Sunday 10 August 2014

ग़ज़ा: और मज़बूत होने की कोशिश में हमास...इसकी वजह हैं हमास की वो मांगें, जिनका सरोकार ग़ज़ा के आम लोगों से है. #GAZA #Israel

ग़ज़ा: और मज़बूत होने की कोशिश में हमास...इसकी वजह हैं हमास की वो मांगें, जिनका सरोकार ग़ज़ा के आम लोगों से है. #GAZA #Israel


 रविवार, 10 अगस्त, 2014 को 02:54 IST


ग़ज़ा में इसराइल के लगातार हमलों के बावजूद वहां हमास की स्थिति मज़बूत हो रही है.
इसकी वजह हैं हमास की वो मांगें, जिनका सरोकार ग़ज़ा के आम लोगों से है.

हमास को जहां दुनिया के कई देश एक चरमपंथी संगठन के तौर पर देखते हैं, वहीं ग़ज़ा के लोगों को लगता है कि वो ग़ज़ा की नाकेबंदी खत्म कराने के लिए संघर्ष कर रहा है.

विस्तार से पढ़िए ये विश्लेषण

इसराइल का कहना है कि ग़ज़ा में उसका सैन्य अभियान फ़लस्तीनी संगठन हमास के चरमपंथियों के ख़िलाफ़ है.
महीने भर से जारी इस संकट में अब तक दो हज़ार से ज़्यादा जानें जा चुकी हैं और मरने वालों में अधिकतर फ़लस्तीनी आम लोग हैं.

हर तरफ़ से संघर्ष विराम की अपीलें हो रही हैं. लेकिन हमास का कहना है कि जब तक ग़ज़ा की नाकेबंदी ख़त्म नहीं होती और इसराइली जेलों में बंद फलस्तीनी क़ैदियों को रिहाई नहीं किया जाता, संघर्ष विराम नहीं हो सकता.
हमास के प्रवक्ता फ़ावज़ी बारहूम कहते हैं, ''अभी हम घुटनभरी घेराबंदी और प्रतिबंधों के बीच रह रहे हैं. उन्होंने ग़ज़ा को बाकी दुनिया से काट दिया है. इस तरह के अपराध न्यायोचित नहीं हैं.''
ग़ज़ा की घेराबंदी उस समय और कड़ी कर दी गई, जब चुनाव जीतने के एक साल बाद 2007 में हमास ने इस पर नियंत्रण हासिल कर लिया.

हमास का समर्थन

इसराइल हमास को चरमपंथी संगठन मानता है. हमास के संविधान में इसराइल के विनाश की प्रतिबद्धता जताई गई है.
संघर्ष विराम के लिए अभी मिस्र प्रमुख भूमिका निभा रहा है. इसके बाद भी ग़ज़ा पर मिस्र की नीति और हमास के ख़राब संबंधों को देखते हुए संघर्ष विराम लागू करना काफी कठिन होगा.
हमास चाहता है कि मिस्र रफ़ाह सीमा को दोबारा पूरी तरह से खोल दे. उसका कहना है कि वह लड़ाई तब तक नहीं रोकेगा, जब तक पूरी तरह समझौता नहीं हो जाता.

ग़ज़ा में रहने वाले, किसी भी विचारधारा को मानने वाले, आम फ़लस्तीनी उसके इस मत का समर्थन करते हैं.
हनीन नाम के एक स्वयंसेवक का कहना है, ''हम एक ऐसा संघर्ष-विराम चाहते हैं, जो हमें अपने मानवाधिकार दे और इस घेरेबंदी को ख़त्म करे. हम चाहते हैं कि रफ़ाह क्रॉसिंग फिर खुले ताकि हम फिर यात्रा कर सकें.''
ग़ज़ा के लिए रफ़ाह को बाकी दुनिया का रास्ता माना जाता है.
मिस्र की नई सरकार हमास पर अपने अशांत सिनई क्षेत्र में इस्लामी चरमपंथियों को मदद करने का आरोप लगाती है, लेकिन हमास इससे इनकार करता है.

ग़ज़ा के हालात

इसराइल के ख़िलाफ़ हथियारबंद विरोध और प्रतिरोध की विचारधारा ग़ज़ा के कुछ युवा फ़लस्तीनियों की समझ में आ गई है, जहाँ की अधिकांश आबादी शरणार्थियों की है.

उन्होंने बीते पांच वर्षों में तीन ख़ूनी युद्धों को देखा है.
हालांकि ग़ज़ा के कुछ निवासी इन विपरीत हालात के लिए हमास की सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
ग़ज़ा में ताज़ा संघर्ष छिड़ने से पहले हमास की स्थिति कमज़ोर थी, क्योंकि अरब में बग़ावत के दौरान ईरान और सीरिया जैसे उसके स्थानीय संरक्षकों की भी हालत कमज़ोर हो गई थी.
उसके पास ग़ज़ा में अपने 40 हज़ार कर्मचारियों को वेतन देने के भी पैसे नहीं थे.

Hamas leader
अला नाम के एक शिक्षक बताते हैं कि हमास सरकार से उन्हें पिछले नौ महीने से पूरी तनख़्वाह नहीं मिली है. इसलिए इन कठिन परिस्थितियों में हमारा काम कर पाना कठिन है.
लंबे दौर में अभी यह देखना बाकी है कि क्या हमास इसराइल के साथ ताज़ा संघर्ष में कम या अधिक समर्थन के साथ उभरता है या नहीं.
उम्मीद की जा रही है कि किसी विस्तृत या दीर्घ अवधि के समझौते का श्रेय हमास ले सकता है और वो यह कहने लायक हो सकता है कि ग़ज़ा के सैकड़ों नागरिकों की मौत और बड़े पैमाने पर हुई तबाही सार्थक हुई है.

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