Drenched,
the girls wring their churidaar-kurta uniforms before reaching out for
their slippers.
Every
morning, Geeta Baria reaches the banks of the Hiran at 7 am sharp,
carrying her school books in a plastic bag. The Class IX girl from
Sajanpura village in the tribal-dominated Chhota Udepur district of
Gujarat also carries a Gohri, a 20-litre brass pot.
The
pot is precious as without it she and her five friends — all girls —
can’t reach their school. They hold on to the pot to stay afloat and
cross the 600 metre-wide river
Every
day, the father of one of the girls volunteers to swim with them across
the river. It takes them 30 minutes to cross the river — and reach
Sewada village. They then have to walk 5 km to their school, the Utavadi
Prathmik and Uchh Prathmik Shala in Utavadi village.
Drenched,
the girls wring their churidaar-kurta uniforms before reaching out for
their slippers, safely brought inside the pot.
About
125 children from 16 tribal villages of Sankheda taluka — Sajanpura,
Chamarwada, Vasan, Angadi, Kashipura, Kukreli, Doodhpur, Nandpur,
Sitaphali, Devla, Surajgola, Hatgol and Dharmapura among others — cross
the raging Hiran every day to get to the school.
The
students then sit through classes, in their drenched uniform, and make
the journey back home in Sankheda at 5 pm, taking the same water route.
मोदी के गुजरात में छात्र जान जोखिम में डालकर पहुंचते हैं स्कूल
नई दिल्ली:
चंद महीने पहले लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी अपने हर भाषण में
गुजरात मॉडल की तारीफ करते नहीं थकते थे। मोदी का जादू चला, देश में कमल
खिला, मोदी अब पीएम हैं। नेपाल से लेकर अमेरिका तक मोदी छाये हुए हैं।
लेकिन जिस गुजरात के वो चार बार सीएम रहे, वहीं के छोटा उदयपुर जिले के
सेवाड़ा समेत 16 गांव के 100 से ज्यादा लड़के-लड़कियां तौर कर रोजना स्कूल
जाने को मजबूर हैं। इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि शासन-प्रशासन की
बेरूखी के चलते ये बच्चे रोजना इसी तरह जान जोखिम में डालकर स्कूल पढऩे
जाते हैं। नौंवी क्लास में पढऩे वाली गीता भी अपने दोस्तों के साथ नदी पार
करने के लिए रोजाना सुबह सात बजे पहुंच जाती हैं।
इस दौरान इन लड़कियों में से एक के पिता सुरक्षा के लिहाज से उनके साथ
तैरकर नदी पार करते हैं। कई मौकों पर कुछ ग्रामीण नदी के दोनों तरफ खड़े
रहते हैं। नदी में पानी की मात्रा बढऩे या फिर पानी में कोई खतरनाक चीज
नजर आने की सूरत में वे बच्चों को अलर्ट करते हैं। नदी पार करने में इन
लोगों को 30 मिनट का वक्त लगता है। किताबों और स्कूल बैग को प्लास्टिक के
एक बैग में लपेटकर रखा जाता है। चप्पल को गोहरी में डाल दिया जाता है ताकि
वे सुरक्षित रहें।
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