किसान आत्महत्या: आंकड़ों का गड़बड़झाला? ::::
Have India's farm suicides really declined?
सोमवार, 14 जुलाई, 2014 को 10:09 IST
भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड
ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2013 में 11,744 किसानों ने
आत्महत्या की जबकि 2012 में 13,754 किसानों ने आत्महत्या की थी.
ज़ाहिर है कि किसानों की आत्महत्या के मामलों में कमी आई है. तो क्या भारतीय किसानों की मुश्किलें कम हुई हैं?खेती किसानी मामले पर लगातार लिख रहे और इस मामले पर काफी अध्ययन कर चुके पत्रकार पी साईनाथ को यह आंकड़ों की बाज़ीगरी लगती है.
भारतीय किसानों के आत्महत्या की घटती दर का पूरा सच, पढ़िए विस्तार से.
आंकड़ों में आत्महत्या में कमी अच्छा संकेत है, लेकिन तभी तक जब तक आप इन आंकड़ों को गंभीरता से नहीं देखते.आत्महत्या करने वालों में से 7,653 किसान पांच अहम राज्यों- महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और कर्नाटक के थे. देश भर में आत्महत्या करने वालों में दो तिहाई किसान इन्हीं राज्यों से हैं. इस सूरत में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
अमीर राज्य महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा 3,146 किसानों ने आत्महत्या की. लगातार क्लिक करें 12वें साल महाराष्ट्र किसानों की आत्महत्या के मामले में टॉप पर है. राज्य में 1995 से अब तक 60,750 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
दरअसल, किसानों की आत्महत्या के मामले में कमी इसलिए देखी जा रही है कि क्योंकि परंपरागत तौर पर किसानों की आत्महत्या वाले राज्यों में इस मामले को दबा दिया जा रहा है.
इन दावों से पहले के तीन साल के दौरान छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या का औसत 1567 और पश्चिम बंगाल का औसत 951 था.
संदेह बढ़ाने वाले आंकड़े
मैं ये नहीं कहता कि इन राज्यों में किसानों की आत्महत्या में कोई कमी नहीं हुई. लेकिन सालाना गिरावट या बढ़ोत्तरी मामूली ही होगी.इस लिहाज़ से देखें तो पिछले तीन सालों के गिरावट के आंकड़े संदेह पैदा करने वाले हैं.
छत्तीसगढ़ में 2001 से 2010 के दौरान करीब 14 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की, लेकिन आंकड़ों के मुताबिक 'अचानक' से अंतिम तीन सालों में किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की.
किसानों की आत्महत्या के लिहाज़ से केंद्र शासित प्रदेशों में पांडिचेरी की स्थिति सबसे ख़राब रही है. यहां के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2011, 2012 और 2013 में किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की. हालांकि 2010 में यहां चार किसानों ने आत्महत्या की. 2009 में इसी प्रदेश में 154 किसानों ने आत्महत्या की थी.
भारतीय किसानों की आत्महत्या के मसले पर महत्वपूर्ण अध्ययन करने वाले चेन्नई स्थित एशियन कॉलेज़ ऑफ़ जर्नलिज़्म के प्रोफेसर के नागाराज बताते हैं, "साफ़ है कि आंकड़ों के साथ बाज़ीगरी हुई है."
नागाराज कहते हैं, "अगर आप आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या कम करना चाहते हैं, तो उसे एकदम ग़ायब नहीं कर सकते. उसे आप किसी दूसरी कैटेगरी में डाल देते हैं. आंकड़ों में हेरफेर करने के लिए यही रास्ता अपनाया जाता है."
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के पास जमा कराए गए आंकड़ों में क्लिक करें भारतीय राज्यों की ओर से यही गड़बड़झाला किया गया है.
क्या है गड़बड़झाला?
