Tuesday 25 March 2014

क्या गुजरात में मुसलमान डरे हुए हैं?...गुजरात का सच , मुसलमानों का डर , पुलिस की इजाज़त(क्या आपके पास मदरसे में बच्चों से बात करने की अनुमति है)

क्या गुजरात में मुसलमान डरे हुए हैं?...गुजरात का सच , मुसलमानों का डर , पुलिस की इजाज़त(क्या आपके पास मदरसे में बच्चों से बात करने की अनुमति है)

क्या गुजरात में मुसलमान डरे हुए हैं?

 बुधवार, 26 मार्च, 2014 को 07:41 IST तक के समाचार

गुजरात में मुसलमान
शायद किसी समाजविज्ञानी ने इस पर काम किया हो कि डर के कितने स्वरूप हो सकते हैं.
वो किन रूपों में आपके सामने आ सकता है और उसके अर्थ कितने तरह से खुल सकते हैं.

अगर किताबों में दर्ज डर की परिभाषाएं अपने में पूर्ण होतीं, तो अगले डर का सामना करने पर इतनी बेचैनी न होती.
संभवतः तब यह समझा जा सकता था कि डर की जो सीमाएं निर्धारित हैं, हम उनसे बाहर नहीं जा रहे हैं. लेकिन ये परिभाषाएं बार-बार टूटती हैं. हैरान करती हैं.
हाल-फ़िलहाल छपी ख़बरों को आधार माना जाए, तो कहा जा सकता है कि गुजरात के मुसलमान कुछ डरे, कुछ सहमे से रहते हैं. पर इससे डर की पूरी शक्ल सामने नहीं आती.

ख़ामोशी

गुजरात के मुसलमान
विश्वास करना मुश्किल होता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व के इस दावे में दरअसल कई सुराख़ हैं कि गुजरात का मुसलमान बदल गया है, ख़ुशहाल है, बेफ़िक्र है और भाजपा को वोट देता है.

भरूच और सूरत के बीच, अंकलेश्वर से थोड़ा आगे खरोड़ गाँव हैं. आबादी क़रीब पाँच हज़ार. गाँव के मुखिया सिराज भाई हैं.
गाँव में एक बड़ा मदरसा है और यह राष्ट्रीय राजमार्ग से मात्र एक किलोमीटर के दायरे में है.
इस गाँव के पढ़े-लिखे मुसलमानों में भी जिस तरह की ख़ामोशी है, यक़ीन से बाहर है. वे सवालों के जवाब नहीं देना चाहते.

मदरसे में खुलापन

आम धारणा रही है कि दूरदराज़ के प्रांतों की क़िस्मत की कुंजी दिल्ली या केंद्र के हाथ में है. पिछले 30 साल में कई चुनावी समर कवर कर चुके वरिष्ठ पत्रकार  ने पाया है कि भारतीय राजनीति की कहानी अब इससे आगे बढ़ गई है. असल चुनावी अखाड़ा, उसके मुख्य पात्र और हाशिये पर नज़र आने वाले वोटर अब बदल चुके हैं. जैसे 'द हिंदूज़' की अमरीकी लेखक वेंडी डोनिगर कहती हैं, 'भारत में एक केंद्र नहीं है. कभी था ही नहीं. भारत के कई केंद्र हैं और हर केंद्र की अपनी परिधि है. एक केंद्र की परिधि पर नज़र आने वाला, दरअसल ख़ुद भी केंद्र में हो सकता है जिसकी अपनी परिधि हो.' चुनावी नतीजों, क्षेत्रीय दलों को मिली सफलता, केंद्र की सत्ता में छोटे दलों और गठबंधनों की भूमिका स्पष्ट है. आम चुनाव 2014 के दौरान मधुकर उपाध्याय बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए भारत के पश्चिमी तट गुजरात से शुरू करके महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र और ओडिशा से होते हुए पश्चिम बंगाल में सतह के नीचे की लहरों, प्रत्यक्ष और परोक्ष मुद्दों, वोटरों की आकांक्षाओं और सत्ता की लालसा लिए मुख्य पात्रों पर पैनी नज़र डाल रहे हैं.
राजनीति पर बात करना वे ग़लत मानते हैं और सवाल पूछने पर लोगों को शक की निगाह से देखते हैं.
एक उग्र प्रतिक्रिया तो यहाँ तक थी कि अगर मुँह खोला तो क्या करेगा, ज़्यादा से ज़्यादा गोली ही मार देगा.
इस सवाल पर कि मदरसे में तो खुलापन होना चाहिए, जैसा देवबंद में है. जवाब मिलता है कि वो देवबंद है ये खरोड़ है.
मदरसे या उसके बाहर तस्वीरें खींचना भी गुनाह है. जैसे ही कैमरा चलाया छात्रों ने चेहरे पर रूमाल बाँध लिए.

पुलिस की इजाज़त

हमारी टीम को किसी से बात नहीं करने दी गई और लगभग हाथ पकड़कर मदरसे से बाहर कर दिया गया.

इस दौरान एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या आपके पास मदरसे में बच्चों से बात करने की अनुमति है. आप बिना अनुमति के आए हैं और यह सरासर ग़लत है.
यह कहने पर कि बातचीत के लिए किसकी अनुमति की ज़रूरत होगी जवाब मिला- पुलिस की.
मदरसे के एक मुलाज़िम बात करने को तैयार हुए तो लोगों ने कभी हाथ खींचकर तो कभी इशारों में उन्हें ख़ामोश हो जाने के लिए कहा.

गुजरात का सच

गुजरात का विकास
उन्होंने तब भी बात की लेकिन मदरसे के बाहर लगी बेंच पर बैठकर.

खिचड़ी दाढ़ी वाले उस व्यक्ति ने कहा, "गुजरात का एक सच हाइवे पर रहता है लेकिन उसका दूसरा पहलू गाँव में है."
इन दावों के बरअक्स कि राज्य में चौबीस घंटा बिजली रहती है उसने कहा कि यह सच नहीं है, बिजली आती-जाती रहती है और गर्मियों में हाल बुरा हो जाता है.
उनकी नाराज़गी पानी की उपलब्धता को लेकर भी थी.

मुसलमानों का डर

गुजरात के मुसलमान
वह इस बात पर ख़फ़ा थे कि राज्य सरकार भुज और सौराष्ट्र, यहाँ तक की कच्छ को भी पानी मुहैया कराती है लेकिन भरूच और अंकलेश्वर के आसपास के इलाक़ों का उसे ख़्याल नहीं आता.

हालाँकि खरोड़ के मुसलमानों की सोच और प्रतिक्रिया का सामान्यीकरण नहीं किया जाना चाहिए.
मगर ऐसे दूसरे इलाक़े भी हैं जहाँ मुसलमान इतने ही डरे हुए हैं जितने खरोड़ मे हैं. बात गाँव और शहर की भी नहीं है कि उनकी सोच अलग होती है.
वडोदरा में चर्चित क्रिकेटर इरफ़ान और युसुफ़ पठान के पिता ने भी राजनीति पर बात करने से इनकार कर दिया.

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