RTI से भूचाल: वाजपेयी-मोदी की गुजरात दंगों के दौरान बातचीत के खुलासे से 'भूचाल' लाने की तैयारी
राजनीति में बढ़ेगी और ज्यादा गर्मी
आम चुनाव में वर्ष 2002 में गुजरात में हुए
सांप्रदायिक दंगों के दौरान तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और राज्य के
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी केबीच हुए पत्र व्यवहार का मामला मुद्दा बन सकता
है।
दरअसल पीएमओ के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने पत्र को सार्वजनिक करने पर मोदी और गुजरात सरकार की राय मांगने की बात कही है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले सीपीआईओ ने आरटीआई के तहत पत्र व्यवहार की मांगी गई जानकारी देने से इंकार कर दिया था।
हालांकि आरटीआई के आदेवनकर्ता का अपीलीय प्राधिकरण के यहां अपील किए जाने के बाद पीएमओ के डायरेक्टर ने सीपीआईओ के फैसले को पलट दिया था। माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर गुजरात सरकार और मोदी के रुख को कांग्रेस चुनावी मुद्दा बनाने से नहीं चूकेगी। हालांकि सियासी मुद्दा बनने से रोकने के लिए गुजरात सरकार और मोदी पीएमओ को अपनी राय देने में देरी कर सकते हैं।
दरअसल पीएमओ के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने पत्र को सार्वजनिक करने पर मोदी और गुजरात सरकार की राय मांगने की बात कही है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले सीपीआईओ ने आरटीआई के तहत पत्र व्यवहार की मांगी गई जानकारी देने से इंकार कर दिया था।
हालांकि आरटीआई के आदेवनकर्ता का अपीलीय प्राधिकरण के यहां अपील किए जाने के बाद पीएमओ के डायरेक्टर ने सीपीआईओ के फैसले को पलट दिया था। माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर गुजरात सरकार और मोदी के रुख को कांग्रेस चुनावी मुद्दा बनाने से नहीं चूकेगी। हालांकि सियासी मुद्दा बनने से रोकने के लिए गुजरात सरकार और मोदी पीएमओ को अपनी राय देने में देरी कर सकते हैं।
पहले सूचना देने से किया जा चुका है इंकार
उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष एक आवेदनकार्ता ने गुजरात
दंगों के दौरान 27 फरवरी 2002 और 30 फरवरी 2002 के बीच कानून व्यवस्था की
स्थिति के बारे में पीएमओ और गुजरात सरकार के बीच हुए पत्र व्यवहार का
ब्यौरा मांगा था।
आवेदनकर्ता ने खासतौर पर वाजपेयी और मोदी के बीच संवाद के आदान प्रदान की भी जानकारी मांगी थी। मगर तब पीएमओ के सीपीआईओ एसई रिजवी ने आरटीआई कानूनी की धारा 8 (1) पैरा दो कहा हवाला देते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया था। बाद में यह मामला बतौर अपील पीएमओ के डायरेक्टर कृष्ण कुमार के समक्ष पहुंचा।
अपीलकर्ता का कहना था कि चूंकि यह मामला बेहद पुराना है और इसका पूछताछ, गिरफ्तारी या अभियोजन पर कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है, इसलिए पत्र व्यवहार को सार्वजनिक किया जाए।
मामले की सुनवाई करते हुए कुमार ने सीपीआईओ के फैसले को पलट दिया और उसे आवेदनकर्ता को अतिरिक्त ब्यौरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। उन्होंने बीते महीने ही 15 दिनों के अंदर अतिरिक्त ब्यौरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।
आवेदनकर्ता ने खासतौर पर वाजपेयी और मोदी के बीच संवाद के आदान प्रदान की भी जानकारी मांगी थी। मगर तब पीएमओ के सीपीआईओ एसई रिजवी ने आरटीआई कानूनी की धारा 8 (1) पैरा दो कहा हवाला देते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया था। बाद में यह मामला बतौर अपील पीएमओ के डायरेक्टर कृष्ण कुमार के समक्ष पहुंचा।
अपीलकर्ता का कहना था कि चूंकि यह मामला बेहद पुराना है और इसका पूछताछ, गिरफ्तारी या अभियोजन पर कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है, इसलिए पत्र व्यवहार को सार्वजनिक किया जाए।
मामले की सुनवाई करते हुए कुमार ने सीपीआईओ के फैसले को पलट दिया और उसे आवेदनकर्ता को अतिरिक्त ब्यौरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। उन्होंने बीते महीने ही 15 दिनों के अंदर अतिरिक्त ब्यौरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।
मोदी से मांगी है राय
अब पीएमओ डायरेक्टर और अपीलीय प्राधिकरण के निर्देश के बाद रिचवी ने आवेदनकर्ता को बताया कि इससे संबंधित जानकारी देने केलिए तीसरे पक्ष से अर्थात् मोदी और गुजरात सरकार की राय ली जा रही है।
रिजवी ने आवेदनकर्ता को आश्वस्त किया है कि राय प्राप्प्त होने के बाद पीएमओ उन्हें प्रक्रिया के तहत सूचना उपलब्ध कराएगा। उल्लेखनीय है कि पत्र व्यवहार सार्वजनिक करने पर राज्य सरकार की राजमंदी या इंकार दोनों ही बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
हालांकि संभावना यह भी है पत्र व्यवहार को चुनावी मुद्दा बनने से बचाने के लिए गुजरात सरकार और मोदी पीएमओ को अपनी राय देने में देरी कर सकते हैं।
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