देहरादून:हिसाब-किताब आपसे भी कुछ बाकी रह गया मोदी जी!
राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड में गंगा मइया के
किनारे (बकौल मोदी) आकर प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग नरेंद्रभाई मोदी ने
देवभूमि की दैवस्वभावी जनता को किसी अवतारी पुरुष की तरह अपना दर्शन-प्रवचन
दिया।
कई वायदे किए, उनकी भावनाएं उकेरी और मर्म तक पैठ की कोशिश की, विकास की जड़ी-बूटी भी सुंघाई। साथ ही उनके साथ हो रहे नाइंसाफी का हिसाब-किताब भी बताया।
दोष भी गिनाए
देवभूमि के दारिद्र या अविकास के पीछे जनता को उसके दोष भी गिनाए कि कैसे उत्तराखंड पीछे रह गया, क्योंकि यहां की जनता ने कांग्रेस को सत्ता सौंपी और कैसे छत्तीसगढ़ विकास के रास्ते पर बढ़ता चला गया वजह यह कि वहां जनता ने स्थिर यानी बार-बार भाजपा सरकार बनवाई।
मोदी ने बहुगुणा सरकार का तो एजेंडा सेट कर दिया लेकिन हिसाब-किताब के माहिर मोदी इस तथ्य को नजरअंदाज कर गए कि उत्तराखंड में राज करते कांग्रेस को सात साल हो गए तो सात साल भाजपा भी राज कर चुकी है।
बीजेपी की पहली सरकार के प्रभारी थे
इन 14 सालों में 2000 से 2004 तक चार साल केंद्र में भाजपा का भी राज रहा और भाजपा की पहली सरकार के समय उत्तराखंड के प्रभारी भी वही थे। इस दौरान विकास के उनके मॉडल पर क्या कुछ हो सकता था जो नहीं हो सका, इसका भी उन्हें हिसाब-किताब देना चाहिए। तब केंद्र सरकार के इंडिया शाइनिंग के धूमधड़ाके में उत्तराखंड क्यों नहीं जगह पा सका था।
मोदी का एक हिसाब और गड़बड़ाया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उत्तराखंड से सेनाओं में जवान तो जा रहे हैं लेकिन अफसर नहीं।
सैन्य अफसरों की भारी-भरकम कमी उत्तराखंड ऐसे पूरी कर सकता है कि यहां सैन्य शिक्षण की संस्थाएं खुलें। दो दिन पहले ही आया यह आंकड़ा भी उनकी पार्टी के स्थानीय नेताओं ने उन्हें याद नहीं दिलाया कि किसी राज्य की आबादी के अनुपात में सेना को अफसर देने में उत्तराखंड नंबर वन है।
चलिए कुछ और हिसाब-किताब करें। अलग राज्य बना तो केंद्र की अटल बिहारी सरकार स्थायी राजधानी तय कर सकती थी क्योंकि केंद्र व राज्य दोनों जगह उसी की सरकारें थीं।
लेकिन इस मुद्दे को राजनीतिक नासूर बनने के लिए छोड़ दिया गया। बात एक और अधूरे काम की। भाजपा की केंद्र-राज्य की सरकारों ने हाईकोर्ट बनाया भी तो नैनीताल में। उच्च स्तर पर न्याय को महंगा और बेहद दूर कर दिया गया।
सरकारों के काम ऐसे हो गए हैं कि जब-तब उन्हें चुनौती मिलती रहती है और सरकारी अफसर आए दिन नैनीताल के चक्कर काटते रहते हैं और चक्कर की आड़ में न जाने क्या-क्या करते रहते हैं। यदि हाईकोर्ट ऊधमसिंहनगर या हरिद्वार में होता तो शायद आज पौड़ी के सांसद सतपाल महाराज नरेंद्रनगर में उच्च न्यायालय की खंडपीठ की मांग नहीं करते।
