दी.
मनमोहन सिंह ने कहा, 'यह उपलब्धि एक दशक की कड़ी मेहनत का नतीजा है. यह
हमारे वैज्ञानिकों की क्षमता को और इस मिशन को सफल बनाने में उनके अथक
प्रयासों को शानदार श्रद्धांजलि है.' सिंह के मुताबिक, 'हम वाकई में विनीत
हैं कि हमें उस सरकार में होने का मौका मिला, जिसने मंगलयान परियोजना शुरू
की और उसे आगे बढ़ाया.'
पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने कहा, 'इसरो की टीम शानदार है, पिछली रात (मंगलवार) को जब मैं उनसे मिला तो बहुत खुशी हुई.' कलाम ने कहा, 'उन्होंने अपनी योजना के अनुरूप मंगल मिशन को पूरा किया. एक राष्ट्र के रूप में हम यह काम करने वाले पहला देश हैं.'
गौरतलब है कि भारत ने अपने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में अपना मंगलयान स्थापित कर अंतरिक्ष में इतिहास रच दिया. उपलब्धि से खुश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे असंभव को संभव करना बताया. वह इस मौके पर लाल ग्रह के प्रतीक स्वरूप लाल जैकेट पहने हुए थे.
ट्विटर पर दिग्गजों ने दी इसरो को बधाई-
पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने कहा, 'इसरो की टीम शानदार है, पिछली रात (मंगलवार) को जब मैं उनसे मिला तो बहुत खुशी हुई.' कलाम ने कहा, 'उन्होंने अपनी योजना के अनुरूप मंगल मिशन को पूरा किया. एक राष्ट्र के रूप में हम यह काम करने वाले पहला देश हैं.'
गौरतलब है कि भारत ने अपने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में अपना मंगलयान स्थापित कर अंतरिक्ष में इतिहास रच दिया. उपलब्धि से खुश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे असंभव को संभव करना बताया. वह इस मौके पर लाल ग्रह के प्रतीक स्वरूप लाल जैकेट पहने हुए थे.
ट्विटर पर दिग्गजों ने दी इसरो को बधाई-
History is created & am glad to have witnessed it. Will never forget this day! Congrats to our scientists http://t.co/RNbacKjB5q #Mangalyaan
— Narendra Modi (@narendramodi) September 24, 2014
T 1623 - #Mangalyaan..Bharat Mata ki Jai !! Historic ! Only country to have succeeded in first attempt, on budget less than Hollywood film !
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) September 24, 2014
पाकिस्तानी वैज्ञानिक ने कहा, कभी हमारे सामने बच्चा था भारत और आज...
भारत
के मंगल मिशन की कामयाबी को लेकर दुनिया भर के लोगों ने सोशल मीडिया पर
अपनी प्रतिक्रिया दी है। इसी क्रम में पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम के जनक
अब्दुल कादिर खान ने ट्वीट करके कहा है कि आज भारत मेट्रो बस प्रोजेक्ट
से 7 गुना कम लागत में मंगल पर पहुंच गया और हमारे पीएम नवाज शरीफ टैक्स
दाताओं के पैसे पर अमेरिका विजिट पर हर रोज 1 लाख डॉलर (करीब 60 लाख रुपए)
खर्च करेंगे।
खान ने आगे भारत पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत कभी तकनीक के मामले में
पाकिस्तान के सामने बच्चा था, लेकिन पाकिस्तान की भ्रष्ट सरकार ने
वैज्ञानिकों को जेल में डाल दिया और अमेरिका के निर्देश पर रिसर्च बंद करा
दिए। बता दें कि खान को न्यूक्लियर तकनीक की तस्करी से जुड़ा हुआ भी
माना जाता है।
मंगलयान पर चीनियों ने भी की तारीफ़
भारत के मंगलयान के सफलतापूर्वक
मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित होने पर चीन की माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट पर
भी खूब टिप्पणियां आई हैं.
'साइना वीबो' पर बहुत से लोगों ने भारत की उपलब्धि की तारीफ़ करते हए चीन से इसकी तुलना की.कलामाचांगदे ने लिखा, "अंततः भारत का अभियान मंगल पहुँच गया. कुछ महीने पहले तक ही चीन के विशेषज्ञों ने उनके प्रयासों को नकार दिया था. ये हमारी संकीर्ण मानसिकता को ही दर्शाता है."
एक अन्य यूज़र ने लिखा, "इसमें कोई शक़ नहीं है कि ये मोदी की उपलब्धि है."
