Thursday, 19 December 2013

AstraZeneca के बाद अब GSK की भी डॉक्टरों को भुगतान,दवा प्रोत्साहन,दवा बिक्री के व्यक्तिगत लक्ष्य व अन्य तरीक़ों को भी बंद (ख़त्म) करने की घोषणा

 AstraZeneca के बाद अब GSK की भी डॉक्टरों को भुगतान,दवा प्रोत्साहन,दवा बिक्री के व्यक्तिगत लक्ष्य व अन्य तरीक़ों को भी बंद (ख़त्म) करने की घोषणा

क्या दवा बाज़ार में बंद होगी रिश्वतखोरी?

 शुक्रवार, 20 दिसंबर, 2013 को 07:21 IST तक के समाचार

बिक्री बढ़ाने के लिए जीएसके ने चिकित्सकों को भुगतान करने की नीति से तौबा कर लिया है.
जानीमानी दवा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके) ने अपनी दवाओं के प्रचार के लिए डॉक्टरों को भुगतान बंद करने की घोषणा की है.
दुनिया की बड़ी कंपनियों में शुमार और ब्रिटेन की सबसे बड़ी दवा कंपनी जीएसके के इस क़दम से दवा बाज़ार में एक नई उम्मीद की किरण जगी है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने मंगलवार को कंपनी के हवाले से कहा कि जीएसके मेडिकल कॉंफ्रेंस में हिस्सेदारी करने वाले स्वास्थ्य क्षेत्र के पेशेवरों को भुगतान करना बंद कर देगी.
जीएसके के इस क़दम से दूसरी कंपनियों को भी ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है क्योंकि हाल के समय में आक्रामक मार्केटिंग रणनीतियों के लिए पूरे दवा उद्योग को तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है.

अच्छी शुरुआत

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के सम्पादक फियोना गोल्डी ने रॉयटर्स को बताया कि, ''जीएसके ने एक बढ़िया शुरुआत की है और उम्मीद की जानी चाहिए कि बाकी दवा निर्माता कंपनियां भी इसका अनुसरण करेंगी.''

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल चिकित्सा के पेशे में दवाओं को प्रमोट करने के लिए अपनाए जाने वाले तरीकों के ख़िलाफ़ अभियान चलाने में आगे रहा है.
फियोना गोल्डी के अनुसार, ''दवाओं को व्यावसायिक दबावों से पूर्ण रूप से मुक्त करने की राह अभी लंबी है. डॉक्टर और उनके समूह सहज ही समझौता कर लेने के आदी हो गए हैं.''

जीएसके अकेली नहीं

हालांकि एक अन्य कंपनी एस्ट्राजेनेका ने 2011 में कहा था वो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में डॉक्टरों को हिस्सेदार बनाने के लिए दिए जाने वाले भुगतान को ख़त्म करने जा रही है.
एस्ट्राजेनेका
लेकिन किसी भी अन्य दवा कंपनी ने उसका अनुसरण नहीं किया.
लेकिन जीएसके का फ़ैसला एस्ट्राजेनेका के क़दम से आगे जाता है. कंपनी ने न सिर्फ सम्मेलनों में भुगतान को निरस्त करने की बात कही है बल्कि बाज़ार में दवा प्रोत्साहन से संबंधित अन्य तरीक़ों को भी बंद करने की भी घोषणा की है.
एमर्स्टडम स्थित एनजीओ हैल्थ एक्शन इंटरनेशनल के प्रमुख टिम रीड बड़ी दवा कंपनियों के कटु आलोचक हैं. उनका मानना है कि जीएसके के इस क़दम से बाक़ी कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा.

स्वनियमन कितना कारगर?

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने टिम रीड के हवाले से कहा, ''मैं समझता हूं कि अन्य कंपनियां इसका अनुसरण करेंगी लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा है दवा बाज़ार स्वनियमन पर ज़ोर देता है. जबकि दवा प्रोत्साहन को कारगर ढंग से रोकने का केवल एक ही तरीक़ा है- राज्य द्वारा मजबूत क़ानून बनाकर इसे लागू करवाना.''
"दवा प्रोत्साहन को कारगर ढंग से रोकने का केवल एक ही तरीका है- राज्य द्वारा मजबूत क़ानून बनाकर इसे लागू करवाना."
टिम रीड, प्रमुख, हेल्थ एक्शन इंटरनेशनल
जीएसके के मुख्य कार्याधिकारी एंड्र्यू विट्टी ने एक बयान जारी कर कहा कि इन कदमों से कंपनी की कोशिश है कि मरीज़ों के हितों का ध्यान सबसे पहले रखा जाए.
उन्होंने कहा, ''हम मानते हैं कि डॉक्टरों को दवाओं की जानकारी उपलब्ध कराने में हमारी महत्वपूर्ण भूमिका हैं लेकिन यह स्पष्ट, पारदर्शी और हितों के टकराव के बिना होना चाहिए.''
जीएसके दवा बिक्री के व्यक्तिगत लक्ष्य की नीति को पूरी दुनिया में लागू करेगी.
कंपनी की योजना 2015 की शुरुआत तक एक नई क्षतिपूर्ति व्यवस्था को सभी देशों में लागू करना है.

