व्यापमं घोटाला : संकट में है शिवराज का ताज,...1st BJP Scam Found!!!...Is it is Start of Scam in new Government? |
Sunday, 29 June 2014 |
पराध शास्त्र के अनुसार अपराध के बाद हर अपराधी साक्ष्य मिटाने की पूरी कोशिश करता है, मगर एक बड़ा साक्ष्य अवश्य छोड़ जाता है। मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले में भी यही हो रहा है। व्यापमं यानी व्यावसायिक परीक्षा मंडल के घोटाले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसटीएफ) ने इस घोटाले के राजनीतिक किरदारों को बचाने की लगातार हरसंभव कोशिश की है। मगर घोटाले की व्यापकता और हाई कोर्ट के दबाव के बाद उंगली मुख्यमंत्री निवास की तरफ भी उठ रही है। मुख्यमंत्री की पत्नी के मायके से परिवहन विभाग में सत्रह लोगों की भर्ती सामने आने पर मुख्यमंत्री ने दावा किया कि वे ईमानदार हैं और ईमानदार रहेंगे। अगले दिन उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी के मायके से एक भी व्यक्ति की भर्ती नहीं हुई है। इस खबर के साथ ही अखबारों में यह खबर भी थी कि परिवहन विभाग में इस भर्ती की हार्ड डिस्क और दस्तावेज गायब हो गए हैं। 24 जून को मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल की बैठक को स्थगित कर दिल्ली में भाजपा हाई कमान को सफाई देने के बाद जब वापस भोपाल लौटे तो अखबारों में यह खबर भी आई कि प्रधानमंत्री कार्यालय की इस घोटाले पर कड़ी नजर है। पीएमओ में तैनात मध्य प्रदेश काडर के आइपीएस रामानुजम को इस घोटाले से संबंधित सारे दस्तावेज और समाचारों की कतरनें एकत्रित करने और रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। समाचार यह भी है कि इस अधिकारी ने 24 जून को ही प्रधानमंत्री को इस घोटाले से संबंधित रिपोर्ट सौंपी है और शायद यह रिपोर्ट शिवराज सिंह चौहान की चिंता बढ़ाने वाली है। फिर शिवराज ही नहीं, संघ के सुरेश सोनी भी शंका के घेरे में है। 25 जून के अखबारों में एक ओर मुख्यमंत्री की ओर से कांग्रेस के प्रवक्ता पर मानहानि का दावा करने की खबर है, तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री की भांजी रितु चौहान को डिप्टी कलेक्टर बनाने के लिए नियम बदलने और रिकार्ड को दो साल के बजाय छह माह में ही नष्ट कर देने का प्रावधान करने की खबर भी है। व्यापमं घोटाला प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के समय से ही शुरू हो गया था। घोटाले में पकड़े गए परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी और नितिन महेंद्रा की गिरफ्तारी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री उमा भारती का नाम सामने आया था। तब विपक्ष से भी पहले, उमा भारती ने इस घोटाले की सीबीआइ से जांच कराने की मांग करते हुए एक तीर से दो निशाने साधे थे। या तो प्रदेश सरकार उनके बचाव में आए या फिर सीबीआइ की जांच में शिवराज सिंह चौहान भी लपेटे में आएं। शिवराज ने उमा भारती को बचाने का रास्ता चुना। उमा भारती का नाम सामने आने पर प्रदेश के पुलिस प्रमुख नंदन दुबे उनके बंगले पर सफाई देने पहुंचे। फिर पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीनारायण शर्मा का नाम सामने आया। पंकज त्रिवेदी और नितिन महेंद्रा ने बताया कि किस तरह उनके बंगले से बच्चों को मेडिकल और इंजीनियरिंग की परीक्षा पास करवाने और नौकरियों की भर्ती में पास करवाने के लिए पर्चियां जाया करती थीं। उन्हें पास करवाने के बदले में वे पैसे भी मंत्री