भारतीय चुनाव:क्या देश को मिलेगा पहला 'बांग्ला' प्रधानमंत्री?
गुरुवार, 6 मार्च, 2014 को 07:34 IST तक के समाचार
अंक- एक. दृश्य- दो. स्थान- कोलकाता, कालीघाट मंदिर. मुख्य पात्र- ममता बनर्जी.
भारतीय चुनाव अंक गणित में कमज़ोर विद्यार्थियों
के लिए क़त्तई नहीं हैं. ख़़ासकर इसलिए कि राजनीति कभी आसान अंक गणित तक
सीमित मामूली जोड़-घटाने से काफ़ी आगे निकल गई है.अगर इन सारी विधाओं में गति न हो तो दुर्गति तय है. कब 'अ' वर्ग और 'ब' वर्ग, 'अ', 'ब', 'स' वर्ग के बराबर हो जाएंगे, पता ही नहीं चलेगा.
पाइथागोरस का प्रमेय उलट जाएगा. पाई का मान बदल जाएगा और पैर के नीचे से ज़मीन निकल जाएगी.
शायद यही विचित्र गणित है, जिसमें महारत हासिल करने का एक ही तरीक़ा है- उसमें डूब जाना. इस डूबने में वाक़ई हमेशा के लिए डूब जाने का ख़तरा भी है. एकदम वास्तविक.
राजनीति में यह परिवर्तन इस तेज़ी से हुआ कि 'जो उतरा सो बूड़ि गा, जो बूड़ा सो पार' भी ग़लत लगने लगा.
बदरंग तस्वीर
सच्चाई ये है कि बहुतेरे लोग, बहुत से दल उसमें डूब गए. जितने पार उतरे, उनसे ज़्यादा डूब गए. वह निरंतर 'गंदा खेल' और 'अपराध की पाठशाला' बनती गई. इस हद तक कि एक प्रशिक्षु पेंटर और क्षुब्ध कवयित्री ने लिखा-यह पीड़ा लाल खपरैल की छत वाले एकमंज़िला घर में ही महसूस की जा सकती थी. 45 साल की राजनीति का निजी घर ऐसा हो तो उसमें संभावनाएं क्यों नहीं देखी जानी चाहिए.
सारी गंदगी के बावजूद राजनीति को गंगा मानने वाली कवयित्री ममता बनर्जी हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को अगर लगता है कि राजनीति गंदगी में डूबने से बच सकती है तो उन्हें यक़ीनन सन 2011 की याद आती होगी.
वो साल, जब वो साढ़े तीन दशक पुरानी वामपंथी सरकार को उखाड़ कर सत्ता पर क़ाबिज़ हुईं थीं.
वह छोटी घटना थी भी नहीं. शायद इसलिए ममता बनर्जी के यक़ीन को दृष्टिदोष कहकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता.
गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हज़ारे उनमें संभावना देखते हैं और ब्रितानी लेखक पैट्रिक फ्रेंच उनकी जीवनी लिखना चाहते हैं. आम जनता उन्हें अपना 'हीरो' मानती है.
मुख्य से प्रधान
तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता फुसफुसाकर कहते हैं- मंत्री तो वे हैं ही. मुख्य के बाद प्रधान, बस इतना ही होना बाक़ी है.किनारी वाली सफ़ेद सूती साड़ी लपेटे, हवाई चप्पल फटकारती ममता ख़ुद इस बारे में कुछ नहीं कहतीं. उन्हें एहसास है कि मुख्य से प्रधान का फ़ासला दरअसल उतना छोटा या आसान नहीं है.
तभी वे ये कहते हुए रुक जाती हैं कि तृणमूल की आवाज़ इस बार दिल्ली में ज़्यादा बुलंद होगी. दिल्ली की सरकार इस बार हम तय करेंगे. बंगाल तय करेगा.
कुछ सीटें पूर्वोत्तर राज्यों से और एक-आध उत्तर भारत से मिलीं तो ये आंकड़ा 35 तक पहुंच सकता है. 35 की संख्या के दम पर ममता को उम्मीद है कि तृणमूल कांग्रेस लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ा पार्टी होगी.
संख्या के स्तर पर उसे चुनौती सिर्फ़ उत्तर प्रदेश से मिल सकती है. बहुजन समाज पार्टी की मायावती और समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव से.
तृणमूल ने इस बार अकेले चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है और इसका लाभ उसे पश्चिम बंगाल में मिल सकता है, जहां 2009 में सात सीटें उसके सहयोगी दलों ने जीती थीं.
विश्वास का आधार
ममता के इस विश्वास का आधार मूलत: पंचायत चुनाव हैं, जिसमें पार्टी को 45 फ़ीसदी वोट मिले. वामपंथी दल 30, कांग्रेस 15 और भारतीय जनता पार्टी साढ़े तीन प्रतिशत वोट पर रह गई थी.पिछले पांच वर्ष में बंगाल में भाजपा का असर कुछ बढ़ा है लेकिन उनका वोट प्रतिशत दस से ऊपर जाने की संभावना इस बार भी नहीं है.
