Kailash Satyarthi और Malaya Yousafzai's को मिला नोबेल शांति पुरस्कार,MP के कई मंत्री नहीं जानते कौन है कैलाश सत्यार्थी!
11 दिसंबर 2014
'बंदूकें देना आसान, क़िताबें देना मुश्किल?'11 दिसंबर 2014
नार्वे की राजधानी ऑस्लो में एक शानदार समारोह में भारत के बाल अधिकार
कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफ़ज़ई को नोबेल
शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
नोबेल पुरस्कार कमेटी के चेयरमैन थोरबजॉर्न जागलैंड ने इन दोनों को सम्मानित किया.भारत में बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी ने अपने संबोधन में कहा कि उनके जीवन का उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को मुक्त बनाना है.
उन्होंने कहा, "प्रत्येक बच्चे को बढ़ने और बड़े होने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए. अपनी मर्जी से हंसने और रोने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए."
सत्यार्थी ने अपने संबोधन का समापन तमसो मा ज्योतिर्गमय: श्लोक से किया. उन्होंने कहा, "हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर, अंधकार से रोशनी की ओर बढ़ना है."
भाइयों से लड़ने वाली मलाला
पाकिस्तान की मलाला विश्व स्तर पर उस समय चर्चा में आई जब पाकिस्तान के कबायली इलाकों में उन्हें अक्तूबर 2012 में वे तालिबान के हमले का शिकार हुईं.वे वहाँ लड़कियों की शिक्षा के लिए मुहिम चला रही थीं.
मलाला ने नोबेल पुरस्कार हासिल करने के बाद कहा, "पाकिस्तान की पहली और सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने पर गर्व महसूस कर रही हूं."
मलाला ने बताया, "मैं शायद अकेली ऐसी नोबेल पुरस्कार विजेता हूँ जो आज भी अपने छोटे भाइयों से लड़ती है."
मलाला ने सत्यार्थी को संबोधित करते हुए कहा, "आएँ हम दिखा दें कि पाकिस्तानी और भारतीय एक साथ काम कर सकते हैं. हम मिलकर बच्चों के अधिकारों के लिए काम करें."
मलाला ने ये भी सवाल उठाया है कि मौजूदा समय में सरकारों के लिए बंदूक-टैंक ख़रीदना आसान और बच्चों को किताब देना मुश्किल क्यों है?
इस मौके पर ऑस्लो में राहत फतेह अली ख़ान और अमजद अली ख़ान ने अपना म्यूज़िकल कार्यक्रम भी पेश किया.
मलाला यूसुफ़ज़ई और कैलाश सत्यार्थी को संयुक्त तौर पर नोबेल पुरस्कार की चौदह लाख डॉलर की राशि दी गई है
भारतीय उप महाद्वीप में बाल अधिकारों को बढ़ावा देने को लेकर काम
करने के लिए भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को
बुधवार को संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
नार्वे की नोबेल समिति के प्रमुख थोर्बजोर्न जगलांद ने पुरस्कार प्रदान करने से पहले अपने संबोधन में कहा कि सत्यार्थी और मलाला निश्चित तौर पर वही लोग हैं जिन्हें अलफ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में शांति का मसीहा कहा था।
उन्होंने कहा कि एक लड़की और एक बुजुर्ग व्यक्ति, एक पाकिस्तानी और दूसरा भारतीय, एक मुस्लिम और दूसरा हिंदू, दोनों उस गहरी एकजुटता के प्रतीक हैं जिसकी दुनिया को जरूरत है। देशों के बीच भाईचारा।
सत्यार्थी ने इक्लेट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर बाल अधिकार के क्षेत्र में काम करना आरंभ किया और वह बचपन बचाओ आंदोलन नामक गैर सरकारी संगठन का संचालन करते हैं।
दूसरी ओर तालिबान के हमले में बची 17 साल की मलाला लड़कियों की शिक्षा की पैरोकारी करती हैं। शांति के नोबेल के लिए दोनों के नामों का चयन नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने बीते 10 अक्टूबर को किया था।