पीछे रह गया चीन
यिंगाती रिशू ने लिखा, "भारत की कामयाबी भ्रष्टाचार में फँसे चीन के लिए एक और क़रारा झटका है."
एक अन्य यूज़र ने टिप्पणी की, "भारत को शाबाशी, चीन इस पर कुछ नहीं कहेगा."
चीन में कुछ नागरिकों को लग रहा है कि भारत चीन से काफ़ी आगे निकल गया है. एक व्यक्ति ने लिखा, "भारत की कामयाबी दर्शाती है कि चीन की उपलब्धियाँ पुरानी हो गई हैं और चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम अब आगे नहीं रह गया है."
आलोचना
यानझाऊजीयूरीजुशी ने लिखा, "यह देश अच्छे शौचालय तक तो बना नहीं सकता है और अब वे इतना शोर मचा रहे हैं. पहले उन्हें अपनी शौचालय की समस्या का समाधान करना चाहिए और ऐसी क़ानून व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए जिसमें महिलाएं सुरक्षित महसूस करें. इस सबका क्या फ़ायदा जब आप अपनी महिलाओं को ही सुरक्षित न रख पाएं."
शुभकामनाएँ
वहीं चीन सरकार ने इस उपलब्धि पर भारत को शुभकामनाएं दी हैं. चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह समूचे एशिया के लिए गर्व की बात है.प्रवक्ता के मुताबिक़, "यह भारत के लिए गर्व की बात है, यह एशिया के लिए गर्व की बात है. यह बाहरी अंतरिक्ष में मानव जाति के शांतिपूर्ण खोज अभियान में एक महत्वपूर्ण क़दम भी है. हम भारत को अपनी शुभकामनाएं देते हैं."
मंगलयान सफल: भारत ने इतिहास रचा
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी, इसरो का
उपग्रह मंगलयान मंगल ग्रह की अंडाकार कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर चुका
है. ये भारत के अंतरिक्ष शोध में एक कालजयी घटना है.
इस अभियान की कामयाबी से भारत ऐसा देश बन गया है जिसने एक ही प्रयास में अपना अभियान पूरा कर लिया.इस मिशन की सफलता उन 24 मिनटों पर निर्भर थी, जिस दौरान यान में मौजूद इंजन को चालू किया गया.
मंगलयान की गति धीमी करनी थी ताकि ये मंगल की कक्षा में गुरूत्वाकर्षण से खुद-बखुद खिंचा चला जाए और वहां स्थापित हो जाए.
मंगलयान से सिग्नल
मंगलयान से धरती तक जानकारी पहुंचने में करीब साढ़े बारह मिनट का समय लग रहा है. सुबह लगभग आठ बजे इसरो को मंगलयान से सिग्नल प्राप्त हुआ और ये सुनिश्चित हो पाया कि मंगलयान मंगल की कक्षा में स्थापित हो गया है.इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा, "आज इतिहास बना है. हमने लगभग असंभव कर दिखाया है. मैं सभी भारतीयों और इसरो वैज्ञानिकों को मुबारक देता हूं. कम साधनों के बावजूद ये कामयाबी वैज्ञानिकों के पुरुषार्थ के कारण मिली है."
अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी ट्विटर पर इसरो को बधाई दी है.
भारत ने इस मिशन पर करीब 450 करोड़ रुपए खर्च किए है, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज्यादा क़िफ़ायती है.
क्या मिलेगा मंगलयान से?
अगर सब ठीक रहा तो मंगलयान छह महीनों तक मंगल ग्रह के वातावरण का अध्ययन करेगा.ये भी अनुमान है कि कक्षा में स्थापित होने के कुछ ही घंटों में यान एक भारतीय आंख द्वारा मंगल ग्रह की ली गई तस्वीरें भेजना शुरू कर देगा.
इसी के साथ भारत एशिया ही नहीं दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने पहले ही प्रयास में अपना मंगल अभियान पूरा कर लिया.
क्या आप मंगल को अच्छे से जानते हैं?
मंगल के बारे में आपने अक्सर पढ़ा होगा. मंगल पर जीवन की मौजूदगी से भी आगे बहुत सी बातें हैं जो जानना दिलचस्प हो सकता है.
पढ़िए ऐसी ही कुछ दिलचस्प बातें जो शायद आप न जानते हों.2. मंगल के दो चंद्रमा हैं. इनके नाम फ़ोबोस और डेमोस हैं. फ़ोबोस डेमोस से थोड़ा बड़ा है. फ़ोबोस मंगल की सतह से सिर्फ़ 6 हज़ार किलोमीटर ऊपर परिक्रमा करता है.