गढ़वाल से कुमाऊं जाने के लिए यूपी के रास्ते जाना पड़ता है। व्यावसायिक वाहनों का टैक्स उत्तराखंड की जगह यूपी के हिस्से में आता है। देहरादून और हल्द्वानी के बीच की दूरी कम करने के लिए एक कॉरीडोर बनाकर यूपी जाने की मजबूरी खत्म करने का प्रस्ताव था लेकिन काम नहीं हुआ। मोदी को इसका हिसाब अपनी तत्कालीन सरकारों से लेना चाहिए।
पार्टी संगठन में काम करते हुए मोदी उत्तराखंड के प्रभारी रहे। बकौल मोदी, उन्हें बचपन से ही पहाड़ों से प्यार था, हिमालयी जीवन और पहाड़ी पवित्रता उन्हें आकर्षित करते रहे हैं। इस दौरान उन्होंने यहां से बहुत कुछ लिया, अब लौटाने की बारी है। लौटाना कैसे है, मोदी ने यह भी बता दिया कि उन्हें लौटाने लायक बनाओ। यहां भी हिसाब-किताब।
मोदी ने पॉवर प्रोजेक्ट के जरिए पहाड़ का पानी और जवानी इसके काम आए, इसका भी फॉर्मूला दिया। उन्हीं की पार्टी की उमा भारती जैसी दिग्गज इसके खिलाफ जान देने की हद तक उतारू हैं, उनसे वे हिसाब कैसे करेंगे, इसका भी रास्ता नहीं दिखाया।
मोदी ने अपने भाषण के दौरान इस राज्य की जड़ी-बूटी के लिहाज से समृद्धि का उल्लेख करते हुए वह किस्सा भी सुनाया कि कैसे जब लक्ष्मण मूर्छित हुए और उन्हें संजीवनी की जरूरत पड़ी तो उन्हें उत्तराखंड के पहाड़ों पर ही वह बूटी मिली। नेताओं को स्मृतिदोष होता है, मोदी इससे अलग नहीं हैं, लेकिन हिसाब लगाने के लिए याददाश्त तेज करने वाली बहुतेरी बूटियां उत्तराखंड में अभी भी हैं।
कई वायदे किए, उनकी भावनाएं उकेरी और मर्म तक पैठ की कोशिश की, विकास की जड़ी-बूटी भी सुंघाई। साथ ही उनके साथ हो रहे नाइंसाफी का हिसाब-किताब भी बताया।
दोष भी गिनाए
देवभूमि के दारिद्र या अविकास के पीछे जनता को उसके दोष भी गिनाए कि कैसे उत्तराखंड पीछे रह गया, क्योंकि यहां की जनता ने कांग्रेस को सत्ता सौंपी और कैसे छत्तीसगढ़ विकास के रास्ते पर बढ़ता चला गया वजह यह कि वहां जनता ने स्थिर यानी बार-बार भाजपा सरकार बनवाई।
मोदी ने बहुगुणा सरकार का तो एजेंडा सेट कर दिया लेकिन हिसाब-किताब के माहिर मोदी इस तथ्य को नजरअंदाज कर गए कि उत्तराखंड में राज करते कांग्रेस को सात साल हो गए तो सात साल भाजपा भी राज कर चुकी है।
बीजेपी की पहली सरकार के प्रभारी थे
इन 14 सालों में 2000 से 2004 तक चार साल केंद्र में भाजपा का भी राज रहा और भाजपा की पहली सरकार के समय उत्तराखंड के प्रभारी भी वही थे। इस दौरान विकास के उनके मॉडल पर क्या कुछ हो सकता था जो नहीं हो सका, इसका भी उन्हें हिसाब-किताब देना चाहिए। तब केंद्र सरकार के इंडिया शाइनिंग के धूमधड़ाके में उत्तराखंड क्यों नहीं जगह पा सका था।