सत्यार्थी और मलाला को नोबेल का पदक मिला जो 18 कैरेट ग्रीन गोल्ड का बना है और उस पर 24 कैरेट सोने का पानी चढ़ा हुआ है तथा इसका कुल वजन करीब 175 ग्राम है। वे 11 लाख की पुरस्कार राशि को साझा करेंगे।
हिंसा और दमन को किसी भी धर्म में उचित नहीं ठहराए जाने का जिक्र करते हुए जगलांद ने कहा कि इस्लाम, ईसाई, जैन, हिंदू और बौद्ध जीवन की रक्षा करते हैं और जीवन लेने के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकते।
उन्होंने कहा कि जिन दो लोगों को हम आज यहां सम्मानित करने के लिए खड़े हैं वे इस बिंदु पर बहुत खरे हैं। वे उस सिद्धांत के मुताबिक रहते हैं जिसकी अभिव्यक्ति गांधी ने की थी। उन्होंने कहा था: कई ऐसे उद्देश्य हैं जिनके लिए मैं अपने प्राण दे दूं। ऐसा कोई उद्देश्य नहीं हैं जिसके लिए मैं हत्या करूं।
सत्याथी के गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन :बीबीए: ने भारत में कारखानों और दूसरे कामकाजी स्थलों से 80,000 से अधिक बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन :आईएलओ: के मुताबिक दुनिया भर में 16.8 करोड़ बाल श्रमिक हैं। माना जाता है कि भारत में बाल श्रमिकों का आंकड़ा 6 करोड़ के आसपास है।
मलाला को पिछले साल भी शांति के नोबेल के लिए नामांकित किया गया था। उन्होंने तालिबान के हमले के बावजूद पाकिस्तान सरीखे देश में बाल अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा के लिए अपने अभियान को जारी रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया।
पुरस्कार ग्रहण करने के बाद सत्यार्थी ने वहां उपस्थित दर्शकों से कहा कि वे अपने भीतर बच्चों को महसूस करें और उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के खिलाफ अपराध के लिए सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है।
उन्होंने कहा कि बच्चों हमारी अकर्मणयता को लेकर सवाल कर रहे हैं और हमारे कदम को देख रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सभी धर्म बच्चों की देखभाल करने की शिक्षा देते हैं।
बाल श्रमिकों की संख्या में कमी का जिक्र करते हुए सत्यार्थी ने कहा, मेरा सपना है कि हर बच्चों को विकास करने के लिए मुक्त किया जाए, बच्चों के सपनों को पूरा नहीं होने देना से बड़ी हिंसा कुछ नहीं है।
समाज के कमजोर तबकों के लोगों के साथ के अपने अनुभव को साक्षा करते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा कि मैं उन करोड़ों बच्चों का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं जिनकी आवाजें दबी हुई हैं और वे कहीं गुमनामी में जी रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस सम्मान का श्रेय उन लोगों को जाता है जिन्होंने बच्चों को मुक्त कराने के लिए काम किया और त्याग दिया। नोबेल पुरस्कार समारोह में पाकिस्तान के मशहूर गायक राहत फतेह अली खान और भारतीय संगीत जगत के चर्चित के नाम अमजद अली खान ने जलवा बिखेरा। यहां पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी भी मौजूद थे।
इस अवसर पर बोलते हुए सत्यार्थी ने कहा कि उनका एकमात्र सपना हर बच्चे को बचपन जीने का हक पाते हुए देखना है। उन्होंने कहा कि बच्चों के सपनों को तोड़ना और उन्हें अपने सपनों को जीने से रोकना बच्चों के खिलाफ सबसे बड़ी हिंसा है।
सत्यार्थी ने कहा कि हर बच्चे को स्कूल जाने, खेलने और बचपन जीने की आजादी होनी चाहिए।
उम्मीद है कि दोनों मुल्कों की दो शख्सियतों को शांति का सबसे बड़ा सम्मान मिलने से इन मुल्कों के बीच दोस्ती का एक नया पैगाम जाएगा और वे फिर से भाईचारे के बंधन में बंधने की तरफ रुख करेंगे।
