AAP ने फरार माओवादी नेता सब्यसाची पांडा को बनाया सदस्य!
भुवनेश्वर. माओवादी नेता सब्यसाची पांडा के आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल होने की खबर है। एक न्यूज वेबसाइट ने यह रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस का कहना है कि पांडा और 'आप' के बीच काफी समय से बातचीत चल रही थी। पार्टी की ओडि़शा ईकाई खुले आम यह कहती रही है कि उसे पांडा को अपने साथ जोड़ने से कोई परहेज नहीं है। 'आप' के ओडि़शा में समन्वयक निशिकांत महापात्र ने मीडिया को बताया, 'जब तक हमारे संविधान के खिलाफ कोई काम नहीं करता, हम उसे पार्टी में लेने का विरोध नहीं करते।'
पुलिस को जल्द है पकड़े जाने की उम्मीद
उच्च पदस्थ पुलिस सूत्रों का कहना है कि 15 फरवरी को गंजम जिले के मेरिकोट के पास के जंगल में पुलिस शूटआउट में पांडा बुरी तरह से जख्मी हो गया था। उसके दाएं पैर में गोली लगी थी। हालांकि, वह किसी तरह वहां से बच निकलने में कामयाब हो गया। पुलिस ने पिछले सप्ताह पांडा के 6 करीबियों को गिरफ्तार किया था। इनमें तीन महिला भी शामिल हैं। तीनों ने पांडा के जख्मी होने की पुष्टि की है।
सदर्न रेंज के डीआईजी अमिताभ ठाकुर ने पत्रकारों को बताया, "सब्यसाची
पांडा को दबोचने के लिए बड़े पैमाने पर सर्च अभियान चलाया जा रहा है। वह
जल्द ही हमारे कब्जे में होगा।"
पांडा के खिलाफ बड़े मामले
पांडा ने 2008 में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या कर दी थी। इसी
साल नयागढ़ में पुलिस के असलहा लूट का भी पांडा मास्टरमाइंड था। इस दौरान
पांडा पर कई पुलिसकर्मियों की हत्या करने का भी आरोप है। 2012 में पांडा ने
दो इतालवी पर्यटकों को बंधक बनाया था। हालांकि, बाद में दोनों को बिना
हानि पहुंचाए छोड़ दिया गया।
सब्यसाची पांडा कौन?
ओडि़शा का सबसे बड़ा नक्सली नेता। पुलिस को कई संगीन मामलों में तलाश। ओड़िशा में गरीबों के मसीहा जैसी छवि।
पुरी के चंद्रशेखर गवर्नमेंट कॉलेज से मैथ्स ग्रेजुएट। स्वतंत्रता
सेनानी के बेटे। पिता राजनीति में भी रहे। पहले माकपा ज्वॉयन की। बाद में
मोहभंग हुआ तो बीजद में शामिल हुए। पांडा के बड़े भाई भी बीजद में हैं।
सब्यसाची पहले सीपीएम में थे। बाद में भाकपा माले लिबरेशन में शामिल हुए।
वे पार्टी यूनिटी के भी करीब थे। 1998 में पार्टी यूनिटी व पीडब्ल्यूजी के
विलय के बाद इसमें शामिल हुए। कंधमाल जिले में दक्षिणपंथी नेता स्वामी
लक्ष्मणानंद की हत्या के बाद पांडा सुर्खियों में आये। इसके बाद उन्हें
ओड़िशा कमेटी का सचिव बनाया गया।
फिर अलग हुई राह
सब्यसाची पांडा भाकपा (माओवादी) राज्य (ओडिशा) संगठन का सचिव था। 2012
के मार्च महीने में दो इतालवी नागरिकों के अपहरण के पीछे इसी का हाथ था।
अपहृतों की रिहाई के बदले पांडा ने अपनी पत्नी मिली को जेल से छोड़े जाने
की मांग की थी। उसे बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया था। सुरक्षा एजेंसियों
के मुताबिक पांडा नक्सली संगठन में आंध्र प्रदेश कैडर के नक्सलियों के
दबदबे से परेशान था और ओडिशा में पांडा की बढ़ती ताकत से आंध्र के नक्सली
नेता खुश नहीं थे। यही कारण है कि पांडा को सेंट्रल कमेटी या पोलित ब्यूरो
में जगह नहीं दी गई। सेंट्रल कमेटी और पोलित ब्यूरो सीपीआई (एम) की
