Wednesday 10 December 2014

खुदकुशी का प्रयास अब दंडनीय अपराध नहीं,सरकार ने 43 साल बाद धारा 309 को हटाने का फैसला किया

खुदकुशी का प्रयास अब दंडनीय अपराध नहीं,सरकार ने 43 साल बाद धारा 309 को हटाने का फैसला किया

Suicide Attempt Irom Sharmila

खुदकुशी का प्रयास अब दंडनीय अपराध नहीं रहेगा क्योंकि केंद्र सरकार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को हटाने का फैसला किया है। अब आत्महत्या करने पर बच जानेवाले को कोई सजा नहीं दी जाएगी। अभी तक आत्महत्या करने में नाकाम रहने पर एक साल तक की सजा व जुर्माने का प्रावधान है। इस धारा को हटाने के बारे में 22 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने सहमति जताई है।
गृह राज्य मंत्री हरिभाई परथीभाई चौधरी ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारतीय विधि आयोग ने अपनी 210वीं रिपोर्ट में यह सिफारिश की है कि भादंसं धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) को कानून की पुस्तक से हटा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चूंकि कानून व व्यवस्था राज्य का विषय है, इसलिए विधि आयोग की सिफारिश पर सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की राय मांगी गई थी।
मंत्री ने कहा कि 18 राज्यों व चार केंद्र शासित प्रदेशों ने इस धारा को हटाने पर सहमति जताई है। राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की राय को देखते हुए तय किया गया है कि कानून की पुस्तक से धारा 309 निकाल दिया जाए। मालूम हो कि इस कानून की धारा को खत्म करने की सिफारिश तो 43 साल पहले भी की जा चुकी थी। विधि आयोग ने 1971 में सरकार को सौंपी अपनी 42वीं रिपोर्ट में भी इसे खत्म करने की सिफारिश की थी। इसे 1978 में राज्यसभा ने पारित कर दिया। लेकिन इससे पहले कि वह लोकसभा में पारित हो पाती लोकसभा भंग हो गई।
फिर 1997 में भी आयोग ने अपनी 158वीं रिपोर्ट में ऐसा किए जाने की सिफारिश की क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञान कौर के मामले में धारा 309 खत्म किए जाने की बात कही था। विधि आयोग की जिस 210वीं रिपोर्ट की सिफारिश के आधार पर सरकार ने यह कदम उठाया है वह भी 17 अक्तूबर 2008 को तत्कालीन यूपीए सरकार को सौंपी गई थी। तब हंसराज भारद्वाज कानून मंत्री थे। डाक्टर जस्टिस एआर लक्ष्मण की अध्यक्षता वाले इस आयोग ने इस संबंध में दी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जो व्यक्ति दुनिया से दुखी होकर अपना जीवन समाप्त करने जा रहा हो उसे आत्महत्या कर पाने में नाकाम रहने पर सजा देना अमानवीय होगा। बचने पर उसे पुलिस अलग से परेशान करेगी। अस्पताल तक उसका इलाज करने के पहले तमाम सवाल पूछेंगे।
अपनी 39 पेज की रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा था कि आत्महत्या के प्रयास को मानसिक बीमारी के रूप में देखा जाना चाहिए। इसका प्रयास करने वाला सहानुभूति का अधिकारी है न कि सजा का। रिपोर्ट में कहा गया था कि वैसे भी दुनिया के चंद देशों जैसे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया व सिंगापुर में ही आत्महत्या करने पर बच जाने पर सजा का प्रावधान किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी यह माना था कि आत्महत्या करना न तो धर्म विरोधी है, न ही इसमें कुछ अनैतिक है।
यह जनविरोधी न होने के साथ ही समाज पर भी कोई बुरा प्रभाव नहीं डालता है। आत्महत्या करने के प्रयास में बच जाने वाले को सजा देना तो उस पर दोहरा अत्याचार करना होगा। विधि आयोग ने अपनी पुरानी रिपोर्ट में भी मनु संहिता का हवाला देते हुए कहा था कि हमारे धर्म ग्रंथों में भी आत्महत्या करने का जिक्र है और बताया गया है कि किस तरह अपनी इच्छा के अनुसार उत्तर पूर्व की दिशा में मुंह करके पानी में सांस बंद करके डुबकी लगाकर या आग लगा कर प्राण त्यागे जा सकते हैं। इसलिए आत्महत्या को अपराध नहीं मना जा सकता है।

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