Tuesday 30 July 2013

BREAKING NEWS FROM 16 JULY TO TILL DATE(29 july)

 

हिट एंड रन केस: जज ने कहा, आरोपी की जगह बैठें सलमान खान, अगली सुनवाई 24 जुलाई को


मुंबई, 19 जुलाई 2013 |

साल 2002 के हिट एंड रन केस में शुक्रवार को बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान मुंबई के सेशंस कोर्ट में पेश हुए. मामले की अगली सुनवाई अब 24 जुलाई को होगी.सलमान खान पर इस मामले में गैर-इरादतन हत्‍या का केस चल रहा है, जिसका आज पहला ट्रायल था और जज ने उन्‍हें कोर्ट में हाजिर रहने का आदेश दिया था. सुनवाई के दौरान सलमान आम जनता की जगह बैठ गए, लेकिन जज ने उनसे कहा कि वो आरोपी हैं इसलिए उन्‍हें आरोपी की जगह पर बैठना होगा. जज के आदेश के बाद सलमान को अपनी जगह बदलनी पड़ी.
मामले की सुनवाई अब 24 जुलाई को होगी और उन्‍हें उस दिन भी कोर्ट में हाजिर रहना पड़ेगा. सलमान के साथ आज उनकी दोनों बहनें अलविरा और अर्पिता भी कोर्ट में मौजूद थीं.
इससे पहले 25 जून को मुंबई के सेशंस कोर्ट ने साल 2002 के हिट एंड रन मामले में सलमान की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि उनके खिलाफ गैर-इरादतन हत्‍या का केस चलेगा. अब अगर सलमान दोषी पाए जाते हैं तो उन्‍हें 10 साल तक की सजा हो सकती है.

दरअसल, सलमान ने निचली अदालत के जज के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी, जिन्होंने इसे हत्या नहीं बल्कि सदोष मानवहत्या का कठोर मामला मानते हुए दोबारा सुनवाई के आदेश दिए थे. इस मसले पर बहस मई में पूरी हुई थी और सलमान के वकील अशोक मुंडार्गी ने निचली अदालत के आदेश को भ्रामक और कानून के मुताबिक गलत और दर्ज सुबूत के खिलाफ बताया था.
मामला सेशंस कोर्ट तक पहुंचा और सुनवाई के दौरान खुली अदालत में फैसला लिखवाते हुए सत्र न्यायाधीश यूबी हेजिब ने कहा कि सलमान को गैर इरादतन हत्या के आरोपों का सामना करना चाहिए.
सलमान के खिलाफ इससे पहले लापरवाही से मौत (आईपीसी की धारा 304 ए) के तहत हल्के आरोप के लिए मजिस्ट्रेट ने मुकदमा चलाया था. उसके तहत अधिकतम 2 साल के कारावास का प्रावधान है.
हालांकि, मामले में नया मोड़ लाते हुए बांद्रा के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने 17 गवाहों का परीक्षण करने के बाद 47 वर्षीय अभिनेता के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के अधिक गंभीर आरोप लगाए थे और इसे दोबारा मुकदमा चलाने के लिए सत्र अदालत के पास भेज दिया था.
गौरतलब है कि सलमान की एसयूवी ने 28 सितंबर 2002 को बांद्रा उपनगर में फुटपाथ पर सो रहे पांच लोगों को कुचल दिया था, जिनमें से एक की मौत हो गई थी.

 

 

 सदाशिवम बने देश के 40वें मुख्य न्यायाधीश

नई दिल्ली, 19 जुलाई 2013 |
पी सतशिवम
पी सतशिवम
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को न्यायमूर्ति पी सदाशिवम को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद की शपथ दिलाई. न्यायमूर्ति सदाशिवम (64) भारत के 40वें मुख्य न्यायाधीश हैं. वह 26 अप्रैल, 2014 तक इस पद पर बने रहेंगे.
उन्होंने मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर का स्थान लिया है जो गुरुवार को पदभार से मुक्त हुए हैं.
राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह के दौरान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता लाल कृष्ण आडवाणी और अन्य कैबिनेट मंत्री उपस्थित थे.

नए चीफ जस्टिस सदाशिवम ने ही सुनाई थी संजय दत्त को सजा


नए चीफ जस्टिस सदाशिवम उस बेंच में शामिल थे, जिसने मुंबई धमाकों के मामले में संजय दत्त की सजा को बरकरार रखा था. वह कई बड़े मामलों में फैसले सुना चुके हैं. जस्टिस सदाशिवम मामलों के निपटारे में देरी को बड़ा मुद्दा मानते हैं. पद की शपथ लेने से पहले कल उन्होंने कहा, 'न्याय की गुणवत्ता और मात्रा में इजाफा कर इस परेशानी से उबरा जा सकता है.' उन्होंने कहा कि वह दलीलों और लिखित बयानों को जमा कराने की समयसीमा तय करने की कोशिश करेंगे ताकि अदालतों में लंबित मामलों की संख्या कम की जा सके.
64 साल के सदाशिवम 26 अप्रैल, 2014 तक यह पद संभालेंगे. वह भी अल्तमस कबीर की तरह सुप्रीम और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था को खत्म करने के खिलाफ हैं. हालांकि उन्होंने माना है कि कोलेजियम व्यवस्था में कमियां हैं और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कोशिशें की जा सकती हैं.
सदाशिवम का जन्म 27 अप्रैल, 1949 को हुआ था. जुलाई, 1973 में उन्होंने मद्रास में बतौर वकील पंजीकरण करवाया और जनवरी, 1996 में मद्रास हाई कोर्ट में स्थायी जज बने. अप्रैल, 2007 में उनका तबादला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में कर दिया गया.
चीफ जस्टिस सदाशिवम ने कई बड़े फैसले दिए हैं जिनमें मुंबई धमाकों का मामला और पाकिस्तानी वैज्ञानिक मोहम्मद खलील चिश्ती का मामला भी शामिल है. जस्टिस सदाशिवम और जस्टिस बी.सी. चौहान ने ही मुंबई धमाकों के मामले में अभिनेता संजय दत्त और कई दूसरे अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखा था.
उनकी पीठ ने इस मामले में पाकिस्तान की इस बात के लिए भर्त्सना की थी कि उसकी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने इन विस्फोटों को अंजाम देने वालों को ट्रेनिंग दी और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत वह अपनी जमीन से होने वाले आतंकी हमलों को रोकने में नाकाम रही है,
पाकिस्तानी वैज्ञानिक चिश्ती की सजा को रद्द करने वाला फैसला भी जस्टिस सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिया था.
जस्टिस सदाशिवम ने ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस से जुड़े तिहरे हत्याकांड के मामले में भी फैसला सुनाया था. उन्होंने इस मामले में दारा सिंह की सजा को बरकरार रखा था.


 

रायपुर, छत्तीसगढ़ :एक गाँव जो खदानों से घिरे टापू में बदल रहा है



छत्तीसगढ़, कोसमपाली-सारसमाल गाँव, कोयला खदान 

हीरामती पटेल अपने घर का पिछला दरवाज़ा खोलती हैं तो छोटे से खेत के बाद कई फ़ीट गहरी खाई नज़र आती है. कुछ साल पहले तक ऐसा नहीं था.
उनके घर के पिछवाड़े वाले खेतों में कभी फ़सल लहलहाया करती थी.

अब इन खेतों की जगह पर जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड कंपनी की कोयला खदानें मौजूद हैं. कोसमपाली-सारसमाल गाँव तीन तरफ़ से क्लिक करें गहरी खदानों से घिर चुका है. बाहर निकलने का सिर्फ़ एक रास्ता मौजूद है लेकिन गाँव वाले कहते हैं कि वो भी कब खदानों में बदल दिया जाए, कहा नहीं जा सकता.
यही हाल पड़ोस के कोडकेल, लिबरा, टेहली रामपुर, डोंगामहुआ, धौंराभांटा और लमदरहा आदि गाँवों का है. ये सभी गाँव आने वाले दिनों में कोयला खदानों से घिरे हुए टापू में तब्दील होने की राह पर हैं.
हालांकि जिंदल स्टील के महाप्रबंधक (जनसंपर्क) डीके भार्गव ने इन आरोपों से इनकार किया है.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "गाँव को टापू में तब्दील करने की प्रबंधन की कोई भी मंशा नहीं है. ऐसी कोई भी शिकायत किसी भी ग्रामीण ने किसी भी स्तर एवं मंच पर अभी तक नहीं की है."