3. फ़ोबोस धीरे-धीरे मंगल की ओर झुक रहा है, हर सौ साल में ये मंगल की ओर 1.8 मीटर झुक जाता है. अनुमान है कि 5 करोड़ साल में फ़ोबोस या तो मंगल से टकरा जाएगा या फिर टूट जाएगा और मंगल के चारों ओर एक रिंग बना लेगा.
फ़ोबोस पर गुरुत्वाकर्षण धरती के गुरुत्वाकर्षण का एक हज़ारवां हिस्सा है. इसे कुछ यूं समझा जाए कि धरती पर अगर किसी व्यक्ति का वज़न 68 किलोग्राम है तो उसका वज़न फ़ोबोस पर सिर्फ़ 68 ग्राम होगा.
5. मंगल का एक दिन 24 घंटे से थोड़े ज़्यादा का होता है. मंगल सूरज की एक परिक्रमा धरती के 687 दिन में करता है. यानी मंगल का एक साल धरती के 23 महीने के बराबर होगा.
6. मंगल और धरती करीब दो साल में एक दूसरे के सबसे करीब होते हैं, दोनों के बीच की दूरी तब सिर्फ़ 5 करोड़ 60 लाख किलोमीटर होती है.
7. मंगल पर पानी बर्फ़ के रूप में ध्रुवों पर मिलता है और ये कल्पना की जाती है कि नमकीन पानी भी है जो मंगल के दूसरे इलाकों में बहता है.
8. वैज्ञानिक मानते हैं कि मंगल पर करीब साढ़े तीन अरब साल पहले भयंकर बाढ़ आई थी. हालांकि ये कोई नहीं जानता कि ये पानी कहां से आया था, कितने समय तक रहा और कहां चला गया.
9. मंगल पर तापमान बहुत ज़्यादा भी हो सकता है और बहुत कम भी.
क्या आप जानते हैं?
- मंगल के दो चंद्रमा हैं
- मंगल का एक दिन 24 घंटे से थोड़ा ज़्यादा होता है
- मंगल और धरती करीब दो साल में एक दूसरे के सबसे ज़्यादा करीब होते हैं
- मंगल पर तापमान बहुत ज़्यादा भी हो सकता है और बहुत कम भी.
- मंगल का गुरुत्वाकर्षण धरती के गुरुत्वाकर्षण का एक तिहाई है
- मंगल पर धूल भरे तूफ़ान उठते रहते हैं.
11. मंगल पर ज्वालामुखी बहुत बड़े हैं, बहुत पुराने हैं और समझा जाता है कि निष्क्रिय हैं. मंगल पर जो खाई है वो धरती की सबसे बड़ी खाई से भी बहुत बड़ी है.
12. मंगल का गुरुत्वाकर्षण धरती के गुरुत्वाकर्षण का एक तिहाई है. इसका मतलब ये है कि मंगल पर कोई चट्टान अगर गिरे तो वो धरती के मुकाबले बहुत धीमी रफ़्तार से गिरेगी.
किसी व्यक्ति का वज़न अगर धरती पर 100 पौंड हो तो कम गुरुत्वाकर्षण की वजह से मंगल पर उसका वज़न सिर्फ़ 37 पौंड होगा.
13. मंगल की सतह पर धूल भरे तूफ़ान उठते रहते हैं, कभी-कभी ये तूफ़ान पूरे मंगल को ढक लेते हैं.
14. मंगल पर वातावरण का दबाव धरती की तुलना में बेहद कम है इसलिए वहां जीवन बहुत मुश्किल है.
मंगल ग्रह की राह में 10 बड़े क़दम
लाल ग्रह यानि मंगल हमेशा से ही मानव सभ्यता को कौतूहल में डालता रहा है.
इसे लेकर प्राचीन सभ्यताओं में किंवदंतियां भी
प्रचलित रही हैं लेकिन आधुनिक काल में विज्ञान ने इसके रहस्यों पर से पर्दा
हटाने की काफ़ी कोशिश की है.1. 14 जुलाई 1965 को मरीनर-4 अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह तक पहुंचा. इसने किसी दूसरे ग्रह की पहली तस्वीरें भेजीं.
मंगल ग्रह के बारे में मरीनर-4 ने जो जानकारी दी उसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी. मंगल ग्रह पर कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं था.
इस पर वातावरण का दबाव धरती पर मौजूद वातावरणीय दबाव से बहुत कम था.
