Sunday 23 March 2014

DATE 23 मार्च 1923...आखिर भूल ही गए शहीदों की कुर्बानी (शहादत)? :::: शहीदी दिवस: भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव (शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बांकी निशा होगा...)

DATE 23 मार्च 1923...आखिर भूल ही गए शहीदों की कुर्बानी (शहादत)?
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शहीदी दिवस: भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव (शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बांकी निशा होगा...)

आखिर भूल ही गए हम भगत सिंह की कुर्बानी

नहीं याद करते शहीद भगत सिंह को?

नहीं याद करते शहीद भगत सिंह को?


शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बांकी निशा होगा...फांसी का फंदा चूमते वक्त शायद शहीदों ने आजाद भारत से यही उम्मीद पाली होगी। आजाद भी हुए पर अफसोस, शहीदों की शहादत चंद तिथियों में सिमट कर रह गई।

23 मार्च 1931 को शहीद भगत सिंह को पनाह देकर आगरा भले ही गौरवान्वित महसूस कर रहा हो, लेकिन नूरी दरवाजा स्थित मकान में अज्ञातवास काटने वाली यह ऐतिहासिक धरोहर ध्वस्त हो चली है।

वहीं नाई की मंडी के ठिकाने और हींग की मंडी में बम फैक्ट्री तो वर्तमान माहौल में गुम ही हो गई। शहीदी दिवस पर चंद लोग जरूर भगत सिंह को याद करते हैं, लेकिन प्रशासन और नेताओं ने इसे पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है।
क्रांतिकारियों का हुआ झगड़ा

17 दिसंबर 1927 में अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या के बाद सरदार भगत सिंह ने नूरी दरवाजा के एक मकान में अपने साथियों के साथ तीन महीने गुजारे। कुछ गद्दारों ने भगत के साथी फणिंद्रनाथ घोष की मुखबिरी कर दी।

उनकी गिरफ्तारी के बाद 28 जुलाई 1930 में लाहौर कोर्ट में मुकदमा चला। कोर्ट दस्तावेजों के अनुसार गवाहों ने घोष की शिनाख्त अमीर चंद के रूप में की।

कोर्ट ने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, देशराज, ग्याप्रसाद, बिजाय कुमार सिंहा, कुंदनलाल, ललित मुखर्जी क्रांतिकारियों को अमीर का साथी मान मुकदमा चलाया।


लाहौर कोर्ट में 14 ने दी गवाही


लाहौर कोर्ट में जज जीसी हिल्टन के समक्ष आगरा से 14 लोगों की गवाही हुई। इसमें आगरा के मकान मालिक लाला छन्ना मल, दुकानदार घासीराम, भरोसी लाल, रामस्वरूप, अब्दुल जबर, ज्वाला प्रसाद, दूध विक्रेता बेनी प्रसाद, नाई गेंदालाल, पड़ोसी मो. इरशाद अली खान, स्याही विक्रेता शेख अली बख्श, नारायण प्रसाद, तत्कालीन सदर पुलिस इंचार्ज पृथ्वी सिंह, दरोगा मिर्जा, अब्दुल अजीज बेग, परसियन स्कूल के हेडमास्टर अब्दुल हमीद खान।


शाम को दूध पीने निकलते थे भगत

नूरी गेट स्थित जिस मकान में भगत सिंह रहे, उसे अमीर चंद के नाम से घोष ने मकान मालिक छन्ना मल से पांच रुपये महीने पर लिया था।

खुद को छात्र बताते हुए क्रांतिकारी गतिविधियों को संचालित किया। इस दौरान हज्जाम, पत्र लिखने को स्याही, दैनिक वस्तुओं जैसे कार्यों के चलते दुकानदारों के संपर्क में आए। घोष और भगत सिंह साथियों सहित शाम को दूध पीने आते थे, दूध विक्रेता बेनी प्रसाद ने गवाही में इसकी पुष्टि की।
 

असेंबली धमाके को हींग की मंडी में बने बम

आगरा में क्रांतिकारियों के तीन अड्डे थे। हींग की मंडी सुई कटरा में मकान मालिक भरोसी लाल से दस रुपये प्रति महीने पर मकान किराए पर लिया।

एडवांस के तौर पर चार रुपये दिए, चंद दिनों बाद 16 रुपये और मकान खाली करते वक्त 10 रुपये दिए। नाई की मंडी में 15 फरवरी 1929 को मकान (संख्या 1488) मालिक नारायण से 13 रुपये प्रति माह पर मकान लिया।

यहां चोरी-छुपे बम बनाए जाते थे, असेंबली धमाके को यहीं बम तैयार हुए।
  
 

क्रांतिकारियों का हुआ झगड़ा

हींग की मंडी में क्रांतिकारी छत पर किताब पढ़ने के बहाने दुश्मनों पर नजर रखते थे। इस पर पड़ोसी इरशाद अली को लगा कि युवक उनकी जनानियों को ताकते हैं। इसको लेकर क्रांतिकारियों और इरशाद में झगड़ा हुआ।

इरशाद की शिकायत पर दरोगा मिर्जा अब्दुल अजीज बेग ने मकान और युवकों की तलाशी ली, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। कोर्ट में गवाही के दौरान मिर्जा ने घोष की शिनाख्त कर मकान में सात युवकों की पुष्टि की।

शहीद भगत सिंह द्वार करने की मांग
नूरी दरवाजा को शहीद भगत सिंह द्वार का नामकरण की लंबे समय से मांग चल रही है, लेकिन प्रशासन और एडीए ने इस मांग को भी नजरअंदाज कर दिया। बुजुर्ग क्षेत्रीय निवासी रतन भारती का कहना है कि इसके लिए शासन तक पत्र लिखे जा चुके हैं।
 

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