लेकिन क्या जीएसके का यह क़दम दवा बाज़ार के लिए मील का पत्थर बन सकता है?

जीएसके पर आरोप

चिकित्सकों से अधिकाधिक नुस्खा लिखवाने के लिए दवा कंपनियां करती हैं भुगतान.
बाज़ार विश्लेषक, आईजी, के एलिस्टर मैकेग कहते हैं, ''जीएसके के क़दम स्वागतयोग्य हैं लेकिन आशंका यह है कि उसे आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ सकता है. लेकिन जब तक अन्य कंपनियां इसका अनुसरण नहीं करतीं, तब तक उसे दिक़्क़त झेलनी पड़ सकती है.''
चीन में जीएसके बिक्री में रिश्वतखोरी के आरोपों से जूझ रही है.
कंपनी पर आरोप है कि बिक्री बढ़ाने की ख़ातिर रिश्वत देने के लिए ट्रेवल एजेंसियों को 50 करोड़ डॉलर का भुगतान किया था.
हालांकि जीएसके ने कहा है कि कंपनी द्वारा किए जा रहे उपाय चीन में उसके ऊपर लगे आरोपों से संबंधित नहीं हैं.

आख़िर कैसे चलता है दवाओं की बिक्री का 'गोरखधंधा'?

 शुक्रवार, 20 दिसंबर, 2013 को 11:09 IST तक के समाचार

भारतीय दवा बाज़ार
दवाओं की बिक्री को बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को किए जाने वाले प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भुगतान को बंद करने के ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन के ऐतिहासिक फ़ैसले के बाद भारत के दवा बाज़ार के कारोबारी तौर तरीक़ों से जुड़े सवाल अचानक उभर कर सामने आ गए हैं.
ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके) दुनिया के छठे नंबर की और ब्रिटेन की सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कंपनी के हवाले से बताया है कि जीएसके न तो अपने मार्केटिंग स्टाफ को किसी तरह का कारोबारी लक्ष्य देगी और न ही डॉक्टरों को मेडिकल कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए कोई भुगतान करेगी.
लेकिन ऐसे में ये सवाल उठने लगा है कि क्या अन्य दवा निर्माता कंपनियाँ जीएसके के इस फ़ैसले को भारत में अपना पाएंगी? भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ इन कारोबारी तरीक़ों से किस तरह प्रभावित हैं, इसकी पड़ताल की बीबीसी हिन्दी ने.

डॉक्टर विद्यापति राय, बेगूसराय से

डॉक्टर विद्यापति रॉय
डॉक्टर रॉय मानते हैं कि इससे मरीज़ों की सेहत और जेब पर असर पड़ रहा है.
इसी सिलसिले में बिहार के बेगूसराय जिले के डॉक्टर विद्यापति राय ने स्थानीय पत्रकार मनीष शांडिल्य को बताया कि भारत में दवा कंपनी चाहे छोटी हो या बड़ी, उनमें से कई अपनी दवाओं की बिक्री के लिए डॉक्टरों को अलग-अलग तरीक़े से उपकृत करती हैं.
ज़्यादातर मामलों में कंपनियां सामान या फिर देश-विदेश की मुफ्त सैर करने की पेशकश करती हैं.
कुछ कंपनियां तो नकद पैसों का प्रस्ताव भी देती हैं. किस डॉक्टर को क्या या फिर कितना मिलेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनकी प्रैक्टिस कितनी चलती है और पेशकश करने वाली कंपनी कौन सी है?
लेकिन इस पूरे मामले का एक पहलू यह भी है कि दवा कंपनियां डॉक्टरों के साथ-साथ अस्पतालों और स्वास्थ्य महकमे से जुड़े अफसरों को भी प्रलोभन देती हैं.
कई डॉक्टर पैसे लेकर दवाएँ लिखते हैं और वे इसे गलत भी नहीं मानते लेकिन इसका ख़ामियाज़ा सिर्फ़ और सिर्फ़़ मरीज़ की जेब और उनकी सेहत को उठाना पड़ रहा है.