जी के निवास पर पहुंचाया करते थे। नाम आने के बाद उनके ओएसडी ओपी शुक्ला को तो गिरफ्तार कर लिया गया। मगर लक्ष्मीनारायण शर्मा से पूछताछ हाई कोर्ट के आदेश के बाद हुई। दो बार की पेशी के बाद भी उन्हें तब गिरफ्तार किया गया, जब हाई कोर्ट ने इस पर एसटीएफ को फटकार लगाई। पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीनारायण शर्मा की गिरफ्तारी भाजपा पर लगे दागों को धोने की बजाय पूरी चादर ही बदरंग कर गई है। शर्मा की गिरफ्तारी पर मुख्यमंत्री का बयान आया कि कानून अपना काम करेगा, पर गिरफ्तार नेता के बयान भारी पड़े। गिरफ्तार होने से पहले शर्मा ने झुंझलाकर कहा था कि चलो मैं ही गिरफ्तार हो जाता हूं, वरना बड़े-बड़े लोगों को गिरफ्तार होना पड़ेगा। गिरफ्तारी के बाद अदालत में पेश होने आए शर्मा ने तो एसटीएफ और भाजपा दोनों को ही कठघरे में खड़ा कर डाला। नाम लिए बगैर उन्होंने वहां पत्रकारों से कहा कि एसटीएफ में दम हो तो भाजपा के एक बड़े नेता और तीन आइएएस अधिकारियों को पकड़ कर बताए। भाजपा ने अब शर्मा से पल्ला झाड़ लिया है। व्यापमं घोटाले की जांच घूम-फिर कर मुख्यमंत्री निवास के आसपास आकर अटक जाती है। खनन कारोबारी सुधीर शर्मा दो बार की पूछताछ और गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद बाद फरार हैं। शर्मा खनन माफिया हैं। प्रदेश में दिलीप बिल्डर्स के नाम से उनके सड़क निर्माण के ठेके भी हैं। भाजपा की सरकार बनने से पहले तक सुधीर शर्मा और दिलीप सूर्यवंशी दोनों ही संघ के कार्यकर्ता थे, एक मामूली शिक्षाकर्मी थे और दूसरे दूध का धंधा करते थे। मगर दो साल पहले उनके यहां आयकर के छापे में हजारों करोड़ की अकूत संपत्ति का पता चला। भाजपा ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री को बदनाम करने के लिए ही आयकर विभाग ने यह कार्रवाई की है। मगर अब जब शिवराज सिंह चौहान की सरकार को ही सुधीर शर्मा पर पांच हजार का इनाम घोषित करना पड़ रहा है, तो समझा जा सकता है कि बचाव के
सारे रास्ते बंद हो गए हैं। सुधीर शर्मा पर वन विभाग में आरक्षकों की भर्ती
करवाने का आरोप है। जाहिर है कि ऐसी भर्तियां करवाकर वे अपने खनन के अवैध
कारोबार को ही बढ़ावा देना चाहते थे।जब सीबीआइ जांच की मांग उठी
थी, तब एसटीएफ का गठन कर मुख्यमंत्री ने अपने बचाव की चादर ओढ़ ली थी। मगर
यह चादर ऐसी है कि सिर ढंकने पर पांव बाहर आ जाते हैं और पांव ढंकते ही सिर
बाहर हो जाता है। इसी हंगामे के बीच मुख्यमंत्री के पूर्व निजी सचिव प्रेम
प्रसाद का नाम भी इस घोटाले में आ गया है। उन पर 2012 में अपनी बेटी को
पीएमटी में पास करवाने का आरोप है। एसटीएफ ने इन्हें बचाने के लिए हर संभव
कोशिश की है। मगर नितिन महेंद्रा के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क में उनका नाम आ
जाने के बाद कोई रास्ता ही नहीं बचता था। एसटीएफ जब भी किसी को पूछताछ के
लिए बुलाती है तो बाकायदा प्रेस में बयान देती है। फिर पूछताछ का ब्योरा भी
मीडिया को दिया जाता है। मगर प्रेम प्रसाद और उनकी बेटी से दो बार गुपचुप
तरीके से पूछताछ की गई। किसके दबाव में ऐसा हुआ? तेरह जून को हाई कोर्ट को
दी गई अपनी प्रगति-रिपोर्ट में एसटीएफ ने बताया था कि प्रेम प्रसाद और उनकी
बेटी से पूछताछ अभी पूरी नहीं हुई है। सही मायने में यह उन्हें सचेत करने
का तरीका था। इसके बाद प्रेम प्रसाद और उनकी बेटी को जमानत मिल गई है।
