Tuesday, 1 July 2014

अलगाववादियों से बात, नक्सलियों से क्यों नहीं? :::: नक्सलियों से नहीं होगी बात: राजनाथ सिंह

अलगाववादियों से बात, नक्सलियों से क्यों नहीं? ::::  नक्सलियों से नहीं होगी बात: राजनाथ सिंह

छत्तीसगढ़, नक्सली
भारत सरकार माओवादियों से किसी भी तरह की बातचीत के पक्ष में नहीं है. सरकार मानती है कि इसका कोई फ़ायदा नहीं, क्योंकि माओवादियों के पास कोई 'एजेंडा' नहीं है.
शुक्रवार को दिल्ली में नक्सल प्रभावित 10 राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ बैठक के बाद केंद्र सरकार इस नतीजे पर पहुंची.
मगर हैरानी यह है कि सरकार ने पूर्वोत्तर के कुछ अलगाववादी संगठनों से बातचीत के संकेत दिए हैं.
गृह राज्यमंत्री किरन रिजीजू ने साफ़ किया कि यह बातचीत अनौपचारिक है, पर उन्होंने कहा कि उन्होंने अधिकारियों को क्लिक करें पूर्वोत्तर भारत के गुटों से औपचारिक बातचीत शुरू करने के निर्देश दिए हैं.
उल्फा, एनएससीएन और भारत सरकार के बीच कुछ मुद्दों को लेकर आज भी मामला अटका हुआ है. गृह मंत्रालय को उम्मीद है कि औपचारिक बातचीत से ये मनमुटाव दूर कर लिए जाएंगे.

भरोसे का सवाल

हालांकि क्लिक करें राजनाथ सिंह और उनके गृह राज्यमंत्री के बयान ने सामाजिक हलकों में बहस छेड़ दी है. विशेषज्ञों को लगता है कि सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है.
MODI RAJNATH
सरकार मानती है कि क्लिक करें माओवादियों का अपना एजेंडा है और वो बातचीत पर भरोसा नहीं करते जबकि जानकार कहते हैं कि वार्ता को लेकर सरकार की मंशा भी साफ़ नहीं रही है.
माओवादियों का आरोप है कि वर्ष 2005 में आंध्र प्रदेश सरकार से बातचीत के दौरान वार्ता कर लौट रहे शीर्ष माओवादी नेताओं को मुठभेड़ में मार दिया गया था.
क्लिक करें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता क्लिक करें अर्जुन मुंडा कहते हैं कि नक्सलवाद से निपटने के लिए एक व्यापक योजना चाहिए, जिसमें विकास और लोगों के राजनीतिक मुद्दे भी शामिल किएं.
मुंडा के मुताबिक़ सिर्फ़ पुलिस कार्रवाई से नक्सलवाद नहीं ख़त्म हो सकता.
माओवादी हमला
पूर्वोत्तर भारत और नक्सलवाद पर नज़र बनाए रखने वाले पत्रकार किसलय भट्टाचार्य का कहना है कि दूरदर्शिता की कमी से नक्सलवाद की समस्या फैलती चली गई.

तालमेल की कमी

वह कहते हैं, "कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री के बीच तालमेल की कमी इससे साफ़ दिखाई पड़ती है."
किसलय के अनुसार पिछले दो दशकों में पूर्वोत्तर राज्यों में हो रहे विद्रोह में काफ़ी बदलाव आया है. 50 से ज़्यादा विद्रोही गुट या तो युद्ध विराम या फिर बातचीत की मेज़ पर आ गए हैं.
छत्तीसगढ़, नक्सली, सुरक्षाबल
फरवरी 2009 में केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाक़ों के लिए एक 'इंटीग्रेटेड एक्शन प्लान' की घोषणा की थी ताकि इन इलाक़ों में ज़मीनी स्तर पर विकास हो सके और लोगों का भरोसा सरकार पर बन सके.
जिन राज्यों में इसे लागू किया गया, उनमें झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश शामिल हैं.
इस योजना के बावजूद नक्सली हिंसा में तेज़ी बनी रही जबकि योजना के अंतर्गत ख़ासा हिस्सा नक्सल विरोधी अभियान में शामिल पुलिस और अर्धसैनिक बलों के लिए दिया गया है.

नक्सलियों से नहीं होगी बात: राजनाथ सिंह

 शुक्रवार, 27 जून, 2014
राजनाथ सिंह
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि नक्सलियों से कोई बातचीत नहीं होगी.
शुक्रवार को गृहमंत्री ने नक्सल प्रभावित दस राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस प्रमुखों के साथ बैठक की.
बैठक में उन्होंने केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) को केंद्र सरकार की ओर से पूरा सहयोग देने का वादा किया.

राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार नक्सलियों से बात नहीं करेगी, बल्कि एक संतुलित नज़रिया अपनाएगी.
उन्होंने कहा कि यदि नक्सली हमले करते हैं तो सुरक्ष बल जवाबी कार्रवाई करेंगे.
उन्होंने यह भी कहा कि नक्सल विरोधी अभियानों में लगे सुरक्षा बलों को केंद्र अतिरिक्त भत्ता देगा.

भविष्य की रणनीति

नक्सली ट्रेनिंग
बैठक में छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मुख्य सचिव और डीजीपी ने अपने अपने प्रदेशों की स्थितियों के बारे में गृहमंत्री को अवगत कराया.

बैठक के दौरान सरकार ने भविष्य की नक्सल विरोधी रणनीति पर चर्चा की और इन इलाक़ों में सड़क परियोजनाओं और 2,199 मोबाइल टॉवरों को लगाए जाने से संबंधित एकीकृत कार्ययोजना का ख़ाका पेश किया गया.
लगभग दस हज़ार करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली पांच हज़ार किमी लंबी सड़कों का निर्माण अभी कई चरणों में चल रहा है और 3,000 करोड़ रुपए की लागत से मोबाइल फ़ोन टॉवरों के निर्माण की योजना अभी शुरू की जानी है.

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