रंजीत कुमार राहुल, पटना से

रंजीत कुमार राहुल, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव
रंजीत कहते हैं कि दवा कंपनियाँ बिक्री बढ़ाने की हर कोशिश करती हैं.
रंजीत कुमार राहुल बिहार में एक दवा कंपनी के क्षेत्रीय प्रबंधक हैं.
उन्होंने बताया कि दवा कंपनियां उपकृत कर या फिर सीधे पैसे देकर दवाओं की ज़्यादा-से-ज़्यादा बिक्री सुनिश्चित करने में लगी रहती हैं.
मोटे अनुमान के अनुसार छोटी कंपनियां अपने बजट का 20 से 30 फ़ीसदी और बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां पांच से 10 फ़ीसद हिस्सा मार्केटिंग पर खर्च करती हैं.
साल 2009 के दिसंबर में मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने डॉक्टरों के लिए आचार संहिता बनाई थी जिसके बाद डॉक्टरों को उपकृत किए जाने का तरीक़ा बदला है.
अब ऐसी मार्केटिंग को बढ़ावा देने वाले डॉक्टर अमूमन नकद की मांग करते हैं और ऐसा नहीं हो पाने की सूरत में अपने परिजनों या दोस्तों के नाम पर सामान या अन्य सुविधाएं लेते हैं.

डॉक्टर चंद्रशेखर रहालकर, बिलासपुर से

डॉक्टर चंद्रशेखर रहालकर
डॉक्टर रहालकर कहते हैं कि ग़ैरज़रूरी दवाओं पर रोक लगाने में किसी की दिलचस्पी नहीं है.
छत्तीसगढ़ में स्थानीय पत्रकार आलोक प्रकाश पुतुल ने बिलासपुर शहर के सर्जन डॉक्टर चंद्रशेखर रहालकर से बात की.
डॉक्टर रहालकर कहते हैं कि उन्होंने 1996 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को चिट्ठी लिख कर कहा था कि डॉक्टर दवा कंपनियों के प्रलोभन में आ कर ग़ैरज़रूरी दवाएं न लिखें, इस पर रोक लगाने के लिये क़दम उठाए जाएं.
वो कहते हैं कि ऐसी मांग उन्होंने कई बार कई मंचों पर उठाई लेकिन ज़ाहिर तौर पर इसमें किसी की दिलचस्पी नहीं है.
डॉक्टर रहालकर कहते हैं,"मैं पिछले 27 साल से हर्निया के ऑपरेशन में साधारण नायलोन की मच्छरदानी का टुकड़ा इस्तेमाल करता हूं, जिसकी कीमत एक रुपए बैठती है. किसी कंपनी की जाली खरीदें तो वो 2,000 रुपए की आती है."
"कई ऑपरेशन में केवल स्टेपल का खर्चा 75 हज़ार रुप आते हैं. मैं मछली मारने के काम में आने वाला धागा इस्तेमाल करता हूं, जिसकी क़ीमत केवल 15 रुपए होती है."


जेके कर, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, बिलासपुर से

जेके कर, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, बिलासपुर
जेके कर केंद्र सरकार से मामले की जाँच की माँग करते हैं.
जेके कर बिलासपुर में ही मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव हैं.
उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार को इसकी जाँच करवानी चाहिए कि जीएसके के बयान में कितनी सच्चाई है.
भारत में हर साल कई मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव दवा कंपनियों के सेल्स टारगेट के दबाव में ख़ुदकुशी कर लेते हैं. इसे रोका जाना चाहिए.

विजय बर्नवाल, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, लखनऊ से

लखनऊ मे कार्यरत मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव विजय बर्नवाल ने स्थानीय पत्रकार मनीष कुमार मिश्रा को बताया कि कुछ स्थानीय दवा निर्माता कंपनियाँ तो अपनी दवाओं की बिक्री होने पर डॉक्टरों कों 50 फ़ीसदी तक कमीशन देती हैं.
विजय बर्नवाल कहते हैं कि इस तरह के हालत में उन्हें अपनी कंपनी की दवा बेचने मे बेहद कठिनाई होती है,क्योंकि अधिकतर डॉक्टर उन कंपनियों की दवाओं को ही अपने मरीज़ों को लेने की सलाह देते हैं जिनमें अधिक कमीशन मिलता है.

