KNOW NEW RULES FOR UTTARAKHAND DOMICILE:केवल ये लोग होंगे उत्तराखंड के मूल निवासी
स्थाई निवास व जाति प्रमाण पत्र के हकदार होंगे ये
वर्ष 1985 से उत्तराखंड प्रदेश की सीमा के भीतर वास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति स्थाई निवास व जाति प्रमाण पत्र पाने का हकदार होगा।
इस मामले में सुनवाई के दौरान एक याचिका को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले को बहाल रखा।
इस मामले में सुनवाई के दौरान एक याचिका को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले को बहाल रखा।
उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्णय को चुनौती
जस्टिस सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय व जस्टिस कुरियन
जोसफ की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान देहरादून निवासी रविंद्र जुगरान की उस
याचिका को खारिज कर दिया।
जिसमें उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्णय को चुनौती दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने मूल निवास, स्थाई निवास व जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए हर उस व्यक्ति को पात्र माना जो 1985 से उत्तराखंड राज्य (राज्य का गठन 2000 में हुआ) में निवास कर रहा है।
रविंद्र जुगरान ने उच्च न्यायालय केइस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस दलील को इसलिए भी खारिज कर दिया क्योंकि इसी विषय की एक याचिका पहले भी खारिज हो चुकी है।
जिसमें उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्णय को चुनौती दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने मूल निवास, स्थाई निवास व जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए हर उस व्यक्ति को पात्र माना जो 1985 से उत्तराखंड राज्य (राज्य का गठन 2000 में हुआ) में निवास कर रहा है।
रविंद्र जुगरान ने उच्च न्यायालय केइस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस दलील को इसलिए भी खारिज कर दिया क्योंकि इसी विषय की एक याचिका पहले भी खारिज हो चुकी है।
यह है मामले की पृष्ठभूमि
- 17 अगस्त 2012 को नैनीताल उच्च न्यायालय ने अपने
फैसले में कहा कि जो व्यक्ति राज्य गठन के समय नौं नवम्बर 2000 से निवास कर
रहा है उसे मूल, स्थाई निवास के साथ ही जाति प्रमाण पत्र पाने का अधिकार
है।
- 25.05.2013 को उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने एकल पीठ के इस निर्णय में बदलाव करते कट-आफ-डेट केरूप में वर्ष 1985 को समय सीमा माना।
- याचिकाकर्ता ने सितम्बर 2013 में उच्च न्यायालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।
- 03 मार्च 2014 को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्णय को बहाल रखा।
मुझे आज काफी उम्मीद थी लेकिन निर्णय मेरे विषय के अनुकूल नहीं आ सका। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ मैं रिव्यू दाखिल करुंगा।
- रविंद्र जुगरान, याचिकाकर्ता
- 25.05.2013 को उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने एकल पीठ के इस निर्णय में बदलाव करते कट-आफ-डेट केरूप में वर्ष 1985 को समय सीमा माना।
- याचिकाकर्ता ने सितम्बर 2013 में उच्च न्यायालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।
- 03 मार्च 2014 को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्णय को बहाल रखा।
मुझे आज काफी उम्मीद थी लेकिन निर्णय मेरे विषय के अनुकूल नहीं आ सका। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ मैं रिव्यू दाखिल करुंगा।
- रविंद्र जुगरान, याचिकाकर्ता
40 फीसदी आबादी वंचित थी अभी तक
उत्तराखंड के नैनीताल व देहरादून जिले के मैदानी भाग और हरिद्वार व ऊधमसिंहनगर जिले में प्रमाण पत्र नहीं बनाए जा रहे थे।
क्योंकि इस बात का दबाव था कि जो व्यक्ति 1950 से राज्य में रह रहा है उसे ही यह हक मिले। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद चार मैदानी जिलों में वास करने वाली राज्य की लगभग 40 फीसदी आबादी को इसका लाभ मिलेगा।
अब वह हर व्यक्ति उपरोक्त प्रमाण पत्रों को पाने का हकदार होगा जो कि 1985 से वर्तमान उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक सीमाओं के भीतर निवास कर रहा है।
इन्हें सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थाओं में दाखिले के लिए इन प्रमाण पत्रों से लाभ मिलेगा। जिससे अभी तक ये लोग वंचित थे।
क्योंकि इस बात का दबाव था कि जो व्यक्ति 1950 से राज्य में रह रहा है उसे ही यह हक मिले। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद चार मैदानी जिलों में वास करने वाली राज्य की लगभग 40 फीसदी आबादी को इसका लाभ मिलेगा।
अब वह हर व्यक्ति उपरोक्त प्रमाण पत्रों को पाने का हकदार होगा जो कि 1985 से वर्तमान उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक सीमाओं के भीतर निवास कर रहा है।
इन्हें सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थाओं में दाखिले के लिए इन प्रमाण पत्रों से लाभ मिलेगा। जिससे अभी तक ये लोग वंचित थे।
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