इसके अलावा राज्य स्तर पर एक दूसरी तरह की गड़बड़ी भी हुई है. एनसीआरबी के आंकड़ों वाले पृष्ठ पर दो तरह की कैटेगरी दर्ज है- एक तो स्वरोज़गार (खेती-किसानी) और दूसरी कैटेगरी है- स्वरोज़गार (अन्य).छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा शून्य की ओर जा रहा लेकिन स्वरोज़गार (अन्य) की कैटेगरी में आत्महत्या करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने 2008 और 2009 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या नहीं बताई है. इन सालों में स्वरोज़गार (अन्य) की कैटेगरी में आत्महत्या करने वालों की संख्या है- 826 और 851.
महाराष्ट्र सरकार के दावे के मुताबिक उसके यहां किसानों की आत्महत्या में 640 मामले कम हुए हैं, जबिक इस दौरान स्वरोजगार (अन्य) की कैटेगरी में 1000 आत्महत्याएं बढ़ गई हैं.
मध्य प्रदेश में किसानों की आत्महत्या के 82 मामले कम हुए हैं जबकि स्वरोजगार (अन्य) कैटेगरी में 236 मामले बढ़ गए हैं. पांडेचरी में यही हाल है. पश्चिम बंगाल ने समस्या का और भी आसान हल निकाला है. राज्य सरकार ने किसी भी कैटेगरी में आत्महत्या करने वालों की संख्या 2012 से ही दर्ज नहीं की है.
क्लिक करें किसानों की आत्महत्या के मामले कमी का जश्न मनाने वाले, एक अन्य पहलू पर भी ध्यान नहीं दे रहे हैं.
आत्महत्या की वजह
भारतीय जनगणना के मुताबिक 2001 के मुक़ाबले 2011 तक किसानों की संख्या में 77 लाख की कमी हुई हैं. लाखों की संख्या में लोग खेती-किसानी छोड़ रहे हैं.औसतन देश में 2000 से कम किसान खेती–किसानी छोड़ रहे हैं. इस लिहाज़ से 2013 में किसानों की संख्या भी कम हुई होगी.
कई अध्ययनों के मुताबिक 2011 में आबादी के दूसरे हिस्सों की तुलना में किसानों की आत्महत्या की दर 47 फ़ीसदी ज़्यादा थी. जिन राज्यों में खेती किसानी पर संकट है, वहां तो यह दर सौ फ़ीसदी ज़्यादा है.
तो क्या सिर्फ़ सूखे और फ़सल बर्बाद होने के चलते किसान आत्महत्या करते हैं?
दरअसल, अच्छी फ़सल होने पर भी किसान आत्महत्या करते हैं और जब फसल बर्बाद होती है तब भी. जब बारिश होती है तब भी, जब नहीं होती है तब भी.
आत्महत्या की वजहें
अच्छे मानसून के दौरान भी किसानों की आत्महत्या के ज़्यादा मामले सामने आए हैं और सूखे के दौरान भी.कपास, गन्ना, मूंगफली, वनिला, कॉफी और काली मिर्च जैसी नकदी फसल उगाने वाले किसान भी आत्महत्या करते हैं.
तो क्या तर्क देना सही होगा कि सूखे से नकदी फ़सल वाले किसान आत्महत्या करते हैं, खाद्यान्न उत्पादन करने वाले नहीं.
भारतीय खेती पर दक्षिण-पश्चिम मानूसन का अहम प्रभाव पड़ता है, लेकिन मानसून की कमी किसानों की आत्महत्या का मुख्य कारण नहीं है.
नकदी फसल के किसानों की आत्महत्या के ज़्यादातर मामलों में कर्ज़, लागत का बढ़ना, सिंचाई का तरीका और फसल का उचित दाम नहीं मिलने की भूमिका ज़्यादा होती है.
Have India's farm suicides really declined?
Are fewer farmers killing themselves in India today?
Yes, according to the latest data from the country's National Crime Records Bureau (NCRB). A total of 11,744 farmers ended their lives in India in 2013, down from 13,754 farmers in 2012.
Most farm suicides have been linked to debt, a sharp rise in input costs, serious water crises, price volatility and crop failure due to pest attacks and disease. A total of 296,438 farmers have killed themselves in India since 1995.
The latest numbers show a very welcome decline - until you look at the numbers more closely.