एक डॉक्टर, लखनऊ से

दवाएँ
आईएमए ने डॉक्टरों के लिए एक आचार संहिता भी बना रखी है.
लखनऊ के एक डॉक्टर नाम ना छापने की शर्त पर बताते हैं, "सबसे पहले तो ये समझना होगा कि कोई भी डॉक्टर अपनी ओर से ये कोशिश नहीं करता कि उसे विदेश मे आयोजित होने वाले किसी सम्मेलन मे भाग लेने के लिए कोई भी दवा बनाने वाली कंपनी प्रायोजित करे.
ये जीएसके का नीतिगत फ़ैसला हो सकता है और इससे डॉक्टरों पर फ़िलहाल कोई असर नहीं पड़ने वाला है.
क्योंकि विश्व के किसी हिस्से मे भी जब चिकित्सा से जुड़ा सम्मेलन होता है तो उसका आयोजन किसी बड़े संगठन द्वारा किया जाता है न कि किसी कंपनी की ओर से."


डॉक्टर प्रवीण मंगलूनिया, जयपुर से

दवाएँ
डॉक्टरों को कई तरह से प्रलोभन दिए जाते रहे हैं.
डॉक्टर प्रवीण मंगलूनिया पेशे से फिजीशियन हैं और जयपुर शहर के एक निजी अस्पताल के निदेशक भी.
उन्होंने बताया कि दवा बनाने वाली कंपनियाँ डॉक्टरों को उपहार देकर यक़ीनन उन्हें लुभाने और ललचाने की कोशिश करती हैं. दो रुपए वाली सस्ती दवा की जगह 20 रुपए की महँगी दवा लिख देना सहज सी बात है. इस चक्कर में ज़रुरत से ज़्यादा दवाएं रोगियों को लिख दी जाती हैं.
नई दवा आने पर पुरानी सस्ती और अच्छी दवा लिखना कम हो जाता है. कोई कॉन्फ्रेंस नाम को ही रख दी जाती है और उस बहाने से डॉक्टर पूरे परिवार के साथ विदेश सैर कर आता है. जन्मदिन पर परिवार और रिश्तेदारों के साथ महंगे और लग्ज़री होटलों में डिनर की पेशकश तो आम बात है.
मुझे नहीं लगता कि डॉक्टरों का सहज ही इसे समर्थन मिल पाएगा लेकिन ये हक़ीक़त है कि आज भी बहुत से डॉक्टर ऐसे ललचाने वाले उपहारों को स्वीकार नहीं करते हैं. इसके लिए बेहतर है कि सरकार कड़ा क़ानून बनाए और ऐसे उपहारों को रिश्वत घोषित कर दे.

एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, जयपुर से

दवाएँ
जीएसके के फ़ैसले से दवा बाज़ार के कारोबारी तौर तरीक़ों में बदलाव की उम्मीद जगी है.
जयपुर के ही एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव कहते हैं कि ये कोई नई बात नहीं है. ऐसा सालों से हो रहा है और ये बहुत कॉमन प्रैक्टिस है. मुझे तो ये कल्पना से परे की बात लगती है कि आख़िर जब कोई कंपनी कुछ नहीं देगी तो वो डॉक्टर किसी कंपनी की दवा भला क्यों लिखेंगे?
अगर कोई एक कंपनी ऐसा फ़ैसला लेती है तो उसके प्रतिनिधियों को वाक़ई में बहुत दिक़्क़त आएगी. ये देखने में आता है कि कुछ डॉक्टर उपहार नहीं लेते लेकिन फिर भी ऐसे डॉक्टर किसी न किसी तरह से प्रभावित होते ही हैं. कई तो अपने बच्चों की फीस तक भरवाते हैं.
मैं जब 20 साल पहले इस नौकरी में आया था तो डॉक्टर इतना कुछ नहीं पाते थे. अब तो वे कोई बेशक़ीमती कार खरीदते हैं तो उसकी क़िस्त दवा कंपनी भरती है. ये सब लालच छूटना मुझे तो नामुमकिन सा लगता है.
मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव ने नाम छुपाने का आग्रह किया था. इसलिए इनकी पहचान ज़ाहिर नहीं की गई है.