कोयला बना अभिशाप


"राज्य सरकार के आँकड़ों के मुताबिक़ देश का कुल 17.24 प्रतिशत कोयला भंडार छत्तीसगढ़ में है. राज्य के कोरबा, रायगढ़, कोरिया और सरगुजा जिले में 49 हजार 280 मिलियन टन कोयला जमीन के नीचे है. देश के कोयला उत्पादन में छत्तीसगढ़ हर साल 21 प्रतिशत से अधिक का योगदान करता है. "
छत्तीसगढ़ में यह जुमला बहुत मशहूर है कि अगर आप किसी इलाक़े में बसना चाहते हैं तो पहले पता लगा लें कि वहां ज़मीन के नीचे कहीं कोयला न हो.
रायगढ़ के कोसमपाली-सारसमाल गाँव के बुजुर्ग भीमराम पटेल भी यही सलाह देते हैं.
भीमराम कई पीढ़ियों से कोसमपाली-सारसमाल गाँव में रहते आए हैं लेकिन उन्हें लगता है कि अब गाँव छोड़ने की बारी आ गई है. कहां जाएंगे, इस सवाल पर वे चुप हो जाते हैं.
असल में तमनार तहसील का कोसमपाली-सारसमाल गाँव इस इलाक़े के उन सैकड़ों गांवों की तरह है जिनके नीचे क्लिक करें कोयला है और जहाँ दिन रात खुदाई चल रही है या खुदाई करने की तैयारी है.
राज्य सरकार के आँकड़ों के मुताबिक़ देश का कुल 17.24 प्रतिशत कोयला भंडार छत्तीसगढ़ में है. राज्य के कोरबा, रायगढ़, कोरिया और सरगुजा ज़िले में 49 हज़ार 280 मिलियन टन कोयला ज़मीन के नीचे है. देश के कोयला उत्पादन में छत्तीसगढ़ हर साल 21 प्रतिशत से अधिक का योगदान करता है.
राज्य में 45.5 प्रतिशत कोयला केवल रायगढ़ ज़िले में है और सैकड़ों कोल खदानें भी, जहां से हर साल हज़ारों की आबादी विस्थापित होती है. अब बारी कोसमपाली-सारसमाल की है.
कोसमपाली गाँव में हमारी मुलाक़ात खेत में काम करते बोधराम मांझी से हुई. उनका कहना है कि कोयले के लिए खुदाई शुरु होने के बाद से अब गाँव से बाहर जाने का रास्ता बंद हो गया है. सारे रास्ते सैकड़ों फ़ीट तक खोद दिये गए हैं. ले-दे के एक रास्ता बचा है. वह भी जाने कब बंद हो जाए.

वादे हैं वादों का क्या


छत्तीसगढ़, कोसमपाली-सारसमाल गाँव, कोयला खदान
साल 2006 में जब गाँव के खेतों को क्लिक करें कोल ब्लॉक के लिए दिए जाने की जानकारी गाँव वालों को हुई तो लोगों ने विरोध किया लेकिन उनका विरोध काम नहीं आया. कंपनी और सरकार का दबाव बढ़ा तो 172 लोगों ने अपनी ज़मीन अलग-अलग क़ीमतों पर कंपनी को बेच दी.
जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड को 964.650 हेक्टेयर की कोयला खदान की लीज़ मिली थी, जिसमें से 209.654 हेक्टेयर ज़मीन कोसमपाली की थी. कोयला उत्खनन से पहले गाँव के लोगों को नौकरी देने, उनका विस्थापन होने की स्थिति में पुनर्वास करने, कंपनी को होने वाले लाभ का कम से कम एक प्रतिशत हिस्सा गाँव और आसपास के विकास में ख़र्च करने जैसे कई वादे किए गए थे, लेकिन गाँव वाले कहते हैं कि उनमें से एक भी वादा पूरा नहीं हुआ.
कोसमपाली के करम सिंह कहते हैं, "जब हमसे ज़मीन ली गई थी तो एसडीओ, जिंदल और ग्रामीणों के बीच हरेक परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का समझौता हुआ था. लेकिन साल भर तक दैनिक मज़दूर के बतौर काम करने के बाद भी मुझे न तो नियुक्ति प्रमाणपत्र मिला और ना ही मुझे स्थाई किया गया. आख़िर में मुझे काम छोड़ना पड़ा."
इसके बाद जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड ने जब क्लिक करें कोयला खनन के काम का विस्तार करने के लिए गाँव वालों को अपने बचे हुए खेत और घर बेचने को कहा तो लोग अड़ गए. उनका कहना था कि खेत और घर जाने के बाद वे जाएंगे कहां और उनका एकमात्र रोज़गार तो खेती है फिर उनकी आजीविका का क्या होगा.

ग्राम सभा का सच


छत्तीसगढ़, कोसमपाली-सारसमाल गाँव, हीरामती पटेल, कोयला खदान, हीरामती पटेल
यह गाँव अधिसूचित क्षेत्र में आता है जहाँ पंचायत अनुसूची क्षेत्रों का विस्तार अधिनियम यानी पेशा क़ानून लागू है. पेशा क़ानून यानी जो भी होना है, गाँव की ग्राम सभा तय करेगी.
गाँव के लोग इसी बात पर ख़ुश थे कि बिना ग्राम सभा की अनुमति के तो जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड खुदाई कर ही नहीं सकती. लेकिन गाँव के एक नौजवान शिवपाल भगत ने दो दिसंबर 2011 को आरटीआई क़ानून के तहत कुछ दस्तावेज़ हासिल किए तो गाँव के लोग चौंक गए.
इन दस्तावेज़ों के अनुसार गाँव के सरपंच के नाम से 24 अक्टूबर 2008 को ग्राम सभा होने और जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड को खनन के लिए गाँव की ज़मीन देने संबधी निर्णय की सूचना दी गई थी.
सरपंच गोमती सिदार का सारा कामधाम उनके पति सालिक राम देखते हैं. ग्राम सभा के बारे में पूछे जाने पर गोमती सिदार अपने पति से पूछने की बात कहती हैं और उनके पति सालिक राम कहते हैं, "जहां तक याद पड़ता है, जिंदल के खनन को लेकर तो कभी कोई ग्राम सभा नहीं हुई है."
ग्राम सभा के दस्तावेज़ के बाद गाँव के लोगों ने आनन-फ़ानन में बैठक बुलाई और फिर इस मामले में फ़र्जी़ दस्तावेज़ तैयार किए जाने संबंधी एक एफ़आईआर दर्ज कराई गई.
पुलिस प्रशासन और क्लिक करें औद्योगिक घरानों से लड़ाई आसान नहीं थी. यही कारण है कि लोगों ने हार मान ली. एक-एक कर दो दर्जन लोगों ने अपने बचे हुये खेत और घर बेचना शुरु किया और फिर हमेशा-हमेशा के लिए यहां से चले गए.
जिंदल की ओर से प्रशासन ने दूसरे दौर में एक बार फिर 31 परिवारों को कोसमपाली की बची हुई ज़मीन देने के लिए नोटिस जारी किया. लेकिन गाँव के लोग अपनी बची हुई ज़मीन देने के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे लोगों ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में मामला दायर किया है जिस पर अभी सुनवाई होनी है.

हाईकोर्ट का रास्ता


छत्तीसगढ़, कोसमपाली-सारसमाल गाँव, कोयला खदान, स्थानीय किसान करम सिंह
कोसमपाली गाँव के करम सिंह के परिवार में कुल 22 सदस्य हैं. 2006 में जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड ने 80 हज़ार रुपए एकड़ के हिसाब से इनकी 25 एकड़ ज़मीन ली थी. जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड ने वायदे के अनुसार आज तक परिवार के किसी भी सदस्य को नौकरी नहीं दी.
जिंदल के डीके भार्गव का दावा है कि जिन 172 परिवारों से ज़मीन ली गई है, उनमें से 62 लोगों को स्थाई नौकरी भी दी गई है. लेकिन गाँव के शिवपाल, कन्हाई पटेल जैसे लोग इन तथ्यों को गलत बताते हैं.
करम सिंह कहते हैं, "हमारे पास खेती के अलावा वनोपज का सहारा था. कोयला के उत्खनन के कारण पड़ोस का जंगल ख़त्म हो गया. कोयला खनन में होने वाले विस्फोटों के कारण हमारे घर के छप्पर उड़ने लगे. दीवारों में दरार पड़ने लगी. शिकायत और विरोध करने पर उलटा हम पर ही अलग-अलग अदालतों और थानों में मुकडदमे ठोक दिए गए."
अब गाँव के लोगों ने अपने विस्थापन के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.

