सावधान, आपके नज़दीकी को एमडीआर टीबी तो नहीं! ताकि वो अपने परिवार वालों को बीमारी ना फैलाएं
सोमवार, 16 दिसंबर, 2013 को 10:59 IST तक के समाचार
दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गी
बस्तियों में से एक मुंबई के धारावी में रंजू झा का घर है. उनकी 23 साल की
बेटी भारती इस साल की शुरुआत में टीबी की बीमारी से चल बसी और अब उनकी मां
पार्वती भी इसी बीमारी का शिकार हैं.
टीबी से पीड़ित पार्वती के मुंह और नाक पर एक मास्क लगा रहता है ताकि वो अपने परिवार वालों को बीमारी ना फैलाएं.रंजू झा अपनी मृत बेटी को याद करती हैं, "मेरी बेटी में जब पहली बार टीबी की बीमारी पनपी तो उसे दवाइयों का पूरा कोर्स नहीं दिया गया. नतीजतन दूसरी कारगर दवाइयों के प्रति उसकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई."
अब रंजू की मां टीबी के और भी ख़तरनाक रूप से ग्रस्त हैं. इसका मतलब उनपर दवाइयों का असर और भी कम दिखाई देगा.
प्रतिरोधक क्षमता
इसी क्लिनिक में पार्वती का इलाज चल रहा है. लॉरेन रिबेलो यहां मेडिकल मैनेजर हैं और वो मल्टी रेसिस्टेंट टीबी का मतलब और उसके फैलने की वजह बताती हैं, "आपको ये याद रखना होगा कि भारत में एक बहुत बड़ा ग़ैर संगठित निजी क्षेत्र है."
उन्होंने कहा, "मरीज़़ कहीं भी जाकर बीमारियों का इलाज कराते हैं यहां तक कि केमिस्ट से भी दवाईयां ले लेते हैं. इसका मतलब ये है कि दवाइयों का बिना सोचे समझे इस्तेमाल होता है. मैं पिछले छह सालों से काम कर रही हूं और मैने ऐसे मरीज़ देखे हैं जिनकी प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज़्यादा बढ़ चुकी है और उनके इलाज के लिए दवाइयों में विकल्प बहुत कम हैं."
रिबेलो ने कहा, "टीबी के ख़िलाफ़ ये प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है जब लोग पूरा इलाज नहीं करवाते. सामान्य टीबी का इलाज छह महीने तक चलता है लेकिन अगर उन दवाइयों से प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए तो फिर इलाज इलाज लंबा और ज़्यादा मंहगा होता है. दो साल लंबे इस इलाज में हज़ारों रुपए ख़र्च हो सकते हैं."
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक टीबी कार्यक्रम की अगुआई करने वाले डाक्टर मारियो रैवियोने कहते हैं कि दुनिया भर में जिन साढ़े चार लाख लोगों में टीबी की दवाइयों से प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है उन्हें इसकी ख़बर भी नहीं है क्योंकि इसके टेस्ट की सुविधाएं सीमित हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि तपेदिक यानी टीबी के इलाज के लिए इस्तेमाल होनी वाली दवाइयों के ख़िलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाने से ख़तरनाक स्थिति पैदा हो रही हैं.
यदि टीबी के लिए सबसे अधिक प्रभावकारी दवाओं के ख़िलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए तो इसे 'मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट' टीबी या 'एमडीआर' टीबी कहते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ पिछले एक साल के दौरान दुनियाभर में क़रीब पाँच लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आए हैं और इनमें से बहुत बड़ा हिस्सा रूस, चीन और भारत से आता है.
भारत में लगभग हर 90 सेकेंड में टीबी से एक व्यक्ति की मौत हो जाती है.
ख़तरनाक टीबी
उधर भारत सरकार का कहना है कि वह बीमारी की पहचान और इलाज करने के लिए हरसंभव क़दम उठा रही है.
महाराष्ट्र में टीबी कार्यक्रम संभालने वाले हन्मंत चौहान कहते हैं कि पिछले तीन साल के दौरान 8,000 ऐसे मरीज़़ों का इलाज किया गया है जिनमें मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट क्षमता विकसित हो चुकी थी.
इस बीच रंजू के घर में उसका किशोर बेटा संतोष अपनी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है. उसे पता है कि उसे अपनी बीमार नानी से टीबी मिल सकती है लेकिन उसके पास कोई रास्ता नहीं है.
रंजू झा का पूरा परिवार मजबूर है इस डर के साये में जीने के लिए कि पार्वती जिस बीमारी से जूझ रही हैं उसका अगला शिकार इस परिवार को कोई दूसरा शख़्स भी हो सकता है.
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