भारत में बनी दवाओं पर ब्रिटेन में रोक

 रविवार, 14 जुलाई, 2013 को 22:41 IST तक के समाचार

दवा लेता एक मरीज
नियामक एजेंसी ने कहा है कि मरीज दवाइयों का सेवन जारी रख सकते हैं.
ब्रिटेन में दवाओं पर निगरानी रखने वाली संस्था ने नियमित निरीक्षण में नाकाम होने पर भारत में निर्मित 16 दवाओं को बाज़ार से हटाने के लिए कहा है.
चिकित्सा और स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों विनियामक एजेंसी (एमएचआरए) ने दवा बेचने वाले दुकानदारों से दवा कंपनी वोकहार्ड्ट द्वारा भारत के वालुज स्थित फेक्ट्री में निर्मित दवाओं को वापस करने के लिए कहा है.
जिन दवाइयों पर रोक लगाई गई है वे मधुमेह, मानसिक असंतुलन और थायराइड की बीमारियों में इस्तेमाल की जाती हैं.
हालाँकि नियामक एजेंसी ने कहा है कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे मरीजों की सुरक्षा के लिए खतरा का पता चलता हो.
निरीक्षण में फेल होने वाली दवाओं में टाइप 2 डायबीटीज में इस्तेमाल की जाने वाली मेटफॉर्मिन, गलप्रदाह एवं उच्च रक्तचाप के इलाज में इस्तेमाल की जानेव वाली एटेनोलोल, पार्किंसन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रॉमीपेक्सोल, मानसिक असुंतलन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रिस्पेरीडोन एवं ब्लड क्लोट के लिए इस्तेमाल की जाने वाली क्लॉपीडोग्रेल शामिल हैं.
बिक्री से हटाई गई 16 दवाओं में पाइनवुड लेब्रोट्रीज लिमिटेड द्वारा वालुज से आयात की जाने वाली एरीथ्रोमॉयसिन भी शामिल है. यह एंटीबॉयटिक दवा बच्चों को दी जाती है.
हालाँकि नियामक एजेंसी एमएचआरए ने कहा है कि मरीजों को अपनी दवाइयाँ वापस करने की जरूरत नहीं है और वह पहले से खरीदी गई दवाइयों का सेवन जारी रख सकते हैं.
एमएचआरए ने कहा कि बिक्री से हटाई जाने वाली दवाओं के अन्य संस्करण बाज़ार में मौजूद हैं. यदि यह उपलब्ध नहीं हैं तो डॉक्टर अन्य दवाइयाँ भी लिख सकते हैं.

"हम लोगों को यह विश्वास दिलाते हैं कि वोकहार्ड्ट द्वारा निर्मित दवाएं खराब नहीं है इसलिए मरीज इनका सेवन जारी रख सकते हैं यूरोपीय संघ से बाहर निर्मित होने वाली तमाम दवाओं का ब्रिटेन में मरीजों तक पहुँचने से पहले निरीक्षण किया जाता है. हालाँकि हम एहतियात के तौर पर यह कदम उठा रहे हैं क्योंकि दवाएं सही नियामक मानकों पर निर्मित नहीं की गईं हम स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर मरीजों को जरूरी दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित कर रहे हैं. यदि किसी के मन में कोई सवाल हो तो दवा दुकानदार से बात करे."
गेराल्ड हेड्डेल, एमएचआरए के निरीक्षण निदेशक

मरीज़ो को ख़तरा नहीं

एमएचआरए की ओर से जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि वह लोगों के घरों में मौजूद दवाओं को वापस करने के लिए नहीं कह रही है. हालाँकि यह दवाएं विनिर्माण मानकों पर खरी नहीं उतरती लेकिन ब्रिटेन में बिकने वाली इन दवाओं से मरीजों की सेहत को खतरे के सबूत नहीं मिले हैं.
एजेंसी ने कहा, 'दवाएं बाज़ार से हटाने की कार्रवाई जनहित में की जा रही है और खराब विनिर्माण मानकों को जारी नहीं रहने दिया जाएगा.'
मार्च में वालुज स्थित फेक्ट्री का निरीक्षण किया गया था. निरीक्षण में खराब सफाई प्रक्रिया के कारण संदूषण के खतरे और बिल्डिंग के वेंटिलेशन में खामियां पाईं गईं थी.
स्टाफ की ट्रेनिंग से संबंधी कागज़ात के जाली होने के सबूत भी नियामक एजेंसी को मिले थे.
एमएचआरए ने कहा है कि वह वोकहार्ड्ट और अंतरराष्ट्रीय नियामकों के साथ मिलकर मामले को निबटाने में लगी है.
एमएचआरए के निरीक्षण निदेशक गेराल्ड हेड्डेल ने कहा, "दवाइयों को एहतियात के तौर पर वापस बुलाया गया है."

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