विकास की शर्तें


"साधारणत: किसी भी ग्रामीण को कोई विशेष समस्या नहीं है और यदि कोई परेशानी होती भी है तो वे सीधे प्रबंधन से संपर्क कर अपनी समस्याओं का निराकरण करते हैं."
डीके भागर्व, महाप्रंबधंक (जनसंपर्क) जिंदल स्टील
हाईकोर्ट की वकील सुधा भारद्वाज का कहना है कि कोल ब्लॉक का आवंटन करने से लेकर खनन तक की पूरी प्रक्रिया अवैधानिक है. उनका दावा है कि राज्य के अधिकांश कोल ब्लॉकों का हाल एक जैसा है.
लेकिन जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड के अधिकारी सब कुछ नियम से चलने की बात कहते हैं.
जिंदल के डी के भार्गव कहते हैं, "साधारणत: किसी भी ग्रामीण को कोई विशेष समस्या नहीं है और यदि कोई परेशानी होती भी है तो वे सीधे प्रबंधन से संपर्क कर अपनी समस्याओं का निराकरण करते हैं."
समाजवादी चिंतक और किसान नेता आनंद मिश्रा कहते हैं, "औद्योगिक घरानों और सरकार को छत्तीसगढ़ में काम करने से पहले बहुत सोचना विचारना चाहिये कि आख़िर वे कथित विकास किन शर्तों पर कर रहे हैं. लाखों लोगों को उजाड़ कर चंद औद्योगिक घरानों की कमाई की हवस पर रोक लगनी ही चाहिए."

 

 

हमको बैठा लीजिए, मेरी बेटी मर जाएगी'
:छपरा (बिहार)



बिहार, छपरा, विषाक्त भोजन, त्रासदी, मृतक बच्ची का परिवार 

मध्याहन भोजन खाने से मरने वाले बच्चों की संख्या बढकर 23 हुई, 25 अब भी बीमार



बिहार के छपरा ज़िले के एक सरकारी स्कूल में विषाक्त भोजन खाकर मरने वाली एक बच्ची के पिता के आक्रोश को इस बात से समझा जा सकता है कि वे घटना के लिए ज़िम्मेदार लोगों के लिए मौत की सज़ा की माँग कर रहे हैं.
इस क्लिक करें त्रासदी में जान गँवाने वाली एक पाँच वर्षीय बच्ची के पिता अजय ने बीबीसी से कहा, "यहाँ सीबीआई की जाँच कराई जाए. यहाँ कोई सरकार नहीं आ रही है. आलतू-फ़ालतू के कहीं-कहीं के नेता लोग आ रहे हैं. यहाँ कोई जायज़ काम नहीं हो रहा है. सरकार देखे कि क्या हुआ है, कैसे हुआ है और कौन दोषी है. उसको मौत की सज़ा दी जाए क्योंकि उसके लिए यह सज़ा भी कम होगी."
क्लिक करें 16 जुलाई की तारीख़ अजय के जीवन में एक त्रासदी की तरह रहेगी. उस दिन का ज़िक्र करते हुए वह कहते हैं, "मेरे को क़रीब बारह-साढ़े बारह बजे पता चला कि सारे लड़के उल्टी कर रहे हैं. हम भी अपने खेतों में थे. वहाँ से दौड़े हुए गए. वहाँ पहुँचकर देखा कि मेरी बेटी को मेरा छोटा भाई लेकर चला आया था. मैंने अपनी बेटी से पूछा कि क्या हुआ है बेटा तुमको. वो बोली कि कुछ नहीं हुआ है हमको. फिर हमने उससे पूछा कि तुमने कुछ खाया है. वह बोली कि हाँ हमने खाया है लेकिन हमको कुछ नहीं हुआ है."

एम्बुलेंस सुविधा

"मेरी बेटी बस पाँच साल की थी. मेरी बेटी कह रही थी कि पापा हमको कुछ नहीं हुआ है. बोली कि पापा हमको घर ले चलो. चाचा को बुलाओ और गाड़ी पर बिठाओ और घर ले चलो."
अजय, मृतक बच्ची के पिता
"फिर गाड़ी लेकर लोग आए. उसको उठाकर मशरख़ ले गए. पहले क्लिक करें सरकारी हॉस्पीटल ले गए फिर वहाँ एक प्राइवेट अस्पताल ले जाकर दिखाए. वहाँ एक बोतल पानी चढ़ाया गया. वो डॉक्टर बोला कि आपको जहाँ ले जाना है ले जाईए. मेरी बेटी तब तक लार गिराने लगी."
अजय ने बताया, "उसके बाद वहाँ से हम अपने भाई को बोले कि कोई गाड़ी की व्यवस्था करो और चलो. उसने कहा कि एम्बुलेंस आ रही है. एम्बुलेंस वाले भी नहीं बैठा रहे थे."
उनकी लाचारगी और हालात की गंभीरता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि एम्बुलेंस की सुविधा के लिए अजय को गिड़गिड़ाना पड़ा था.
वह कहते हैं, "वे लोग गाड़ी पर हमको नहीं बिठा रहे थे. हम गाड़ी को पकड़कर लटक गए और कहने लगे कि हमको बैठा लीजिए और ले चलिए. मेरी बेटी मर जाएगी. तब जाकर मेरे भाई ने गाड़ी का गेट खुलवाया. थोड़ी दूर जाने के बाद मेरी बेटी के नाक और मुँह से बहुत ज़ोर से गाज आने लगा बहुत ज्यादा. उसकी साँसे तेज़ चलने लगी."

आख़िरी शब्द

बिहार, छपरा, विषाक्त भोजन, त्रासदी, मृतक बच्ची का परिवार
अजय को एम्बुलेंस सुविधा के लिए गिड़गिड़ाना पड़ा था.
"फिर हम छपरा के सदर अस्पताल पहुँचे. वहाँ जो भी डॉक्टर आए वह सिर्फ़ हाथ पकड़कर चलते बने. इस पर हम चिल्लाने लगे. तब तक कोई आया और बताया कि वह मर गई है. वे लोग मेरी बेटी को ले गए, क्लिक करें चीर-फाड़ (पोस्टमॉर्टम) किए उसके बाद हमारे घर पहुँचाए."
इस घटना के बाद से ही अजय समेत कई परिवारों में मातम का माहौल है. अजय के छोटे भाई भी सदमे की अवस्था में है.

मरने से पहले बेटी के कहे आख़िरी शब्दों को दोहराते हुए अजय कहते हैं, 
"मेरी बेटी बस पाँच साल की थी. मेरी बेटी कह रही थी कि पापा हमको कुछ नहीं हुआ है. बोली कि पापा हमको घर ले चलो. चाचा को बुलाओ और गाड़ी पर बिठाओ और घर ले चलो."

मिड डे मील या दोपहर का भोजन कार्यक्रम देश भर के सरकारी स्कूलों में बच्चों का स्कूल और पढ़ाई-लिखाई में रूझान बनाए रखने के लिए चलाया जाता है.
स्कूलों में दिए जाने वाले पोषाहार की गुणवत्ता को लेकर समय-समय पर कई नकारात्मक खबरें प्रकाश में आती रही हैं लेकिन छपरा मिड डे मील त्रासदी ने इस योजना और सरकारी स्कूलों के काम काज पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं जिनके जवाब अभी ढूंढे खोजे जाने हैं.

 

 

भारत रत्न के लिए ध्यानचंद का नाम प्रस्तावित

नई दिल्ली, 19 जुलाई 2013

मेजर ध्यानचंद
मेजर ध्यानचंद 
केंद्रीय खेल मंत्रालय ने भारत रत्न के लिए ध्यानचंद के नाम की सिफारिश की है. बुधवार को एक बैठक के दौरान सचिन और ध्यानचंद दोनों के नाम पर चर्चा की गई, जिसमें ध्यानचंद के नाम पर मंत्रालय ने मुहर लगा दिया.



