Wednesday, 10 December 2014

#TIMEPERSONOFTHEYEAR: इबोला डॉक्टर बने 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' #EBOLA #VIRUS #TIME

#TIMEPERSONOFTHEYEAR: 

इबोला डॉक्टर बने 'पर्सन ऑफ़ द ईयर'

#EBOLA #VIRUS #TIME


11 DEC 2014



अमरीकी पत्रिका टाइम ने इबोला वायरस से लड़ रहे स्वास्थ्यकर्मियों को संयुक्त रूप से वर्ष 2014 का 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' चुना है.
पत्रिका ने इन स्वास्थ्यकर्मियों को 'इबोला फ़ाइटर्स' कहा है. इनके असीम साहस और अपने जीवन को जोख़िम में डालकर लोगों को बचाने के लिए उन्हें 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' चुना गया.
इस वार्षिक सम्मान के लिए पत्रिका के संपादकों के पास दुनियाभर के उद्योगपतियों, राजनेताओं, नए रिकॉर्ड क़ायम करने वाले कलाकारों के 50 नाम थे.

इबोला की चेतावनी



इबोला चिकित्सक
इसी हफ़्ते इनमें से आठ लोगों के नाम चुने गए थे और बुधवार को 'इबोला फ़ाइटर्स' को 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' घोषित किया गया.
पत्रिका के अनुसार, दशकों से अफ़्रीका के ग्रामीण इलाक़ों में इबोला किसी मिथकीय दैत्य की तरह डराता रहा है और कुछ-कुछ सालों बाद यह इंसानी ज़िंदगियों को ख़त्म कर अपने गुफ़ा में लौट जाता रहा है.
पत्रिका के मुताबिक, इबोला एक युद्ध और एक चेतावनी है और हमारी वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी मजबूत नहीं है कि इस संक्रमण का मुक़ाबला कर सके.
पत्रिका कहती है कि 'हम' से मतलब सिर्फ ऐसे लोगों से नहीं है जो सुदूर इलाक़े में अपनी ज़िंदगी गंवा रहे हैं, बल्कि हरेक व्यक्ति है.

नरेंद्र मोदी



पुतिन और मोदी
टाइम के ऑन लाइन पोल में मोदी को सर्वाधिक 16 प्रतिशत वोट मिले थे.
टाइम ने अलग से एक ऑनलाइन चुनाव कराया था जिसमें उसके पाठकों को यह मौका दिया गया था कि वे अपनी पसंद से 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' चुन सकें.
ऑन लाइन चुनाव में पाठकों से सबसे अधिक पसंदीदा रहे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. उन्हें 50 लाख वोटों में से 16 प्रतिशत वोट मिले थे.
लेकिन मोदी अंतिम आठ में जगह बनाने में असफल रहे. अंतिम आठ में चीन के अलीबाबा कंपनी के सीईओ जैक मा, एपल के सीईओ टिम कुक, पॉप स्टार टेलर स्विफ़्ट, फ़र्गसन प्रदर्शनकारी, रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन, नेशनल फ़ुटबाल लीग के आयुक्त रोज़र गुडेल और इराक़ी कुर्दिस्तान क्षेत्र के राष्ट्रपति मसूद बरज़ानी के नाम शामिल किए गए थे.

टाइम पत्रिका ने बुधवार को इबोला महामारी से निपटने वाले चिकित्साकर्मियों को ‘पर्सन ऑफ द इयर 2014’ घोषित किया है। इस वायरस की चपेट में आकर 6,300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

टाइम की संपादक नैंसी गिब्स ने प्रतिष्ठित सालाना खिताब की घोषणा करते हुए लिखा, बाकी दुनिया रात में सो सकती है, क्योंकि पुरुषों और महिलाओं का एक समूह खडम रहने और संघर्ष करने के लिए तैयार है। इबोला का प्रकोप लाइबेरिया, गिनी और सिएरा लियोन में फैला था। फिर इन देशों से यह बीमारी नाइजीरिया, माली, स्पेन, जर्मनी और अमेरिका तक पहुंच गई थी।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस साल टाइम पर्सन ऑफ द इयर की दौड़ में थे। उन्हें पाठकों ने अपनी पहली पसंद के तौर पर चुना भी थी। लेकिन ज्यूरी के चयन में वह मुख्य दौड़ में पिछड़ गए। पत्रिका ने कहा कि इबोला वायरस ने बड़ी तादाद में डॉक्टरों और नर्सो को भी प्रभावित किया क्योंकि पहले स्थान पर सार्वजनिक स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा कमजोर था। मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र के इबोला कार्यक्रम से जुड़े प्रमुख अधिकारी डेविड नाबारो ने मंगलवार को इस खतरनाक वायरस के खिलाफ संघर्ष की व्यापक प्रगति का स्वागत किया था। साथ ही उन्होंने आगाह भी किया था कि पश्चिमी सिएरा लियोन और उत्तरी गिनी में यह बीमारी अब भी फैलने का खतरा बरकरार है। उन्होंने कहा था कि इबोला प्रभावित क्षेत्र में अभी और अधिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों की जरूरत है। 

संघर्ष-समर्पण के लिए इन्हें चुना गया
गिब्स ने कहा, साहस और दया के अनथक कार्यो के लिए, दुनिया की सुरक्षा को बढमवा देने के लिए, जोखिम उठाने के लिए, दृढ़ता के लिए, त्याग और बचाव के लिए, इबोला से जूझने वाले टाइम के ‘2014 के पर्सन ऑफ द इयर’ हैं।

गिब्स ने कहा  

कि सरकारें इस संकट से निपटने के लिए सक्षम नहीं थीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इनकार और लाल फीताशाही में फंसा था। उन्होंने क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को श्रद्धांजलि दी, जिन्हें डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स जैसे परमार्थी संगठनों की ओर से भेजा गया था। उन्होंने स्थानीय डॉक्टरों, नर्सो, एंबुलेंस चालकों और अंतिम संस्कार करने वाले दलों  को भी श्रद्धांजलि दी। गिब्स ने कहा, इबोला एक युद्ध है, यह एक चेतावनी है। वैश्विक स्वास्थ्य तंत्र कहीं भी इतना मजबूत नहीं है कि चह हमें संक्रामक रोगों से सुरक्षित रख सके।  और ‘हमें’ का मतलब है हरेक व्यक्ति, केवल वे नहीं जो सुदूर स्थानों पर हैं जहां अनेक लोगों के बीच एक खतरा रोजाना जिंदगियां लील लेता है।

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