2. मरीनर-9 को 30 मई 1971 को लॉन्च किया गया था. ये मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचा और उसका पहला कृत्रिम उपग्रह बन गया.
ये तूफ़ान एक महीने बाद ख़त्म हुआ और तब मरीनर-9 ने ज्वालामुखियों और खाइयों वाले मंगल की तस्वीरें भेजी.
मंगल की सबसे बड़ी खाई 4800 किलोमीटर लंबी है. सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात थी इस सूखे ग्रह पर नदियों के तल के निशान.
मरीनर-9 ने ही मंगल के दोनों चंद्रमाओं की बेहद पास की तस्वीरें भेजीं.
3. मार्स-3 सोवियत संघ का अंतरिक्षयान था. ये मंगल ग्रह पर मार्स 2 के पांच दिन बाद पहुंचा था.
इस अंतरिक्षयान की ख़ासियत थी कि यह मंगल की सतह पर सही सलामत उतर गया.
ये अंतरिक्षयान सिर्फ़ 20 सेकेंड तक ही मंगल की सतह से तस्वीरें भेज सका. माना जाता है कि धूल की वजह से इसने काम करना बंद कर दिया था.
हालांकि जो तस्वीरें इसने भेजी उन की ज़्यादा अहमियत नहीं थी.लेकिन ये अंतरिक्षयान जुलाई 1972 तक काम की जानकारी भेजता रहा.
4. नासा के साल 1975 के वाइकिंग मिशन में वाइकिंग 1 और वाइकिंग 2 अंतरिक्षयान थे.
मक़सद था मंगल ग्रह की सतह की तस्वीरें लेना, वातावरण के बारे में जानकारी जुटाना और जीवन की मौजूदगी का पता करना.
वाइकिंग 1 पहला अंतरिक्षयान था जो मंगल की सतह पर उतरने के बावजूद लंबे अरसे तक काम करता रहा.
वाइकिंग मिशन के दोनों लैंडर ने मंगल की सतह की 4,500 तस्वीरें ली. जबकि दोनों ऑर्बिटर ने 52,000 तस्वीरें ली.
हालांकि मंगल ग्रह पर जीवन के निशान नहीं मिले लेकिन वाइकिंग को मंगल की सतह पर वो सभी तत्व मिले जो धरती पर जीवन के लिए ज़रूरी हैं.
जैसे - कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और फॉस्फोरस.
5. वाइकिंग के बाद नासा का मंगल ग्रह पर सबसे अहम अभियान.
इस अभियान का मक़सद था मंगल की सतह पर एक रॉवर पहुंचाना.
इसमें एक एयरबैग सिस्टम था जिसने लैंडर को उतरने के बाद एक तरह के आवरण में ढक लिया था.
मार्स पाथफाइंडर की अहमियत थी किफ़ायती और बेहद असरदार होना.
पाथफाइंडर ने मंगल की सतह के बारे में कई अहम जानकारी जुटाई. ये तस्वीर है मंगल के एक चंद्रमा की.
6. साल 1996 में मंगल पर भेजे गए मार्स ग्लोबल सर्वेयर ने मंगल की सतह पर किसी और अंतरिक्ष यान की तुलना में ज़्यादा वक्त तक काम किया.
मार्स ग्लोबल सर्वेयर ने ये पता लगाया कि मंगल पर अब भी पानी बहता है.
इसी यान ने पानी से जुड़े खनिजों की मौजूदगी का पता लगाया. तस्वीर मंगल पर कभी मौजूद रहे पानी के तल की.
7. अप्रैल 2001 में लॉन्च ओडिसी मंगल की सतह पर सबसे ज़्यादा समय तक काम करने वाले अंतरिक्षयानों में से एक है.
ओडिसी ने मंगल पर रेडिएशन के बारे में जानकारी जुटाई ताकि भविष्य में मंगल पर होने वाले किसी मानव अभियान को संभावित जोखिम का पता लगाया जा सके.
इसके कैमरे से मंगल की बेहद अच्छी गुणवत्ता की तस्वीरें ली गईं.
8. जून 2003 में मंगल पर भेजा गया मार्स एक्सप्रेस किसी दूसरे ग्रह के लिए यूरोप का पहला अंतरिक्षयान था.
मार्स एक्सप्रेस ब्रिटेन का बीगल 2 लैंडर और मंगल पर पहला राडार भी लेकर गया था.
इस यान ने मंगल की सतह के नीचे पानी और बर्फ़ के भंडार खोजे.
