Friday, 18 April 2014

INTERVIEW: Nobel India Venkatraman(नोबेल विजेता):- भारत को वैज्ञानिक शक्ति बनने से रोक रहा है भ्रष्टाचार

INTERVIEW: Nobel India Venkatraman(नोबेल विजेता):-  भारत को वैज्ञानिक शक्ति बनने से रोक रहा है भ्रष्टाचार


हाल ही में लंदन में हुए एशियाई पुरस्कार कार्यक्रम में जाना हुआ. समारोह देर तक चला, रात के करीब 11 बज चुके थे और मैंने निकलने के लिए अपना सामान बाँध लिया था. लेकिन तभी मेरी नज़र कोने में गेरुए रंग का कुर्ता पहने चश्मे वाले एक व्यक्ति पर गई. उनके चेहरे पर धीमी सी मुस्कान थी. भीड़ में होते हुए भी वे अकेले से ही थे.
अचानक अख़बारों में देखी उनकी तस्वीर दिमाग़ में कौंधी और सामान वहीं गिरा मैं जा पहुँची उनसे बात करने. मेरे सामने नोबेल पुरस्कार विजेता वेंटकरमन रामाकृष्णन खड़े थे.
करीब पाँच साले पहले भारतीय मूल के अमरीकी नागरिक वेंटकरमन रामाकृष्णन को संयुक्त रूप से 'मॉलिक्यूलर बायोलॉजी' में काम के लिए नोबेल पुरस्कार पुरस्कार मिला था. प्यार से लोग उन्हें वेंकी बुलाते हैं. उन्होंने  विशेष बात की.
आज जहाँ भारत को उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति माना जाता है वहीं विज्ञान में भारत का नाम ज़्यादा नहीं लिया जाता.
विज्ञान और शोध के क्षेत्र में आप तभी तरक्की कर सकते हैं जब आर्थिक आधार बहुत मज़बूत हो. आप सोचिए कि अमरीका भी आर्थिक महाशक्ति बनने के बाद ही वैज्ञानिक शक्ति बना. अगर पैसा न हो, आधारभूत ढाँचा न हो तो वैज्ञानिक शोध पीछे छूट जाता है. साथ ही इसके लिए वैज्ञानिक उद्यमशीलता की परपंरा की ज़रूरत होती है जो ब्रिटेन जैसे देशों में हैं. इस सबमें वक्त लगता है. भारत को भी लगेगा. हाँ मैं ये ज़रूर मानता हूँ कि भारत में पिछले 20 सालों में पहले के मुकाबले वैज्ञानिक तरक्की हुई है. मैं काफ़ी आशावान हूँ.

लेकिन वजह क्या है भारत के पीछे छूटने की.
भारत के लिए सबसे बड़ी समस्या है भ्रष्टाचार. लोगों को भर्ती करने तक में भ्रष्टाचार है. चंद उच्च वैज्ञानिक संस्थानों में ऐसा नहीं होता है लेकिन नीचे की ओर जाएँ तो ये समस्या दिखती है. इसे सुलझाना होगा. दूसरी बड़ी समस्या है आधारभूत ढाँचा. अगर रहने को घर नहीं है, बच्चों के लिए अच्छे स्कूल नहीं है तो अच्छे हुनरमंद लोगों को देश में रख पाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे कई भारतीय होंगे जो विदेशों से वापस भारत आना चाहेंगे और विज्ञान के क्षेत्र में काम करना चाहेंगे. लेकिन अगर रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इतनी दिक्कते होंगी तो वे शायद भारत नहीं आएँगे.
चीन कहाँ खड़ा दिखता है भारत के मुकाबले ?
चीन भारत से मीलों आगे निकल चुका है. मैं एक ही बार चीन गया हूँ लेकिन वहाँ की सुविधाओं, प्लानिंग को देखकर मैं हैरान रहा गया. लेकिन भारत के पक्ष में एक बात ज़रूर जाती है और वो है यहाँ की ओपन सोसाइटी. यहाँ सबको अपनी बात रखने का हक़ है, बहस करने का हक़ है और लोगों को इसके नकारात्मक नतीजे नहीं भुगतने पड़ते. ऐसे खुले माहौल में आप सृजनात्मक होकर काम कर सकते हैं. अगर भारत अपनी कुछ समस्याओं को सुलझा ले तो बहुत आगे तक जा सकता है.
नोबेल पुरस्कार के बाद आपकी ज़िंदगी कैसे बदली है ?
आप चाहें तो शोहरत और अवॉर्ड आपकी ज़िंदगी बदल सकते हैं. लेकिन मैं तो वैसा ही हूँ. मैं आज भी अपनी प्रयोगशाला चलाता हूँ. मेरे पास आज भी गाड़ी नहीं है. हम पहले की तरह आज भी अच्छे शोधपत्र छापते रहते हैं. ज़िंदगी पहले जैसी ही है.
(रामाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के चिदंबरम में हुआ था. उन्होंने बड़ौदा विश्वविद्यालय और फ़िर ओहायो, कैलिफ़ोर्निया और सैन डियागो के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की. उन्हें 2010 में पद्म विभूषण की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था)

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