Tuesday 17 December 2013

PROUD TO BE AN INDIAN SPECIALLY FOR GIRLS: भारत की 43 वर्षीय मार्था, पोलियो मुक्त देश के योगदान में WHO ग्लोबल लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित

PROUD TO BE AN INDIAN SPECIALLY FOR GIRLS:  भारत की 43 वर्षीय मार्था, पोलियो मुक्त देश के योगदान में WHO ग्लोबल लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित

बिहार: जहाँ जाना 'सज़ा' थी, वहाँ मिला बड़ा इनाम


भारत 2012 के जनवरी में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पोलियो मुक्त देश घोषित द्वारा किया जा चुका है. इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि को हासिल करने में लाखों स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का योगदान रहा है.
इन कार्यकर्ताओं में बेहद ख़ास हैं मार्था डोडराय. पिछले आठ सालों से वह पोलियो अभियान के दौरान पूरे लगन के साथ काम कर रही हैं. इस दौरान चाहे मौसम कोई भी हो वह मीलों पैदल चलने, खुद नाव चलाकर नदियां पार करने, दुरुह रास्तों से गुजरने से पीछे नहीं हटीं.

उनके समर्पण और लगन को तब दुनिया के स्तर पर सम्मान मिला और सराहा गया जब पिछले महीने 6 नवंबर को उन्हें न्यूयॉर्क में ग्लोबल लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित किया गया.
हर साल यह सम्मान यूनाइटेड नेशन फ़ाउंडेशन द्वारा दिया जाता है. 43 वर्षीय मार्था का चयन फाउंनडेशन ने दुनिया भर में पोलियो के लिए काम करने वाले 22 लाख से अधिक फ्रंटलाइन पोलियो वर्कर्स में से किया था.

मार्था की इस उपलब्धि पर पूछने पर बिहार में विश्व स्वस्थ्य संगठन के क्षेत्रीय टीम लीडर डॉक्टर मधुप वाजपेई ने कहा, "मार्था को वह मिला जिसकी वह हकदार थीं. उनसे हमलोग प्रेरणा लेते हैं. दुर्गम क्षेत्र में पोलियो उन्मूलन के लिए उन्होंने जैसा काम किया है वह मिसाल है."
मूल रूप से झारखंड के पलामू जिले की रहने वाली मार्था 2005 में बतौर एएनएम (ऑक्जिलरी नर्स मिडवाइफ़) के रूप में काम करने के लिए बिहार आई थीं. यहां इन्हें दरभंगा जिले के दुर्गम प्रखंड कुशेश्वर स्थान में काम करने के लिए भेजा गया.
"मार्था को वह मिला जिसकी वह हकदार थीं. उनसे हमलोग प्रेरणा लेते हैं. दुर्गम क्षेत्र में पोलियों उन्मूलन के उन्होंने जैसा काम किया है वह मिसाल है."
डॉ. मधुप वाजपेयी, विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्षेत्रीय टीम लीडर
इस प्रखंड के बारे में आज भी यहां के ग्रामीण दावा करते हैं कि नदियों और जल-जमाव का क्षेत्र होने के कारण कई क्षेत्रों में आज भी एक किलोमीटर से ज्यादा पक्की सड़क लगातार मिलना मुश्किल है.

कुशेश्वर स्थान में कमाल

ऐसे इलाके में काम करने वाली मार्था के लगन के बारे में कुशेश्वर स्थान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर भगवान दास कुछ यूं बताते हैं, "मार्था में असीम उर्जा है. वह काम के समय घड़ी नहीं देखती हैं. जिन दिनों पोलियो की खुराक पिलानी होती हैं, वे दुर्गम क्षेत्र होने के कारण सुबह चार बजे ही क्षेत्र के लिए निकल पड़ती हैं."
वे आगे गर्व से कहते हैं कि जिस क्षेत्र में ड्यूटी मिलना दंड के समान माना जाता है, उसे मार्था ने दुनिया के नक्शे पर स्थापित कर दिया है.
मार्था जिस इलाके में काम करने के लिए आई थीं, वह इलाका न केवल उनके घर से सैकड़ों मील की दूरी पर था बल्कि वहां की भाषा, संस्कृति और परिवेश सब कुछ अलग था. ऐसा नहीं था कि यहां उनके लिए शुरुआत बहुत आसान रही.
वह बताती हैं कि यातायात सुविधाओं की दृष्टि से दुरुह इलाका होने के कारण उन्हें भी शुरुआत में काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ा. ख़ासकर उन्हें बाढ़ के दिनों में ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता था. साथ ही यहां की भाषा समझने-समझाने में उन्हें छह महीने लगे.

