#Economy #Rupee: नहीं बदले रुपए के हालात, महंगाई और आर्थिक मोर्चे पर बढ़ सकती हैं सरकार की मुश्किलें
| May 09, 2015
नई दिल्ली। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में हाल के दिनों
में आए उतार-चढ़ाव ने 2013 के करेंसी संकट की याद ताजा कर दी है। गुरुवार
को रुपया 64 के स्तर के पार चला गया, जोकि सितंबर 2013 के बाद निचला स्तर
था। रुपए की इस चाल से महंगाई बढ़ने के साथ-साथ राजकोषीय घाटे पर सरकार की
मुश्किलें बढ़ने की आशंका गहराने लगी है। यदि महंगाई दर में उछाल आता है
तो ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों पर भी पानी फिर सकता है।
कुल मिलाकर देखें तो कमजोर होते रुपए का असर अर्थव्यवस्था और आम
आदमी की जेब दोनों पर पड़ सकता है। असल सवाल यह है कि मोदी सरकार आगामी 26 मई को अपना एक साल पूरा कर रही है, तो क्या बीते एक साल में रुपए की हालत में कोई बदलाव नहीं आया है। रुपए की स्थिति काफी हद तक यूपीए सरकार के
अंतिम दिनों जैसी ही है। जब कहा जा रहा था कि रुपए में गिरावट क्रूड में
उछाल घरेलू आर्थिक हालात खराब होने से हुई है। मनीभास्कर ने रुपए के इन
तमाम पहलुओं की पड़ताल की।
डॉलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी से सरकार को राजकोषीय मोर्चे पर
मुश्किलें बढ़ेंगी। भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी पेट्रोलियम उत्पाद
आयात करता है। इसके अलावा, सोने, खाद्य तेलों और दालों का भी बड़े पैमाने पर
आयात किया जाता है। ऐसे में रुपए की कमजोरी से सरकार का आयात बिल बढ़
जाएगा। यानी, आयात आधारित मुद्रास्फीति रुपए की कमजोरी से बढ़ सकती है। वहीं, कमजोर रुपए से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी की कीमत में गिरावट का असर बेमानी हो रहा है। ऐसे में सरकार के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य
को हासिल करना मुश्किल हो सकता है।सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2015-16 में
राजकोषीय घाटे को जीडीपी का 3.9 फीसदी पर लाने का लक्ष्य रखा है। 2014-15
में राजकोषीय घाटा 4.1 फीसदी पर था।
मोदी सरकार देश की रेटिंग बढ़वाने के लिए बीते एक साल में मूडीज, फिच
और एसएंडपी जैसी ग्लोबल रेटिंग एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात
कर चुकी है। इन मुलाकातों का नतीजा यह रहा कि रेटिंग एजेंसियों ने आने वाले
दिनों में भारत के आर्थिक आंकड़ों और आर्थिक सुधारों का असर दिखाई देने पर
रेटिंग में बदलाव का भरोसा दिया है। ऐसे में यदि रुपए में गिरावट बनी रहती
है तो इसका असर रेटिंग पर देखने को मिल सकता है। 2013 में जब रुपए का संकट आया था, तब ज्यादातर क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भारत की रेटिंग घटा थी।
फिलहाल जून में रेटिंग बढ़ने की उम्मीद लगाई जा रही है लेकिन रुपए की
कमजोरी से इसे बड़ा धक्का लग सकता है।
रुपए में गिरावट से कच्चे तेल का आयात महंगा हो जाएगा। ऐसे में तेल
कंपनियां पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी कर सकती है। यदि घरेलू
बाजार में डीजल की कीमतें बढ़ती हैं तो माल ढुलाई बढ़ जाएगी जिससे वस्तुओं
की कीमतें बढ़ जाएंगी। इसके अलावा, खाद्य तेल और दालों की कीमतें में तेज
उछाल आ सकता है क्योंकि हम अपनी जरूरत का एक बड़ा हिस्सा आयात करते हैं।
2013-14 में 16515.37 करोड़ डॉलर का पेट्रोलियम उत्पाद, 933.67 करोड़ डॉलर
का खाद्य तेल और 174.39 करोड़ डॉलर की दाल का आयात हुआ था। इन हालातों में
यदि महंगाई बढ़ती है तो रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दरों में कटौती की
उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। इस लिहाज से आने वाले दिनों में बैंकों की
तरफ से होम और ऑटो लोन की ईएमआई में कम होने की उम्मीद जता रहे
उपभोक्ताओं को निराशा हो सकती है।
रुपए में गिरावट को लेकर सरकार की आर्थिक मोर्चे पर नाकामी और नीतिगत
उपायों का धरातल पर असर नहीं को एक्सपर्ट की राय अलग-अलग है। हालांकि,
एक्सपर्ट इतना जो जरूर मानते हैं कि रुपए को लेकर हालात इस कदर बुरे नहीं
है जितनी तस्वीर दिखाई जा रही है।
फॉरेक्स एक्सपर्ट एवी राजवाड़े ने बताया कि रुपया
ओवरवैल्यूड हो गया था, जिसके कारण गिरावट आई है। अब भी रुपया करीब 9 फीसदी
ओवरवैल्यूड है। इसलिए 65 का स्तर छू सकता है। हालांकि सरकार और सेंट्रल
बैंक लगातार अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए है।
साथ ही बीते एक साल में डॉलर के मुकाबले जहां अन्य करेंसी काफी टूट चुकी
है, वहीं, भारतीय रुपया मजबूती के साथ टिका हुआ है। इसलिए हालात इतने बुरे रहीं हैं।
ट्रस्टलाइन के रिसर्च हेड राजीव कपूर ने मनीभास्कर को बताया कि सरकार
निवेशकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है, जिसके कारण शेयर बाजार में
विदेशी निवेशकों की बिकवाली आई है। इसका असर रुपए पर देखने को मिल रहा है।
साथ ही, अमेरिकी लेबर मार्केट में सुधार आ रहा है। इसे देखते हुए फेड ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी जल्द करने पर फैसला ले सकता है। इस वजह से डॉलर और भी
मजबूत होगा और रुपया 64.50 तक फिसल सकता है।
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