Sunday, 23 March 2014

भारत में बन रहा है एशिया का सबसे बड़ा संरक्षित वन क्षेत्र :::: दक्षिणी कर्नाटक में बनरघाटा-नागरहोल क्षेत्र को संरक्षित बनाए जाने के साथ ही 7,050 वर्ग किलोमीटर का विशाल भूभाग एकमुश्त संरक्षित वन क्षेत्र बन जाएगा.

भारत में बन रहा है एशिया का सबसे बड़ा संरक्षित वन क्षेत्र 

दक्षिणी कर्नाटक में बनरघाटा-नागरहोल क्षेत्र को संरक्षित बनाए जाने के साथ ही 7,050 वर्ग किलोमीटर का विशाल भूभाग एकमुश्त संरक्षित वन क्षेत्र बन जाएगा.

 रविवार, 23 मार्च, 2014 को 01:19 IST तक के समाचार

कर्नाटक सरकार द्वारा अलग थलग पड़े संरक्षित वनों को एक दूसरे से जोड़ने की कोशिश एशिया के सबसे बड़े संरक्षित वन क्षेत्र में तब्दील हो सकती है.
2012 में जब कर्नाटक ने क़रीब 2,600 वर्ग किलोमीटर में फैले वन क्षेत्र को संरक्षित घोषित किया तभी से नेशनल पार्कों, बाघ संरक्षित क्षेत्रों और अभ्यारण्यों को जोड़ा जा रहा है.
यह संरक्षित क्षेत्र भारत के कुल भू-क्षेत्र का पांच प्रतिशत है और ऐसे कड़े क़ानूनों के अंतर्गत आता है जो भूमि के इस्तेमाल को बदलने की प्रक्रिया को मुश्किल बनाते हैं.
नेशनल पार्कों और टाइग़र रिज़र्व्स में मानव बस्तियों की इजाज़त नहीं है.
कर्नाटक ने पहले ही तीन संरक्षित वन क्षेत्र बनाए हैं, जो 10 लाख हेक्टेयर में वेस्टर्न घाट के समानांतर फैले हैं.
भारत के पश्चिमी समुद्र तट की ओर स्थित पर्वत शृंखला के पास के क्षेत्र को वेस्टर्न घाट कहा जाता है.
यूनेस्को ने इसे वैश्विक विरासत घोषित कर रखा है और यह दुनिया के आठ सबसे महत्वपूर्ण जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है.
दक्षिणी कर्नाटक में बनरघाटा-नागरहोल क्षेत्र को संरक्षित बनाए जाने के साथ ही 7,050 वर्ग किलोमीटर का विशाल भूभाग एकमुश्त संरक्षित वन क्षेत्र बन जाएगा.

मानव बस्तियां

इस भूभाग में केरल और तमिलनाडु से सटे हुए संरक्षित वन क्षेत्र भी आते हैं.
क़रीब 1,716 वर्ग किलोमीटर में फैला मध्य कर्नाटक का कुद्रेमुख-आघानाशिनी भूभाग इसमें मिलाया जा चुका है.
उत्तर में आंशी-भीमघाद का भूभाग कर्नाटक और गोवा में स्थित 2,242 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र से जोड़ा जा चुका है.
विशेषज्ञ कहते हैं कि वन संरक्षरण के लिए विरल मानव बसाहट एक बड़ा ख़तरा है.
सतत् वन क्षेत्र स्थानीय स्तर पर जीवों के लुप्त प्राय होने की संभावना को कम करता है.
एक दूसरे से जुड़े हुए वन क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के कारण स्थान बदलने वाले वन्य जीवों को अनुकूलन और उत्तरजीविता का बेहतर मौका देते हैं.
हालांकि भारत सरकार वेस्टर्न घाट को बचाने के बारे में विशेषज्ञ समूह के सुझावों से लगातार पीछे हट रही है लेकिन, कर्नाटक ने अपने बूते ही इस गुप्त जैविक खजाने को बचाने का उपक्रम किया है.
लेकिन, यह आसान नहीं है, क्योंकि स्थानीय लोगों को लगता है कि वन संरक्षण के क़ानूनों से उनके मूल अधिकार छिन जाएंगे.
विस्तारीकरण की इस योजना को शुरू करन वाले वन अधिकारी बीके सिंह बताते हैं कि शुरू से ही यह स्पष्ट कर दिया गया था लोगों के सभी अधिकार यथावत् रहेंगे.
कर्नाटक के मुख्य वन संरक्षक विनय लूथरा कहते हैं, ''संरक्षित वन क्षेत्र में उन्हीं इलाकों को शामिल किया गया है जहां स्थानीय निवासियों के अधिकारों का मामला हल कर लिया गया है. हालांकि इन इलाकों में भी हमने अपने फैसलों को लोगों पर नहीं थोपा है.''