इसने मंगल के चंद्रमा फोबोस का भी अध्ययन किया.
मार्स एक्सप्रेस ने मंगल के वातावरण में मीथेन गैस का पता लगाया. ये तस्वीर नासा की हबल दूरबीन ने ली है.
9. मार्स रिकंज़ा मिशन मंगल पर पानी के इतिहास के बारे में जानकारी जुटा रहा है.
इसका काम ये पता लगाना भी है कि ओडिसी ने मंगल की सतह पर जो बर्फ़ खोजी थी वो सिर्फ़ सतही है या बर्फ़ के बड़े भंडार हैं.
ये तस्वीर है मंगल के नॉक्टिस लेबरिंथस क्षेत्र की.
10. मंगल की सतह पर मौजूद क्यूरियोसिटी साल 2011 के आख़िर में लॉन्च हुआ था.
मार्स की मिट्टी का 2 फ़ीसदी पानी से बना है.
क्यूरियोसिटी मंगल पर पहुंचने वाला पहला ऐसा यान है जो अपने साथ मिट्टी और चट्टान के नमूनों इकट्ठे करने के उपकरण लेकर गया है.
अपने ही देश में नासा से पिछड़ा है इसरो?
भारत के मंगलयान मिशन के लिए एक
तरफ जहां इसरो का डंका पूरे विश्व में बज रहा है, वहीं खुद भारत में नासा
के क्रेज़ के आगे इसरो पिछड़ता दिखता है.
एजुकेशनल टूर प्रबंधन करने वाली एक कंपनी
फ्रंटियर्स एडुटेनमेंट की माने तो अंतरिक्ष केंद्रों के दौरे के लिए उनके
पास आने वाले कॉल्स में से 99 प्रतिशत अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के दौरे
की जानकारी के लिए होती हैं, जबकि सिर्फ़ एक प्रतिशत स्कूल या शैक्षिक
संस्थान इसरो के दौरे की जानकारी मांगते हैं.नासा की सैर
फ्रंटियर्स एडुटेनमेंट के विशाल वर्मा ने बताया, “भारतीय छात्रों के बीच अमरीकी अंतरिक्ष केंद्र नासा को लेकर काफ़ी उत्साह है, हम हर साल लगभग 500 छात्रों को नासा की यात्रा करवाते हैं, हमारे जैसी दूसरी कंपनियों को मिलाया जाए तो भारत से हज़ारों छात्र हर साल नासा जाते हैं. इसमें करीब दो लाख का खर्च आता है.”उन्होंने कहा, “इसरो में नासा जैसे कार्यक्रमों का अभाव है, जो कार्यक्रम हैं उनके बारे में ज़्यादा लोग जानते भी नहीं हैं. अगर इसरो इस दिशा में क़दम बढ़ाए तो मांग वहां के लिए भी होगी. इससे छात्रों के पैसे भी कम खर्च होंगे.”
मार्केटिंग
एक अन्य एजुकेशनल टूर कंपनी के मैनेजर कुणाल पाठक कहते हैं, “नासा अपने शैक्षणिक कार्यक्रमों की जबरदस्त मार्केटिंग करता है. यहां के गावों में भी नासा का नाम है, लेकिन इसरो यहां पिछड़ जाता है.”नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन के प्रवक्ता लक्ष्य छाबरिया का कहना है कि स्कूल नासा के दौरे पर जाते हैं क्योंकि वहां इस तरह के दौरों की सुविधाएं है. इसरो अगर ऐसी सुविधाएँ दे तो वहां छोटे स्कूल के बच्चे भी जा सकेंगे.
मंगलयान मिशन के लिए एक बार फिर सुर्खियों में आया भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी इसरो भारतीय छात्रों की लोकप्रियता पाने के लिए कई क़दम उठा रहा है.
विश्वनाथ शर्मा के अनुसार चूंकि श्रीहरिकोटा में होने वाले कई कामों में जोख़िम होता है, इसलिए 15 साल से कम उम्र के स्कूली बच्चों का वहां प्रवेश निषेध है. इसरों के अन्य केंद्रों में ये मनाही नहीं है.
इसरो का कहना है कि आने वाले समय में नए संग्रहालयों के साथ कई ऐसे शैक्षिक कार्यक्रम भी चालू किए जा सकते हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति छात्रों का उत्साह बढ़ाएंगे.
इन 8 पड़ावों से होकर गुज़रा मंगलयान
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का
मंगलयान लाल ग्रह की कक्षा में स्थापित हो चुका है. दुनियाभर से इसरो को
बधाइयां मिलनी शुरू हो चुकी है.