पीएमटी की परीक्षा पास करने के लिए 15 लाख रुपए और मेरिट में आने के लिए 25 लाख से लेकर 35 लाख तक की बोलियां पिछले कई सालों से लग रही थी। जाहिर है कि इससे प्रदेश के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ हुआ है। पीईटी की परीक्षा के लिए भी इसी तरह की बोलियां लगीं। नौकरियों के लिए तो नियम ही बदल डाले गए। यह नियम सामान्य प्रशासन विभाग बदलता है जो शुरू से ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास है। क्या कभी सोचा जा सकता है कि नियमों में बदलाव भी होता रहे और मुख्यमंत्री की जानकारी में भी न हो। कोयला घोटाले की बाबत जब मनमोहन सिंह ऐसी अनभिज्ञता जाहिर करते थे तो भाजपा उन्हें कठघरे में खड़ा करती थी। मगर अब? 1980 में अर्जुन सिंह के कार्यकाल में नियम बनाया गया था कि रोजगार कार्यालय में पंजीयन जरूरी है। इस नियम को हटा दिया गया। पुलिस, परिवहन और अन्य आरक्षकों की भर्ती के लिए लिखित परीक्षा के बाद होने वाले शारीरिक टेस्ट को हटा दिया गया। प्रदेश के बाहर के छात्रों को परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी गई। इतना ही नहीं, परीक्षा में पास होने वाले छात्रों के रिकार्ड को दो साल तक सहेज कर रखने का प्रावधान था, उसे घटा कर पहले एक साल और बाद में छह माह कर दिया गया। इसके बाद भी मुख्यमंत्री खुद को पाक-साफ बता रहे हैं। एसटीएफ भी विवादों के घेरे में है। इसके कई अफसर ही घोटाले में लिप्त पाए गए हैं। भोपाल में हबीबगंज के सीएसपी पर इंदौर में राजेंद्र नगर का थाना प्रभारी रहते हुए चार फर्जी छात्रों को पकड़ने के बाद भी एफआइआर दर्ज नहीं करने का आरोप है। ग्वालियर के निलंबित सीएसपी रक्षपाल सिंह यादव भी इस टीम में थे। बाद में उन्हीं का बेटा अजीत भी पीएमटी में इसी तरह पास हुआ। कुछ सदस्यों के निकटतम रिश्तेदार घोटाले में लिप्त हैं। जांच के नाम पर जो भी हो रहा है, वह हाई कोर्ट की लगातार फटकार की वजह से। एसटीएफ की मजबूरी हो गई है। घोटाले की आंच मुख्यमंत्री निवास तक पहुंचने के बाद एसटीएफ ने आनन-फानन में तीन सौ से ज्यादा छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों की गिरफ्तारी की है। इनमें कुछ तो ऐसे छात्र हैं, जिन्होंने केवल परीक्षा दी मगर पास नहीं हुए। कुछ तो गांव के ऐसे दलित और गरीब किसान परिवारों से हैं, जिनकी आर्थिक हालत ही पंद्रह लाख रुपए देने की नहीं है। एसटीएफ की इस कार्रवाई ने शंका को कम करने की बजाय जनता के आक्रोश को हवा दी है। वैसे एसटीएफ भी बड़ा घोटाला बन गया है। पीड़ितों के अनुसार, किसी के बच्चे का नाम पीएमटी घोटाले में आने के बाद एसटीएफ की जांच मुख्य अपराधी तक पहुंचने की कम और छात्रों के नाम जानने की ज्यादा होती है। आरोप है कि सामने आए नामों पर कार्रवाई करने के बजाय एसटीएफ उनसे सौदेबाजी करती है। नरेंद्र मोदी के अच्छे दिनों के साथ ही शिवराज सिंह के बुरे दिनों की शुरुआत हो गई है। बात केवल इतनी नहीं है कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस घटनाक्रम पर नजर रखे हुए है, मामला यह भी है कि कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता के पास पहुंचने वाले दस्तावेज शिवराज सरकार के ही किन्हीं लोगों या भाजपा के ही किसी नेता द्वारा पहुंचाए जा रहे हैं। इन घोटालों में संघ का नाम भी आया है। संघ ने भी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही है। जब भी ऐसा होता है, संघ स्वयं को स्वयंसेवक से अलग कर लेता है। |
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