हॉकी के जादूगर ध्यानचंद 1979 में अपनी मौत से पहले देश का सिर हॉकी की दुनिया में बहुत ऊंचा कर चुके थे. उनके शानदार करियर के दौरान भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में लगातार तीन स्वर्ण पदक जीतने का नायाब कारनामा किया. 

भारतीय टीम ने 1928 (एम्सटर्डम), 1932 (लॉस एंजिलिस) और 1936 (बर्लिन) ओलंपिक में भारत ने लगातार स्वर्ण पदक अपने नाम किया. 

देश की आजादी से पहले उन्होंने इस खेल को देश की नहीं बल्कि पूरी दुनिया में काफी लोकप्रिय बनाया.



 

 News Dehradun:

_____________

The Kashmiri Gate ISBT New Delhi Is Now Operational.
All Delhi -Doon -Delhi Bound Buses Will Now Be Stationed At Kashmiri Gate Instead Of Anand Vihar From 25th July Onward.

Jan Hit Ma Jari...

Regard's: bhupesh kumar mandal

 

ज्योति बसु: नेता जिसे उसके विरोधी मोहब्बत करते थे

ज्योति बसु
ज्योति बसु अपनी पत्नी कमला के साथ
ज्योति बसु और उनसे पहले पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे सिद्धार्थ शंकर राय के बीच लगभग उस हद तक राजनीतिक प्रतिद्वंदिता थी जैसी आजकल मुलायम सिंह यादव और मायावती के बीच रहती है.
लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर दोनों के बीच जिस तरह की नज़दीकियाँ थीं, उन्हें शब्दों में बयान करना काफी मुश्किल है. उस ज़माने में ज्योति बसु को एक विधायक के रूप में 250 रुपए तन्ख़वाह के तौर पर मिलते थे जिसका अधिकांश हिस्सा वो पार्टी को दे दिया करते थे.
सिद्धार्थ जब ज्योति से मिलने जाते थे तो कभी कभार उनकी रसोई की तरफ भी बढ़ जाते थे ये देखने के लिए कि आज खाने में क्या बना है. उनके यहाँ बहुत साधारण खाना बनता था. दाल भात और तले हुए बैंगन.
बाद में जब वो विपक्ष के नेता हो गए तो हालात थोड़े बेहतर हो गए और उनका वेतन बढ़ा कर 750 रुपए मासिक कर दिया गया.

कुछ लिखने की गुज़ारिश

तब भी कमला बसु सिद्धार्थ से अक्सर शिकायत करतीं थीं कि अपने दोस्त को बताएं कि घर किस तरह से चलाया जाता है? वो अभी भी लगभग पूरा वेतन पार्टी को दे देते हैं और मेरे लिए दोनों वक्त का खाना बनाना मुसीबत हो जाता है.
एक बार चंद्रनगर से कोलकाता आते हुएक्लिक करें ज्योति बसु और सिद्धार्थशंकर राय को कुछ सुंदर कन्याओं ने घेर लिया. ज्योति उस ज़माने में स्टार राजनीतिज्ञ हुआ करते थे, इसलिए सब उनके ऑटोग्राफ़ मांगने लगीं.
लेकिन वो उनके हस्ताक्षर भर से संतुष्ट नहीं हुईं. उनका इसरार था कि ज्योति हस्ताक्षर के साथ एक दो पंक्तियाँ भी लिखें. लेकिन ज्योति ने ऐसा करने से इंकार कर दिया.
जब वो कार में आए तो सिद्धार्थ ने मज़ाक किया कि आप इतनी सुंदर कन्याओं को किस तरह से मना कर सकते हैं. आप टैगोर की ही एक दो पंक्ति लिख देते. इस पर ज्योति बसु ने बंगाली में जवाब दिया, 'जानबे तो लिखबो' (पता होता तभी तो लिखता.)

इंदिरा गांधी से मुलाकात

ज्योति बसु
ज्योति बसु युवाओं में भी काफी लोकप्रिय थे
बांग्लादेश युद्ध से कुछ पहले सिद्धार्थ ने उनकी इंदिरा गांधी से उनके निवास स्थान पर एक गुप्त मुलाकात कराई. किसी को इस मुलाकात का पता न चले. इसलिए वो रात के ग्यारह बजे अपनी पत्नी माला की फ़ियेट कार में ज्योति बसु को बैठा कर खुद ड्राइव कर 1 सफ़दरजंग रोड पहुंचे.
एक घंटे की मुलाकात के बाद जब राय बाहर निकले तो रास्ता भूल गए और दिल्ली के गोलचक्करों के चक्कर काटते रहे. जब एक घंटे तक वो रास्ता नहीं ढ़ूढ़ पाए तो सिद्धार्थ ने कहा कि किसी थाने में पहुँच कर मदद मांगी जाए.
इस पर ज्योति बसु ने कहा, "नालायक! क्या तुम पूरी दुनिया में ढ़िंढ़ोरा पीटना चाहते हो कि मैं इंदिरा गांधी से मिलने उनके निवास स्थान पर गया था." सौभाग्य से सिद्धार्थ शंकर राय को रास्ता मिल गया और किसी थाने जाने की नौबत नहीं आई.

सरकार पर हमला बोलिए

राजनीतिक विरोध के बावजूद वो कांग्रेस के नेता ए बी ग़नी खां चौधरी को अपने परिवार का सदस्य मानते थे. वो बरकत दा को शाहेब कह कर बुलाते थे.
उनकी बहन हर दो सप्ताह पर ज्योति बसु के लिए बिरयानी भेजा करती थीं. कभी कभी किन्हीं कारणों से जब बिरयानी नहीं पहुंच पाती थी तो ज्योति फ़ोन कर कहा करते थे, "पठाओ नी केनो."
बंगला पत्रकार तरुण गांगुली एक मज़ेदार किस्सा सुनाते हैं. एक बार ज्योति बसु ने बरकत दा के भाई और पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता से अकेले में कहा कि आप फ़लां फ़लां मुद्दे पर सदन में सरकार पर हमला क्यों नहीं बोलते? आपको कड़े शब्द इस्तेमाल करने चाहिए. कागज़ कलम निकालिए और लिखिए कि अगले दिन आप किस तरह हम पर हमला बोलेंगे.

फ़ीडेल कास्ट्रो सीऑफ़ करने आए

फ़िडेल कास्ट्रो
ज्योति बसु की क्यूबा यात्रा पर फ़िडेल सीऑफ़ करने आए थे
सीता राम येचूरी बताते हैं कि 1993 में ज्योति बसु को क्यूबा आने का निमंत्रण मिला. यात्रा के दौरान जब ज्योति रात को सोने की तैयारी कर रहे थे तभी उन्हें संदेश मिला कि फ़ीडेल कास्ट्रो उनसे मिलना चाहते हैं.
ज्योति सीता राम येचूरी के साथ आधी रात के आसपास उनसे मिलने पहुँचे. सीता राम येचूरी बताते हैं कि वो बैठक डेढ़ घंटे चली. कास्ट्रो उनसे सवाल पर सवाल किए जा रहे थे.
भारत कितना कोयला पैदा करता है ? वहाँ कितना लोहा पैदा होता है ? वगैरह वगैरह... एक समय ऐसा आया कि ज्योति बसु ने बंगाली में मुझसे कहा, "एकी आमार इंटरव्यू नीच्चे ना कि"(ये क्या मेरा इंटरव्यू ले रहे हैं क्या?).
अगले दिन जब ज्योति वापस जाने के लिए हवाना एयरपोर्ट पहुँचे तो पता चला कि फ़ीडेल कास्ट्रो उन्हें सीऑफ करने के लिए वहाँ पहुँचे हुए हैं.

हमें मंदिर जाना चाहिए

सीता राम येचूरी पहली बार 1989 में ज्योति बसु के साथ नेपाल विदेश यात्रा पर गए थे. वो नेपाल सरकार के राजकीय अतिथि थे. इसलिए उन्होंने ज्योति बसु के लिए पशुपतिनाथ मंदिर जाने का कार्यक्रम रखा. येचूरी ने उनसे पूछा कि उन्होंने मंदिर जाने से इंकार क्यों नहीं कर दिया.

