क्यों 'दाग़दार' हैं भारतीय नेताओं के दामन
शुक्रवार, 27 सितंबर, 2013 को 08:14 IST तक के समाचार
‘‘हमें इस बात पर सहमति बनाने की ज़रूरत है कि कैसे आपराधिक छवि वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोका जाए.’’
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चलाने के लिए ये
सबसे बुनियादी ज़रूरत है और जब भारत की सबसे ताक़तवर राजनीतिज्ञ सोनिया
गांधी ने तीन साल पहले ये बात कही थी तो विपक्षी दल बीजेपी ने भी इस बात पर
सहमति जताई थी.मंगलवार को भारतीय मंत्रिपरिषद ने इस बात का पूरा इंतज़ाम कर लिया कि क़ानून बनाने वाले ख़ुद क़ानून की पकड़ से बच निकलें.
कैबिनेट ने एक क्लिक करें अध्यादेश के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया है कहा गया था कि अगर किसी नेता को दो साल या उससे ज़्यादा की सज़ा होती है तो उसे चुनाव लड़ने के अयोग्य क़रार दिया जाए.
सरकार का तर्क है इसका मक़सद है कि शासन पर ‘विपरीत असर’ ना पड़े.
अभूतपूर्व तेज़ी
सो अक्सर नकारेपन के आरोप झेलने वाली कैबिनेट ने इस बार अभूतपूर्व तेज़ी दिखाते हुए क़दम उठाया है.
ये तेज़ी शायद उन दो महत्वपूर्ण मामलों के लंबित नतीजों को देखते हुए दिखाई गई है जिनमें कुछ प्रमुख नेता शामिल हैं.
एक मामला पूर्व रेलवे मंत्री और कांग्रेस के सहयोगी दल के नेता लालू प्रसाद यादव का है जिन पर चारा घोटाले में शामिल होने का आरोप है.
वहीं दूसरे मामले में कांग्रेस सांसद राशिद मसूद का नाम है जिन्हे क्लिक करें भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराया गया है औऱ फ़ैसला अगले हफ्ते आना है. बीबीसी ने जब उनसे बात करने की कोशिश की तो उनके दफ्तर से जवाब आया कि उनकी तबीयत ख़राब है.
दाग़ी नेताओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले चंद लोगों में शामिल हैं सांसद बैजयंत पांडा जिन्होने सरकार के क़दम पर टिप्पणी करते हुए टविटर पर लिखा ‘‘पता नहीं इस पर ख़ुश हुआ जाए या रोया जाए.’’
16 दिसंबर को हुए दिल्ली बलात्कार कांड के बाद आई वर्मा कमेटी रिपोर्ट को तो भुला ही दिया गया है जिसमें यौन अपराधों के दोषी नेताओं को निकालने की बात कही गई थी. बलात्कार के दोषी छह नेता अपने पदों पर बने हुए हैं.
विपक्षी दल बीजेपी का कहना है कि वह कैबिनेट अध्यादेश का विरोध करेगी लेकिन उसका अपना दामन भी कम दाग़दार नही है. पार्टी के दाग़ी सासंदों और और विधायकों की संख्या कांग्रेस से कहीं ज़्यादा है.
ख़ासकर चुनावों से ठीक पहले तो कोई भी पार्टी ठोस सुधारों का जोखिम तो नहीं उठा सकती भले ही पहले उसने कितनी ही आवाज़ क्यों ना उठाई हो.
ऐसा नहीं है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में ही नेताओं पर सवालिया निशान हैं. ब्रिक्स देशों के दूसरे सदस्य देश जैसे ब्राज़ील में भी देश चलाने वालों पर अपराध करने के आरोप हैं.
अंतर ये है कि ब्राज़ील में राजनैतिक ताक़त के खुले दुरूपयोग ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है.
लेकिन भारतीय सांसद बैजयंत पांडा कहते हैं कि ‘‘सभी लोकतांत्रिक देशों को इस तरह के दौर से गुज़रना पड़ता है. अमरीका को देखिए.’’
वे मानते हैं कि वोटर बदलाव की मांग करेंगे और ‘‘यह निर्लज्जता का अंतिम दौर है.’’
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