Monday, 4 May 2015

#Kashmir: तो कश्मीर में कहां बनते हैं पाकिस्तानी झंडे?...जब वह झंडा सिल देता है तो मैं उसे एक पेंटर दोस्त के पास ले जाता हूं जो उस पर आधा चांद और तारे बना देता है.

#Kashmir: तो कश्मीर में कहां बनते हैं पाकिस्तानी झंडे?...जब वह झंडा सिल देता है तो मैं उसे एक पेंटर दोस्त के पास ले जाता हूं जो उस पर आधा चांद और तारे बना देता है.


5 मई 2015

पाकिस्तान के झंडे

भारत प्रशासित कश्मीर में एक आज़ादी-समर्थन रैली के दौरान पाकिस्तान का झंडा फहराए जाने पर भारतीय मीडिया में ही नहीं, घाटी से दिल्ली तक के राजनीतिक पार्टियों में, गुस्से की लहर दौड़ गई.
कश्मीर के लोगों का कहना है कि उनके लिए पाकिस्तानी झंडा फहराना नई बात नहीं है. इसके साथ ही पाकिस्तान का झंडा बनाना भी उतनी ही पुरानी बात है जितना सशस्त्र विद्रोह.
साल 2008 और 2010 में भी आज़ादी समर्थक रैलियों और प्रदर्शनों के दौरान बहुत से लोग पाकिस्तानी झंडे लिए नज़र आते थे. और तो और, जब नागरिक प्रदर्शनों के बजाय चरमपंथ का ज़ोर था, तब पाकिस्तानी झंडे फ़हराना आम था.
लेकिन ये झंडे बनाना हमेशा से ही एक गुप्त काम रहा है क्योंकि भारतीय सेना या अन्य सुरक्षा संस्थाओं के हाथों गिरफ़्तार होने का डर रहता है.

'बहुत आसान है झंडा बनाना'


कश्मीर, अलगाववादी प्रदर्शन
चौबीस वर्षीय अबरार (बदला हुआ नाम), हुर्रियत अध्यक्ष सैयद अली शाह गिलानी के श्रीनगर (हैदरपुरा) निवास में रहते हैं.
वह कहते हैं कि वो कुछ सफ़ेद और हरे कपड़े ख़रीदते हैं और झंडा बनाने के लिए एक दर्ज़ी को दे देते हैं, जो छिपाकर ये काम करता है.
अबरार बताते हैं, "दर्ज़ी मेरा दोस्त है, इसलिए मैं उस पर भरोसा करता हूं. जब वह झंडा सिल देता है तो मैं उसे एक पेंटर दोस्त के पास ले जाता हूं जो उस पर आधा चांद और तारे बना देता है."
एक झंडा बनाने में उनके 200 रुपये लगते हैं, जो उनके अनुसार उनकी जेबख़र्ची में से निकलते हैं. वो कहते हैं, "मुझे पाकिस्तान और इसके झंडे से प्यार है. 200 या 300 रुपये बड़ी बात नहीं हैं."

'टेंट-तंबू बनाने वालों से मदद'


कश्मीर, अलगाववादी प्रदर्शन
श्रीनगर शहर में कुछ कैंपिंग एजेंसियां यानी टेंट-तंबू देने वाले कारोबारी, भी पाकिस्तानी झंडा बनाने में मदद करती हैं.
मोहम्मद अहसान (बदला हुआ नाम) पुराने श्रीनगर शहर में चलने वाले टेंट-तंबू का कारोबार चलाते हैं. वो कहते हैं कि वह आज़ादी आंदोलन के उत्कट समर्थक हैं.
वह बताते हैं कि 2010 के प्रदर्शनों के दौरान वह 'दस्तरख़ान' (कपड़े का लंबा टुकड़ा जिसे खाना रखने के लिए इस्तेमाल करते हैं), को कई टुकड़ों में काटकर उसे हरे रंग से पेंट कर उस पर आधा चांद और तारे बना देते थे.
वह कहते हैं, "मैंने दस्तरख़ान को काटकर कई झंडे बनाए होंगे. मैं उन्हें अपने दोस्तों और उत्साही लड़कों को मुफ़्त में दे दिया करता था. उन दिनों हर कोई पाकिस्तानी झंडे फहरा रहा था, और मैं भी."

दो पाक झंडे सदा लहराते दिखेंगे


कश्मीर, अलगाववादी प्रदर्शन
बाकी कुछ लोग बिना किसी को शामिल किए खुद ही पाकिस्तानी झंडे बनाते हैं.
शाकिर (बदला हुआ नाम), श्रीनगर के हब्बाकदल इलाके के एक युवक हैं. वह कहते हैं कि वह अपने घर खुद ही झंडे बनाते हैं.
"मेरी अटारी में एक सिलाई मशीन और पेंट का डब्बा है. जब भी मुझे नए झंडे की ज़रूरत होती है मैं वहीं बनाता हूँ, बिना किसी को बताए, अपने परिजनों को भी नहीं."
वह कहते हैं कि वह इसे लेकर हमेशा सतर्क रहते हैं क्योंकि सुरक्षा बल ऐसे लड़कों को खोजते हैं जो रैलियों में पाकिस्तानी झंडे फ़हराते हैं.
पाकिस्तानी झंडे बनाने का काम गुप्त रूप से होता है और इसमें काफ़ी ख़तरा होता है लेकिन इन युवकों के लिए यह भावनाओं और जोश से जुड़ा मामला है.

पाकिस्तान के झंडे
श्रीनगर के पुराने बारज़ुला में, जो आज़ादी-समर्थक गतिविधियों और गिलानी के समर्थकों का गढ़ माना जाता है, एक सार्वजनिक पार्क में दो पाकिस्तानी झंडे हमेशा लहराते रहते हैं.
इनके बगल में दो बड़े पोस्टर लगे रहते हैं - एक यूनाइटेड जिहाद काउंसिल के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन का और दूसरा सैयद अली शाह गिलानी का. और वहाँ किसी को भी यह अजीब नहीं लगता.

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