मोदी का एक हिसाब और गड़बड़ाया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उत्तराखंड से सेनाओं में जवान तो जा रहे हैं लेकिन अफसर नहीं।
सैन्य अफसरों की भारी-भरकम कमी उत्तराखंड ऐसे पूरी कर सकता है कि यहां सैन्य शिक्षण की संस्थाएं खुलें। दो दिन पहले ही आया यह आंकड़ा भी उनकी पार्टी के स्थानीय नेताओं ने उन्हें याद नहीं दिलाया कि किसी राज्य की आबादी के अनुपात में सेना को अफसर देने में उत्तराखंड नंबर वन है।
चलिए कुछ और हिसाब-किताब करें। अलग राज्य बना तो केंद्र की अटल बिहारी सरकार स्थायी राजधानी तय कर सकती थी क्योंकि केंद्र व राज्य दोनों जगह उसी की सरकारें थीं।
लेकिन इस मुद्दे को राजनीतिक नासूर बनने के लिए छोड़ दिया गया। बात एक और अधूरे काम की। भाजपा की केंद्र-राज्य की सरकारों ने हाईकोर्ट बनाया भी तो नैनीताल में। उच्च स्तर पर न्याय को महंगा और बेहद दूर कर दिया गया।
सरकारों के काम ऐसे हो गए हैं कि जब-तब उन्हें चुनौती मिलती रहती है और सरकारी अफसर आए दिन नैनीताल के चक्कर काटते रहते हैं और चक्कर की आड़ में न जाने क्या-क्या करते रहते हैं। यदि हाईकोर्ट ऊधमसिंहनगर या हरिद्वार में होता तो शायद आज पौड़ी के सांसद सतपाल महाराज नरेंद्रनगर में उच्च न्यायालय की खंडपीठ की मांग नहीं करते।
गढ़वाल से कुमाऊं जाने के लिए यूपी के रास्ते जाना पड़ता है। व्यावसायिक वाहनों का टैक्स उत्तराखंड की जगह यूपी के हिस्से में आता है। देहरादून और हल्द्वानी के बीच की दूरी कम करने के लिए एक कॉरीडोर बनाकर यूपी जाने की मजबूरी खत्म करने का प्रस्ताव था लेकिन काम नहीं हुआ। मोदी को इसका हिसाब अपनी तत्कालीन सरकारों से लेना चाहिए।
पार्टी संगठन में काम करते हुए मोदी उत्तराखंड के प्रभारी रहे। बकौल मोदी, उन्हें बचपन से ही पहाड़ों से प्यार था, हिमालयी जीवन और पहाड़ी पवित्रता उन्हें आकर्षित करते रहे हैं। इस दौरान उन्होंने यहां से बहुत कुछ लिया, अब लौटाने की बारी है। लौटाना कैसे है, मोदी ने यह भी बता दिया कि उन्हें लौटाने लायक बनाओ। यहां भी हिसाब-किताब।
मोदी ने पॉवर प्रोजेक्ट के जरिए पहाड़ का पानी और जवानी इसके काम आए, इसका भी फॉर्मूला दिया। उन्हीं की पार्टी की उमा भारती जैसी दिग्गज इसके खिलाफ जान देने की हद तक उतारू हैं, उनसे वे हिसाब कैसे करेंगे, इसका भी रास्ता नहीं दिखाया।
मोदी ने अपने भाषण के दौरान इस राज्य की जड़ी-बूटी के लिहाज से समृद्धि का उल्लेख करते हुए वह किस्सा भी सुनाया कि कैसे जब लक्ष्मण मूर्छित हुए और उन्हें संजीवनी की जरूरत पड़ी तो उन्हें उत्तराखंड के पहाड़ों पर ही वह बूटी मिली। नेताओं को स्मृतिदोष होता है, मोदी इससे अलग नहीं हैं, लेकिन हिसाब लगाने के लिए याददाश्त तेज करने वाली बहुतेरी बूटियां उत्तराखंड में अभी भी हैं।
No comments:
Post a Comment