इसका सीधा मतलब ममता की ओर मुसलमानों का झुकाव और बढ़ना होगा. जो यह सुनिश्चित कर देगा कि भाजपा को राज्य से एक भी सीट न मिले, भले उसका वोट प्रतिशत बढ़ जाए.
ममता बनर्जी के आलोचकों का मानना है कि वो जब-तब हत्थे से उखड़ जाती हैं. आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकतीं. एक कार्टून इंटरनेट पर डालने वाले प्रोफ़ेसर को जेल भेज देती हैं. कुछ दीगर घटनाएं भी हैं.
इनसे ममता की लोकप्रियता घटी है, पर उसमें इतनी कमी नहीं आई है कि उनकी राजनीतिक संभावनाएं प्रभावित हों.
वाम मोर्चे के सफ़ाए के बाद वो बंगाली गौरव की अकेली प्रतीक चिह्न हैं और ज़ाहिर है कि क्षेत्रीयता उनके समर्थन में प्रबलता से खड़ी होगी.
यह स्थिति पूरे गणित को बदल सकती है. वैसे गणित की विद्यार्थी ममता कभी नहीं रहीं. उन्हें अब तक इसकी ज़रूरत भी नहीं पड़ी.
पर दिल्ली की सियासत विचित्र गणित के बिना नहीं चलती. शायद उन्हें पता होगा क्योंकि असल सवाल तीसरे मोर्चे और कांग्रेस में तृणमूल की स्वीकार्यता का होगा.
ममता बनर्जी के हुए अन्ना हजारे
बुधवार, 19 फ़रवरी, 2014 को 15:41 IST तक के समाचार
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे
ने आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी का
समर्थन करने की घोषणा की है.
अन्ना हजारे ने बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन
में कहा, "मैं दीदी (ममता बनर्जी) को एक व्यक्ति या पार्टी के रूप में
समर्थन नहीं दे रहा हूं, बल्कि समाज और देश के प्रति उनके जो विचार हैं,
उसको मेरा समर्थन है."ताजा घटनाक्रम में अन्ना ने कहा कि, "मैंने अगर पहली बार देश और समाज के बारे में सोचने वाला व्यक्ति देखा तो वह दीदी हैं. इसलिए मैं उन्हें सपोर्ट कर रहा हूं."
सादगी की तारीफ़
उन्होंने कहा, "एक मुख्यमंत्री होने के नाते वह अपना जीवन आलीशान तरीके से बिता सकती थीं, जैसा कि कई मंत्री बिता रहे हैं, लेकिन वह एक छोटे से कमरे में रहती हैं और सादा जीवन बिताती हैं."इससे पहले अन्ना हजारे अरविंद केजरीवाल के बारे में कह चुके हैं कि उन्हें देश और समाज की चिंता नहीं रही, अब उन्हें सिर्फ सत्ता की चिंता है.
अन्ना ने कहा कि उन्होंने देश के बेहतर भविष्य के लिए सभी पार्टियों से 17 मुद्दों पर समर्थन मांगा था लेकिन उन्हें सिर्फ ममता बनर्जी ने ही समर्थन दिया. हालांकि इनमें कई मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर कई राजनीतिक दल सहमत हो गए हैं.
अन्ना के मुद्दे
- भ्रष्टाचार पर काबू के लिए लोकपाल और लोकायुक्त का गठन तत्काल किया जाएगा.
- सिटिजन चार्टर और विसिल ब्लोवर की सुरक्षा के लिए कानून को लागू किया जाए.
- देश की सुरक्षा को छोड़कर सरकार के सभी फैसलों को दो साल के बाद सार्वजनिक किया जाए.
- गांवों को केंद्र बनाकर देश की सभी योजनाएं बनाई जाए. पार्टियां बड़ी-बड़ी कंपनियों के बजाए गांवों के बारे में सोचें.
- ग्राम सभा को अधिक अधिकार दिए जाएं.
- गांवों को इकाई मानकर कृषि क्षेत्र की योजनाएं बनाई जाएं. कृषि आधारित उद्योगों को प्राथमिकता मिले.
- भूमि अधिग्रहण कानून में किसानों के हित में बदलाव किया जाए. किसानों की जमीन कोई छीन न सके ऐसा कानून बने.
- ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य. हर गांव में उसका अपना बिजली घर होगा.
- बुनियादी ढांचे का विकास प्राथमिकता के आधार पर किया जाए.
- देश के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों और अल्पसंख्यकों के विकास पर खास ध्यान दिया जाए. रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशों को तत्काल लागू किया जाए.
- चुनाव प्रक्रिया में व्यापक सुधार किया जाएगा. राईट टू रिजेक्ट और राईट टू रिकॉल को लाया जाए.
- नदियों और जलाशयों के पानी के निजीकरण पर अविलंब रोक लगाई जाए.
- न्याय व्यवस्था में मौलिक बदलाव लाया जाएगा, ताकि गरीबों को न्याय मिल सके.
- सांप्रदायिकता को जड़ से खत्म करने के लिए कानून बनाया जाएगा.
- शिक्षा को कारोबार बनाने पर रोक लगे.
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