मुश्किलों का असर नहीं

साथ ही भारत सहित दुनिया के कुछ इलाकों में अभिभावक बच्चों को क्लिक करें पोलियो की खुराक देने से मना करते रहे हैं.
मार्था ने बताया कि अपने इलाके में भी उन्हें शुरुआत में कुछ मुस्लिम परिवारों की ओर से ऐसे ही इनकार का सामना करना पड़ा था लेकिन बाद में वे पोलियो खुराक के महत्व को समझने लगे.
समय बीतने के साथ धीरे-धीरे सहकर्मियों के सहयोग, लगन और जिम्मेवारी के एहसास ने उनकी मुश्किलों भरी राह आसान कर दीं.
और उसी राह में पिछले आठ सालों से बिना थके, बिना किसी शिकन के काम करते मार्था ग्लोबल लीडरशिप अवार्ड के मंजिल तक पहुंची हैं.

सितारों का साथ

जब न्यूयॉर्क में मार्था सम्मानित हो रहीं थीं तब सिने स्टार शत्रुघ्न सिन्हा और प्रियंका चोपड़ा भी वहीं थे. मार्था की उपलब्धि सुनकर वे उनसे मिलने आए. दोनों ने मिलकर मार्था का हौसला बढ़ाया.
"दूसरी बीमारियों को दूर करने के लिए भी सरकार को पोलियो जैसा समर्पित अभियान चलाना चाहिए."
मार्था, यूनाइटेड नेशन फाउंडेशन से सम्मानित स्वास्थ्य कार्यकर्ता
इन दोनों से मिलना और तारीफ़ सुनना मार्था के लिए भी सपना सच होने जैसा था क्योंकि अब तक वह अपने प्रिय अभिनेताओं को सिर्फ पर्दे और टीवी पर देखती रही थीं. प्रियंका से मिलना उनके लिए इस मायने में खास रहा कि उनकी बड़ी बेटी का नाम भी प्रियंका है.
विश्व स्तर पर सम्मानित होने के बावजूद मार्था के पैर अब भी पूरी तरह से ज़मीन पर टिके हुए हैं. इसका उदाहरण देते हुए उनके सहकर्मी संगीत कुमार सिंह ने बताया कि पिछले महीने 16 नवंबर को दरभंगा में होने वाले मिथिला महोत्सव में उन्हें बतौर उदघाटनकर्ता आमंत्रित किया गया. लेकिन मार्था ने यह कहते हुए इससे इनकार कर दिया कि उन्हें पोलियो अभियान के सिलसिले में अपने क्षेत्र में जाना है.

बहुत काम बाक़ी है

तीन बेटियों की मां मार्था के पति बोअस बारजो सेवानिवृत फ़ौजी अफ़सर हैं. उन्होंने और उनके घरवालों ने हर कदम पर मार्था का हौसला बढ़ाया है. मार्था की ख्वाहिश है कि उनकी बेटियों में से कम-से-कम एक डाक्टर बन कर उनकी ही तरह लोगों की सेवा करे.
उनकी यह भी ख्वाहिश है कि वे अपने गृह राज्य लौटकर बिहार की तरह झारखंड में भी एक स्वस्थ समाज बनाने में अपना योगदान दे सकें, स्वास्थ्य के मसले पर लोगों को जागरुक कर सकें.
पोलियो को तो उनके कार्यक्षेत्र सहित पूरे देश से भगा दिया गया है. लेकिन साथ ही मार्था का यह भी मानना है कि उनके इलाके में आज भी कुपोषण, कालाजार, टीबी, कुष्ठ रोग आदि मिटाने के लिए भी जोरदार अभियान चलाने की ज़रूरत है.
मार्था जोर देकर कहती हैं, "इन बीमारियों को दूर करने के लिए भी सरकार को पोलियो जैसा समर्पित अभियान चलाना चाहिए."

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