Tuesday 30 July 2013

इन अफसरों को भुगतना पड़ा मंत्रियों को 'ना' कहने का खामियाजा

इन अफसरों को भुगतना पड़ा मंत्रियों को 'ना' कहने का खामियाजा














 



ग्रेटर नोएडा में अवैध खनन के खिलाफ मुहिम चलाने वाली बहादुर आईएएस अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल को सस्पेंड कर दिया गया है. आइए नजर डालते हैं उन अफसरों पर जिन्‍हें मंत्रियों के मुताबिक ना चलने का खामियाजा भुगतना पड़ा. इन अफसरों को या तो सस्‍पेंड कर दिया गया या फिर इनके तबादले कर दिए गए.
ग्रेटर नोएडा में अवैध खनन के खिलाफ मुहिम चलाने वाली बहादुर आईएएस अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल को सस्पेंड कर दिया गया है. दुर्गा नागपाल ने ग्रेटर नोएडा में बन रहे एक धार्मिक स्थल के निर्माण पर रोक लगा दी थी. गैर-कानूनी तरीके से इस इमारत का निर्माण किया जा रहा था.
पिछले दो दशक की नौकरी में एक आईएएस अधिकारी का 43 बार तबादला किया गया, जिसमें से 19 बार तबादले का आदेश भूपिंदर सिह हुड्डा के नेतृत्व वाली हरियाणा की मौजूदा कांग्रेस सरकार दे चुकी है.  हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका पिछले साल तब सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट की बड़ी कंपनी डीएलएफ के बीच करोड़ों रुपयों के एक विवादित भूमि सौदे में जमीन का म्यूटेशन रद्द कर दिया.

आईपीएस अफसर मनोज नाथ के 39 वर्ष के करियर में 40 बार तबादला हुआ है. मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के राज में भी नाथ का एक साल में चार बार तबादला हुआ.

आईपीएस अफसर राहुल शर्मा का भी अपने 20 साल के करियर में 12 बार ट्रांसफर हुआ है. वर्ष 2002 में गोधरा दंगों के दौरान भावनगर में डिस्ट्रिक्‍ट एसपी रहे शर्मा ने शहर के मदरसे में हमला करने जा रहे हिंदुओं पर फायरिंग के आदेश दिए थे. दो महीने के अंदर इन पर गाज गिरी और इन्‍हें अहमदाबाद के पुलिस कंट्रोल रूम में जूनियर पोस्‍ट के तौर पर डीसीपी का पद दे दिया गया.
आईएएस अफसर आनंद वर्धन सिन्‍हा मार्च 2005 से अब तक एडवाइजर इन प्‍लानिंग बोर्ड के पद पर ही काबिज हैं. सिन्‍हा एक ही पद पर इतने लंबे समय तक बने रहने वाले पहले नौकरशाह हैं. उन्‍होंने यह पद तब संभाला था, जब बिहार में साल 2005 में राष्‍ट्रपति शासन लागू था.
आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर का 18 साल के करियर में 22 बार ट्रांसफर हुआ है. उन्‍होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह समाज के लिए कुछ करना चाहते थे, लेकिन जब-जब उन्‍होंने ऐसा करने की सोची तब-तब उनका ट्रांसफर हो गया.
भ्रष्‍टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले अधिकारियों के तबादले हुए.  कई बार उन्‍हें सस्‍पेंड कर दिया गया. यही नहीं कई अफसर ऐसे भी हैं, जिन्‍हें अपनी जान से हाथ तक धोना पड़ा. सत्‍येंद्र दुबे नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रोजेक्‍ट ऑफिसर थे. उन्‍होंने पीएमओ को अथॉरिटी में चल रहे भ्रष्‍टाचार की जानकारी दी थी, जिसके  बाद साल 2003 में उनकी हत्‍या कर दी गई.
मध्‍य प्रदेश में माइनिंग माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने पर आईपीएस नरेंद्र कुमार की हत्‍या कर दी गई थी.
 शनमुघन मंजूनाथ इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन में मार्केटिंग मैनेजर थे. वर्ष 2005 में यूपी के लखीमपुर खीरी में एक पेट्रोल पंप के मालिक के बेटे ने उनकी हत्‍या कर दी
कर्नाटक में डिपार्टमेंट ऑफ कॉर्पोरेटिव ऑडिट डिप्‍टी डायरेक्‍टर रहे एसपी महंतेश को 16 मई 2012 में उनकी गाड़ी से बाहर निकालकर लोहे की रॉड से पीटा गया. पांच दिन अस्‍पताल में रहने के बाद महंतेश ने दम तोड़ दिया. उन्‍होंने कर्नाटक में कॉर्पोरेटिव सोसाइटी में जमीन के आवंटन में अनियमितता का खुलासा किया था.
बिहार से आरटीआई एक्टिविस्‍ट शशिधर मिश्रा और झारखंड के नियामत अंसारी को महात्मा गांधी राष्ट्रीय  ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में भ्रष्‍टाचार का खुलासा करने का खामियाजा भुगतना पड़ा, दोनों की हत्‍या कर दी गई





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