Tuesday, 24 September 2013

NSA,PRISM: 'आपके फ़ेसबुक,ईमेल पर नज़रें गड़ाए है अमरीका'

NSA,PRISM: 'आपके फ़ेसबुक,ईमेल पर नज़रें गड़ाए है अमरीका'

 मंगलवार, 24 सितंबर, 2013 को 06:51 IST तक के समाचार

भारत के अख़बार ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में जिन देशों से अमरीका सबसे ज़्यादा जानकारियां जुटाता है, उन देशों की सूची में भारत पांचवें नंबर पर है. ब्रिक्स देशों (ब्रज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) की सूची में भारत पहले नंबर पर है.
'द हिंदू' का कहना है कि उसे ये जानकारी और गोपनीय दस्तावेज़ एनएसए के पूर्व खुफ़िया अधिकारी एडवर्ड स्नोडन ने दी. अखबार के अनुसार एनएसए ने भारत की इंटरनेट और फोन नेटवर्कों से 30 दिनों में अरबों की तादाद में छोटी-बड़ी जानकारियां जुटाई.
आप किससे, कितनी देर तक और कितनी बार फोन करते हैं, या किसे ईमेल भेजते है और किस वेबसाइट पर जाते हैं - दुनिया भर से गुप्त तौर पर इस तरह की जानकारियां इकठ्ठा करने का आरोप अमरीकी एजेंसियों पर लगा है.
खुद अमरीका के नागरिकों ने बड़ी संख्या में इसे ‘निजता का हनन’ माना और अभियान का विरोध किया, लेकिन अमरीकी सरकार इसे सुरक्षा के लिए ज़रूरी बताती है.
खुफ़िया तरीके से जुटाई गई जानकारियों को आधार बनाकर डाटा विश्लेषण किया जाता है और आगे का अनुमान लगाया जाता है.

'अमूल्य' है डेटा


"लोग कही न कही ये अपेक्षा रखते हैं कि 'मेरी निजता है, डेटा प्रायवेसी है'. वो क्या कर रहे हैं क्या नहीं उसे कोई झांककर देखे नहीं. लेकिन असल में ये निर्भर करता है कि नागरिक जिस देश में है उसमें इससे संबंधित कानून क्या कहते हैं."
पवन दुग्गल, साइबर कानून विशेषज्ञ
साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल के अनुसार, "आज के दौर में इलेक्ट्रॉनिक डाटा अमूल्य है. ये डाटा प्रत्येक राष्ट्र के लिए बड़ा महत्व रखता है, इसलिए जानकारियाँ जुटाई जाती है. कोशिश की जाती है कि जनसंख्या इंटरनेट पर क्या जानकारी भेज रही है, या क्या कर रही है उसकी पूरी जानकारी रखी जाए."
द हिंदू अख़बार ने स्नोडन के दिए दस्तावेज़ों के हवाले से कहा कि भारत से एक महीने में 6.2 अरब जानकारियां जुटाई गई, जिसके लिए लाखों ईमेल और फोन कॉल की पड़ताल की गई.
अख़बार को मिले दस्तावेज़ों के अनुसार, अमरीकी एजेंसी ने भारत में जासूसी के लिए कम से कम दो बड़े कंप्यूटर प्रोग्राम का इस्तेमाल किया – पहला है ‘बाउंडलेस इंफॉर्मेंट’, जो सुरक्षा एजेंसी द्वारा जुटाई गई कॉल और ईमेल की गिनती करता है और दूसरा है प्रिज़म, जो किसी एक विषय पर विभिन्न नेटवर्कों से शुद्ध जानकारी जुटाता है.
पवन दुग्गल कहते हैं कि साइबर जासूसी, लोगों की निजता के अधिकार पर आघात है.
वो कहते हैं, "लोग कहीं न कही ये अपेक्षा रखते हैं कि 'मेरी निजता है, डाटा प्राइवेसी है'. वो क्या कर रहे हैं क्या नहीं उसे कोई झांककर देखे नहीं. लेकिन असल में ये निर्भर करता है कि नागरिक जिस देश में है उसमें इससे संबंधित कानून क्या कहते हैं."

