Friday, 8 May 2015

CAG REPORT: Reliance Jio Info got undue advantage of ₹3,367 crore :::: रिलायंस जियो को मिला 3367 करोड़ का अनुचित लाभ, कैग का खुलासा

CAG REPORT: Reliance Jio Info got undue advantage of ₹3,367 crore


The government auditor has pointed out that Mukesh Ambani’s Reliance Jio Infocomm (RJio) got an advantage of ₹3,367.29 crore as a result of Department of Telecom’s decision to allow the company to offer voice telephony by migrating to unified licence.
In its performance audit report of the Ministry of Communications and Information Technology tabled in the Lok Sabha on Friday, the Comptroller & Auditor General said the company got the advantage due to non-accounting of time value of money. RJio is expected to launch services this year.
Reliance Industries had acquired Infotel Broadband in 2010, which had won pan-India wireless access spectrum in auctions. However, the company had initially acquired an Internet service providers licence, under which it can offer only data services. In 2013, the DoT introduced the new unified licence regime allowing internet companies to migrate to full fledged telecom operator by paying an entry fee of ₹1,658 crore. CAG has raised concerns now because this fee was based on the price discovered in 2001.
However, Reliance in a statement said that it had got ‘no favour’ and the company has always conducted its business as per the prevailing laws and abided by the rules and regulations prescribed by the DoT and other regulatory authorities.
“We have acquired our spectrum at market price through open and transparent bidding processes, on conditions which were same for all bidders. Further, the DoT rules for procuring the relevant licence for services using BWA spectrum too were the same for all successful bidders,” a spokesperson at Reliance Jio said. 

Defended by DoT

DoT had earlier defended its decision to allow Reliance Jio to migrate to unified licence regime by saying that no favour has been shown to any specific player. According to the department, the fee of ₹1,658 crore collected from Reliance Jio was not for broadband spectrum but as an entry fee to migrate to unified licence regime. As per the spectrum auction rules in 2010, companies were permitted to use their spectrum to provide services that are allowed under the licence held by them. Infotel Broadband was granted only the ISP licence, which did not provide for voice calling facility.
Therefore, CAG said the auction rules suffered from deficiencies such as absence of financial parameters in the eligibility criteria for bidders, absence of lock-in provision, disparity in scope of usage of BWA spectrum and lack of intermediate milestones in roll out targets.
It also said that Infotel had outbid most of the telecom operators, which could have provided voice services in addition to data in the BWA spectrum auction held in 2010.
The decision to grant permission to an ISP licensee with BWA spectrum to operate in the voice telephony space helped the ISP circumvent the restrictions imposed by their licence at the time of auction, which were known to ISP at the time of bidding for BWA spectrum. 

रिलायंस जियो को मिला 3367 करोड़ का अनुचित लाभ, कैग का खुलासा

रिलायंस जियो को मिला 3367 करोड़ का अनुचित लाभ, कैग का खुलासा
नई दिल्‍ली। दूरसंचार विभाग द्वारा नियमों में बदलाव करने से रिलायंस जियो इंफोकॉम को 3367.29 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ मिला है। इस बात का खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी एक रिपोर्ट में किया है। यह रिपोर्ट शुक्रवार को संसद में पेश की गई।
मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इंडस्‍ट्रीज लिमिटेड ने वर्ष 2010 में इंफोटेल ब्रॉडबैंड का अधिग्रहण किया था। इंफोटेल ने स्‍पेक्‍ट्रम नीलामी में ऑल इंडिया ब्रांडबैंड सर्विस के लिए ब्रांडबैंड वायरलेस एक्‍सेस (बीडब्‍ल्‍यूए) स्‍पेक्‍ट्रम हासिल किया था। इसका उपयोग 4जी सेवाओं के लिए किया जा सकता है।
शुक्रवार को संसद में पेश कैग की रिपोर्ट में स्‍पष्‍ट तौर पर कहा गया है कि रिलायंस जिओ इंफोकॉम लिमिटेड (जो पहले इंफोटेल थी) ने अगस्‍त 2013 में 15 करोड़ रुपये का एकीकृत लाइसेंस (यूएल) के लिए भुगतान किया था, जबकि एक लाइसेंस व्‍यवस्‍था से दूसरी में प्रवेश के लिए कंपनी ने 1658 करोड़ रुपये का अतिरिक्‍त माइग्रेशन शुल्‍क जमा कराया। यह माइग्रेशन शुल्‍क 2001 में निर्धारित मूल्‍य के आधार पर दिया गया। रिपोर्ट बताती है कि इससे रिलायंस जिओ इंफोकॉम को 3367.29 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ हुआ। इंफोटेल ब्रांडबैंड को केवल इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) का लाइसेंस दिया गया था और कंपनी को वायस कॉलिंग सेवा देने की अनुमति नहीं थी।
कैग ने कहा है कि नीलामी शर्तों में बोलीदाताओं के लिए योग्‍यता संबंधी शर्तों में वित्‍तीय मानदंडों का अभाव रहा और कंपनी में बने रहने की शर्त भी नहीं थी। इसके अलावा बीडब्‍ल्‍यूए स्‍पेक्‍ट्रम के उपयोग की गुंजाइश के मामले में भी असमानताएं दिखाई दीं।
कैग के मुताबिक इंफोटेल ने वर्ष 2010 में हुई बीडब्‍ल्‍यूए स्‍पेक्‍ट्रम नीलामी के लिए बोली में अधिकतर दूरसंचार कंपनियों को नीलामी से बाहर कर दिया था, जो डेटा के अलावा वॉयस सर्विस दे सकती थी।
इंफोटेल ने नीलामी के बाद नेटवर्क कोड के लिए आवेदन किया, जो उसे वॉयस सर्विस के लिए जरूरी था, जबकि लाइसेंस में इसकी इजाजत नहीं थी। दूरसंचार विभाग ने वर्ष 2013 में अतिरिक्‍त फीस लेकर कंपनी को बीडब्‍ल्‍यूए स्‍पेक्‍ट्रम से एकीकृत लाइसेंस में प्रवेश की इजाजत दे दी गई। कैग के मुताबिक बीडब्‍ल्‍यूए स्‍पेक्‍ट्रम पर वॉयस सेवा की इजाजज देते वक्‍त दूरसंचार विभाग ने स्‍पेक्‍ट्रम यूज चार्ज से मिलान नहीं‍ किया, जिसके चलते सरकार को राजस्‍व का नुकसान हुआ।
रिलायंस जियो इंफोकाॅम लिमिटेड ने कहा कि उसने हमेशा दूरसंचार विभाग तथा दूसरे नियामकों के नियमों का पालन किया है और कोई अनुचित लाभ नहीं लिया है। कंपनी के प्रवक्ता ने इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उसने हमेशा दूरसंचार विभाग और दूसरे नियामकों के नियमो का पालन किया है और सारे स्पेक्ट्रम बाजार मूल्य पर पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से हासिल किए हैं। उसने कहा कि नीलामी के नियम और शर्त उसमें भाग लेने वालों के लिए एक समान थे। कंपनी ने कहा है कि बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम का उपयोग जिन सेवाओं के लिए किया जाना है वह सभी सफल बोली लगाने वालों के लिए एक समान है।

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