किताबें, रसोई और जूते

  • ज्योति बसु पी जी वोडहाउस और अगाथा क्रिस्टी की किताबें पढ़ने के शौकीन थे.
  • वे अस्सी वर्ष की आयु तक अपने कपड़े खुद धोया करते थे.
  • सत्तर वर्ष की आयु तक खुद अपने हाथों से अपनी चाय बनाते थे ,अपना ऑमलेट खुद फ़्राई करते थे और अपने जूतों में खुद पॉलिश किया करते थे.
उन्होंने कहा कि जिस तरह भारत हर विदेशी मेहमान को राज घाट ले जाता है चाहे उसका गांधीवाद में विश्वास हो या नहीं, उसी तरह नास्तिक होते हुए भी हमें पशुपतिनाथ मंदिर जाना चाहिए.
ज्योति बसु की पुत्र वधू डौली बसु बताती हैं, "मेरी शादी के एक दिन बाद ही मुझे बुखार चढ़ गया. अगली सुबह जब मैं बिस्तर में ही थी कि मैनें रसोई में कुछ बर्तन खड़खड़ाने की आवाज़ सुनी."
मेरे ससुर एक पतीली में पानी गर्म कर रहे थे. ज्योति ने कहा, "तुम्हें गर्म पानी इस्तेमाल करना चाहिए वर्ना ठंड लग जाएगी." बसु ने अपने हाथों से अपनी बीमार पुत्र वधु के लिए चाय बनाई. डौली बताती हैं, "उनके इस व्यवहार ने हम दोनों के बीच ऐसा संबंध कायम कर दिया जो ताउम्र बरकरार रहा."

धरमतल्ला के दिन

बहुत कम लोग जानते हैं कि ज्योति बसु ने 21 साल की उम्र में अपना पहला चाय का प्याला पिया क्योंकि उनके पिता ने उन्हें चाय पीने की मनाही कर रखी थी.
एक बार चेन्नई के लोयला कॉलेज ने एक समारोह में उन्हें आमंत्रित किया. वहीँ दिए गए भाषण में ज्योति बसु ने एक मज़ेदार बात बताई कि जब वो लोरेटो धरमतल्ला में पढ़ते थे तो कक्षा दो में उनकी पूरी क्लास में सभी लड़कियों के बीच में वो अकेले लड़के थे. उनका ये कहना था कि कुछ लोग तालियां बजाने लगे.
एक दो लोगों ने सीटियाँ भी बजाईं. बहुत हिम्मत जुटा कर एक लड़का खड़ा हुआ और उसने सवाल किया, "सर इतनी सारी लड़कियों के साथ आपने किया क्या." ज्योति बाबू ने अपनी दुर्लभ मुस्कान बिखेरी और बोले, "उस उम्र में आप कर भी क्या सकते हैं!"

मेरी शिक्षा पूर्ण नहीं है

ज्योति बसु
ज्योति बसु ने पश्चिम बंगाल की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी
ज्योति बसु के सचिव सुरक्षा एम के सिंह एक दिलचस्प बात बताते हैं कि ज्योति बसु जब कभी हिंदी बोलते थे तो अक्सर कई उर्दू लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करते थे. उर्दू का शब्द नुमांएदा उनका प्रिय शब्द होता था.
शायद उनकी हिंदी लेफ़्ट फ़्रंट के सभी मंत्रियों की सम्मिलित हिंदी से भी बेहतर थी. ज्योति बसु के भाषणों की ख़ास बात होती थी उनके अधूरे वाक्य. चाहे वो पांच लोगों को संबोधित कर रहे हों या विधान सभा में महत्वपूर्ण भाषण देने वाले हों वो महत्वपूर्ण बिंदु एक काग़ज़ पर नोट कर लिया करते थे ताकि वो कुछ भूल न जाएं.दिलचस्प बात यह थी कि वे सारे बिंदु अंग्रेज़ी में नोट करते थे.
उनके मंत्रिमडल के सहयोगी अशोक मित्रा अपनी आत्मकथा 'ए प्रैटलर्स टेल' में लिखते हैं कि एक बार जब मैंने उनकी इस आदत पर आश्चर्य प्रकट किया तो उन्होंने मुझसे कहा, "क्या करूँ? मैं सिर्फ़ अंग्रेज़ी में ही लिख सकता हूँ क्योंकि मेरी शिक्षा तुम्हारी तरह संपूर्ण नहीं है."

 

 

 दूरसंचार समेत 12 क्षेत्रों में एफडीआई सीमा का विस्तार


  नयी दिल्ली, 16 जुलाई :

 सरकार ने नरमी से जूझ रही अर्थव्यवस्था को नई गति देने के लिये आज साहसिक कदम उठाते हुये दूरसंचार क्षेत्र में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश :एफडीआई: की छूट देने के साथ अत्याधुनिक रक्षा उत्पादन प्रौद्योगिकी सहित करीब एक दर्जन क्षेत्रों में एफडीआई सीमा बढ़ाने का फैसला किया। हालांकि, नागर विमानन क्षेत्र और मीडिया में एफडीआई सीमा बढ़ाने का कोई फैसला नहीं किया गया।


वित्तमंत्री ने सोने के आयात पर प्रतिबंध से किया इनकार


 सोने के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से इनकार करते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज जनता से अपील की कि सोने की खरीद कम करें क्यों कि इसके आयात पर देश को सालाना 50 अरब डालर विदेशी मुद्रा दांव पर लगानी पड़ रही है।

 एफडीआई सीमा बढ़ोतरी: ममता ने ‘गहरा दुख’ जताया


 पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज रात विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश :एफडीआई: की सीमा बढ़ाने के केन्द्र के फैसले पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि यह आम तथा गरीब जनता की जिंदगी और राष्ट्र की सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।

ममता ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि दूरसंचार क्षेत्र में एफडीआई बढ़ाकर सौ फीसदी करने का राष्ट्र की सुरक्षा पर बहुत गंभीर असर पड़ेगा और विदेशी कंपनियों को देश के पूरे दूरसंचार मंच पर नियंत्रण करने का मौका मिलेगा।

दूरसंचार में 100% विदेशी निवेश को मंज़ूरी

 मंगलवार, 16 जुलाई, 2013
टॉवर
भारत सरकार ने देश में आर्थिक सुधारों के लिए बड़ा कदम उठाते हुए कई क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा को बढ़ा दिया है.
सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 74 प्रतिशत से बढ़ाकर शत-प्रतिशत करने का फ़ैसला किया है.
लेकिन नागरिक उड्यन, एयरपोर्ट, मीडिया और फार्मा के क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने पर कोई फ़ैसला नहीं लिया.
विदेशी निवेश को बढ़ाने का फ़ैसला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सहयोगियों की बैठक के दौरान लिया गया.
बैठक में हिस्सा लेने वाले मंत्रियों में वित्त मंत्री पी चिदंबरम, रक्षा मंत्री एके एंटनी, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा तथा दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल शामिल थे.
दूरसंचार में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश के फ़ैसले से पहले दो जुलाई को दूरसंचार आयोग ने शत-प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए मंज़ूरी दे दी थी.

महत्वपूर्ण फ़ैसले

बैठक के बाद केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने बताया कि बीमा क्षेत्र में में 26 प्रतिशत एफडीआई की सीमा को बढ़ाकर 49 फीसदी किया गया है.
सरकार ने कई सेक्टरों के विदेशी निवेश के रूट में बदलाव किया है.इसके तहत, पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस, पावर एक्सचेंज, कमोडिटी एक्सचेंज और स्टाक एक्सचेंज में आटोमेटिक रूट से 49 फीसदी एफडीआई को अनुमति दे दी है.
आनंद शर्मा ने कहा कि विदेशी खुदरा क्षेत्र की तरफ से लगातार बढ़ रही मांगों को देखते हुए सरकार ने अनेक ब्रांड वाले खुदरा व्यापार में एफडीआई के मानदंडों को उदार बनाने का निर्णय किया है.
भारतीय मुद्रा
नागरिक उड्यन में एफ़डीआई की 49 फ़ीसदी की सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

रक्षा क्षेत्र का मामला

रक्षा क्षेत्र में आटोमेटिक रूट से 26 फीसदी विदेशी निवेश की अनुमति होगी, जबकि 26-49 फीसदी एफडीआई के लिए कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी (सीसीएस) की अनुमति अनिवार्य होगी.
महत्वपूर्ण है कि रक्षामंत्री एके एंटनी ने रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मौजूदा सीमा को 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने के प्रस्ताव का विरोध किया था.
तर्क यह था कि यह एक ‘उल्टा’ कदम साबित होगा क्योंकि इससे इससे एक तरफ जहां विदेशी कंपनियों पर निर्भरता बढ़ेगी वहीं घरेलू रक्षा उद्योग की वृद्धि प्रभावित होगी.
सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी फ़ैसले मायाराम समिति की सिफारिशों पर लिए हैं.समिति ने 20 क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने का सुझाव दिया था, लेकिन सरकार ने सिर्फ़ 12 को ही मंज़ूरी दी है.