With a total of 7,653 cases, five key states - Maharashtra, Andhra Pradesh, Chhattisgarh, Madhya Pradesh and Karnataka - still account for two-thirds of all farmer suicides in the country. There are no changes in the pattern there. Also, 15 other states recorded mostly mild increases.
Alarming Also, with 3,146 suicides, Maharashtra, India's richest state, tops the grim list for the 12th year in a row. The state alone has accounted for an alarming 60,750 farm suicides since 1995.
The fall in numbers coincides with a growing trend of states with traditionally high farm suicide numbers declaring zero or near-zero suicides in recent years.
Chhattisgarh has done this three years in a row now since 2011: it has declared 0, 4 and 0 suicides. West Bengal recorded no suicides in both 2012 and 2013.
What if we take a three-year average for these states before they began showing up virtually no suicides?
For Chhattisgarh that average was 1,567 suicides, and for West Bengal, 951.
This is not to say that states cannot or have not seen any decline at all. Also, one-off annual rises or falls are quite normal.
It is just that the nature of the decline as recorded in the past three years appears to be highly suspect.
So Chhattisgarh, a state that saw some 14,000 farm suicides from 2001 to 10, suddenly has none at all in the last three years.
Pondicherry, for long the worst among the federally-governed union territories in farm suicides, has declared a zero figure in 2011, 2012 and 2013. In 2010, it claimed only four suicides. But in 2009, its figure was 154 farm suicides.
"Clearly, massaging of the data continues," says Prof K Nagaraj, an economist at the Chennai-based Asian College of Journalism, whose study on farm suicides in India remains the most important one on the subject.
"When you want to play down very bad numbers in one column, you can't just erase them. You have to fit them into some other category. Shoving unwanted numbers into 'Others' is the common route to data massaging."
And that's exactly the trend in the data that India's states have been submitting to the NCRB.
Here's another thing that possibly gives away the heavy massaging the data have been subject to at the state level.
On the same page as the NCRB data which records the victims as "Self-employed (farming/agriculture)" is another column: "Self-employed (Others)."
As Chhattisgarh's farm suicide numbers have dwindled to zero, its numbers of suicides in this "Self-employed (Others)" column have swollen.
Premature In the years when Chhattisgarh wasn't blanking out farm suicides numbers - 2008 and 2009, for example - its figures for suicides in this "Others" column were 826 and 851.
In the last two years, when it reported zero farm suicides, the numbers for others soared to 1,826 and 2,077.
Maharashtra, which claims a decline of 640 in farm suicides, records a rise of over 1,000 suicides under "Self-employed (Others)."
Madhya Pradesh records a decline of 82 in farm suicide numbers, but a rise of 236 in this "Others" category. Pondicherry shows a similar trend. West Bengal solved that problem by simply not filing any data at all in 2012.
Those prematurely celebrating a decline in farm suicides miss another point.
There were 7.7 million fewer farmers in 2011 than there were in 2001, as the census data shows. Millions were and are either quitting the profession or losing full farmer status.
In that period, the country, on average, saw 2,000 fewer farmers each day. So there were surely even fewer farmers in 2013.
Also studies have shown that suicide rates among Indian farmers were 47% higher than they were for the rest of the population in 2011. In some of the states worst hit by the farm crisis, they were well over 100% higher.
Are the suicides occurring because of drought and crop failure?
Farmers have been killing themselves in years when the crop has been excellent and in the years it has failed.
They have taken their own lives in large numbers in very different years. When it rains they lose out; when it doesn't, they lose out worse.
There have been high suicide numbers in some good monsoon years. And so too, in years of drought.
The suicides have been occurring overwhelmingly amongst cash crop farmers - growers of cotton, sugar cane, groundnut, vanilla, coffee, pepper and others.
Far fewer suicides occur amongst growers of paddy or wheat.
Can we argue that drought kills cash crop farmers but not those cultivating food crops?
India's south-west monsoon does have a significant impact on agriculture. But lack of a good monsoon is by no means the main reason for the farm suicides.
With the bulk of those suicides occurring amongst cash crop farmers, the issues of debt, rising input costs, water-use patterns, and severe price shocks and price volatility come much more to the fore.
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