Saturday 27 September 2014

आय से अधिक संपत्ति केसः जयललिता को चार साल की सजा, भेजा गया जेल

आय से अधिक संपत्ति केसः जयललिता को चार साल की सजा, भेजा गया जेल

बेंगलुरु, 27 सितम्बर 2014 | अपडेटेड: 19:43 IST

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को आय से अधिक संपत्ति मामले में चार साल की सजा सुनाई गई है. इसके अलावा उनके ऊपर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. जयललिता को तुरंत ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा. जयललिता को अरेस्ट करके बेंगलुरु सेंट्रल जेल में ले जाया गया.कोर्ट का फैसला आने के बाद जयललिता को सरकारी अस्पताल में चेकअप के लिए ले जाया गया. जेल जाने से पहले मेडिकल चेकअप जरूरी होता है. मेडिकल चेकअप के बाद उन्हें जेल ले जाया गया. जयललिता सोमवार को जमानत के लिए हाई कोर्ट में अर्जी दे सकती हैं.
जयललिता को आय के ज्ञात स्रोत से 66 करोड़ रुपये अधिक की संपत्ति जमा करने के एक मामले में शनिवार को एक स्पेशल कोर्ट ने दोषी करार दे दिया. तमिलनाडु में वह अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच अम्मा उपनाम से संबोधित होती हैं. 18 साल तक चली कानूनी जंग के बाद न्यायाधीश जॉन माइकल कुन्हा ने जयललिता (66) को दोषी ठहराया. जयललिता अपनी पार्टी एआईएडीएमके की महासचिव भी हैं.
न्यायाधीश ने जयललिता के अलावा तीन अन्य आरोपियों- शशिकला और उनके रिश्तेदार वी. एन. सुधाकरन और जे. इल्लावरसी- को भी दोषी करार दिया है. शशिकला मुख्यमंत्री की सहेली हैं. जयललिता पर आय के ज्ञात स्रोतों से 66 करोड़ रुपये अधिक की संपत्ति जमा करने का आरोप था.
मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल (1991-1996) में जयललिता ने घोषणा की थी कि वह वेतन के तौर पर सिर्फ एक रुपया लेंगी. जयललिता पर आरोप था कि 1991 में उनके पास लगभग तीन करोड़ रुपये की संपत्ति थी और 1991 से 1996 के बीच यह संपत्ति बढ़कर लगभग 66 करोड़ रुपये तक पहुंच गई.
भ्रष्टाचार का आरोप चरम पर होने के कारण 1996 में एआईएडीएमके को जनता ने नकार दिया था. संयोगवश, डीएमके सांसद टी. एम. सेल्वागणपति को इस साल अपनी राज्यसभा की सीट गंवानी पड़ी. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की कोर्ट ने उन्हें शमशान शेड मामले में दोषी ठहराया था. जिस समय भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा था उस समय सेल्वागणपति जयललिता सरकार में स्थानीय प्रशासन मंत्री थे. बाद में वह डीएमके में शामिल हो गए थे.
जयललिता के खिलाफ यह मामला 1996 में राज्य की तत्कालीन द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की करुणानिधि सरकार ने दायर किया था. सुनवाई के दौरान मामले में कई उतार-चढ़ाव और मोड़ आए. 2001 में जब एआईएडीएमके सत्ता में आई तब कई गवाह मुकर गए. डीएमके नेता के. अनबझगन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर मामले को चेन्नई की कोर्ट से बेंगलुरु की कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की.
इस मामले में अभियोजन के 255 और बचाव पक्ष की ओर से 95 से ज्यादा गवाह पेश किए गए. जयललिता को भी अदालत ने 2011 में अदालत तलब कर 1300 सवालों की सूची थमा कर जवाब मांगा था. यह पहला मौका नहीं है जब जयललिता को दोषी ठहराया गया है. 2000 में भी एक कोर्ट ने दो मामलों में उन्हें तीन वर्ष और दो वर्ष कैद की सजा सुनाई थी.
2001 में जयललिता को उस समय मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद वे सत्ता में बनी नहीं रह सकतीं. उस समय उन्होंने अपनी सरकार के वरिष्ठ मंत्री ओ. पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया था. 2002 में मद्रास हाई कोर्ट से बरी होने के बाद वह फिर से मुख्यमंत्री बनी थीं. बाद में वह अंदिपट्टी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुनी गईं.
विशेष न्यायाधीश जॉन माइकल कुन्हा ने शहर के दक्षिणी उपनगर के पारापन्ना अग्रहारा में स्थित केंद्रीय कारागार में स्थापित एक स्पेशल कोर्ट में कड़ी सुरक्षा के बीच अपना फैसला सुनाया. विशेष सरकारी वकील जी. भवानी सिंह ने कहा कि न्यायाधीश कुन्हा ने जयललिता को ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति जमा करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 109 और 120 (बी) तथा भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम, 1988 की धारा 13 के तहत दोषी करार दिया.
 
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