विषाक्त मध्याहन भोजन खाने से 11 बच्चों की मौत, 48 बीमार


छपरा-पटना, 16 जुलाई

 बिहार के सारण जिला के मशरख प्रखंड अंतर्गत धर्मसाती गंडामन गांव स्थित एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में आज विषाक्त मध्याहन भोजन खाने से 11 बच्चों की मौत हो गयी और 48 अन्य बीमार पड़ गए।

पुलिस सूत्रों ने बताया कि इन बच्चों को मध्याहन भोजन में चावल, दाल और सोयाबीन की सब्जी दी गई थी । इसे खाने के बाद उनके बेहोश होने पर उन्हें इलाज के लिए मशरख प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया।

बिहार में 'विषाक्त भोजन' से 20 बच्चों की मौत

बिहार छपरा  
बिहार के छपरा ज़िले के मशरख ब्लॉक में कथित रूप से विषाक्त भोजन खाने से मरने वाले स्कूली बच्चों की संख्या 20 हो गई है.
मंगलवार को ही गंभीर रूप से घायल 31 बच्चों को पटना के पीएमसीएच अस्पताल में भर्ती कराया गया जिनमें कुछ की हालत नाज़ुक बताई जा रही है.
मशरख ब्लॉक के जजौली पंचायत में स्थित धर्मसती विद्यालय के बच्चों को जब सरकार की मध्याह्न भोजन योजना के तहत मंगलवार दोपहर का भोजन परोसा गया तो उसे खाते ही बच्चे बीमार पड़ गए.
बिहार के मानव संसाधन मंत्री पीके शाही ने मंगलवार को घटना स्थल का दौरा किया. इस दौरान पत्रकारों से बातचीत करते हुए पीके शाही ने 20 बच्चों के मारे जाने की पुष्टि की.
पीके शाही ने बताया कि शुरूआती जांच से पता चला है कि खाने में कोई ज़हरीला पदार्थ था लेकिन खाने में वो कैसे मिला इसकी जांच चल रही है.

'खाने में कीटनाशक'

"मरने वाले बच्चों की संख्या 20 हो गई है. शुरूआती जांच से पता चला है कि खाने में कोई ज़हरीला पदार्थ था लेकिन खाने में वो कैसे मिला इसकी जांच चल रही है."
पीके शाही, बिहार के मानव संसाधन मंत्री
खाना खाने के बाद कई बच्चों को उल्टियाँ होने लगीं. लेकिन उस समय वहाँ कोई सुविधा नहीं थी. इन बच्चों को किसी तरह अस्पताल पहुँचाया गया. बाद में एम्बुलेंस वहाँ पहुँची.
बीमार बच्चों को छपरा सदर अस्पताल और आसपास के अन्य अस्पतालों में भर्ती कराया गया है.
छपरा सदर अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि जब बच्चों को एंटीऑर्गेनो फ़ॉस्फ़ोरस का डोज़ दिया गया तो उनकी हालत में कुछ सुधार हुआ जिसके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि खाने में ऑर्गेनो फ़ॉस्फ़ोरस कीटनाशक मिल गया हो.
डॉक्टरों के अनुसार ये कीटनाशक बच्चों पर बहुत जल्दी असर करता है और शायद यही वजह है कि मारे गए सभी बच्चों की उम्र 10 साल से कम है.
बिहार में मिड-डे मील के निदेशक आर कृष्णन और राज्य के शिक्षा सचिव राहुल सिंह ने भी मंगलवार की शाम घटना स्थल का दौरा किया.
छपरा, बिहार
डॉक्टरों के अनुसार खाने में कीटनाशक हो सकते हैं जो कि मौत की वजह बनी.
फ़ॉरेंसिक जांच के आधार पर उन्होंने ने भी कहा कि खाने में कीटनाशक के मिले होने की आशंका है.

बंद

इस बीच प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को छपरा बंद का ऐलान किया है. भाजपा के नेता गिरिराज सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार को नैतिकता के आधार पर सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं.
एक और विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने बुधवार को पूरे सारण ज़िले के बंद का आह्वान किया है.
महाराजगंज के सांसद आरजेडी के प्रभुनाथ सिंह ने इलाक़े का दौरा किया और कहा कि अधिकारियों की लापरवाही के कारण ये घटना हुई है.
"मुझे मशरख गाँव से दुखद ख़बर मिली है कि वहाँ बच्चों को ज़हरीला खाना परोसा गया. मुझे पता चला है कि कुछ बच्चों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई जबकि कुछ की अस्पताल में. कई बच्चे बीमार हैं"
लालू प्रसाद, छपरा सांसद
इस मौक़े पर छपरा के सांसद और राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कहा, "मुझे मशरख गाँव से दुखद ख़बर मिली है कि वहाँ बच्चों को ज़हरीला खाना परोसा गया. मुझे प्रभुनाथ सिंह जी से इसका पता चला जो ख़ुद मौक़े पर गए हैं. मुझे पता चला है कि कुछ बच्चों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई जबकि कुछ की अस्पताल में. कई बच्चे बीमार हैं."

जाँच

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मामले की जाँच के आदेश दे दिए हैं. जाँच प्रमंडलीय आयुक्त और छपरा के पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) करेंगे.
मुख्यमंत्री ने मारे गए बच्चों के परिजनों को दो-दो लाख मुआवज़ा देने की घोषणा की है.


 

 

मुंबई में फिर खुल सकेंगे डांस बार: सुप्रीम कोर्ट

 

मुख्य न्यायाधीश अल्तमश कबीर और न्यायाधीश एसएस निज्जर की खंडपीठ ने यह फ़ैसला सुनाया.

  

 (Great Judgement i salute them.)


 मंगलवार, 16 जुलाई, 2013
मुंबई की एक बार डांसर
बांबे हाई कोर्ट के फ़ैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बांबे हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरकारार रखते हुए महाराष्ट्र के थ्रीस्टार होटलों से नीचे के होटलों में डांस बारों पर लगी रोक हटा दी है.
ये बार 2005 में राज्य सरकार ने बंद करवा दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद मुंबई के इन होटलों और क्लिक करें बारों के मालिकों को अपने यहाँ डांस कार्यक्रम के लिए फिर से लाइसेंस लेना पडे़गा.

बरकार रखा फ़ैसला

समाचार एजेंसियों के मुताबिक़ मुख्य न्यायाधीश अल्तमश कबीर और न्यायाधीश एसएस निज्जर की खंडपीठ ने यह फ़ैसला सुनाया. फ़ैसला सुनाते हुए न्यायाधीश निज्जर ने कहा कि उन्होंने धारा 19 (ए) के तहत बार बालाओं के अधिकार को नहीं छुआ.
"बांबे हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में पुलिस क़ानून की धारा 33 ए और 33 बी को असंवैधानिक बताया था, सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा है."
याचिकाकर्ताओं के वकील
मुंबई पुलिस ने एक आदेश के तहत बार डांस पर प्रतिबंध लगा दिया था. बांबे हाई कोर्ट ने अप्रैल 2006 में उसके इस आदेश को असंवैधानिक बताते हुए डांस बारों पर लगी रोक हटा दी थी. इसके खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
इस पर बार डांसरों ने दलील दी थी कि नृत्य ही उनकी कमाई का जरिया है. उनके पास कमाई का कोई और जरिया नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद याचिकार्ताओं के वकील ने संवाददाताओं को बताया कि बांबे हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में पुलिस क़ानून की धारा 33 ए और 33 बी को असंवैधानिक बताया था.

