Wednesday, 11 June 2014

फ़ुटबॉल विश्व कप और भारत का 'अर्धसत्य'

फ़ुटबॉल विश्व कप और भारत का 'अर्धसत्य'

 बुधवार, 11 जून, 2014 को 08:48 IST तक के समाचार

भारतीय खिलाड़ी सुनील छेत्री
ये बात अजीब ज़रूर लगेगी, लेकिन है कटु सत्य. दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाले देशों में दूसरे नंबर पर है भारत लेकिन फ़ुटबॉल विश्व कप में भारत की भागीदारी न के बराबर है.
हालांकि एशियाई फ़ुटबॉल में अब भारतीय टीम का प्रदर्शन ऐसा होने लगा है कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई नाम मिले लेकिन इतना नहीं कि उसे विश्व कप में जगह मिल सके.
हालांकि कई लोग ये मानते आए हैं कि भारत ने एक बार विश्व क़प के लिए क्वालिफ़ाई कर लिया था लेकिन ये भी आधा सत्य ही है.

जब 1950 में भारत को मिला मौका

एक घरेलू मैच को खेलते भारतीय खिलाड़ी
भारत ने विश्व कप के लिए कभी भी क्वालिफ़ाई नहीं किया ये सच है. लेकिन 1950 में भारतीय टीम को क्लिक करें फ़ुटबॉल विश्व कप में जाने का मौका मिला था ये भी सच है.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब क्लिक करें विश्व कप दोबारा शुरू हुआ और 1950 में ब्राज़ील को मेजबानी मिली, तो भारत को भी विश्व कप में खेलने का न्यौता मिला.
ऐसा इसलिए नहीं कि भारत ने मैच जीतकर विश्व क़प के लिए क्वालिफ़ाई किया था बल्कि इसलिए क्योंकि विश्व युद्ध के बाद दूसरी कई प्रतिष्ठित टीमों ने विश्व कप से अपना नाम वापस ले लिया था.
भारत को न्यौता तो ज़रूर मिला लेकिन टीम को मैच नहीं खेलने दिया गया क्योंकि भारत के सभी खिलाड़ी नंगे पाँव खेलते थे और ये फ़ुटबॉल के अंतरराष्ट्रीय नियमों के विरूद्ध था. इसके अलावा भारत के सामने टीम को खेलने के लिए विदेश भेजने की भी एक बड़ी चुनौती थी जो एक बड़ा ख़र्चा था और जिसे उठाना उस समय भारत के लिए संभव नहीं था.
इस तरह 1950 में विश्व कप में खेलने के पहले मौके को भारत ने गंवा दिया.

मौक़े और भी मिले

ऐसा नहीं के 1950 के बाद क्लिक करें भारत ने विश्व कप खेलने की कोशिश नहीं की. 1950 की घटना से सबक लेकर भारतीय फ़ुटबॉल महासंघ ने खिलाड़ियों के लिए जूते पहन कर खेलना अनिवार्य कर दिया.
ठीक चार साल बाद 1954 में भारत ने फ़ीफ़ा के पास क्वालिफ़ाइंग राउंड खेलने के लिए आवेदन भेजा था, लेकिन उसका आवेदन अस्वीकार कर दिया गया. इसके बाद भारत ने भी इस ओर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया.
1986 के विश्व कप के लिए भारत को क्वालिफ़ाइंग राउंड खेलने का मौक़ा मिला. लेकिन पहले दौर से आगे टीम नहीं पहुँच पाई. और 1994 के बाद तो टीम ने लगातार क्वालिफ़ाइंग राउंड में हिस्सा लिया लेकिन पहले दौर से आगे नहीं बढ़ पाई.
2006 के विश्व कप के क्वालिफ़ाइंग राउंड में तो टीम का प्रदर्शन काफ़ी ख़राब रहा था. इस राउंड में भारत को छह ग्रुप मैचों में सिर्फ़ चार अंक मिले थे. आख़िरकार भारत को ग्रुप मैचों में तीसरा स्थान मिला.

सुधार की ओर

पूर्व भारतीय खिलाड़ी सबीर पाशा कोच करते हुए
हालाँकि पिछले विश्व कप के क्वालिफ़ाइंग राउंड में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात को 1-0 से हराकर ज़रूर अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन आख़िरकार टीम का ये प्रदर्शन उसके काम नहीं आया.
फिर भी टीम के खेल में अब पहले से ज़्यादा बदलाव दिखाई देने लगे हैं. 2007 में नेहरू कप जीतने के बाद भारतीय टीम ने 2009 और 2012 में हुए नेहरू कप अपने नाम किया. ये नेहरू कप में भारत की लगातार तीसरी ख़िताबी जीत थी.
साल 2011 में भारत को 27 साल बाद एशिया कप में खेलने का भी मौका मिला था. हालांकि एशिया कप में टीम को एक बार निराशा हाथ लगा और वो अपने तीनों मैच हार गई. लेकिन एशिया कप के बाद अब भारत में फ़ुटबॉल के स्तर को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं

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