Tuesday, 1 July 2014

Editorial: UPSE भाषाई अन्याय-वर्ष 2011 में सीसैट या ऐप्टिट्यूड परीक्षा के नाम पर एक ऐसी प्रणाली थोप दी गई जिससे हिंदी माध्यम से पढ़े विद्यार्थियों के लिए सफल हो पाना बहुत मुश्किल हो गया। आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं।

Editorial:
UPSE भाषाई अन्याय-वर्ष 2011 में सीसैट या ऐप्टिट्यूड परीक्षा के नाम पर एक ऐसी प्रणाली थोप दी गई जिससे हिंदी माध्यम से पढ़े विद्यार्थियों के लिए सफल हो पाना बहुत मुश्किल हो गया। आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं।
1 JULY 2014 

 संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पद्धति में हिंदी पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ स्वाभाविक ही आवाज उठने लगी है। बीते शुक्रवार को हजारों छात्र दिल्ली की सड़कों पर उतर आए। मुखर्जी नगर से वे प्रधानमंत्री निवास की ओर बढ़े, प्रधानमंत्री को अपनी तकलीफ से अवगत कराने के लिए। लेकिन वे हिंदी-प्रेमी प्रधानमंत्री से नहीं मिल सके, दिल्ली पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक दिया। पर जैसे यह काफी न हो, विरोध जताने के लिए ज्यादा छात्र जमा न हो सकें, इसके लिए चार मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए। जनलोकपाल आंदोलन और सोलह दिसंबर 2012 के सामूहिक बलात्कार कांड के बाद चले नागरिक प्रतिरोध के दौरान भी यह तरकीब आजमाई गई थी। तब भाजपा ने उसे निहायत अलोकतांत्रिक कदम करार देते हुए उसकी निंदा की थी। 

पर अब वह चुप्पी साधे हुए है। मेट्रो स्टेशन बंद करने के अलावा, यह भी हुआ कि बहुत-से छात्रों को पुलिस ने संसद मार्ग थाने में बंद कर दिया। कई छात्रों का कहना है कि पुलिस ने अपनी ओर से पीने के पानी का इंतजाम करना तो दूर, उलटे उनके पास जो खाने-पीने की चीजें थीं उन्हें जब्त कर लिया। आखिर इन छात्रों का गुनाह क्या है? वे संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में कोई तीन साल से हो रहे एक भारी भेदभाव का मुद््दा उठा रहे हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2011 में सीसैट या ऐप्टिट्यूड परीक्षा के नाम पर एक ऐसी प्रणाली थोप दी गई जिससे हिंदी माध्यम से पढ़े विद्यार्थियों के लिए सफल हो पाना बहुत मुश्किल हो गया। आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। हाल में घोषित संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षा परिणाम बताते हैं कि उनकी सफलता की दर घट कर महज दो फीसद रह गई है। 

दरअसल, आरंभिक परीक्षा में ही उनके लिए बाधाएं खड़ी कर दी गई हैं, जिसके चलते मुख्य परीक्षा में शामिल हो पाने का उनका आंकड़ा बहुत तेजी से कम हुआ है। नई पद्धति में ऐच्छिक विषय के प्रश्नपत्र के स्थान पर दो सौ अंकों का एक नया प्रश्नपत्र सीसैट लाया गया, जिसमें तीस अंक अंगरेजी समझने की कुशलता के होते हैं। पर यही एकसमस्या नहीं है। गद्यांश आधारित तीस से चालीस प्रश्न बेहद दुरूह हिंदी में दिए होते हैं, जो किसी के पल्ले नहीं पड़ते। प्रश्नपत्र अंगरेजी में तैयार किए जाते हैं, और हिंदी में पूछे गए प्रश्न अंगरेजी से अनुवाद किए गए होते हैं। समझ से परे की भाषा में किया गया अनुवाद कोई साजिश है या हिंदी के प्रति नौकरशाही के बर्ताव की ही एक और मिसाल? जो हो, अंगरेजी समझने की कुशलता के प्रश्नों के बाद दुरूह हिंदी में पूछे गए प्रश्नों की वजह से भी हिंदी माध्यम के विद्यार्थी वंचित रह जाते हैं।

 इस तरह उनका विरोध संघ लोक सेवा आयोग की भर्ती-परीक्षा में अंगरेजी का दबदबा बढ़ाए जाने को लेकर तो है ही, हिंदी को अंगरेजी की छाया बना देने को लेकर भी है। आरंभिक और मुख्य परीक्षा में उनके साथ होने वाले भेदभाव की रही-सही कसर साक्षात्कार के समय पूरी कर दी जाती है। साक्षात्कार लेने वालों में अमूमन ऐसे लोग होते हैं जो हिंदी नहीं जानते, या जानते भी हों तो अभ्यर्थियों को अंगरेजी में जवाब देने के लिए बाध्य करते हैं। इस सब के खिलाफ जिन छात्रों ने आवाज उठाई है वे संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पद्धति की एक बड़ी विसंगति की ओर ध्यान दिला रहे हैं। इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। पर यह बेहद अफसोस की बात है कि हिंदी-प्रेम का दम भरने वाली सरकार के किसी प्रतिनिधि ने उन छात्रों से मिलना जरूरी नहीं समझा।    

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