खतरा

2011 में इस योजना का खाका बनाने वाली टीम के सदस्य रहे पूर्व वन अधिकारी एमएच स्वामीनाथ कहते हैं, ''इस विस्तारीकरण के दौरान हमने एक भी गांव को विस्थापित नहीं किया.''
उन्होंने बताया कि इस योजना का मकसद, जैव विविधता के धनी वनों और मुख्य वन्य जीव क्षेत्रों को भारी उद्योग, खनन और बांधों के निर्माण से सुरक्षा प्रदान करना था.
बीके सिंह का कहना है कि विस्तारित संरक्षित इलाकों में मौजूद गांव वन संरक्षण के लिए कोई गंभीर ख़तरा नहीं हैं.
इस योजना को कर्नाटक के वन अधिकारियों ने जुलाई 2011 में मंजूर किया था.
जनवरी 2012 में भारत सरकार के नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ से भी मंजूरी मिल गई और एक महीने के अंदर विस्तार की पहली योजना बांदीपुर टाइगर रिजर्व पर लागू की गई.
वन्य जीव वैज्ञानिक संजय गुब्बी कहते हैं, ''तब से लेकर अब तक तीन नेशनल पार्कों और पांच अभ्यारण्यों में लगभग 1,700 वर्ग किलोमीटर का इलाका शामिल किया जा चुका है. इसके अलावा एक नए अभ्यारण्य के रूप में 906 वर्ग किलोमीटर का इलाका भी अधिसूचित किया गया है.''
वो बताते हैं कि इस विस्तार के अलावा यह इलाका 15 नदियों को भी अपने में समेटे हुए है.

सबसे बड़ा नेटवर्क

बीके सिंह का कहना है कि कुछ निहित स्वार्थों के चलते लोगों को बरगलाए जाने की कोशिश हुई.
हालांकि महज दो साल में ही एक बहुत बड़े इलाके को जोड़ा गया लेकिन अभी भी बेंगलुरु और गोवा के बीच कुछ मुख्य कड़ियों को जोड़ा जाना बाकी है.
उदाहरण के लिए, पुष्पगिरी अभ्यारण्य में भारी संख्या में मौजूद छोटी विद्युत परियोजनाएं एलिफेंट कॉरिडोर के लिए ख़तरा हैं और प्रकृतिक जल प्रवाह को बर्बाद कर कर रही हैं.
अप्रैल 2013 में कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट को सूचित किया था कि वेस्टर्न घाट इलाके में छोटी जल विद्युत परियोजनाओं की इजाजत नहीं दी जाएगी और चल रही दो परियोजनाओं के अनुबंध को रद्द कर दिया था.
लेकिन, अभी भी बेंगलुरु-गोवा के बीच विशाल वन क्षेत्र को जोड़ना बाकी है जो फिलहाल तो सपना बना हुआ है.
यहां दो छोटे संरक्षित वन क्षेत्र हैं. मध्य और उत्तरी कर्नाटक में अघानाशिनी और बेदथी.
गुब्बी का कहना है कि मध्य और दक्षिणी कर्नाटक के भूभाग को कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में 15,000 वर्ग किलोमीटर में फैले संरक्षित वन क्षेत्र से जोड़ा जाना संभव है, जोकि अपने आप में और संभवतया एशिया का सबसे बड़ा संरक्षित इलाका होगा.

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