Tuesday 15 July 2014

मोदी सरकार और 600 फ़ुट का सरदार... "पचास हज़ार हमें दे दे तो हम ख़ुद मूर्ति की जगह खड़े हो जाने को तैयार हैं-काज़ी नज़रूल इस्लाम"

 मोदी सरकार और 600 फ़ुट का सरदार... "पचास हज़ार हमें दे दे तो हम ख़ुद मूर्ति की जगह खड़े हो जाने को तैयार हैं-काज़ी नज़रूल इस्लाम"

15 जुलाई, 2014
एक बार ढाका की नगर निगम ने फ़ैसला किया कि शहर के बीचों बीच महान बांग्ला कवि आदरणीय काज़ी नज़रूल इस्लाम की तांबे की मूर्ति लगाई जाए और इसके लिए पचास हज़ार रुपए का बजट भी रख दिया गया.
जब इस्लाम साहब को किसी ने ये ख़ुशख़बरी सुनाई तो उनके मुंह से फ़ौरन निकला- अगर नगर निगम यही पचास हज़ार हमें दे दे तो हम ख़ुद मूर्ति की जगह खड़े हो जाने को तैयार हैं.
मालूम नहीं कि क्लिक करें सरदार वल्लभ भाई पटेल को अगर उनकी 600 फ़ुट की मूर्ति गुजरात के तट पर खड़ा करने के लिए दो अरब रुपए बजट में रखे जाने की सूचना मिलती तो वो क्या कहते.

सरदार का सम्मान

जलने वाले जला करें, लेकिन मुझसे बहुत से लोग ख़ुश हैं, कि किसी ने सरदार को वो सम्मान दिया जो उनका कोई साथी और कोई कांग्रेसी हूकुमत आज तक नहीं दे सकी.
'सब पे जिस बार ने गिरानी की, उसको ये नातवां उठा लाया.'
मीर तकी मीर के इस शेर का मतलब समझे बिना प्लीज़ ये घटिया बहस ना शुरू कर दीजिएगा कि आरएसएस के कारसेवकों ने हेडगेवार, गोलवालकर या सावरकर की जगह सरदार पटेल को ही क्यों इतना बड़ा सम्मान देने के लिए चुना.
अगर इनका नाम सरदार वल्लभ भाई बोस होता और उनकी जगह सुभाष चंद्र पटेल गुजरात में पैदा होते तो क्लिक करें मोदी जी किसकी कितनी बड़ी मूर्ति बनवाने का सपना पूरा करते ? मोदी जी चूंकि ख़ुद काम, काम और सिर्फ काम के फ़लसफ़े पर यकीन करते हैं, इसलिए उन्होंने ये फ़ैसला भी मेरिट पर ही किया होगा.
वरना गांधी जी भी काठियावाड़ी ही थे. लेकिन ऐसा हो नहीं सकता है कि मोदी जी या उनके आसपास किसी के दिमाग में ये बात नहीं आई हो कि लोग क्या कहेंगे कि पहले गांधी जी की मूर्ति क्यों नहीं बना रहे, पहले उनके चेले की क्यों बना रहे हो?
गांधी जी की इतनी ऊंची मूर्ति बनाने की जरूरत क्या है. देश के सैकड़ों चौकों, पार्कों और इमारतों में हर सफेद तौलिए वाली कुर्सी के पीछे और हर करेंसी नोट पर गांधी जी ही तो मुस्कुरा रहे हैं.

रुई के पोले गांधी जी

भारत से बाहर भी गांधीजी की क्लिक करें बीसियों मूर्तियां अमरीका से दक्षिण अफ़्रीका तक फैली पड़ी हैं. भला सरदार की ऐसी कितनी मूर्तियां दिखने में आती हैं.
अच्छा लीजिए गांधीजी की भी 600 फ़ुट की मूर्ति बनाए देते हैं, लेकिन किस चीज़ से?
आयरन मैन ऑफ़ इंडिया की तस्वीर तो पांच हज़ार टन लोहे से बन जाएगी.
लेकिन गांधीजी तो आयरन मैन नहीं थे, वे तो बिलकुल रुई की तरह पोले थे. तो क्या अब ख़ादी का 600 फ़ुट ऊंचा स्टैच्यू बनवा दें?
आख़िर आपको तकलीफ़ क्या है?
बस तान टूटती है तो 415 मिलियन डॉलर के सरदार स्टैच्यू प्रोजेक्ट पे. और कहते हो कि इस देश में इतना खर्चा करने की जरूरत क्या है, जहां आधों को भरपेट रोटी भी मुश्किल से मिलती है. इतने पैसों में तो इतने स्कूल बन जाते, इतने घर बन जाते, इतने अस्पताल खुल जाते.. इत्यादि....इत्यादि...इत्यादि...
तो क्या कुतुबुद्दीन ऐबक ने पूरे भारत में दूध की नदियां बहने की ख़ुशी में क़ुतुब साहब की लाट ऊंची की थी?
क्या शाहजहां ने प्रजा के तन पर कपड़ा और पैर में जूती डालने के जश्न में ताजमहल उठाया था? क्या अंग्रेजों ने गेटवे ऑफ़ इंडिया को एक व्यक्ति, एक रोटी के सपने को साकार करने का सिंबल बनाया था?
तुम लोग कीड़े निकाल सकते हो, बस. मजाल है कि किसी बात पर रत्ती बराबर ख़ुश हो जाओ.

पाकिस्तान में टंटा नहीं

ऊपर वाले की कृपा है कि पाकिस्तान में ऐसा कोई टंटा नहीं. क्यां गांधी जी, क्या मल्लिका विक्टोरिया, क्या चार्ल्स नेपियर. यहां सबकी मूर्तियां कबाड़खाने में है. जरूरत भी क्या है ऐसे फिज़ूल कामों में पड़ने की?
यहां तो पहले से ही क्लिक करें हर नेता ख़ुद को छह सौ फ़ुटा समझता है.
मोदीजी ने 2010 में अपना सपना बताया था कि वो विश्व काक्लिक करें सबसे ऊंचा स्टैच्यू इसलिए बनाना चाहते हैं कि इससे भारत का नाम भी ऊंचा होगा.
मैं तो बस यही कहूंगा मोदीजी, भारत की नहीं, अपने नाम और प्रोजेक्ट की ही सोचिए. भारत तो पहले से ही इतिहास की चोटी पर बिराजा हुआ है, तभी तो मध्य एशिया के मैदान मे घूमने वाले आर्य, एथेंस की पहाड़ियों पर आलथी-पालथी मारे सिकंदर, इराक की तट पर लहरें गिनने वाले मोहम्मद बिन कासिम और टॉवर ऑफ़ लंदन पर चढ़े अंग्रेज को बिना किसी टेलीस्कोप के, दूर से ही दिखाई दे गया था ये इंडिया.

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