फोन टैपिंग

अख़बार के मुताबिक़ प्रिज़म का इस्तेमाल गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, याहू, ऐपल, यूट्यूब और कई अलग वेब सेवाओं से जानकारी जुटाने के लिए किया गया.
पवन दुग्गल का कहना है कि भारत में साइबर प्राइवेसी को लेकर भी जागरूकता की कमी है, जिस वजह से लोग ऐसे खुफ़िया अभियानों को कोई खास तवज्जों नहीं देते.
इस बारे में जब बीबीसी ने विदेश मंत्रालय से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई तो शीर्ष अधिकारियों ने इस पर आधिकारिक तौर पर बात करने से मना कर दिया.
कुछ महीने पहले भी जब ये विवाद उठा था और अमरीका के नागरिक खुद अपने देश के जासूसी अभियान का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आए थे, तब भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा था कि, ‘...ये असल में जासूसी नहीं है.’
बीते कुछ वर्षों में भारत में भी फोन टैपिंग के कई मामले प्रकाश में आए हैं.
राज्यसभा में नेता विपक्ष अरूण जेटली से लेकर नीरा राडिया और अमर सिंह से लेकर कई प्रमुख राजनीतिज्ञों ने अपना फ़ोन किए जाने की शिकायत की थी.

साइबर जासूसी से कैसे बचेगा भारत?


भारत की हवाई प्रतिरक्षा प्रणाली, यहाँ के परमाणु संयंत्र, वाणिज्य जगत से जुड़ी जानकारियाँ या दूरसंचार प्रणाली- ये सभी साइबर ख़तरे से बचे रहें, इसके लिए राष्ट्रीय नीति की घोषणा तो हुई है मगर उसे लागू कैसे किया जाएगा उस पर कोई रोडमैप नहीं रखा गया है.
बीते दिनों सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने 'नेशनल साइबर सिक्योरिटी पॉलिसी 2013' के तहत एक राष्ट्रीय नोडल एजेंसी बनाने की घोषणा की.
साइबर जगत से जुड़े हुए खासकर निजी क्षेत्र के लोग इसे लागू किए जाने के रोडमैप पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं.
साइबर सुरक्षा
स्नोडन की ओर से जानकारी आने के बाद अमरीका में जासूसी को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए हैं
क़ानूनी जानकारी मुहैया कराने वाली कंपनी यूनाइटेड लेक्स के वाइस प्रेसिडेंट (सूचना प्रौद्योगिकी) उज्ज्वल छबलानी ने कहा, ''गोपनीय डेटा की सुरक्षा अहम होती है क्योंकि इसमें हमारे ग्राहकों के हित सीधे तौर पर जुड़े होते हैं. लिहाज़ा हम पहले से ही काफ़ी सख़्त नियमों का पालन करते हैं. सरकारी नीति केवल निम्नतम स्तर की सुरक्षा की बात करती है और हमारी सुरक्षा इससे कई गुना आगे के स्तर की होती है.''

आम लोगों की सुरक्षा

लेकिन आम तौर पर इंटरनेट और फ़ोन का प्रयोग करने वाले लोगों के पास तो किसी भी तरह की साइबर सुरक्षा नहीं होती. ऐसे में उनकी गोपनीय बातचीत या ईमेल या वाणिज्यिक जानकारियां ख़तरे में होती हैं.
स्थिति और भी ज़्यादा चिंताजनक हो जाती है निजी क्षेत्र में, खासकर तब, जब व्यवसाय गोपनीय जानकारियों से संबंधित ही हो. निजी क्षेत्र की कंपनियों को ज़्यादा ख़तरा अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से ही होता है.
डेटा सुरक्षा और रिकवरी के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी स्टेलर डेटा प्रोटेक्शन के मुख्य कार्यकारी सुनील चंदना ने कहा, ''कंपनियों को प्रतिस्पर्धा करने वाली कंपनियों से ख़तरा होता है क्योंकि वे एक-दूसरे की जानकारियां इकट्ठा करना चाहती हैं.''
सीआईए के पूर्व जासूस एडवर्ड स्नोडेन की ओर से जारी जानकारी में बताया गया कि अमरीका कई देशों की गोपनीय जानकारियां ख़ुफ़िया तौर पर जुटाता रहा है और जिन देशों की जानकारियां ली गईं उनमें भारत भी शामिल है. बताया गया कि भारत से क़रीब साढ़े छह अरब यूनिट डेटा जुटाया गया.

