Now Voter has right to Reject voting: SC Order
In a landmark verdict, the Supreme Court on Friday held that citizens
have right to cast negative vote rejecting all candidates contesting
polls, a decision which would encourage people not satisfied with
contestants to turn up for voting.
The apex court directed the Election Commission to provide ‘none of the
above options’ at the end of the list of candidates in electronic voting
machines (EVMs) and ballot papers to allow voters to reject those
contesting polls.
A bench headed by Chief Justice P Sathasivam said that negative voting
would foster purity and vibrancy of elections and ensure wide
participation as people who are not satisfied with the candidates in the
fray would also turn up to express their opinion rejecting contestants.
It said that the concept of negative voting would bring a systemic
change in the election process as the political parties will be forced
to project clean candidates in polls.
The bench noted that the concept of negative voting is prevalent in 13
countries and even in India, parliamentarians are given an option to
press the button for abstaining while voting takes place in the House.
The court said right to reject candidates in elections is part of
fundamental right to freedom of speech and expression given by the
Constitution to Indian citizens.
It said that democracy is all about choice and significance of right of citizens to cast negative voting is massive.
With the concept of negative voting, the voters who are dissatisfied
with the candidates in the fray would turn up in large number to express
their opinion which would put unscrupulous elements and impersonators
out of the polls, it said.
The bench, while reading out the operative portion of the judgement, did
not throw light on a situation in case the votes cast under no option
head outnumber the votes got by the candidates.
It said that secrecy of votes cast under the no option category must be maintained by the Election Commission.
सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं को दिया सभी उम्मीदवारों को ठुकराने का हक
सितम्बर 27, 2013 11:24 AM IST
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में
देश के मतदाताओं को यह अधिकार दे दिया है कि वे अब मतदान के दौरान सभी
प्रत्याशियों को ठुकरा सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यदि मतदान का अधिकार सांविधिक अधिकार है, तो उम्मीदवार को नकारने का अधिकार संविधान के तहत अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि नकारात्मक मतदान से चुनावों में सर्वांगीण बदलाव होगा और राजनीतिक दल स्वच्छ छवि वाले प्रत्याशियों को ही टिकट देने के लिए मजबूर होंगे।
यह मामला चुनावों में वोटरों को मिलने वाले विकल्प में किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने को जोड़े जाने का है। इसके मुताबिक ईवीएम मशीन में एक बटन इस बात के लिए होगा कि अगर वोटर को मौजूदा उम्मीदवारों में से कोई भी पसंद नहीं हो तो, वह किसी को भी अपना वोट नहीं देकर विरोध दर्ज कर सकेगा।
इसका कोई असर चुनाव के नतीजों पर नहीं होगा। इसके साथ ही यह सवाल भी उठने लगे हैं कि अगर किसी को भी वोट नहीं वाले पक्ष में आधे से ज्यादा वोट पड़े चुनाव दोबारा कराए जाने चाहिए। हालांकि अभी इस बात की मांग अभी नहीं जोड़ी गई है, लेकिन आगे चलकर यह मसला भी उठ सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब आगामी महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले वर्ष लोकसभा चुनाव भी होने हैं।
मतदाताओं को मिला 'राइट टू रिजेक्ट'
सुप्रीम
कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए मतदाताओं को 'राइट टू
रिजेक्ट' यानी की सभी उम्मीदवारों को ख़ारिज करने का अधिकार दे दिया.
भारत की शीर्षस्थ अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश
दिया है कि वह इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर एक ऐसा बटन लगाए जिसके
जरिए मतदाता सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सके. यानी मशीन में 'इनमें से कोई
नहीं' का विकल्प होना चाहिए.फ़ैसला सुनाते हुए क्लिक करें अदालत ने कहा कि मतदाताओं को यह विकल्प देना लोकतंत्र और देश चलाने के लिए बेहतर लोगों का चुनाव करने के लिए जरूरी था.
अदालत ने यह फ़ैसला पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया.
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