भारत का मंगल अभियान पहला ऐसा मिशन भी बन गया है जो एक ही बार में मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित हुआ.धरती से मंगल की कक्षा में पहुंचे मंगलयान की कहानी कई महत्वपूर्ण पड़ावों से होकर गुज़री है.
आइए एक नज़र डालते हैं उन महत्वपूर्ण पड़ावों पर:
1. रॉकेट पर सवार मंगलयान उड़ चला
नैनो कार की आकार वाले और क़रीब 1350 किलोग्राम वजनी मार्स ऑर्बिटर मिशन यानी मंगलयान को पिछले साल पांच नवंबर की दोपहर पीएसएलवी रॉकेट से श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया.2. मंगलयान की दिशा प्रणाली की जांच
सात नवंबर से 16 नवंबर के बीच छह बार मंगलयान की दिशा प्रणाली का परीक्षण किया गया. मकसद था कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए यान को ज़रूरी गति मिल जाए.3. धरती के प्रभाव से बाहर, मंगल की तरफ़ दिशा निर्धारण
ट्रांस मार्स इंजेक्शन, यानी अंतरिक्ष में मंगलयान के लाल ग्रह की तरफ दिशा देने की प्रक्रिया बीते साल 1 दिसंबर को शुरू हुई और यान 4 दिसंबर को ‘पृथ्वी के प्रभाव’ ले बाहर निकल गया. 11 दिसंबर को दिशा में कुछ और सुधार किए गए.4. मंगलयान के सौ दिन
5. आधी यात्रा पूरी, कुछ और दिशा सुधार
संतुलित गति से मंगल की तरफ बढ़ते हुए मंगलयान ने 9 अप्रैल तक ही आधी दूरी तय कर ली. इसके बाद जून में इसकी दिशा में एक बार और सुधार किया गया.6. मंगलयान को धरती का संदेश
सितंबर की 14 और 15 तारीख़ को मंगलयान को मंगल की कक्षा में स्थापित होने से संबंधित ज़रूरी कमांड भेजे गए.7. अंतरिक्ष में तैर रहे मंगलयान का सबसे महत्वपूर्ण टेस्ट
ये एक अहम टेस्ट था, क्योंकि इस इंजन को करीब 300 दिन बाद चलाया जा रहा था.
8. लाल ग्रह की कक्षा में मंगलयान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलयान की सफलता को करीब से देखने के लिए इसरो के कमांड सेंटर में मौजूद रहे.
सोशल सरगर्मी: नासा ने किया इसरो को सलाम
भारत के मंगलयान की कामयाबी के
बाद सोशल मीडिया पर भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के
वैज्ञानिकों की ख़ूब प्रशंसा हो रही है.
ट्वीट पर भारतीय ट्रेंडस में मंगलायन की कामयाबी के बाद जो पहले तीन टॉपिक थे-#Mangalyaan, #MissionMars, #MarsMission.हाल के दिनों में तेजी से लोकप्रिय हुए लेखक अमीश त्रिपाठी@authoramish ने ट्विट किया है, "मंगल का मतलब मंगल ग्रह है. लेकिन संस्कृत में मंगल का मतलब ख़ुशी होती है. मंगलयान की कामयाबी के साथ भारत और इसरो ने इतिहास रच दिया है."
मंगलयान की कामयाबी के बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने इसरो के वैज्ञानिकों को संबोधित किया.
लेकिन कुछ लोग सोशल मीडिया पर उनके भाषण पर चुटकी लेते दिखे. @DrunkVinodMehta नाम के एकाउंट से ट्वीट किया गया, "इस बार भी मोदी ने इसरो चेयरमैन को संबोधित नहीं करने दिया."
कांग्रेस नेता और उद्योगपति नवीन जिंदल @MPNaveenJindal ने ट्विट किया है, "इसरो के वैज्ञानिकों और प्रत्येक भारतीय को बधाई. पहली बार में ही हमारा मंगल अभियान कामयाब रहा."
महिला उद्योगपति किरण मजूमदार शॉ @kiranshaw ने इसरो के वैज्ञानिकों को सलाम करते हुए लिखा है, "इसरो के वैज्ञानिकों ने आज हर भारतीय का कद ऊंचा कर दिया. यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान, विज्ञान और तकनीक के लिहाज से अहम दिन है. हमें गर्व के साथ इसे सेलिब्रेट करना चाहिए."
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