Tuesday, 10 February 2015

तो निकल गई मोदी के करिश्मे की हवा..?.....#DelhiDecides #KiskiDilli (#AAPSweep)

तो निकल गई मोदी के करिश्मे की हवा..?


  • 1 घंटा पहले

किरण बेदी, अमित शाह, नरेंद्र मोदी, कार्टून

दिल्ली विधान सभा चुनाव में भाजपा की हार के आकलन का सबसे सटीक और शायद एकमात्र तरीका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिमानों को परखना है.
ये उन्होंने ही अपने और अपनी पार्टी के लिए तय किए थे.
और इन परिणामों के बाद कहा जा सकता है कि जनता ने नरेंद्र मोदी के 'करिश्माई व्यक्तित्व की हवा' यथासंभव निकाल दी है.
ये सच है कि दिल्ली चुनावों से लोक सभा के आंकड़ों का कोई वास्ता नहीं. न ही इससे मोदी सरकार की स्थिरता पर कोई असर पड़ेगा. लेकिन ये भी साफ़ है कि आठ महीने में ही भारतीय राजनीति से मोदी का जादू उतर गया सा लगता है.

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किरण बेदी, नरेंद्र मोदी, कार्टून
मोदी ने दिल्ली की जनता को 'नेशनल मूड' के अनुरूप भाजपा के विजय रथ पर सवार होने के लिए कहा था. दिल्ली को एक अन्य 'मोदी सरकार' चुनने का विकल्प दे दिया गया लेकिन जनता ने विन्रमता के साथ कड़ा जवाब दिया, "नहीं चाहिए, आपका बहुत बहुत शुक्रिया."
किरण बेदी की मौजूदगी और तमाम दिखावे के बावजूद भाजपा का चुनाव प्रचार मोदी-केंद्रित था. द हिन्दू अख़बार में आठ फ़रवरी को छपी ख़बर के अनुसार बेदी ने मतदान के दिन भी एक जगह कहा था, "आपके एक वोट से दो लीडर मिलेंगे. एक सेंटर में, एक दिल्ली में." कहा जा सकता है कि मोदी को इस चुनाव में एक मुकम्मल हार मिली है.
कुछ दिनों पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू ने कहा था कि दिल्ली के चुनाव को नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार पर जनमत के रूप में देखना सही नहीं होगा. लेकिन उसके बाद भी नरेंद्र मोदी-अमित शाह के नियंत्रण वाले धड़े ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस चुनाव में भाजपा का एक मात्र तुरुप का पत्ता उनके प्रधानमंत्री ही हैं.
मतदान से दो दिन पहले लगभग सभी प्रमुख अख़बारों में भाजपा ने पिछले आठ महीनों में केंद्र की भाजपा सरकार की उपलब्धियों का गिनाया था. चुनाव नतीज़ों से लगता है कि जनता ने भाजपा के उन सभी दावों को ख़ारिज कर दिया है.

चिर-परिचित पैंतरे विफल


नरेंद्र मोदी, भाजपा
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भाजपा ने अपनी पुरानी चिर-परिचित चुनावी रणनीतियों और पैंतरों का इस्तेमाल किया जिनसे उसे अन्य चुनावों में जबरदस्त जीत मिली थी. पहले लोक सभा चुनाव में और उसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में.
भाजपा की चुनावी रणनीति मोटे तौर पर मोदी के विकास के नारे और महीन तौर पर स्थानीय सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मिश्रण से बनी है.
दिल्ली में भाजपा को पहली दिक्कत यह हुई कि इससे पहले मोदी को केंद्र या राज्य में जहाँ भी चुनावी जीत मिली वहाँ उनके कैंपेन में निवर्तमान सरकार के ख़िलाफ़ तेज़ नकारात्मक प्रचार उनका प्रमुख हथियार रहा.
दिल्ली में कोई भी निवर्तमान सरकार नहीं थी जिसके ख़िलाफ़ मोदी मुहिम चला पाते. इसके उलट, समाज का बड़ा तबका भाजपा के आम आदमी पार्टी के ख़िलाफ़ किए जा रहे नकारात्मक प्रचार की वजह से बिदक गया.
मोदी के विकास लाने और दिल्ली पिछले 16 साल (ग़ैर-भाजपा शासन का समय) में हुई 'बर्बादी' को सही करने के उनके वादे को जनता ने स्वीकार नहीं किया.

सांप्रादायिक ध्रुवीकरण नहीं हुए


भाजपा, नरेंद्र मोदी
आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का भी कोई मौक़ा नहीं दिया.
जब दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम ने उन्हें 'समर्थन' देने की घोषणा की तो आम आदमी पार्टी ने बहुत चतुराई से इसे ठुकराकर कई शंकालु वोटरों को भी अपने पक्ष में कर लिया.
दूसरी तरफ़ भाजपा ने डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम के समर्थन को स्वीकार किया जिससे संदेश गया कि पार्टी धार्मिक गुरुओं और डेराओं को तुष्ट कर रही है.
यह भी संभव है कि मध्यवर्ग के कुछ वोटरों पर अमरीकी राष्ट्रपति के भारत में बढ़ती सांप्रदायिकता को लेकर दिए गए बयानों का असर पड़ा हो.
इसमें कोई शक़ नहीं है कि दिल्ली चुनाव के नतीज़ों की गूँज पूरे देश में सुनाई देगी. क्योंकि दिल्ली में लच्छेदार भाषण देने वाले नरेंद्र मोदी, सांगठनिक कार्यों में परम-चतुर अमित शाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा संगठन, 'स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त' भाजपा और मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में 'मिशन-मोड' में काम करने वाली एक गंभीर पूर्व पुलिस अधिकारी के होने के बावजूद जनता ने केंद्र में सत्ताधारी पार्टी को नकार दिया.

व्यक्तित्व का प्रभाव


नरेंद्र मोदी, भाजपा
दिल्ली चुनाव के आख़िरी नतीजे बहुत ज़्यादा हैरान करने वाले हैं. दिल्ली के नतीज़े 2014 के लोक सभा चुनाव के नतीज़ों के अस्थाई चरित्र की तरफ़ भी इशारा करते हैं.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि दिल्ली की जनता ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में अब तक के कामकाज़ पर अपना फ़ैसला दिया है. जाहिर है अब तक मोदी प्रधानमंत्री के रूप में हवाई ज़्यादा, ठोस कम दिखे हैं.

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