दूसरे देशों की जासूसी

एडवर्ड स्नोडेन
एडवर्ड स्नोडेन की ओर से जारी जानकारी में पता चला है कि अमरीका ने भारत से भी ख़ुफ़िया जानकारी जुटाई थी
इस घटना से ये भी संभावना प्रबल हो जाती है कि सिर्फ़ अमरीका ही नहीं और भी देश भारत की साइबर जासूसी में लिप्त हों.
कुछ ही महीनों पहले चीनी हैकरों ने भारत के रक्षा अनुसंधान केंद्र के कंप्यूटरों में सेंध लगाकर गोपनीय जानकारियां निकाली थीं.
बड़ा सवाल अब ये है कि इन हमलों को रोका जाए तो कैसे?
भारत सरकार के कई उपक्रमों के साथ साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था, डेटा सिक्योरिटी काउंसिल ऑफ़ इंडिया के निदेशक विनायक गोडसे बताते हैं, ''पिछले पांच-छह साल में डेटा चोरी और जासूसी की घटनाओं में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है. पहले जहां वेबसाइटें संस्था या व्यक्तियों की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए हैक की जाती थीं अब वहीं शांति से अटैक होते हैं, बिना शोर मचाए सिर्फ जानकारियाँ निकालने के लिए.''

सुरक्षा के लिए निवेश बढ़ा

साइबर सुरक्षा
सरकार की योजना है कि साइबर सुरक्षा के लिए एक नोडल एजेंसी बनाई जाए जो साइबर मामलों पर कार्रवाई करें
गोडसे का मानना है कि सरकार इन ख़तरों से निबटने के लिए काफी निवेश कर रही है और नेशनल साइबर सिक्योरिटी पॉलिसी इसी दिशा में एक सकारात्मक पहल है.
लेकिन मौजूदा स्थिति को देखें तो साइबर सुरक्षा का एहसास वास्तविकता से दूर है. अपुष्ट खबरों की मानें तो भारत में केवल 556 अधिकृत साइबर सिक्योरिटी ऑफ़िसर्स मौजूद हैं, जबकि चीन में क़रीब सवा लाख और अमरीका में एक लाख के क़रीब लोग अधिकृत तौर पर साइबर सिक्योरिटी से जुड़े हुए हैं.
भारत की गिनती आईटी के क्षेत्र मे एक बड़े देश के तौर पर होती है लेकिन हाल ही में हुई कुछ हैकिंग और डेटा चोरी की घटनाओं ने भारत की साख पर बट्टा लगाया है.
ऐसे में ये एक बड़ा सवाल है कि क्या भारत इस दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ा पाएगा या इस मौके पर भी पिछड़ता दिखेगा?

साइबर हमले रोकने के लिए नई सुरक्षा नीति


लैपटॉप
भारत में साइबर हमलों के लेकर खा़सी चिंता जताई जाती रही है
भारत सरकार ने राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति-2013 जारी कर दी है. इसका मकसद देश में अनुकूल साइबर सिक्योरिटी सिस्टम तैयार करना है जो वैश्विक माहौल के अनुरूप हो ताकि साइबर हमलों को रोका जा सके.
इस मौके पर सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने नई दिल्ली में कहा, “राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति-2013 देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर सुरक्षा का आश्ववस्त माहौल तैयार करेगी. लेकिन ऐसी अर्थपूर्ण नीति तैयार करने का काम काफी चुनौतीपूर्ण है जिसमें सारे अहम मुद्दे शामिल किए गए हों.”

कपिल सिब्बल का कहना था कि ये नीति एक फ्रेमवर्क है लेकिन असली चुनौती इस नीति को अमली जामा पहनाने की है.
उन्होंने कहा, “एयर डिफ़ेंस सिस्टम, परमाणु प्लांट, दूरसंचार प्रणाली इन सबको साइबर सुरक्षा देनी होगी ताकि ऐसा कुछ न हो जिससे देश की अर्थव्यवस्था के स्थायित्व पर ख़तरा हो.”

नोडल एजेंसी बनेगी

"राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति-2013 देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर सुरक्षा का आश्ववस्त माहौल तैयार करेगी. लेकिन ऐसी अर्थपूर्ण नीति तैयार करने का काम काफी चुनौतीपूर्ण है जिसमें सारे अहम मुद्दे शामिल किए गए हों."
कपिल सिब्बल
पीटीआई के मुताबिक सुरक्षित क्लिक करें साइबर सिस्टम तैयार करने के लिए इस नीति के तहत एक राष्ट्रीय नोडल एजेंसी बनाने की योजना है ताकि देश में साइबर सुरक्षा से जुड़े सारे मामलों को लेकर समन्वय बनाया जा सके.
इस एजेंसी की स्पष्ट भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ होंगी.
कपिल सिब्बल ने इस बात को रेखांकित किया कि साइबर ख़तरा किसी से भी हो सकता है- आतंकवादियों से, मादक पदार्थ के तस्करों से और हिंसा भड़काने वाले तत्वों से.. इसलिए भारत को इससे निपटने के लिए तैयार रहना होगा.

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