Tuesday 30 July 2013

अमेरिकी संस्थान NIH ने भारत में क्लीनिकल ट्रायल टाला

अमेरिकी संस्थान NIH ने भारत में क्लीनिकल ट्रायल टाला

  वॉशिंगटन, 30 जुलाई 2013


अमेरिका के शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान केंद्र ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ’ (एनआईएच) ने नियमों में सख्ती बरते जाने के मद्देनजर भारत में अपने क्लीनिकल ट्रायल को टाल दिया है. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधान संस्थानों में से एक गिना जाने वाला एनआईएच इस तरह का निर्णय लेने वाला इकलौता संस्थान नहीं है.
निजी क्षेत्र में अनेक लोगों ने पिछले कुछ महीनों में इसी तरह के फैसले लिये हैं और वे भारत में अपने क्लीनिकल परीक्षणों की योजना को रद्द कर रहे हैं.
एनआईएच द्वारा अपने फैसले की पुष्टि किये जाने से करीब एक महीने पहले बोस्टन के यूएसए इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स के लिए तैयार मैककिंसी की एक रिपोर्ट में भारत की क्लीनिकल ट्रायल नीति को देश के बढ़ते दवा उद्योग के सामने सबसे बड़ी अड़चन माना गया.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘दुनिया के और भारतीय उद्योग जगत के लोगों को जहां भारत की बौद्धिक संपदा की स्थिति पर ध्यान देने की और उसे स्पष्ट करने की जरूरत है वहीं उन्होंने इस बात को उजागर किया है कि क्लीनिकल ट्रायल का बुनियादी ढांचा और नीति यकीनन अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) के अभिनव प्रयोगों की क्षमता के लिहाज से भारत के लिए सबसे बड़ी रुकावट हैं.’ नये नियमों के बारे में चिंता जताते हुए एनआईएच ने हाल ही में एक बयान में कहा था कि वह इस महत्वपूर्ण विषय पर भारत की ओर से स्पष्टीकरण चाहता है.
एनआईएच के प्रवक्ता ने कहा, ‘एनआईएच को उम्मीद है कि भविष्य के बदलावों से अध्ययन फिर से शुरू हो सकेंगे और हम अपने नागरिकों के आपसी हितों के लिए भारत में अपने सहयोगियों के साथ साझेदारी जारी रख सकेंगे.’
हाल ही में यूएसए इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा बोस्टन में आयोजित अमेरिका-भारत बायो-फार्मा और स्वास्थ्य शिखरवार्ता 2013 में भी उद्योग जगत के विशेषज्ञों ने इसी तरह की राय जताई थी. उनका कहना था कि मौजूदा नीति और माहौल भारत में क्लीनिकल परीक्षण के लिहाज से ठीक नहीं है.
मैककिंसी की रिपोर्ट के प्रमुख लेखक अजय धनखड़ ने कहा कि क्लीनिकल ट्रायल के पीड़ितों के लिए मुआवजा संबंधी जरूरतों पर हालिया नीतियां निवेश के जोखिम को बढ़ाती हैं और बहुराष्ट्रीय तथा घरेलू दोनों फार्मास्युटिकल्स कंपनियों के लिए अस्थिरता पैदा करती हैं. हालांकि भारत के वरिष्ठ अधिकारियों ने इससे असहमति जताई.
केंद्रीय सरकारी स्वास्थ्य योजना में महानिदेशक और अतिरिक्त सचिव रवींद्र कुमार जैन ने कहा कि दवा अनुसंधान और क्लीनिकल ट्रायल के लिए नियामक पहलों का उद्देश्य पारदर्शिता, पहले ही अनुमान लगाने की क्षमता विकसित करना और कुल मिलाकर लोगों के अधिकार, कुशलता तथा सुरक्षा का ख्याल रखना है.
जैन ने कहा कि भारत में 2005 से 2012 के बीच क्लीनिकल ट्रायल में भाग लेते हुए 2,800 से ज्यादा रोगियों की मौत हो गयी जिनमें से 89 या तीन प्रतिशत से कम को सीधे तौर पर ट्रायल से जोड़ा गया. उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए लोगों को मुआवजा नहीं दिया जा रहा.
भारत के दवा महानियंत्रक डॉ जीएन सिंह ने कहा, ‘भारत सरकार आर्थिक मदद में सीधी भूमिका निभा रही है और हम इन संसाधनों की क्षमता बढ़ाने में घरेलू और वैश्विक साझेदारों की भूमिका की सराहना करते हैं.’

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