Wednesday, 16 July 2014

उत्तराखंड जल प्रलय :आपदा पीड़ितों को छत नहीं और उन्हें चाहिए ‘शाही महल’;सूबे के पांच वरिष्ठतम नौकरशाहों के लिए बाजार भाव से एक अरब का अनुमोदन भी कर दिया। वरिष्ठ नौकरशाहों के लिए बनी नई आवासीय योजना पर उठे सवाल

उत्तराखंड जल प्रलय :

आपदा पीड़ितों को छत नहीं और उन्हें चाहिए ‘शाही महल’;सूबे के पांच वरिष्ठतम नौकरशाहों के लिए बाजार भाव से एक अरब का अनुमोदन भी कर दिया।


वरिष्ठ नौकरशाहों के लिए बनी नई आवासीय योजना पर उठे सवाल

आपदा पीड़ितों को छत मुहैया कराने के लिए सूबे की सरकार को चार हजार करोड़ रुपये चाहिए । केन्द्र सरकार से इस धन की मांग की गई है। मतलब साफ है, केन्द्र ने यदि पैसे दिए तो आपदा पीड़ितों के लिए घर बनेंगे वरना वो यूं ही भटकते रहेंगे। नौकरशाही की सोच का विरोधाभास देखिए। गरीब जनता को छत देने के लिए उसे केन्द्रीय इमदाद का इंतजार है। पर अपने लिए शाही महल बनाने में उसे न तो पैसों की कमी होती है और न हीं जमीन की।


देहरादून: भीषण जल प्रलय में सब कुछ गंवा चुके उत्तराखंड के आम लोग आज भी एक अदद छत के लिए भटक रहे हैं। प्रदेश का मुखिया कहता है कि जब तक आपदा पीड़ितों को छत मुहैया नहीं हो जाती तब तक वह सरकारी बंगले में कदम नहीं रखेंगे। सचिवालय के करीब दो दर्जन अधिकारी इसलिए सड़कों पर है कि उनके बैठने के लिए दफ्तर की व्यवस्था नहीं है। उधर, नौकरशाही की संवेदनहीनता देखिए कि वह अपने लिए शाही महल बनाने की योजना को अंजाम देने में लगी हुई है। इसके लिए न केवल जमीन देख ली गई बल्कि भवन निर्माण के वास्ते धन की व्यवस्था भी कर ली गई है।
करीब छह माह पूर्व हरीश रावत ने जब सीएम की कुर्सी संभाली तो उन्होंने घोषणा की कि वह मुख्यमंत्री के लिए मुकर्रर सरकारी बंगले में तब तक नहीं जाएंगे जब तक एक-एक आपदा पीड़ितों को आवास नहीं मिल जाएगा। अपदा में बेघर हुए हजारों परिवार चूंकि आज भी छत के लिए भटक रहे हैं इस कारण मुख्यमंत्री भी गेस्ट हाउस में अपने दिन काट रहे हैं। नौकरशाही के स्तर पर इस बात के लिए आज तक मंथन नहीं हुआ कि आखिर किस तरह बेघर हुए लोगों के लिए छत के इंतजाम किए जाएं। आपदा पीड़ितों को छत मुहैया कराने के लिए सूबे की सरकार को चार हजार करोड़ रुपये चाहिए । केन्द्र सरकार से इस धन की मांग की गई है। मतलब साफ है, केन्द्र ने यदि पैसे दिए तो आपदा पीड़ितों के लिए घर बनेंगे वरना वो यूं ही भटकते रहेंगे। नौकरशाही की सोच का विरोधाभास देखिए। गरीब जनता को छत देने के लिए उसे केन्द्रीय इमदाद का इंतजार है। पर अपने लिए शाही महल बनाने में उसे न तो पैसों की कमी होती है और न हीं जमीन की। पिछले दिनों मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में नौकरशाहों की एक बैठक हुई। बैठक में यह तय कर लिया गया कि सूबे के पांच वरिष्ठतम नौकरशाहों के लिए आलीशान भवन बनने चाहिए। प्रत्येक भवन एक-एक एकड़ में फैला होगा और इस पर 75 लाख रुपये के हिसाब से कुल साढे तीन करोड़ के करीब रुपये खर्च होंगे। यदि जमीन की कीमत को बाजार भाव से जोड़ दिया जाए तो रकम एक अरब से ऊपर चला जाएगा। आनन फानन में यह योजना तैयार हुई और मुख्य सचिव ने इसका अनुमोदन भी कर दिया। इसके बावजूद कि नौकरशाह अभी भी टिहरी हाउस में भव्य बंगले में रहते हैं।
राजपुर रोड पर स्थित मुख्य सचिव के बंगले की भव्यता की तो बात ही छोड़िये। नौकरशाहों को इस बात से भी कोई लेना देना नहीं कि प्रदेश मंत्रिमंडल के सदस्य, पूर्व मुख्यमंत्री व अन्य जन प्रतिनिधि या तो अपने आवास में रहते हैं या किसी पुरानी सरकारी बिल्डिंग में। जनप्रतिनिधियों की सुविधाओं के लिए उन्होंने कभी कोई योजना नहीं बनाई। राजधानी में विधायकों के लिए आज तक आवास नहीं बने। वे ट्रांजिट होस्टल में रहने के लिए बाध्य है। इस हास्टल में अव्यवस्था का आलम यह है कि यहां कमरे के बिस्तर तक से बदबू आती है। उधर, रेसकोर्ट में ही नौकरशाहों के ट्रांजिट हॉस्टल का एक-एक कमरा फाइव स्टार होटल होने का आभास देता है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि सूबे की सम्पदा और यहां के संसाधनों पर क्या सिर्फ नौकरशाहों का ही अधिकार है? जब बात आम जन की सुविधा और सहूलियत की आती है तो तरह-तरह के नियम कानून आड़े जाते हैं, पर बात जब उनकी अपनी होती है तो सारे नियम शिथिल हो जाते हैं। अब देखना यह है कि नौकरशाहों की आवासीय योजना पर स्वास्थ्य लाभ लेकर दिल्ली से लौटे सीएम क्या रुख अपनाते हैं।

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