Monday 30 June 2014

EDITORIAL: NGO ने देश का नुकसान ही ज्यादा किया है भला कम ; पिछले दस वर्षों में देसी एनजीओ ने ऐसी योजनाएं रोकीं, जिसके कारण न सिर्फ देश के विकास को नुकसान पहुंचा

EDITORIAL: NGO ने देश का नुकसान ही ज्यादा किया है भला कम ; पिछले दस वर्षों में देसी एनजीओ ने ऐसी योजनाएं रोकीं, जिसके कारण न सिर्फ देश के विकास को नुकसान पहुंचा




NGO ARE WRONG OR RIGHT ?
OR 
IS NGO'S ARE GOOD FOR INDIA'S HEALTH ?
जब से गृह मंत्रालय ने जानकारी दी है कि गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को विदेशों से करोड़ों रुपये मिलते हैं देश का विकास रोकने के लिए, मीडिया में हाय-तौबा मचने लग गई है। हम मीडिया वालों के दिलों में हमदर्दी है इन गैर सरकारी संस्थाओं के लिए, क्योंकि हम इनको समाज सेवक मानते हैं। पर आपकी यह लेखक एनजीओ के समर्थकों में नहीं है। मुझे आईबी की रिपोर्ट पर पूरा विश्वास है, क्योंकि मैंने पिछले कुछ वर्षों में बहुत करीब से देखा है, इन एनजीओ संस्थाओं का काम।

इन संस्थाओं को सोनिया गांधी ने इतनी अहमियत दे रखी थी कि उनकी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के तकरीबन जितने सदस्य थे, सब एनजीओ से जुड़े हुए थे। इतने ताकतवर बन गए थे वे कि बड़ी-बड़ी योजनाओं को रोकने का काम कर लेते थे बिना केंद्र सरकार की इजाजत लिए। ऐसा करके इन्होंने बेहिसाब नुकसान किया है देश का। बांध बनते-बनते रुक गए, सड़कों का निर्माण रोका गया और ऐसी महान योजनाएं रोकी गईं, जो बन जातीं, तो अच्छे दिन बहुत पहले ही आ गए होते।

ओडिशा की नियामगिरि पहाड़ियों पर वेदांता कंपनी ने एल्यूमीनियम कारखाने पर 11,000 करोड़ रुपये का निवेश किया इस विश्वास पर कि वहां बॉक्साइट के भंडार दबे पड़े थे। वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल ने मुझे एक इंटरव्यू में कहा था कि एल्यूमीनियम के अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम आधे हो सकते थे इस कारखाने के निर्माण से, क्योंकि एल्यूमीनियम का उत्पादन बॉक्साइट की खानों के नजदीक होता।



ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि सोनिया जी की एनएसी ने पर्यावरण बचाने के बहाने कारखाना बंद करवा दिया। राहुल गांधी खुद गए ओडिशा आदिवासियों को यह आश्वासन देने कि वह किसी भी हालत में उनकी जमीन का अधिग्रहण नहीं होने देंगे। बॉक्साइट के भंडारों पर किसी का कोई अधिकार नहीं था, लेकिन इन आदिवासियों को खूब भड़काया एनजीओ संस्थाओं ने, सो उन्होंने अपना अधिकार जताया नियामगिरि पहाड़ियों पर यह कहकर कि इनको भगवान मानते हैं वे।

विदेशी एनजीओ की पहुंच लंबी है इस देश में। सो आईबी रिपोर्ट के छपने के बाद केंद्र सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने बयान दिए हैं रिपोर्ट के खिलाफ। कहते हैं ये कि एनजीओ क्षेत्र की इतनी ताकत ही नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकें। विनम्रता से अर्ज करता हूं मैं कि ये लोग झूठ बोल रहे हैं। पिछले दस वर्षों में देसी एनजीओ ने ऐसी योजनाएं रोकीं, जिसके कारण न सिर्फ देश के विकास को नुकसान पहुंचा, साथ ही, चीन जैसे देशों को फायदा भी पहुंचता गया। इस्पात के कारखाने रोके गए हैं पर्यावरण के नाम पर, शहरों का निर्माण रोका गया है और परमाणु बिजलीघर तैयार होने के बाद रोके गए हैं एनजीओ के विरोध के कारण। इन देसी एनजीओ से जब पूछा जाता है कि इनके पैसे कहां से आते हैं, तो इनको बहुत तकलीफ होती है। न इनके पास आमदनी का हिसाब रहता है, न खर्चों का। ये ऐसे लोग हैं, जिन्होंने इस देश के गरीबों के नाम पर शोहरत और पैसा कमाया है। इनकी जितनी तहकीकात करे केंद्र सरकार, कम होगी, क्योंकि इन्होंने इस देश का नुकसान ज्यादा और भला कम किया है।

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