बचपन बचाओ आंदोलन के अगुवा कैलाश सत्यार्थी शांति नोबल पुरस्कार पाने वाले भारत के पहले व्यक्ति हैं। इसी तरह मलाला भी पाकिस्तान की तरफ से शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली शख्सियत बन गई हैं। तालिबानी हमले की वजह से मलाला चर्चा में आई थीं। मलाला सबसे कम उम्र में यह पुरस्कार पाने वाली शख्सियत भी हैं।
गौरतलब है कि नोबेल पुरस्कार के ऐलान के बाद मलाला ने दिली इच्छा जताई थी कि दोनों मुल्कों के प्रधानमंत्री पुरस्कार प्राप्त करने के वक्त मौजूद रहें, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
कैलाश सत्यार्थी और मलाला समेत 11 हस्तियों को इस साल के नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है। मलाला की उम्र महज 17 साल है, जबकि सत्यार्थी 60 साल के हैं।
नार्वे की नोबेल समिति के प्रमुख थोर्बजोर्न जगलांद ने पुरस्कार प्रदान करने से पहले अपने संबोधन में कहा कि सत्यार्थी और मलाला निश्चित तौर पर वही लोग हैं जिन्हें अलफ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में शांति का मसीहा कहा था।
उन्होंने कहा कि एक लड़की और एक बुजुर्ग व्यक्ति, एक पाकिस्तानी और दूसरा भारतीय, एक मुस्लिम और दूसरा हिंदू, दोनों उस गहरी एकजुटता के प्रतीक हैं जिसकी दुनिया को जरूरत है। देशों के बीच भाईचारा।
सत्यार्थी ने इक्लेट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर बाल अधिकार के क्षेत्र में काम करना आरंभ किया और वह बचपन बचाओ आंदोलन नामक गैर सरकारी संगठन का संचालन करते हैं।
दूसरी ओर तालिबान के हमले में बची 17 साल की मलाला लड़कियों की शिक्षा की पैरोकारी करती हैं। शांति के नोबेल के लिए दोनों के नामों का चयन नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने बीते 10 अक्टूबर को किया था।
सत्यार्थी और मलाला को नोबेल का पदक मिला जो 18 कैरेट ग्रीन गोल्ड का बना है और उस पर 24 कैरेट सोने का पानी चढ़ा हुआ है तथा इसका कुल वजन करीब 175 ग्राम है। वे 11 लाख की पुरस्कार राशि को साझा करेंगे।
हिंसा और दमन को किसी भी धर्म में उचित नहीं ठहराए जाने का जिक्र करते हुए जगलांद ने कहा कि इस्लाम, ईसाई, जैन, हिंदू और बौद्ध जीवन की रक्षा करते हैं और जीवन लेने के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकते।
उन्होंने कहा कि जिन दो लोगों को हम आज यहां सम्मानित करने के लिए खड़े हैं वे इस बिंदु पर बहुत खरे हैं। वे उस सिद्धांत के मुताबिक रहते हैं जिसकी अभिव्यक्ति गांधी ने की थी। उन्होंने कहा था: कई ऐसे उद्देश्य हैं जिनके लिए मैं अपने प्राण दे दूं। ऐसा कोई उद्देश्य नहीं हैं जिसके लिए मैं हत्या करूं।
सत्याथी के गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन :बीबीए: ने भारत में कारखानों और दूसरे कामकाजी स्थलों से 80,000 से अधिक बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन :आईएलओ: के मुताबिक दुनिया भर में 16.8 करोड़ बाल श्रमिक हैं। माना जाता है कि भारत में बाल श्रमिकों का आंकड़ा 6 करोड़ के आसपास है।
मलाला को पिछले साल भी शांति के नोबेल के लिए नामांकित किया गया था। उन्होंने तालिबान के हमले के बावजूद पाकिस्तान सरीखे देश में बाल अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा के लिए अपने अभियान को जारी रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया।
पुरस्कार ग्रहण करने के बाद सत्यार्थी ने वहां उपस्थित दर्शकों से कहा कि वे अपने भीतर बच्चों को महसूस करें और उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के खिलाफ अपराध के लिए सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है।