लंबा इंतजार

उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फ़ैसले को बरकरार रखा है.
मुंबई की एक बार डांसर
मुंबई के क़रीब 14 सौ डांसबारों में क़रीब एक लाख बार बालाएं काम करती थीं
उन्होंने कहा कि हज़ारों डांसरों ने इस फैसले के लिए काफी लंबा इंतजार किया. लेकिन उन्हें इंतज़ार का मीठा फल मिला.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई की अगर डांस बारों पर लगी रोक नहीं हटाई गई तो इस काम में लगी हज़ारों डांसरों को देह व्यापार में धकेल दिया जाएगा. उनकी इस दलील से अदालत ने सहमति जताई.
मुंबई में 2005 में डांस बारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके पीछे सरकार का तर्क था कि इससे युवा पीढ़ी बरबाद हो रही है और अपराध व वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है.
एक अनुमान के मुताबिक़ मुंबई के क़रीब 14 सौ डांस बारों में क़रीब एक लाख बार बालाएं काम करती थीं. बार डांसर फ़िल्मी गीतों पर डांस करती थीं और दर्शक उनपर पैसे लुटाते थे.

बार बालाओं की दास्तान

बेनी और बबलू
कुछ साल पहले रुपहले पर्दे पर आई फ़िल्म चाँदनी बार में पहली बार मुंबई की हज़ारों बार बालाओं की ज़िंदगी में झाँकने की कोशिश की गई थी.
समय का पहिया घूमा और महाराष्ट्र सरकार ने समाज की अपेक्षित नारी के आँसू पोंछकर उसकी समस्या के समाधान की जगह उसे और गहरी खाई में धकेलने का ज़िद्दी क़दम उठाते हुए, लेडीज़ बीयर बारों पर प्रतिबंध लगा दिया.
बार-बालाओं ने अपने निर्धन, लाचार, बीमार परिवारों का बोझ ढोने का ज़रिया बना एक विकल्प खो दिया. हज़ारों बारबालाओं को उनकी मजबूरियाँ वेश्यालयों के दरवाज़े तक खींच ले गई.
इस फ़िल्म की कहानी वास्तविक और आधिकारिक है. यह आपको हंसाएगी भी और सोचने पर मजबूर भी करेगी".
केके मेनन
कोई मसाज पार्लर में कैद होकर रह गई, किसी ने लेडीज सर्विस वाले अंधेरे बारों में अपना मुँह छिपाया और कई किस्से ऐसे भी हुए कि बर्दाश्त के बाहर होने पर किसी बारबाला ने फाँसी का फंदा गले लगा लिया.
मुंबई और आसापास के इलाक़ों में ऑर्केस्ट्रा बारों में काम करने वाली हज़ारों बारबालाओं की दर्द भरी कहानी है लेखक-निर्देशक युनूस सजावल और निर्माता उमेश चौहान की फ़िल्म- बैनी एंड बबलू.
इस फ़िल्म के एक प्रमुख कलाकार केके मेनन कहते हैं, "इस फ़िल्म की कहानी वास्तविक और आधिकारिक है. यह आपको हंसाएगी भी और सोचने पर मजबूर भी करेगी".
केके मेनन और राजपाल यादव
फ़िल्म में केके मेनन और राजपाल यादव अहम किरदार निभा रहे हैं
जहाँ इस फ़िल्म का एक पक्ष इन अभागी बारबालाओं की दयनीय, शोचनीय और दर्द भरी ज़िंदगी को बीयर बार में वेटर बने राजपाल यादव की नज़र से निरखता-परखता है, उन्हें दर्शकों से रू-ब-रू करवाता है.
वहीं अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके कलाकार केके मेनन दर्शकों को फ़ाईव स्टार होटल के उस माहौल में ले चलते हैं, जहाँ ड्रग्स का कोहरा है, अय्याशी की मखमली चादर है, नैतिकता की दुहाई देने वालों के काले चेहरे हैं, लेकिन इन सब शानों-शौकत की रौशनी से आँखें चुंधिया देते हैं.
नए चश्मे से
एक तरफ़ मजबूरी और दूसरी तरफ़ अय्याशी पर पैनी नज़र डालती बैनी एंड बबलू आपके दिलों-दिमाग़ को इस तरह झकझोरती है कि अपनी ज़िद छोड़ने के लिए तैयार हर दिमाग़ बारबालाओं की धुंधली तस्वीर को एक नया चश्मा लगा कर देखना चाहेगा.
फ़िल्म में एक अहम भूमिका निभा रहीं जानीमानी टीवी अभिनेत्री श्वेता तिवारी का कहना है, "लोगों को बियर बारों और बार बालाओं के बारे में सच्चाई का पता नहीं है. जो मीडिया में आता है वे मान लेते हैं. इस फ़िल्म से लोगों की सोच बदलेगी".
लोगों को बियर बारों और बार बालाओं के बारे में सच्चाई का पता नहीं है. जो मीडिया में आता है वे मान लेते हैं. इस फ़िल्म से लोगों की सोच बदलेगी.
श्वेता तिवारी
अगर सरकार ने महिलावादी झंडों के सामने सर झुकाते हुए, समाज के शरीर पर निकले फोड़े को हाथ लगाने से अपने कंधे झाड़ लिए तो अग तक 'कॉमेडी किंग राइटर' रहे युनूस सजावल ने बैनी एंड बबलू के लेखन और निर्देशन से ये साबित कर दिया है कि उनकी कलम में वो सहृदयता है, जो आपके दिलों को छू लेगी.
उनके निर्देशन की संजीदगी और चुस्ती ने आधुनिक समाज की एक जटिल समस्या को हल्के-फुल्के, आपके मन को गुदगुदाते और भावुकता भरे सशक्त दृश्यों से भरपुर इस फिल्म में दर्शकों को कहीं भी निराश नहीं होने दिया है.
अक्तूबर महीने में रिलीज होने वाली इस फिल्म में बैनी (केके मेनन) एंड बबलू (राजपाल यादव) के साथ रिया सेन और श्वेता तिवारी भी मुख्य भूमिकाओं में हैं. जबकि रुख़सार, अनिता हासानन्दानी, रिचा चड्ढा ने भी अपनी मंजी हुई भूमिकाओं से इस फ़िल्म को सजाया-सँवारा है.
जब आप अपने परिवार के साथ बैनी एंड बबलू देखकर थिएटर से निकलेंगे, इसी फ़िल्म की ग़ज़ल के बोल गुनगुना रहे होंगे और सोच रहे होंगे..
शहर से शहर...बियांबा क्यों हैं..यहाँ हर शख़्स परेशां क्यों हैं..?

 

 

भारत नहीं पाकिस्तान से परमाणु सहयोग चाहता है श्रीलंका?

 मंगलवार, 16 जुलाई, 2013
जनरल कियानी के साथ श्रीलंकाई सेनाध्यक्ष
पिछले ही महीने पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल अशफ़ाक़ परवेज़ कियानी की श्रीलंकाई सेना प्रमुख जगत जयसूर्या से मुलाक़ात हुई थी
श्रीलंका में अख़बारों की रिपोर्ट के अनुसार वह परमाणु प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए पाकिस्तान से मदद ले रहा है.
हालाँकि अभी कुछ ही दिन पहले श्रीलंका ने इस क्षेत्र में रूस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
ख़बरों के अनुसार श्रीलंका सरकार भारत के साथ परमाणु सहयोग की संभावनाओं को ज़्यादा तवज्जो नहीं दे रही है.
कोलंबो से बीबीसी संवाददाता चार्ल्स हैविलैंड के मुताबिक़ अभी कुछ दिन पहले ही श्रीलंका सरकार के एक मंत्री ने रूस की यात्रा के दौरान परमाणु प्रौद्योगिकी के विकास को लेकर एक द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
इस समझौते के तहत रूस शोध के पाँच प्रमुख क्षेत्रों में श्रीलंका को सहयोग देगा. इसमें श्रीलंकाई वैज्ञानिकों को रूस में प्रशिक्षण देने के अलावा परमाणु कचरे के प्रबंधन जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं.