सर्वोच्च संस्था है, जो आंदोलन की मूल दिशा तय करती है।
2012 में पांडा के संगठन नेताओं से मतभेद चरम पर पहुंच गए। उन्होंने
पार्टी के बड़े नेताओं को कड़ी चिट्ठी लिखी और तीखे सवाल उठाए। इसके बाद
उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। इसके बाद पांडा ने अपनी अलग पार्टी
ओडि़शा माओवादी पार्टी बनाई।
'क्रांति' पर उठाए थे सवाल
पार्टी से निकाले जाने से पहले माओवादी कमांडर सब्यसाची पांडा ने
काफी बगावती तेवर दिखाए थे। पांडा ने बड़े नेताओं के नाम एक खत लिख कर कई
सवाल उठाए थे। उसने नक्सलियों के प्राइवेट पार्ट्स 'क्लीन शेव' करने के
चलन पर जोर देने की परंपरा को भी गलत ठहराया है। उसका कहना है कि यह तेलुगु
कैडरों में आम बात है और महिला काडरों को अक्सर ऐसा करने की सलाह दी जाती
है। उसने लिखा है, 'महिला काडरों को बिना कपड़े के स्नान करने को भी कहा
जाता है। मुझे समझ नहीं आता कि क्रांति का ऐसे बकवास सिद्धांतों से क्या
ताल्लुक है?'
फोटो: जंगल में पत्रकारों को इंटरव्यू देते सब्यसाची पांडा की फाइल फोटो। इसमें पांडा ने कैमरे की ओर अपनी पीठ कर रखी है।
पांडा ने दो खत लिखे थे। तीन पन्नों के पहले खत में उसने आम तौर पर
पार्टी के कॉमरेड्स को संबोधित किया था। हालांकि, उसका दूसरा खत काफी बड़ा
था। 16 पन्नों की चिट्ठी, माओवादियों के सुप्रीम कमांडर गणपति और जेल में
बंद दो सीनियर नेताओं नारायण सान्याल (विजय दादा) और अमिताभ बागची (सुमित
दादा) को संबोधित करते हुए लिखी गई थी। पांडा की चिट्ठी गणपति को मिल गई,
लेकिन नारायण सान्याल और अमिताभ बागची को सब्यसाची का संदेश नहीं मिल
सका। माना जा रहा है कि पांडा की यह चिट्ठी लेकर माओवादी नेताओं के पास जा
रहे संदेशवाहक प्रभाकर को कोलकाता में सुरक्षा एजेंसियों ने पकड़ लिया।
माना जाता है कि पांडा की इन चिट्ठियों की वजह से ही उसे पार्टी से बाहर का
रास्ता दिखा दिया गया था।
पांडा ने अपने खत में कई जगहों पर सेंट्रल कमेटी के मेंबर मनोज उर्फ
भास्कर और माओवादियों के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रभारी बासवराज के
साथ बार-बार हुई झड़पों का जिक्र किया है। भास्कर के बयान का जिक्र करते
हुए पांडा ने लिखा है, 'हम कम्युनिस्ट पार्टी में किसी गलती के लिए पार्टी
के सदस्य को सस्पेंड कर सकते हैं और जरूरत पड़ी तो उसकी हत्या भी की जा
सकती है।' पांडा ने लिखा था कि किस तरह भास्कर ने किशनजी को भी नहीं
बख्शा। भास्कर के हवाले से उसने कहा कि किशनजी कुछ नहीं करते हैं। एक भी
पुलिसवाले की हत्या नहीं करते, केवल बयान जारी करते रहते हैं। पांडा ने
सवालिया लहजे में कहा, 'क्या किसी क्रांतिकारी का काम केवल पुलिसवालों की
हत्या करना ही रह गया है?
पांडा ने 'बेवजह किसी खास वर्ग के विध्वंस' के खिलाफ भी जमकर अपनी
भड़ास निकाली थी। उसने लिखा, 'किसी पर मुखबिर होने का ठप्पा लगाकर उसे
मारना-पीटना और जला देना ही समस्या का हल नहीं है।' पांडा ने संबलपुर के
पांच-छह गांववालों, जिन्हें 2004 में मुखबिर होने के शक में मार डाला गया
था, का उदाहरण देते हुए कहा, 'केवल मैंने इसका विरोध किया था। भास्कर ने
गलत सूचना दी कि संबलपुर में सलवा जुडूम का अभियान चल रहा था।'
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