उन्होंने कहा कि बच्चों हमारी अकर्मणयता को लेकर सवाल कर रहे हैं और हमारे कदम को देख रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सभी धर्म बच्चों की देखभाल करने की शिक्षा देते हैं।
बाल श्रमिकों की संख्या में कमी का जिक्र करते हुए सत्यार्थी ने कहा, मेरा सपना है कि हर बच्चों को विकास करने के लिए मुक्त किया जाए, बच्चों के सपनों को पूरा नहीं होने देना से बड़ी हिंसा कुछ नहीं है।
समाज के कमजोर तबकों के लोगों के साथ के अपने अनुभव को साक्षा करते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा कि मैं उन करोड़ों बच्चों का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं जिनकी आवाजें दबी हुई हैं और वे कहीं गुमनामी में जी रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस सम्मान का श्रेय उन लोगों को जाता है जिन्होंने बच्चों को मुक्त कराने के लिए काम किया और त्याग दिया। नोबेल पुरस्कार समारोह में पाकिस्तान के मशहूर गायक राहत फतेह अली खान और भारतीय संगीत जगत के चर्चित के नाम अमजद अली खान ने जलवा बिखेरा। यहां पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी भी मौजूद थे।
इस अवसर पर बोलते हुए सत्यार्थी ने कहा कि उनका एकमात्र सपना हर बच्चे को बचपन जीने का हक पाते हुए देखना है। उन्होंने कहा कि बच्चों के सपनों को तोड़ना और उन्हें अपने सपनों को जीने से रोकना बच्चों के खिलाफ सबसे बड़ी हिंसा है।
सत्यार्थी ने कहा कि हर बच्चे को स्कूल जाने, खेलने और बचपन जीने की आजादी होनी चाहिए।
उम्मीद है कि दोनों मुल्कों की दो शख्सियतों को शांति का सबसे बड़ा सम्मान मिलने से इन मुल्कों के बीच दोस्ती का एक नया पैगाम जाएगा और वे फिर से भाईचारे के बंधन में बंधने की तरफ रुख करेंगे।
बचपन बचाओ आंदोलन के अगुवा कैलाश सत्यार्थी शांति नोबल पुरस्कार पाने वाले भारत के पहले व्यक्ति हैं। इसी तरह मलाला भी पाकिस्तान की तरफ से शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली शख्सियत बन गई हैं। तालिबानी हमले की वजह से मलाला चर्चा में आई थीं। मलाला सबसे कम उम्र में यह पुरस्कार पाने वाली शख्सियत भी हैं।
गौरतलब है कि नोबेल पुरस्कार के ऐलान के बाद मलाला ने दिली इच्छा जताई थी कि दोनों मुल्कों के प्रधानमंत्री पुरस्कार प्राप्त करने के वक्त मौजूद रहें, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
कैलाश सत्यार्थी और मलाला समेत 11 हस्तियों को इस साल के नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है। मलाला की उम्र महज 17 साल है, जबकि सत्यार्थी 60 साल के हैं।
नई दिल्ली: भले ही पूरी दुनिया मध्य प्रदेश के विदिशा में जन्मे कैलाश सत्यार्थी को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने पर जान गई हो लेकिन उनके ही गृह प्रदेश के कई मंत्री और विधायक ऐसे हैं, जो सत्यार्थी के बारे में जानते तक नहीं हैं।
कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद कुछ पत्रकारों ने सरकार के मंत्रियों और विधायकों से प्रतिक्रिया लेनी चाही तो मंत्री कुसुम महदेले से जब इस संबंधी पत्रकारों ने सवाल किया तो पहले तो वे अटक गई और कुछ देर रूकने के बाद बोलीं कि अच्छा क्या अपने कैलाश को, वाह क्या बात है।
इसी तरह राजस्व राज्यमंत्री ज्ञान सिंह तो विजयवर्गीय की कार्यशैली का बखान करने लग गए। कुछ ऐसे ही हाल रहे भाजपा विधायक दिलीप सिंह परिहार व रंजीत सिंह का, जिन्होंने कैलाश सत्यार्थी की जगह कैलाश विजयवर्गीय का गुणगान कर डाला।
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