'भारत को तवज्जो नहीं'

इस बीच ख़बरें ये भी मिल रही हैं कि भारत ने श्रीलंका को असैनिक परमाणु सहयोग का जो प्रस्ताव दिया है उसके प्रति श्रीलंका ने ज़्यादा रुचि नहीं दिखाई है.
इस तरह भारत और पाकिस्तान के संबंधों की संवेदनशीलता को देखते हुए भी श्रीलंका के इस मामले में पाकिस्तान का रुख़ करने की ख़बरें हैं.
श्रीलंकाई मीडिया में कुछ आधिकारिक सूत्रों के हवाले से ख़बर दी गई है कि देश इस समय इसी तरह की असैनिक परमाणु संधि पाकिस्तान से करने की दिशा में काम कर रहा है.
दरअसल बताया गया है कि भारत ने मानवाधिकारों को लेकर जिस तरह क्लिक करें श्रीलंका की आलोचना की है उससे श्रीलंका चिढ़ा हुआ है.
एक अधिकारी के हवाले से ये भी कहा गया है कि भारत श्रीलंका की सीमा से लगे क्लिक करें कुडनकुलम परमाणु संयंत्र को लेकर सुरक्षा से जुड़ी समुचित गारंटी भी मुहैया कराने में विफल रहा है.
हालाँकि वह संयंत्र रूस के सहयोग से ही बना है जिसका सहयोग लेने की श्रीलंका कोशिश कर रहा है.

 

 

उत्तराखंड: मुआवज़े के बीच अपनों का इंतज़ार

 सोमवार, 15 जुलाई, 2013
जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून
देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे पर लगी लापता लोगों की तस्वीरें.
एक ओर उत्तराखंड सरकार फ़ाइलों में लापता लोगों को मृत मानकर उनके परिजनों को मुआवज़ा देने की प्रक्रिया शुरू कर रही है, वहीं लापता लोगों के परिजनों के लिए इस सच्चाई को स्वीकार करना इतना आसान नहीं है.
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा है, "15 जुलाई तक  लापता 5,748 लोगों को मुआवज़ा देने की प्रक्रिया सोमवार से शुरू कर दी जाएगी. इस आपदा में मारे गए राज्य सरकार के कर्मचारियों के परिजनों को 16 जुलाई को मैं चेक दूंगा."
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के अनुसार 15 जुलाई तक लापता लोगों की संख्या 5,748 है जिन्हें स्थाई रूप से लापता मानकर राहत राशि दे दी जाएगी.
मुख्यमंत्री का कहना था कि लोगों को एक हलफनामा भरकर देना होगा कि उनके परिजन किस तारीख को  उत्तराखंड आए थे और कब और कहां से लापता हुए और ये कि घर वापस नहीं लौटे हैं.

मुआवज़ा

साथ में इंडेमिनिटी बॉंड भी भरकर देना होगा कि अगर उनके परिजन लौट आते हैं तो वो राहत राशि लौटा देंगे. इसी आधार पर उन्हें राहत राशि दे दी जाएगी.
इसी हलफनामे और बॉन्ड के आधार पर एलआईसी और अन्य बीमा कंपनियों से कहा गया है कि वो प्रभावित लोगों का इंश्योरेंस क्लेम दे दे. सोमवार को स्थानीय समाचारपत्रों में छपे कुछ बीमा कंपनियों के विज्ञापन में भी इसका उल्लेख है.
दरअसल भारतीय दंड संहिता के आधार पर 7 वर्षों तक लापता रहने के बाद ही किसी को मृत माना जा सकता है लेकिन उत्तराखंड की आपदा को विशेष स्थिति मानकर सरकार ने आपदा की तिथि से एक महीने तक लापता रहने वाले लोगों को मृत मानते हुए राहत राशि देने का फ़ैसला किया है क्योंकि क़ानूनन सरकार इतनी जल्दी उन्हें मृतक प्रमाणपत्र नहीं दे सकती है.
मुख्यमंत्री  विजय बहुगुणा ने कहा, "हम इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते कि वो जीवित हैं या नहीं लेकिन वो घर नहीं लौटे हैं और उनके परिजनों को राहत देने के लिए मौद्रिक राहत का वितरण शुरू कर दिया जाएगा. और जो लापता हैं और उनकी खोज जारी रहेगी."
हालांकि मुख्यमंत्री के इस बयान को महज़ सांत्वना की औपचारिकता माना जा रहा है.

इंतज़ार जारी रहेगा

उत्तराखंड
दूसरी ओर अब भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने परिजनों के इंतज़ार में हैं और उनके सब्र का बांध टूट चुका है. उनकी शिकायत है कि सरकार उन्हें ढूंढने में कोई मदद नहीं कर रही है.
अमेठी से आए अभिषेक कहते हैं "मेरे माता-पिता 41 लोगों के साथ केदारनाथ आए थे. वो दर्शन करके गौरीगांव लौट आए थे. उनके साथ गया एक व्यक्ति जीवित लौट आया और उसने बताया कि वो लोग वहां जीवित हैं लेकिन सरकार उन्हें निकालकर नहीं लाई."
अभिषेक का कहना है, "या तो सरकार कह दे कि वो मेरे माता-पिता को ढूंढ नहीं सकती या हमें पैसा दे. हम ख़ुद जाकर उन्हें खोजेंगे. मुआवज़ा लेकर मैं क्या करूंगा."
इसी तरह कानपुर से नवनीत मिश्र ने बीबीसी को फ़ोन पर बताया, "मुआवज़ा लेने के बारे में क्या कहूं, इस बारे में कुछ सोच नही पा रहा हूं. हमें तो अब भी उम्मीद है."
नवनीत की बहन इस आपदा की भेंट चढ़ गई जिनके शव की पहचान हो गई लेकिन उनके परिवार के 10 और लोग हैं जिनका अब तक पता नहीं चल पाया है.

यह सूची अंतिम नहीं

उत्तराखंड
हालांकि सरकार से जारी 5,748 लोगों की इस सूची को अभी अंतिम और वास्तविक नहीं माना जा सकता. इसके तीन प्रमुख कारण हैं.
पहला ये कि सूची अभी तक पूरी तरह सत्यापित नहीं हो पाई है. आंध्र प्रदेश, जम्मू कश्मीर और पांडिचेरी की सरकारों ने अपने यहां से लापता लोगों की सूची सत्यापित कर दी है लेकिन उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से आई लापता लोगों की सूची के सत्यापन का काम अभी भी चल ही रहा है.
दूसरा कारण ये कि अभी तक लापता लोगों की सूचनाएं पहुंच ही रही हैं. मिसिंग सेल के अनुसार 14 जुलाई को ही गुजरात से कुछ और लापता लोगों के नाम भेजे गए हैं और इसी तरह बिजनौर से भी दो और लोगों के गुमशुदा होने की सूचना लिखाई गई है.
तीसरा बड़ा कारण ये है कि कई लापता लोग ऐसे होंगे जिनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट ही नहीं लिखाई गई होगी जैसे भिखारी, साधु, घोड़े और खच्चरवाले और वैसे लोग जो इस प्रक्रिया से ही अनजान होंगे और दूसरी वजहों से अक्षम होंगे.
सत्यापन के काम में कंप्यूटर विशेषज्ञों और मोबाइल ट्रेसिंग की भी मदद ली जा रही है. इससे जुड़े कर्मचारियों का कहना है कि शायद इस प्रक्रिया को पूरा होने में और दो सप्ताह का वक्त लग सकता है लेकिन साथ ही उनका ये भी कहना है कि जब तक राहत राशि पूरी तरह बंट नहीं जाती, तब तक लापता लोगों की संख्या पर अंतिम तौर पर कुछ कहना कठिन होगा.

 

latest Important News for Uttrakhand Flood Victims

Missing, cremated person(s) details of uttarakhand flashflood disaster can now be found on this website.

http://zipnet.in/
 
Preamble
• The ZIPNet Project
• Member States
Victims
• Missing Children
• Un-identified Children Found
• Missing Persons
• Unidentified Dead Bodies
• Unidentified Persons Found
Vehicles/Mobiles
• Stolen Vehicles
• Unclaim/Seized Vehicles
• Missing Mobiles

No comments:

Post a Comment